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  • सरला देवी का जीवन: महात्मा गांधी के साथ प्रेम प्रसंग

    सरला रवींद्र एन टैगोर की भतीजी थीं। उनके पति और सुनील दत्त पीबी मोहयाल Punjabi Mohyal Brahmin थे। गांधी का फरवरी 1940 का एक प्रेम पत्र और उनके पति का जीवन परिचय भी इस ब्लॉग में है।

    लेडी एडविना माउंटबेटन के साथ नेहरू के प्रेम संबंधों के बाद अब महात्मा गांधी के पोते ने बंगाली सरला देवी के साथ महात्मा गांधी के प्रेम संबंधों का खुलासा किया है, जिसका विवाह लाहौर के हिंदुस्तान पत्रिका के एक अन्य स्वतंत्रता सेनानी संपादक के साथ हुआ।

    सरला देवी का एक बेटा है जिसका नाम दीपक चौधरी है। महात्मा गांधी ने इंदिरा के साथ दीपक की शादी के लिए पंडित नेहरू को प्रस्ताव दिया। लेकिन नेहरू ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया। बाद में दीपक चौधरी ने महात्मा गांधी की एक बेटी से शादी की।  

    सरला देवी के पति चौधरी राम भुज दत्त आर्य समाज, कांग्रेस और पत्रकारों में एक सम्मानित व्यक्तित्व थे। उनका संबंध पंजाब और हरियाणा के प्रसिद्ध मोहयाल वंश से था। इस सोसायटी की वेबसाइट में स्वर्गीय सुनील दत्त और उनकी पत्नी नरगिस का नाम भी सुनहरे शब्दों में शामिल है। 

    जब वे जेल में थे तब महात्मा गांधी उनकी पत्नी की मेजबानी के रूप में उनके घर में थे। चौधरी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में भाग लेने के लिए जेल में थे और उनके आने के तुरंत बाद, गांधी – अब तक व्यक्तिगत ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित थे – ने एक पत्र में लिखा: “सरला देवी का साथ बहुत प्यारा रहा है … वह मेरी बहुत अच्छी तरह से देखभाल करती करती रही हैं।” 

    महात्मा गांधी के युवतियों के साथ नग्न सोने के उनके अनोखे प्रयोगों के तमाम पहलुओं का मनोवैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण एक पुस्तक में किया गया कि महात्मा गाँधी के के ब्रह्मचर्य के पीछे बहुत से कारण रहे थे और ये कारण इतने मजबूत थे कि महात्मा का पूरा जीवन वासनाओं के खिलाफ संघर्ष में बीत गया। संभव है सरला जी के साथ उनके पति की अनुपस्थिति में रहना भी रहना भी ब्रह्मचर्य का एक प्रयोग हो।

    ‘द संडे टेलीग्राफ’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, महात्मा गांधी 50 साल की उम्र में सुंदर लेखिका सरलादेवी चौधरी के प्यार में पड़ गए, जिससे उनके पारिवारिक जीवन और उनके काम को खतरा था, उनके पोते ने एक नई किताब में दावा किया है। राष्ट्रपिता की एक जीवनी में, राजमोहन गांधी ने लिखा है, “”I wanted to capture the real man in my book, so I couldn’t leave out this episode of my grandfather’s life.”

    हालांकि उस समय लेखक – नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की भतीजी – के साथ गांधी की दोस्ती के बारे में पता था, लेकिन तीन साल की महिला के साथ उनके संबंध का खुलासा नहीं किया गया था। अब तक। प्रतिभाशाली, अच्छी तरह से सूचित और प्रेरित, सरला देवी 29 वर्ष की थीं, जब गांधी ने पहली बार उन्हें 1901 में एक आर्केस्ट्रा का संचालन करते हुए देखा था, क्योंकि इसमें कांग्रेस के लिए लिखा गया एक गाना बजाया गया था, वह पार्टी जिसने अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।

    लेकिन जब तक वह 47 वर्ष की नहीं हो गईं, और अखबार के संपादक राम भुज दत्त चौधरी से शादी कर ली, तब तक गांधी उनके प्यार में पड़ गए, जब वह लाहौर में युगल के घर में रह रहे थे, जो अब पाकिस्तान में है।

    50 साल की उम्र में, चार बच्चों के विवाहित पिता, गांधी खतरनाक रूप से एक ऐसे प्रलोभन के शिकार होने के करीब आ गए, जिसने उनके परिवार और उनके जीवन के कार्य दोनों को खतरे में डाल दिया, सुंदर सरलादेवी चौधरी के प्यार में पड़ने के बाद, जो उनसे तीन साल छोटी थीं।

    न तो महात्मा गांधी और न ही सरला देवी ने अपनी आत्मकथाओं में अपने प्रेम संबंधों के बारे में लिखा।

    महीनों के भीतर, वह अपने पोते के अनुसार “आध्यात्मिक विवाह” के संदर्भ में अपने रिश्ते के बारे में सोच रहा था – जो मानते हैं कि वह अनिश्चित है कि उसके दादाजी का इससे क्या मतलब था। (Within months, he was thinking of their relationship in terms of a “spiritual marriage” according to his grandson—who admits he is unsure what his grandfather meant”

    हर किसी ने एक ऐसी महिला के साथ गांधी के उलझने के आध्यात्मिक लाभों की सराहना नहीं की जो उनकी पत्नी नहीं थी। उनके बेटे देवदास – राजमोहन के पिता – ने अपने पिता महात्मा गाँधी से आग्रह किया कि वे सरला से संपर्क में रहना छोड़ दें। Author Rajmohan Gandhi writes in his new book: “He responded to letters written to him by my father Devdas and other leaders, especially Rajagopalachari asking him to come out of the matter.”

    रोमांटिक पत्र “जबकि उनके पति, जिन्हें भारत का अंतिम वायसराय नियुक्त किया गया था , ने भारत की स्वतंत्रता और विभाजन की शर्तों को खारिज कर दिया था , उन्होंने नेहरू के साथ आत्माओं के एक भावुक मिलन का अनुभव किया, जो उनके जीवन का महान अधूरा प्यार था। एडविना और नेहरू ने 1960 में अपनी मृत्यु तक एक-दूसरे को लिखे सैकड़ों पत्रों तक मॉर्गन (अगाथा क्रिस्टी) की अद्वितीय पहुंच थी। ‘ एडविना माउंटबेटन: ए लाइफ ऑफ हर ओन’ किताब में लिखा (Romantic letters“ While her husband, appointed the last viceroy of India, hammered out the terms of India‘s independence and partition, she experienced a passionate union of souls with Nehru, the great unfulfilled love of her life. Morgan (Agatha Christie) had unique access to the hundreds of letters Edwina and Nehru wrote to each other until her death in 1960.” Written in the book ‘Edwina Mountbatten: A Life of Her Own’  )

    महात्मा गांधी ने भी सरला देवी को इतने तथाकथित आध्यात्मिक प्रेम पत्र लिखे थे। मुझे उनमें से एक पत्र की प्रति मिली: 343। सरला देवी को पत्र 1 फरवरी 1, 1940 मेरी प्यारी सरला, आज रात प्रार्थना के बाद कुछ मिनट लें। प्यार। बापू एक फोटोस्टेट से: जीएन 9085 

  • भारत को आजादी दिलाने में सुभाष बोस की अहम् भूमिका : ब्रिटिश पी एम

    कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीबी चक्रवर्ती, जिन्होंने भारत में पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में भी काम किया था, ने डॉ आर सी मजूमदार की पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ बंगाल’ के प्रकाशक को संबोधित एक पत्र में लिख कर खुलसा किया: “जब मैं कार्यवाहक गवर्नर था, लॉर्ड एटली, जिन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन को हटाकर हमें स्वतंत्रता दिलाई थी, ने अपने भारत दौरे के दौरान कलकत्ता के गवर्नर पैलेस में दो दिन बिताए थे। उस समय मैं उनके साथ उन वास्तविक कारकों के बारे में लंबी चर्चा हुई, जिनके कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।”

    “मेरा उनसे सीधा सवाल था कि

    चूंकि गांधी का” भारत छोड़ो “आंदोलन कुछ समय पहले धीमा पड़ गया था और 1947 में ऐसी कोई नई बाध्यकारी स्थिति पैदा नहीं हुई थी जिससे जल्दबाजी में ब्रिटिश प्रस्थान की आवश्यकता हो, तो उन्हें क्यों छोड़ना पड़ा?”? 

    अपने जवाब में एटली ने कई कारणों का हवाला दिया, उनमें से प्रमुख नेताजी की सैन्य गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारतीय सेना और नौसेना कर्मियों के बीच ब्रिटिश क्राउन के प्रति वफादारी का क्षरण था। 

    हमारी चर्चा के अंत में मैंने एटली से पूछा कि भारत छोड़ने के ब्रिटिश निर्णय पर गांधी के प्रभाव की सीमा क्या थी। इस सवाल को सुनकर, एटली के होठों में  व्यंग्यात्मक मुस्कान थी  क्योंकि एटली ने धीरे-धीरे “न्यूनतम!” शब्द गुनगुनाया ।((सुभाष चंद्र बोस, द इंडियन नेशनल आर्मी , एंड द वार ऑफ इंडियाज लिबरेशन-रंजन बोर्रा, जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल रिव्यू , नंबर 3, 4 (विंटर 1982))।

    जस्टिस चक्रवर्ती की तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से हुई वार्तालाप का उल्लेख जनरल जीडी बख्शी ने अपनी पुस्तक नॉलेज वर्ल्ड पब्लिकेशन, बोस: एन इंडियन समुराई में भी किया है।

    Mr. Fenner Brockway, Political Secretary of the Independent Labor Party  द्वारा एटली के विचारों को प्रतिध्वनित किया गया था, “ भारत के स्वतंत्र होने के तीन कारण थे । एक, भारतीय लोग स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए दृढ़ थे। दूसरा, भारतीय नौसेना द्वारा विद्रोह था। तीन, तीन ब्रिटेन भारत को अलग नहीं करना चाहता था, जो उसके लिए एक बाजार और खाद्य पदार्थों का स्रोत था। https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx

    Surce: https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx)

    पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा है कि ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी सिर्फ अहिंसा आंदोलन के बल पर नहीं मिली है बल्कि क्रांतिकारियों का बलिदान और योगदान भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के सामने आने से पहले कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ और उसी ने स्वतंत्रता की लौ जलायी। बाद में महात्मा गांधी ने इस काज में जन-मानस को साथ जोड़ा।

    स्वतंत्रता सेनानी वीर दामोदर सावरकर ने लिखा है, जब आप स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सोचते हैं तो आपको 1857 से 1947 तक सोचने की जरूरत है। आपको स्वतंत्रता संग्राम के 90 साल के बारे में सोचने की जरूरत है।

  • Do Heirs of the killer of Subhash Bose rule India?

    Tags: Heirs Nehru Gandhi Dynasty Netaji Subhash Chandra Bose UPA Sonia Congress Communist Stalin Soviet Union BBC Political murder Attle Svetlana Guha Forward Block Dilli Chalo Right of Information Act RIA; 

    Sonia led UPA’s government has no record about Netaji ‘s freedom struggle! Do Killers keep record of their victims? Oh! Almighty Ishwar! Give me a boon, Who are traitors?Who are Patriots of my nation?  

    Bhagat Singh did not ask only for an independent
    Punjab or Subhash Chandra Bose for an independent
    Bengal? But Pt Nehru fought to divide
    India for ruling divided
    India and there after groomed his daughter for the post of PM. It is in public domain without the contradiction that Gandhi gave his surname to her daughter and her husband.  

    Now Netaji is communal and not freedom fighter. Lokmanya Tilak and Veer Savarkar are terrorists in NCERT and IGNOU books.Traitors becdome patriots and patriots become traitors.  

    As reported by BBC on March 9: “A separatist group in north-east
    India has killed eight of its members for allegedly collaborating with Indian security forces, the rebels have said. The eight were “found guilty” of aiding Indian intelligence groups, the Kangleipak Communist Party (KCP) said.   The KCP claims the alleged traitors – including their vice-president – helped Indian officials in Manipur state arrest and kill some of its leaders. At least 17 rebel groups are fighting for independence in the region.  

    A nation can survive its poors India can survive its illetrates But how we can survive Traitors with in A nation can survive its poors, India can survive its illetrates,  But how we can we survive, Traitors with in, Oh! Almighty Ishwar! Give me a boon, To be a patriot and I can know, Who are traitors and who are Patriots of my nation?  

    Please find the full poem in my previous article at: http://www.newsanalysisindia.com/111032007.htm 

    Who killed Subhash? I have discussed fully in my article of May 18, 2006: premendra.sulekha.com/blog/post/2006/05/who-killed-netaji.htm   Political murders can’t be done by politicians themselves. Political murder executed under a conspiracy in the exchange of political bargaining instead of cash. They give Supari to others. Dons get supari for murder and get money.  

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    In political murder of Subhash Chadra Bose mainly three parties were involved: (1) Pt Nehru (2) Stalin (3) Mr.Clamment Attlee the then PM of
    Britain 

    Musharraf is clone of NehruBenazir Bhutto and nawaz Shariff are in exile as per the contract between
    America and Musharraf. Musharraf may be able to rule
    Pakistan as a dictator in this way. Nehru’s role was the same as the role of Musharraf. Nehru wanted to keep Subhash Bose ourt of
    India forever so Nehru could rule
    India without hurdeles. Nehru was Capitalist to shake hand with Mountbetton and AttleNehru accepted partion of
    India to ruled divided
    India. Every one knows romantic relation of Lady Mounbetton with Nehru. Later he shook hands with Attlee to block the chances of reurning of Subhash in
    India.  

    Dear Mr. Attlee:I understand from a reliable source that Subhas Chandra Bose, your war criminal, has been allowed to enter Russian territory by Stalin. This is a clear treachery and betrayal of faith by the Russians. As
    Russia has been an ally of the British-Americans, it should not have been done. Please take note of it and do what you consider proper and fit.Yours sincerely,
    Jawaharlal Nehru. 

    Nehru shook hands with Stalin to be communisCommunists are not only supported at present but in the past also they supported Nehru Gandhi Dynasty due to their god fathers
    Russia and
    China. . Speaking to the Hindu, Prof. Guha lent evidence to the view that Subhash Chandra Bose died in a Soviet Prison. His father and Subhash Bose both were kept in Siberian prioson.He noted that Joseph Stalin was crueler than Adolf Hitler’. 

    In this way Nehru was neither capitalist nor communist actually he was opportunist.  

    ‘Netaji Dead or Alive?’ book of
    Samar GuhaFormer Indian ambassador Dr Satyanarayana Sinha once met Gouha, the son of Abani Mukherjee, the founder of the Communist Party of India, who told him that his father and Netaji were prisoners in adjacent cells in
    Siberia. He also told Sinha that Netaji had assumed the name ‘Khilsai Malang’ there. (Abani Mukherjee was the companion of Virendranath Chattopadhyay, who is the brother of Sarojini Naidu). Dr Sinha came back to
    India and reported this fresh news to Nehru. But to his great surprise and frustration, Sinha was unexpectedly scolded by Nehru and ever since, the relationship between the two deteriorated. Sinha has written this down in his book. He has even described this incident before the Khosla commission. There are more details on page 318 of Netaji Dead or Alive?’ by Samar Guha. 

    Netaji died in
    Siberia jailAs reported in every newspaper at that time, daughter of Stalin Swetlana said in
    Delhi that Netaji was in
    Siberia’s yarkutaskjail. She also gave barrack No. also. 

    Svetlana Stalin wanted to marry Dinesh Singh’s brotherEvery one knows about the secrect relation of Indira Gandhi with former foreign minister Raja of Pratap Garh Dinesh Singh. Her daughter Ratna Kumari is in Congress. Pt Nehru blocked the road of that marriage. At that time Svtlana was as the enemy of Soviet Union.And Nehru had friendly relation with the Soviet U nion especially for keeping Subhash Bose in the Siberian Prison. Stalin sent Subhash in Siberian Jail as desired by Nehrru. 

    Killing of Netaji files by Congress Governments 

    Most of the secret files about Netaji, that were maintained by Pandit Nehru himself as “P.M.’s special” files, one of which included all communications connected with INA Defense Committee, were reported by the Indira Gandhi Government as “either missing or destroyed”. It will not be easy to presume that Netaji’s communication to Nehru and a copy of Nehru’s letter to Attlee have also been destroyed. These files were dealt with by the personal secretary of Pt Nehru – Mohmd Yunus. 

    Hers are Indira Gandhi by continuing this are giving peace to the soul of Nehru and Indira. 

    Why Mukherjee Commission Report in dustbinThe Mukherjee Commission submitted its report to the Indian Government on November 8, 2005. The report was tabled in Parliament on May 17, 2006. The probe said in its report that Bose did not die in the plane crash and the ashes at Renkoji temple are not his. However, the Indian Government rejected the findings of the Commission, amid speculation that accepting it would “harm Nehru’s image”.As reported on March 27 in Stateman: In a shocking revelation, the government has said it has no information in its records about the contribution of Netaji Subash Chandra Bose to
    India’s freedom struggle. This admission has come from a senior government officer in response to an application by Delhi-based Mr Dev Ashish Bhattacharya under the Right to Information Act.

    No record on Netaji’s role in freedom struggle: GovtMr Bhattacharya approached the Union home ministry with five questions in which he had sought information on what role Bose had in the freedom movement. The applicant had also sought information whether
    India maintains any protocol with regard to Bose and whether he fits somewhere in that protocol. “The information on points in your letter is not available in the records,” Mr SK Malhotra, deputy secretary in the home ministry said in reply to Mr Bhattacharya’s petition. “It was shocking for me to have this response,” Mr Bhattacharya said. Netaji Subash Chandra Bose may have contributed immensely towards India and make people aware about their strength to fight British man-to-man but the government says it has no documents to substantiate this, said Mr Bhattacharya.  

    See the political fraud and unholy allianceSubhash Bose is the ideal of Forward Block. It is an ally in West Bengal Government of CPI (M). They are supporting to the UPA from out side. There is a report of Jan 2007: The spirit of legendary freedom fighter Subhash Chandra Bose shone here again Monday evening at the launch of the Volume 12 of Netaji’s Collected Works entitled ‘Chalo Delhi’ – the inspiring slogan of the Indian National Army he founded to liberate India.‘It was a call to freedom fighters all over the country. In his last speech, he showed indomitable faith and conviction that
    India will win freedom,’ External Affairs Minister Pranab Mukherjee said at the launch of ‘Chalo Delhi’ at the Taj Mahal hotel here.  

    Bahadur Shah Zafar Waited For Netaji for 90 YearBahadur Shah was a sad and broken man, especially after the failure of the War of Independence. The failure cost him dearly: a lost throne, brutal murder of his sons and exile to a foreign land.The patriot that he was, he sought the cooperation of Indian Princes and Rajas against the British. In a historic letter, he wrote to them that it was his “ardent wish that the whole of
    Hindustan should be free”.  The king died on November 7, 1862, at a ripe age of 89. The British feared him, even in his death. He was immediately buried in the British officer’s residential compound.Neither the Bahadursha Jaffar nor his Mazar has been forgotten. The mausoleum stands as a memorial to the last Mughal ruler who adorned
    Delhi’s throne that was once occupied by Akbar and Shahjahan, among others. The Mazar in
    Yangon (
    Rangoon) is the final resting place of the king, his wife and grand daughter. 

    Indians in general, the Mazar is a national monument, a vivid reminder of pre-colonial, undivided
    India – and of the king who led, however unsuccessfully, the battle against imperial intruders. It was Netaji Subhash Chandra Bose, a titan among
    India’s nationalist leaders, who turned the Mazar into a memorable spot of national pilgrimage. With the headquarters of his Indian National Army (INA) set up in
    Yangon during the Second World War, Netaji regularly visited the Mazar. He issued his famous appeal to ‘March on to
    Delhi’ – ‘Dilli Chalo’ – from
    Yangon, perhaps while visiting the Mazar   

    Was the above appeasement to Muslim or the present government?

    By Premendra Agrawal

  • Subhash Bose was alive in 1948: CIA Leak case

    President Bush wiped away the former White House aide’s 2 1/2- year sentence in the CIA leak case. What will do the future President of India either Pratibha or Shekhawat in the killing or kidnapping of Netaji Subhash Bose or the documents related to him? Central Information Commission (CIC) asked government to reveal Netaji death secrets. Thus CIC has opened the Netaji Mystery cae again. Why Nehru blocked and why present Indian Govt wants to hide the truth on Netaji? Nehru’s dark side should not be come out in light.

    President Bush wiped away the former White House aide’s 2 1/2-year sentence in the CIA leak case. “I rule nothing in or nothing out,” George Bush said when asked about whether he might pardon Libby before leaving office in January 2009. Indian Government does not want to see the repeatation of CIA leak case here in India . So it hides every truth related to the Netaji’s kidnapping and false declaration that Netaji died in the Plane Crash.

    In fact Left supported Rightist Congress led government is blind follower of Sonia Gandhi as well as America . Manmohan government makes fool to Indian people to keep them in dark for the secrets of Indo US Nuke Deal. This Non-violent government becomes violent to cut the finger which is raised on Nehru’s dark side.

    Re-opening of Netaji’s death mystery The mystery over the 1945 disappearance of Netaji Subhash Chandra Bose may finally come clear with the Central Information Commission (CIC) directing the federal government to furnish details about it. The full bench of the CIC, headed by the Chief Information Commissioner Wajahat Habibullah directed the federal home ministry to furnish the information relating to the disappearance of Bose sought by an individual.

    “By doing so, the MHA (Ministry of Home Affairs) would not only be discharging its legal duties and rendering an essential service to a public cause, it may finally help resolve an unsolved mystery of independent India ,” the CIC observed in its order.

    Sayantan Dasgupta, a resident of New Delhi , had sought certified copies of all documents exhibited before the Netaji Inquiry Committee of 1956 headed by Shah Nawaz Khan and the Justice B.D. Khosla Commission under the Right to Information (RTI) Act of 2005.

    Conflicting accounts While both the Khan Committee and the Khosla Commission agreed with the government’s claim that Netaji died in a plane crash in Taiwan before Japan fell to the Allies, the Justice Manoj Mukherjee Commission, appointed by the National Democratic Alliance government in 1999 was categorical in its report that the Taiwanese authorities had said that no such air crash took place.

    Like Bush, Mamohan Govt does not want to handover documents President Bush will invoke executive privilege rather than yield to congressional demands for documents on the firing of at least eight U.S. attorneys, who allegedly were canned for political reasons. White House counsel Fred Fielding announced on June 28, 07 that Team Bush would not hand over documents from ex-White House counsel Harriet Miers and former political director Sara Taylor. Sen. Chuck Schumer (D-N.Y.), a senior member of the Senate Judiciary Committee, said,” “Maybe everyone has acted honorably. But show me an administration that craves secrecy, and I’ll show you an administration that probably has something to hide,”

    Following is the example how the goernment of Nehru Gandhi dynasty follow Bush in hiding the truth. No record on Netaji’s role in freedom struggle: Govt Few days back Mr Bhattacharya approached the Union home ministry with five questions in which he had sought information on what role Bose had in the freedom movement.

    The applicant had also sought information whether India maintains any protocol with regard to Bose and whether he fits somewhere in that protocol. “The information on points in your letter is not available in the records,” Mr SK Malhotra, deputy secretary in the home ministry said in reply to Mr Bhattacharya’s petition. “It was shocking for me to have this response,” Mr Bhattacharya said. Netaji Subash Chandra Bose may have contributed immensely towards India and make people aware about their strength to fight British man-to- man but the government says it has no documents to substantiate this, said Mr Bhattacharya.

    Anuj Dhar, author of a recently published book on Netaji Anuj Dhar, author of a recently published definitive book on the subject, Back from Dead (Manas, Rs 495), is certain that not only was Netaji hidden in Russia by Stalin, but also treated well.

    The Mukherjee Commission benefited a lot from Dhar’s hard work. The writer had persuaded the Taiwanese Government to officially admit that the Taihoku air crash of August 18, 1945 , never happened.Justice Mukherjee went to Taiwan When Justice Mukherjee went to Taiwan in January, the host Government reiterated this position. The Mukherjee Commission also received depositions from a large number of persons who stated on record as having learnt of Netaji’s stay in the former USSR from sources who had actually seen him there.

    Disclosure of Ardhendu Sarkar

    The most sensational disclosure was made by Ardhendu Sarkar, a mechanical engineer employed by the Ranchi-based public sector firm, Heavy Engineering Corporation. He told the Commission that in 1962, while on deputation at the Gorlovka Machine Building

    Plant near Donetsk in Ukraine , he had met a German called Zerovin.

    Zerovin had been taken to the USSR in 1947-48 and had spent some time at a gulag in Siberia for “indoctrination”. There, one day in 1948 (Zerovin told Sarkar), he had met Netaji and had actually exchanged a few words with him in German.

    After hearing of this, an excited Sarkar went to the Indian Embassy in Moscow and reported the matter to an Indian diplomat.

    Indian Ambassador closed the toungue of disclosure Sarkar

    What shocked Sarkar (as he recounted in his deposition) was the officer’s reaction. “Why have you come to this country? Does your assignment include poking your nose in politics? Don’t discuss this information with anyone. Just do what you have been sent for,” the bureaucrat had snapped back.

    Within days, Sarkar was hounded out of the USSR . Shaken to the bones, he never spoke about the incident for 38 years before deciding to break his silence on September 28, 2000 .60 years ruled Congress government has no record about Netaji ‘s freedom struggle! Do Killers keep record of their victims? Oh! Almighty Ishwar! Give me a boon, Who are traitors? Who are Patriots of my nation? Tags: Subhash Bose alive in 1948 Netaji Death Mystery Document Siberia CIA Leak Nehru’s dark side Bush Manmohan CIC Right to Information RTI Anju Dhar Justice Mukherjee Ardhendu Sarkar Congress Newsanalysisindia; tag this By Premendra Agrawal www.newsanalysisindia.com/

  • Who killed Netaji?

    Congress killed Netaji files. Why Nehru betrayed Netaji. Gold- Diamond loaded Trunks took Air journey. Where was wealth of Azad Hind Bank? What said JanmBhoomi editor? What said Nehru to UK PM?

    Who were involved in the conspiracy to murder Subhash Chandra Bose, Dr. Shyama Prasad Mukerjee and Lal Bahadur Shstri? It is not possible to find out answers of all these in this limited worded article.

    Researcher Professor Purabi Roy and her fellows, who have estimated the worth of INA funds and who are prominent deponent before the Mukherjee commission, have some light to throw on the issue. But Report of Mukherjee commission is totally rejected by Congress led Govt. without giving any reason. Congress ally CPM also suspects congress move and wants the discussion in the parliament on the Report.

    Threatening to Researchers

    Did Netaji really die in the 1945 plane crash? Incredibly hard facts have now emerged from Moscow vaults. Netaji was in fact very much alive till at least 1946 one full year after his supposed “death”. Russian archives had yielded two precious documents. The first concerned a discussion that Joseph Stalin had with his defense minister Voroschilov and foreign affairs minister Molotov in 1946. The second was a report filed by a Soviet field agent stationed in India, also in 1946.

    One more British archive document also states that the entire theory of the plane crash, in Taihuku (Japan), was pre-planned and contrived. In fact as late as December 20, 1945, a Japanese newspaper even reported that Bose was on his way to the Soviet Union and passed through Tokyo.

    Find the killer of Netaji

    British Prime Minister Clements Attlee decided ‘Let him remain where he (Subhash C. Bose) is now’. This decision was taken in October 1945. It clearly indicates that he was alive even in Oct 1945.

    Netaji was reported to be alive even after 1945 by the British intelligence from Teheran and Kabul quoting the Russian embassy officials. This was even stated in the Shah Nawaz commission report (File No. 10/ Mis/ INA-pp 38, 39).

    In 1946, Gallacher, a British communist party worker publicly criticised the then Irish President D’ Valera for welcoming Netaji in Doublin! D’ Valera didn’t deny this. He visited India after 1946 and even commented publicly ‘I expected to meet Bose here’!

    The British intelligence has reported that Nehru knew where Netaji was. Nehru took the Foreign Affairs portfolio himself and appointed none other than Vijayalekshmi Pandit as the ambassador to Russia!

    After her term was over, Dr S.Radhakrishnan became the representative to Russia. Dr Saroj Das of Calcutta University told his friend Dr R.C.Muzumdar that Radhakrishnan had told him that Netaji was in Russia.

    Former Indian ambassador Dr Satyanarayana Sinha once met Goga, the son of Abani Mukherjee, a revolutionist in the Russian communist party; who told him that his father and Netaji were prisoners in adjacent cells in Siberia. He also told Sinha that Netaji had assumed the name ‘Khilsai Malang’ there.

    The most shocking of all information it contained was that Netaji had posted a letter from Russia to Nehru, telling that he wished to come back and he also asked Nehru to make amendments for his come back!

    You may confirm this from the parliamentary records from 3rd August 1977; and the files published by the British government.

    As reported in every newspaper at that time, daughter of Stalin Swetlana said in Delhi that Netaji was in Siberia’s yarkutaskjail. She also gave barrack No. also.

    Speaking to the Hindu, Prof. Guha lent evidence to the view that Subhash Chandra Bose died in a Soviet Prison. He noted that Joseph Stalin was crueler than Adolf Hitler’.

    A Soviet agent named V G Sayadyants who was based in Mumbai reported home that “Bose is the only hope for Soviet Russia,”

    The new findings are based on declassified documents in the Russian military archives in Paddolsk, and from the British archives. They were discovered by three researchers-Purabi Ray, Hari Vasudevan and Shobanlal Dutta Gupta-working on the history of communist movement in India. The plot has thickened even deeper with the admission by these researchers that they have been receiving threatening calls from unidentified persons asking them to suspend all further inquiries and end the government- funded research. Fear for security led the work on the project to be stopped shortly, around the middle of 2000.

    Why Mukherjee Commission Report rejected?

    Congress does not want the nation to know Jawaharlal Nehru’s actions and role in betraying Netaji. The previous two Commissions: Shah Nawaz Committee and the Khosla Commission were appointed by the Congress government. For bringing truth BJP let NDA Govt. appointed Mukherjee Commission.

    “I saw Netaji alive after his alleged plane crash” is disclosed by Capt Abbas Ali, an old INA freedom fighter.

    “It was ‘unbelievable’ that Netaji died in an air crash” said by Suresh Chandra Bose elder brother of Subhash C.Bose. He deposing before the Khosla Commission charged Mr Shah Nawaz Khan with “playing Netaji false”.

    Deposing before the Khosla Commission, Dr Satyanarayan Sinha said Colonel Habibur Rehman had confessed to him at Patna in 1946 that he had had told a lie when he said that Netaji Subhas Chandra Bose died in a plane crash in Taipeh on August 18, 1945.

    Killing of Netaji files by Congress Governments

    Most of the secret files about Netaji, that were maintained by Pandit Nehru himself as “P.M.’s special” files, one of which included all communications connected with INA Defense Committee, were reported by the Indira Gandhi Government as “either missing or destroyed”. It will not be easy to presume that Netaji’s communication to Nehru and a copy of Nehru’s letter to Attlee have also been destroyed. These files were dealt with by the personal secretary of Pt Nehru – Mohmd Yunus.

    Nehru’s shocking role in betraying Netaji

    Shyamlal jain, the confidential steno of the INA Defense Committee, in the course of his deposition, made a shocking revelation about Nehru’s attitude toward Netaji,”Later Nehru asked me to type a letter on his letterhead. Mr.Nehru addressed that letter to Mr.Clamment Attlee the then PM of Britain, in which Mr.Attlee was informed about the contents of that hand written note regarding Mr.Subhash entry into Russian territory. “I solemnly affirm and state on oath that thereafter Shri Jawaharlal Nehru gave me four papers from his writing pad to make four copies of a letter, which he would dictate to me on typewriter, which I also complied. The contents of the letter, as far as I could remember, were as follows

    Dear Mr. Attlee:

    I understand from a reliable source that Subhas Chandra Bose, your war criminal, has been allowed to enter Russian territory by Stalin. This is a clear treachery and betrayal of faith by the Russians. As Russia has been an ally of the British-Americans, it should not have been done. Please take note of it and do what you consider proper and fit.

    Yours sincerely,

    Jawaharlal Nehru.

    Col. Tada

    Col. Tada, one of the principal architects of Netaji’s escape plan confided to S.A. Iyer in 1951 that the Japanese agreed to make necessary arrangements to convey Netaji to Russian territory across the border of Manchuria.

    Late Amritlal Seth, editor ‘Janmabhumi’

    Late Amritlal Seth, former editor of the Gujarati Daily Janmabhumi, who accompanied Nehru during his visit to Singapore told late Sarat Chandra Bose immediately after his return from Singapore that Panditji was warned by the British Admiral that, according to his report, ‘Bose’ did not die in the alleged air crash and if Nehru played up too high with the legends of Bose and demands for re-absorption of the INA (Azad Hind Fauz) in the Indian Army, he would be taking the risk of presenting India on a platter to Bose when he reappeared.

    Journey of Gold-Diamond loaded Trunks:

    What happened after August 18 remains shrouded in mystery. While conducting her research in Moscow and England Professor Purabi Roy pursued a war time major of MI5 who had snooped around Bose. Roy met the agent in Oxford and he told her that a huge amount of ‘INA money’ was handed over to Lord Mountbatten and a senior Congress leader in Singapore, and that is the key to Bose’s disappearance (and the subsequent reluctance to unravel the mystery) could be solved to a great extent by ascertaining the route that the funds travelled.”

    Read full story at: http://www.missionnetaji.org/newsite/page/treasure_treachery.html

    Azad Hind Bank

    Captain Wadhera sought to know the whereabouts of the huge wealth that was collected by Netaji for the freedom struggle and deposited in the Azad Hind Bank, which was specially opened to prevent misuse of cash and ornaments donated by Indians to strengthen the hands of the INA in its freedom struggle.

    Recalling the events from his INA days, Captain Wadhera disclosed that a big rally was organized by the Indian Independence League at Singapore to welcome Netaji. “As the huge gathering of Indians in Singapore garlanded Netaji, nearly a truckload of garlands accumulated there”, he said.

    After thanking the gathering, Netaji announced that he would like to auction the garlands that had been put around his neck.

    “The bid started with Rs 1 lakh (in 1943 it was more than rupees fifty lakh of today). The first garland was auctioned for Rs 1 crore and 3 lakh, which was purchased by a Muslim industrialist of Malaya, Habibur Rehman. Later he volunteered his services to join the movement. The women offered their valuables and gold ornaments. Total collections at this auction were about Rs 25 crore”, Captain Wadhera nostalgically recalls”.

    Mukherjee Commission submitted its report on November 8, 2005. The government sat on it for six months, then tabled it in Parliament on May 17, 2006, when it also rejected the report. Why such late in tabling the report?

    Basically, the commission’s findings are the following:

    (1). Netaji did not die in the August 1945 Taipei plane crash as reported.

    (2) The ashes at Tokyo’s Renkoji temple are not his.

    (3) The story of the crash was a trick to help him escape, and the Japanese and Taiwanese governments knew about it.

    (4) The Indian government suppressed a report by the Taiwanese government which stated this in 1956.

    (5) Netaji is now dead.

  • राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण: सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारणा संकीर्ण नहीं इसके प्रमाण सुप्रीम कोर्ट के दो ऐतिहासिक फैसले हैं। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने दिसंबर 1995 में कहा था कि हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. कोर्ट ने कहा था, ‘हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों के जीवन पद्धति की ओर इशारा करता है. इसे सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता, जो अपनी आस्था की वजह से हिंदू धर्म को मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट का दूसरा फैसला 9 नवंबर 2019 राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण से सम्बंधित है।

    राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक लम्बे अरसे से चल रही अदालती लड़ाई पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ ही गया। 2016 में, अदालत ने मामले की नए सिरे से सुनवाई शुरू की गई। 2017 में, SC ने कहा कि मामला संवेदनशील था और मामले को अदालत से बाहर निपटाने का सुझाव दिया। इसने हितधारकों से बातचीत करने और एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए कहा। हालांकि, कोई समाधान नहीं निकला। 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद मामले की सुनवाई के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया।

    9 नवंबर, 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जिसमें एक मुस्लिम न्यायाधीश भी थे सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि विवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास को मंदिर निर्माण के लिए दिया जाए, और मुस्लिम पक्ष को एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन के साथ मुआवजा दिया जाए। अयोध्या में मस्जिद बनाने की जगह।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 अगस्त, 2019 से इस मामले की दैनिक सुनवाई शुरू की और कार्यवाही के बीच में अधिवक्ताओं को अक्टूबर तक तर्क समाप्त करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2019 को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जो 9 नवंबर को पारित किया गया था। शीर्ष अदालत ने एक सर्वसम्मत फैसले में विवादित भूमि का स्वामित्व दिया अयोध्या में राम जन्मभूमि ट्रस्ट को 2.77 एकड़ जमीन। इसने आदेश दिया कि अयोध्या में “उपयुक्त” और “प्रमुख” स्थान पर भूमि का एक वैकल्पिक टुकड़ा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिया जाना चाहिए। अर्थात मुस्लिम पक्ष को एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन के साथ मुआवजा दिया जाए। अयोध्या में मस्जिद बनाने की जगह। कोर्ट ने सरकार से तीन महीने के भीतर एक योजना तैयार करने और एक ट्रस्ट स्थापित करने को भी कहा, जो अयोध्या में एक मंदिर का निर्माण करेगा।

    फरवरी 2020 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में घोषणा की कि सरकार ने अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण और अन्य संबंधित मुद्दों की देखभाल के लिए “श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र” ट्रस्ट के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है।

    छह महीने बाद, उन्होंने राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए आधारशिला (40 किलो चांदी की ईंट) रखने के लिए अयोध्या का दौरा किया। कोरोनोवायरस महामारी की छाया के बावजूद, यह आयोजन असाधारण था, जिसमें 175 आमंत्रित थे। मंदिर के पहले तल का काम 2022 तक लगभग 60 फीसदी पूरा हो चुका है. मंदिर के पहले तल में कुल 160 पिलर होंगे. जबकि मंदिर के दूसरे तल में करीब 82 पिलर होंगे. राम मंदिर में कुल 12 दरवाजे होंगे । अयोध्‍या में 108 एकड़ में होगा राम जन्मभूमि परिसर। राम जन्मभूमि परिसर में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है और इसके दिसंबर 2023 तक बनकर तैयार हो जाने का अनुमान है. मंदिर में जनवरी 2024 (मकर संक्रांति) तक भगवान राम लला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने की संभावना है।

    राम जन्मभूमि आंदोलन के सबसे प्रमुख राजनीतिक चेहरे, भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने शनिवार को कहा कि अयोध्या मुद्दे पर ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनके रुख की पुष्टि की है और वह एक शानदार राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले फैसले से बहुत धन्य महसूस करते हैं। .

    योगी आदित्यनाथ ने कहा, “मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं, अयोध्या आज नई चमक से जगमगा रही है। खुशी है कि सभी ने फैसले को स्वीकार कर लिया। दुनिया हमारे लोकतंत्र की ताकत की सराहना करती है।”

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बहुत धैर्य के साथ सुना और यह पूरे देश के लिए खुशी की बात है कि फैसला सभी की सहमति से आया, पी एम मोदी ने कहा।

  • आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    वेद सहित सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों नेआत्महत्या या सासामूहिक आत्महत्या को पाप ही नहीं बताया बल्कि इसे ईश्वर का अपमान भी कहा है। यह सत्य धर्म प्रिय भारत के नेतृत्व और जनता समझती है। अतएव वेदिक नेतृत्व और जनता का कर्तव्य है कि वे कम से कम आत्महत्या से जीरो आत्महत्या प्राप्ति की ओर बढ़ें।

    वेदों की उद्घोषणा है- प्रज्ञानाम ब्रह्म, अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, अयम आत्म ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति अर्थात- ब्रह्म परम चेतना है, मैं ही ब्रह्म हूं, तुम ब्रह्म हो, यह आत्मा ब्रह्म है और यह संपूर्ण दृश्यमान जगत् ब्रह्मरूप है, क्योंकि यह जगत् ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है। ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो। कंकर-कंकर में शंकर का वास है इसीलिए जीव हत्या को ‘ब्रह्महत्या’ माना गया है।

    सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है इसका सबूत है वेद।वेद वैदिककाल की वाचिक परंपरा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। ध्यान और मोक्ष निर्वाण अर्थात जीरो शून्य o भारत अर्थात सनातन हिन्दू धर्म की ही देन है।

    वैदक जनों केलिए जीवन ही है प्रभु। कर्म करने के साथ साथ जरूरी नियमों की भी जरूरत होती है। 

    जीवन के 4 पुरुषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसके लिए अनुशासन और कर्तव्य पालन जरूरी है। सनातन धर्म ने मनुष्य की हर गतिविधि को वैज्ञानिक नियम में बांधा है। वैदिक प्रार्थना और ध्यान तथा देश समाज सेवा से भी हमारा धर्म है। अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। उनमें से एक है:

    यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः, एवा मे प्राण मा विभेः।

    जिस प्रकार आकाश व पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। ये ही सब जीवन की कला है।

    संसार में मुख्यतः दो प्रकार के धर्म हैं। एक कर्म-प्रधान दूसरे विश्वास-प्रधान। हिन्दू धर्म कर्म-प्रधान है, अहिन्दू अर्थात गैर सनातनी धर्म विश्वास-प्रधान। जैन, बौद्ध, सिख ये तीनों सनातन के अंतर्गत हैं। इस्लाम, ईसाई, यहूदी ये तीनों अहिन्दू धर्म के अंतर्गत हैं। हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर या देवी-देवताओं को मानने व पूजने की और यदि विश्वास न हो तो न मानने व न पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। अहिन्दू धर्म में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। RSS प्रमुख श्री मोहन भगवत जी कभी हाल ही के जो वक्तव्य हैं और क्रिस्चियन एवं मुस्लिम धर्म गुरुओं से मुलाकातें हैं वे इसी के प्रमाण हैं।

    नरेंद्र मोदी जी की भी विश्व के क्रिस्चियन और मुस्लिम देशों  के प्रमुखों से जो दोस्ताना और आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध हैं यह भी प्रमाण है कि वसुधैव कुटुम्कम वैदिक जनों का ध्येय वाक्य है, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता है।

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दु: भाग्भवेत।।

    अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्।

    उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।

    उदारता और सहिष्णुता हमारे रोम रोम में है। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां उसकी भिन्नता ही उसकी एकता का कारण बनी हुई है। भिन्नता में एकता का कारण हिन्दू धर्म की सहिष्णुता और उदारता के कारण ही है।

    जीवन के हर क्षेत्र और प्रकृति को समझकर ही जो संस्कार और कर्तव्य बताएं गए हैं वह मनोविज्ञान और विज्ञान पर ही आधारित हैं। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 22वें श्लोक में कहा गया है- ‘जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीवात्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है।’ चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में कहा गया है- ‘हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गए हैं। बस फर्क यह है कि मैं उन सबको जानता हूं, परंतु हे परंतप! तू उसे नहीं जानता।’

    वैदिक धर्म और उसे मानने वाला धर्मावलम्बी पंथ निरपेक्ष भारत विस्तारवादी नहीं है। हम मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर है अर्थात प्रत्येक कण में ईश्वर है। इसका यह मतलब नहीं कि प्रत्येक कण को पूजा जाए। इसका यह मतलब है कि प्रत्येक कण में जीवन है। वृक्ष भी सांस लेते हैं और लताएं भी। वेदों में प्रकृति के हर तत्व के रहस्य और उसके प्रभाव को उजागर किया गया है।

    पुराणों में परोपकार : राजा रंतिदेव को 40 दिन तक भूखे रहने के बाद  भोजन मिला तो भी उन्होंने शरण में आए भूखे अतिथि को वह भोजन देकर प्रसन्न हुए। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां तक दे दी, शिव जी  ने विष का पान कर लिया, कर्ण ने कवच और कुंडल दान दे दिए, यह है भारत की वैदिक शाश्वत परम्परा।

    हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। उद्देश्य है – चलो हम सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं:

    वेद और अन्य धर्म ग्रंथों में आत्महत्या को निंदनीय माना जाता है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। ऐसे में उसे पूरा जीना चाहिए समय के पूर्व उसे ख़त्म नहीं करना चाहिए और मानव कल्याण के लिए कुछ अच्छे काम करने चाहिए। पद्म पुराण में 84 लाख योनियों का जिक्र मिलता है, पशु, पक्षी, कीड़े, मनुष्य, पेड़, पौधे आदि मिलकर 84 लाख योनियों बनाते हैं।

    अथर्ववेद में त्वां मृत्युर्दयतां मा प्र मेष्ठा: कह कर बताया कि मृत्यु तेरी रक्षा करे और तू समय से पूर्व न मरे। अथर्ववेद में ही उत तवां मृत्योरपीपरं कह कर वेद भगवान ने संदेश दिया हे जीवात्मा मैं मृत्यु से तुझको ऊपर उठाता हूं। मृत्यो मा पुरुषवधी: कह कर वेद ने संदेश दिया कि हे मृत्यु तू पुरुष को समय से पूर्व मत मार।

    दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

    तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार

    भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।

    मनुष्य जीवन दुर्लभ क्यों हैं? क्यूंकि जीवन एक ही बार मिलता है और क्या पता कब क्या और जन्म होगा।

    भगवान बुद्ध ने तो यहाँ तक कहा हैकि ‘जो मनुष्य रूप में जन्म लेना है, वह देवताओं को भी सुगति प्रदान करताहै।’

    भगवद गीता के अनुसार मानव जीवन का परम उद्देश्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बनना है। ज्ञान योग या अष्टांग योग का अभ्यास करने वाले भी अंततः इसे समझते हैं। इसलिए, हमें अपने मानव जीवन का सही उपयोग करना चाहिए और बिना किसी भौतिक उद्देश्य के गंभीरता से कृष्ण भक्ति करनी चाहिए, जैसा की भगवद गीता में कहा गया है। गीता में कर्म योग को सर्वश्रेष्ठ कहा हैं, सांख्य या भक्ति योग से भी श्रेष्ठ। अतः कर्म करो आसक्ति और फल कि चाहत के विना।

     “कई जन्मों और मृत्युओं के बाद, जो वास्तव में ज्ञान में है, वह मुझे सभी कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में जाता है। ऐसी महान आत्मा दुर्लभ है।

    भगवद गीता 7.19

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ऋग्वेद में कहागया है कि हम भी श्रेष्ठ बनें और सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं।

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ: जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के अनुसार तीन कृपाएं अत्यंत दुर्लभ हैं, मनुष्य देह, मुमुक्षा अर्थात भगवान को पाने की भूख और तीसरा है महापुरुष का मिलना। इसमें से मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। देवी देवता भी इसे पाने के लिए तरसते हैं। क्योंकि केवल  मनुष्य जीवन ही ज्ञान और कर्मप्रधान होता है। ज्ञान तो देवताओं में भी होता है, लेकिन कर्म करने का अधिकार उन्हें नहीं होता। यदि हमने ज्ञानशक्ति का सही दिशा अर्थात परमार्थ के लिए उपयोग नहीं किया तो यह उसका दुरुपयोग ही होगा।

    भगवान की कृपा से ही यह मानव तन प्राप्त होता है। ईश्वर की लीला अनंत है, इस कारण कभी-कभी इतर योनियों में भी मुक्ति ईश्वर की कृपा से मिलती है, पर मोक्ष हेतु अवसर तो मानव के पास ही है–

    नर समान नहिं कवनिउ देहि। देत ईस बिन हेतु सनेही।।

    बड़े भाग मानुष तनु पावा।  सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हिं गावा।।

    वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति के लिए एक श्लोक लिखा गया है, जो इस प्रकार है…

    असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता। तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

    अर्थात: आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।

    #धर्मग्रंथों_के_अनुसार जिन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, उनका हल उसे जिंदा रहने पर तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरुआत हो जाती है। इन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने का दंड भोगना पड़ता है।

    गरुड़ पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है। जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं सकते बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं। आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया है ना कि आत्मघात का।

    आत्महत्या का दंड क्या होता है इस विषय में गरुड़ पुराण कहता है कि दंड स्वरुप आत्महत्या करने वाले की आत्मा अधर में लटक जाती है।  आत्महत्या निंदनीय है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है ऐसे में उसे व्यर्थ गंवा देना मूर्खता और अपराध है।इसीलिए आत्महत्या करने के बाद जो जीवन होता है वो ज्यादा कष्टकारी होता है।

    कृष्ण भगवान भगवद्गीता में अर्जुन कौ एक हि सन्देश देते हैं कि मोह त्याग, कर्म करने कौ खड़ा हो जा, आसक्ति छोड़, सुख दुख में समत्व भाव अपना, व्यक्ति कौ कर्म करने में अधिकार हैं, फल में नहींइस

    अर्थात रामायण हो या गीता धर्म स्थापना और असुर नाश सज्जन को राहत ही भगवान के अवतरित होने के मुख्य करण है.

    मानव शरीर के बारे में संत तुलसीदास जी ने कहा है

    बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।

    साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई जेहिं परलोक सँवारा।।

    यह मानव तन अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साधन योनि है, जिससे हम अपना परलोक सुधार सकते हैं, यह मानव तन ही मोक्ष का द्वार भी है।

    “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।

    प्रसंग “रामगीता का है, मानव जीवन प्राप्त कर विषयवासनाओं में मन लगाना, अमृत के बदले विष ग्रहण करने जैसी मूर्खता है और इसे कोई भी अच्छा नहीं कहता, यथा

    नरतनु पाइ बिसय मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।

    ताहि कबहुँ भल कहइ कि कोई। गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidiumsui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है।

    एकमात्र मनुष्य तन के द्वारा ही कर्म करके हम कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। यह मानव जीवन सब कुछ दे सकने का सामर्थ्य रखता है:

    नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी। ज्ञान विराग सकल सुख देनी।।

    अतः यह सिद्ध है, कि मनुष्य के समान कोई शरीर नहीं है, जिसकी याचना देव भी करते हैं

    नर समान नहि कवनिउ देही।

    यह बडभागी मानव तन को पाकर भी जिसने अपना परलोक नहीं सँवारा उसके भाग्य में पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता और वह दु:ख भोगता है।

    साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाइ न जेहि परलोक सँवारा।।

    सो परत्र दु:ख पावई , सिर धुनि धुनि पछ्तिाइ।

    चूँकि ईश्वर की बड़ी कृपा से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है

    कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस  बिनु हेत सनेही।।

    इस कारण इस शरीर को विषयों में जाया करना कहां तक समझदारी है,  स्वर्ग भी तो अल्प समय के लिए होता है और अन्तत: दु:ख ही भोगना पड़ता है।

    यहि तन कर फल विषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दु:खदायी।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidium, sui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है। इसमें सुसाइड बॉम्बर्स फिदायीन भी सम्मलित हैं। Pakitan is the founder of fidayeens aaaand suicide bombers.

    पाकिस्तानी टेररिस्ट की ये कैसी मां! आतंकी बेटे के कत्लेआम पर दी शाबासी तू जाबांज है. तू साहसी है. अल्लाह तुम्हें जन्न्त दे!

    सामूहिक हत्या भी इसी श्रेणी में आती हैं। सामूहिक आत्महत्या का एक उदाहरण 1978 में “जॉन्सटाउन” पंथिक आत्महत्या (कल्ट सुसाइड) का है जिसमें जिमजोन्स के नेतृत्व वाले एक अमरीकी पंथ पीपुल्स टेम्पल के 918 सदस्यों ने साइनाइड से अंगूर के रस से बने स्वाद वाले साधन द्वारा अपना जीवन समाप्त किया था। साइपान युद्ध के अंतिम दिनों में 10,000 से अधिक जापानी नागरिकों ने “आत्महंता चोटी” और “बान्ज़ाई चोटी” से कूद कर आत्महत्या कर ली थी।

  • मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy

    मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy


    प्राचीन काल में जब युद्ध का समय आता था तो राजा युद्ध शुरू होने से पहले ही अपना पक्ष मजबूत करने के लिए गठबंधनों पर जीत हासिल करने लगते थे, उस समय की इस नीति को  “कूट नीति” के नाम से जाना जाने लगा। मोदी जी कूटनीति” के लिए प्रसिद्ध हैं, यह बहुत स्पष्ट है क्योंकि वह और अमित शाह अन्य पार्टियों के प्रमुख सदस्यों का देश में चुनाव जीतने के लिए बहुत चतुराई से उपयोग करते हैं। वे  न केवल इस चाणक्य नीति का उपयोग करके देश में चुनाव जीतते हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विश्व के बड़े छोटे नेताओं को अपना मित्र भी बना लेते हैं।

    नरेंद्र मोदी ने चाणक्य नीति अपनाई। उन्होंने पाकिस्तान और चीन की घेराबंदी के लिए पहले तो अतंरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधों को मजबूत किया। फिर चीन की घेराबंदी के लिए नेपाल, भूटान, मंगोलिया, जापान, मंगोलिया आदि देशों से अपने संबंध मजूबत बनाए। दूसरी ओर अफगानिस्तान, ईरान, मालदीव, कजाकिस्तान, तकाकिस्तान, अमेरिका, रशिया, जर्मन, फ्रांस और इसराइल से अपने संबंध मजूबत करके पाकिस्तान को हर मोर्चे पर मात दी।

    It for Tat: शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना: चाणक्य मानते थे कि शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना चाहिए जो भाषा वह समझता है। यदि राजा कोई कड़ा फैसला नहीं लेता है तो उसे कमजोर माना जाता है और राज्य में भय का माहौल पैदा हो जाता है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ने भी इस नीति को अपनाया। जब पाकिस्तान ने 18 सितम्बर 2016 जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर पर भारतीय सेना के मुख्यालय पर किए गए आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे तब पीएम मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान को कड़ा संदेश देकर सर्जिकल स्ट्राइक करवा दी थी। इसी तरह जब पुलवामा में पाकिस्तान समर्थित फिदायीन हमले में 40 जवान शहीद हुए थे तब एयर स्ट्राइक करके सख्त संदेश दे दिया था।

    चाणक्य के अनुसार दो तरह के शत्रु होते हैं। पहले वो जिन्हें हम देख सकते हैं या पहचानते हैं और दूसरे शत्रु वे होते हैं जो छिप कर रहते हैं और समय आने पर वार करते हैं। शत्रु को पराजित करने के लिए चाणक्य ने कुछ ज़रूरी बातें बताई है:

    योजना- चाणक्य नीति के अनुसार एक व्यक्ति को अपनी योजनाओं को लेकर हर व्यक्ति से चर्चा नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति जब किसी गंभीर और महत्वपूर्ण काम या ज़िम्मेदारी को हाथ में लेता है तो उसे विश्वासपात्र लोगों के साथ ही अपनी योजनाओं को साझा करना चाहिए। क्योंकि शत्रु के हाथ में अगर आपकी योजना की जानकारी लग जाये तो वो उसमे अड़चने डाल सकता है। मोदी अपनी योजनाओं को अपने खास विश्वासपात्र  नेताओं जैसे अमित शाह से ही चर्चा करते हैं। अचानक निर्णय लेने के लिए प्रसिसद्ध हैं मोदी जी।  तीनों नए कृषि कानून वापस लेने का फैसला अचानक लिया। नोट बंदी और GST जैसे अनेक निर्णय मोदी जी ने अचानक लेकर सबको आश्चर्यचकित कर दिये थे। 

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए।

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए। कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था, उस समय देश विरोधी कुछ आंदोलनकारियों ने ” मोदी तू मरजा मरजा। .. ” के नारे लगाए थे , अन्य समय पर भी इसी प्रकार की मोदी जी को उकसाने वाली हरकतें होती रही हैं पर मोदी जी क्रोधित न होकर उन्हें नजरअंदाज करते रहे हैं।

    जब तक शत्रु की दुर्बलता का पता न चले, तब तक उसे मित्रता के भाव से रखना चाहिए। सदियों पुरानी होने के बावजूद,चाणक्य नीति आधुनिक जीवनशैली पर लागू की जा सकती है. हम सभी को चाणक्य की कुछ नीतियों के बारे में अवश्य जानना चाहिए। दुश्मन को पराजित करने हेतु पहला वार हथियार से न करके शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं अर्थात उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें। जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    दुश्मन पर पहला वार करने के पहले…? दुश्मन को पराजित करने के लिए कभी भी उस पर पहला वार हथियार से नहीं करना चाहिए । शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं मतलब उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें. जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    कोई भी कार्य शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न जरूर पूछने चाहिए- मैं ये क्यों कर रहा हूं, इसका रिजल्ट क्या हो सकता है और क्या मैं सफल हो पाऊंगा? और इसके बाद जब गहराई से सोचने समझने के बाद इन सवालों के संतोषजनक जवाब मिल जाएं, तभी आगे बढ़ने का फैसला लें.चीन और पाकिस्तान के सम्बन्ध में मोदी जी चाणक्य नीति ही अपना रहे हैं।

    पीएम नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक समुदाय को दियाचाणक्य मंत्र

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित किया। मोदी ने भारत के महान अर्थशास्त्री और नीति के जानकार चाणक्य के कथन को कहकर संयुक्त राष्ट्र को अहम सलाह दी है।


    पीएम मोदी ने अपने भाषण में आचार्य चाणक्य, दीन दयाल उपाध्याय और रवींद्रनाथ टैगोर का जिक्र किया। पीएम मोदी ने भारतीय रणनीतिकार चाणक्य के शब्दों को याद किया, जिन्होंने कहा था, “जब सही समय पर सही काम नहीं किया जाता है, तो समय ही उस काम की सफलता को नष्ट कर देता है।” प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि, “यदि संयुक्त राष्ट्र को खुद को प्रासंगिक रखना है, तो उसे अपनी प्रभावशीलता में सुधार करना होगा और इसकी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी।”

    आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्री जगत को एकजुट किया: विश्व के पहले व्यक्ति मोदी ही हैं जिन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्‍ट्री जगत को एकजुट किया। नरेंद्र मोदी ने ही विश्‍व को यह समझाया कि आतंकवाद लॉ एंड आर्डर, एक स्टेट या देश का मामला नहीं है बल्कि यह एक वैश्‍विक समस्या है। पीएम मोदीजी ने ही अंतरराष्ट्रीय जगत को समझाया कि गुड या बैड आतंकवाद नहीं होता। मोदी जी ने धीरे–धीरे आतंकवाद की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जबकि इससे पहले आतंकवाद को गुड एवं बैड कहकर परिभाषित किया जा रहा था उन्होंने विश्व को आतंकवाद क्या है समझाया आतंकवाद मानवता का दुश्मन है, न गुड है न बैड।

    उन्होंने पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध विश्व बिरादरी का ध्यान खींचा।मोदी ने भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई अनुकूल गठजोड़ किए हैं। उदाहरण के लिए, ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार बंदरगाह परियोजना, अमेरिका के साथ संचार अनुकूलता और सुरक्षा समझौता, सिंगापुर के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, रूस के साथ आतंकवाद विरोधी समझौता, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ आईबीएसए फंड समझौता, जापान के साथ बुले

    आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में सफल जीवन जीने के लिए कई तरीके बताए हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं जो व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ना चाहता है, वो उसके लिए मेहनत करता है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बिना मेहनत के कामयाबी पाना चाहते हैं ।आचार्य ने लोगों को कभी भी इन चीजों पर भरोसा नहीं करने को कहा है। 

    इस सन्दर्भ में मुझे अमेरिका के पूर्व प्रेसीडेंट वाशिंगटन का स्मरण हो रहा है। उन्होंने अपने कमरे के दरवाजे के ऊपर P लिखा था जिससे उसे सदैव स्मरण रहे कि उसे प्रेसिडेंट  बनाना है। भले ही मोदी जी ने वाशिंगटन जैसा नहीं सोचा हो पर लगातार लगन से ईमानदारी से प्रयास और परिश्रम से मोदी जी नरेंद्र से पी एम मोदी  बन गए।

    Modi के शासन पर चाणक्य नीति का असर, Amit Shah की Book ने किया खुलासा

    आज हमारा देश विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां हर व्‍यक्ति के पास अपना शासक चुनने का अधिकार है, मतलब आज वोट डालने वाला हर नागरिक चाणक्य है।आचार्य चाणक्य का मानना था कि आम जनता को साथ लाए बगैर घनानंद के शासन को उखाड़ फेंकना मुमकिन नहीं है। इसीलिए चाणक्य ने आम जनता के दम पर अपनी एक सेना बनाई और घनानंद का तख्‍ता पलट कर दिया। आचार्य चाणक्‍य ने इस सफलता से सीख दी कि जनभागीदारी से ही शासन व्‍यवस्‍था को बदला जा सकता है। लोकतंत्र में आम जनता के पास बड़ी ताकत होती है।

    नरेंद्र मोदी चाणक्य की इसी नीति को आत्मसात कर कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी उसे बेअसर कर राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं।

    पीएम मोदी ने नोटबंदी पर अपनाई चाणक्य नीति

    Dec 2016: नोटबंदी के बाद पहली बार संसदीय दल को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के दौरान सांसदो को चाणक्य नीति का पाठ पढ़ाया। बेनामी संपत्ति को लेकर पीएम मोदी ने चाणक्य नीति के 15 वें अध्याय के छठे दोहे का जिक्र किया। पाप से कमाया हुआ पैसा 10 साल तक रह सकता है। 11वें वर्ष लगते ही वह मूलधन के साथ नष्ट हो जाता है। 

    आर्थिक फैसले: आचार्य चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में राजस्व, कर राज्य व्यवस्था, कृषि, न्याय एवं राजनीति के बारे में विस्तार से लिखा है। चाणक्य मानते थे कि कर संग्रह के साथ ही जनकल्याण के कार्य भी जारी रहना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक ओर जहाँ GST लागू किया तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को सुधारने का कार्य किया वहीं उन्होंने जन कल्याण से जुड़ी कई योजनाओं को लांच करके गरीब जनता को लाभ पहुंचाया।

     परिवारवाद की राजनीति ख़त्म: आचार्य चाणक्‍य ने उस काल में परिवारवाद की राजनीति को खत्म करके लोकतंत्र का समर्थन करते हुए घनानंद के शासन को खत्‍म किया था। आचार्य चाणक्‍य का मानना था कि शासन की बागडोर उसी को संभालनी चाहिए, जो उसके लायक हो और जनता जिसे पसंद करती हो। ऐसे व्‍यक्ति को शासन करने का कोई अधिकार नहीं, जो जनता की समस्‍याओं को न सुनता हो। राहुल गाँधी जनता की तो क्या अपने पार्टी के प्रमुख नेताओं की भी बात नहीं सुनते।  हिमन्त विश्व शर्मा जैसे नेता से मिलाने की अपेक्षा वे अपने कुत्ते से मस्ती करना उचित समझा।

    यही बात पी एम नरेंद्र मोदी अपनी पहले लोकसाभ चुनाव से अब तक बोलते आए हैं कि परिवारवाद देश के लिए घातक है। कुछ पार्टिया एक ही परिवार की पार्टियां हैं। भाजपा किसी परिवार की नहीं जनता की पार्टी है। यहां एक चाय वाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है। भ्रष्टाचार और वंशवाद की राजनीति प्रहार करते हुए मोदी जी ने कहा था कि राज्य को “पहले लोग, पहले परिवार नहीं” सरकार की जरूरत है।इस तरह के परिवारवाद के खिलाफ चाणक्य भी थे।

    उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि भारत आज इतने सारे देशों के साथ काम कर रहा है और श्री मोदी दुनिया के अधिक से अधिक देशों के साथ काम करने की योजना बनाते जा रहे हैं।

    यदि हम मोदी जी की कार्य प्रणाली, राजनीति और कूटनीति को समझने का अध्यन करें तो हमें चाणक्य के निम्न लिखित श्लोक की झलक भी दिखेंगी:

    गते शोको कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् वर्तमानेन कालेन प्रवर्त्तन्ते विचक्षणाः चाणक्यनीतिः, अध्यायः १३

    अतीत पर शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के बारे में चिंतित नहीं रहना चाहिए। बुद्धिमान लोग केंद्रित होते हैं और वर्तमान में लगे रहते हैं।” – चाणक्य

    यद्‌ दूर यद्‌ दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम्‌ ।

    तत्सर्व तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रममू ॥ – १७.३ चाणक्य-नीतिः

    कोई वस्तु चाहे कितनी ही दूर क्‍यों न हो, उसका मिलना कितना ही कठिन क्यों

    न हो, और वह पहुँच से बाहर क्यों न हो, कठिन तपस्या अर्थात परिश्रम से उसे

    भी प्राप्त किया जा सकता है। परिश्रम सबसे शक्तिशाली वस्तु है।

    यह भारत के लोकतंत्र की ताकत  कि बचपन में चाय बेचने वाला चौथी बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण दे रहा है

  • राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    16 Aug 2018 : जब भी गुजरात दंगों का जिक्र होता है तो अटल बिहारी वाजपेयी के ‘राजधर्म’ की चर्चा जरूर होती है। एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि आप मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई संदेश लेकर आए हैं? इस पर वाजपेयी जी ने अपने उसी चिर-परिचित अंदाज में जवाब दिया, ‘मैं इतना ही कहूंगा, वह राज धर्म का पालन करें। ये शब्द काफी सार्थक हैं। मैं उसी का पालन कर रहा हूं और पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। एक राजा या शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता है, न जन्म के आधार पर, न जाति और संप्रदाय के आधार पर…।’
    सुप्रीम कोर्ट ने दी गोधरा कांड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी क्लीन चिट ।

    पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के विशेष जांच दल (एसआइटी) द्वारा 2002 के गोधरा दंगा मामले में गुजरात तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। रविशंकर ने बताया कि याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी। रविशंकर ने तीस्ता सीतलवाड़ के साथ कांग्रेस, राजद प्रमुख लालू प्रसाद और वामदलों को भी निशाने पर लिया।

    9 दिसंबर 2022 गुजरात ने बना दिया इतिहास, बीजेपी को 156 सीटें ही नहीं दी, ये रिकॉर्ड भी बनाया।
    गुजरात के चुनावी इतिहास में बीजेपी ने अब तक की सबसे बड़ी और धमाकेदार जीत दर्ज की है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है।

    वैदिक राजधर्म व्यवस्था

    राजधर्म का अर्थ है – ‘राजा का धर्म’ या ‘राजा का कर्तव्य’। राज वर्ग को देश का संचालन कैसे करना है, इस विद्या का नाम ही ‘राज धर्म’ है। राज धर्म की शिक्षा के मूल वेद हैं।
    महाभारत के विदुर प्रजागर तथा शान्ति पर्व, चाणक्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र आदि में भी राजधर्म की बहुत सी व्याख्या है, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी सत्यार्थ प्रकाश में एक पूरा समुल्लास राजधर्म पर लिखा है। महाभारत में इसी नाम का एक उपपर्व है जिसमें राजधर्म का विस्तृत विवेचन किया गया है।

    मनुस्मृति के ७वें अध्याय में राजधर्म की चर्चा की गयी है।
    पुत्र इव पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचरिष्यन्ति स राजा राजसत्तम ॥
    यथा पुत्रः पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचारिष्यन्ति स राजा राजसत्तम् ॥

    मनुस्मृति में दण्ड वही राजा व दण्ड प्रजा का शासनकर्त्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है, इसी लिये बुद्धिमान लोग दण्ड ही को धर्म कहते हैं। यदि राजा दण्ड को अच्छे प्रकार विचार से धारण करे तो वह सब प्रजा को आनन्दित कर देता है और जो विना विचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा का विनाश कर देता है

    चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं। पिता श्री चणक के पुत्र होने के कारण वह चाणक्य कहे गए। विष्णुगुप्त कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति के महाविद्वान ,और अपने महाज्ञान का ‘कुटिल’ ‘सदुपयोग ,जनकल्याण तथा अखंड भारत के निर्माण जैसे सृजनात्मक कार्यो में करने के कारण वह; कौटिल्य’ ‘कहलाये।
    कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजधर्म की चर्चा है।
    प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्।
    नात्मप्रियं प्रियं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥ (अर्थशास्त्र 1/19)

    (अर्थात्-प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है।)
    तस्मात् स्वधर्म भूतानां राजा न व्यभिचारयेत्।
    स्वधर्म सन्दधानो हि, प्रेत्य चेह न नन्दति॥ (अर्थशास्त्र 1/3)

    (अर्थात्- राजा प्रजा को अपने धर्म से विमुख न होने दे। राजा भी अपने धर्म का आचरण करे। जो राजा अपने धर्म का इस भांति आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक में सुखी रहता है।) एक राजा का धर्म युध भूमि में अपने दुश्मनों को मारना ही नहीं होता अपितु अपने प्रजा को बचाना भी होता है

    मुखर्जी (2013) के अनुसार भारतीय शास्त्रों में सुशासन को राज धर्म कहा गया है। राजधर्म”’आचार संहिता’ या ‘कानून का नियम’ था जो शासक की इच्छा से श्रेष्ठ था और उसके सभी कार्यों को नियंत्रित करता था (कश्यप, 2010)। राजधर्म आचार संहिता अर्थात सुशासन जिसका उल्लेख प्राचीन भारतीय शास्त्रों में संस्कृत और पालि जैसे भगवद गीता , वेद , महाभारत के अलावा शांतिपर्व, नीतिसार , रामायण , अर्थशास्त्र, दीघ निकाय , जातक में भी विशेष रूप से है। सभी नागरिकों का मूल अधिकार सरकार से सुशासन प्राप्त करना है और सरकार बाध्य है इसके लिए।

    सर्वे धर्म सोपधर्मस्त्रायणं रण्यो धर्मादिति वेदाचुनोमि
    एवम धर्मन् राजधर्मेषु सरवन सर्वस्तम सम्प्रलिनन निबोध

    जिसका अर्थ है “सभी धर्म राजधर्म में विलीन हो गए हैं , और इसलिए यह सर्वोच्च धर्म है ” ( महाभारत शांतिपर्व 63, 24-25 )।

    अत्रिसंहिता में वर्णित सुशासन के लिए नैतिक व्यवहार और नैतिक मानकों के रूप में राज्य के अनिवार्य कार्यों की आवश्यकता है:
    दुष्टस्य दण्ड सुजानस्य पूजा न्यायेन कोषस्य च संप्रविधि
    अपेक्षापथोर्तिर्शु राष्ट्ररक्षा पंचैव यज्ञ कथिता नृपन्नम

    उक्त श्लोक में पाँच निःस्वार्थ कर्तव्य बताये गए हैं जिन्हें राजा [राज्य] द्वारा किए जाने चाहिए । ( अत्रिसंहिता-28 ).
    कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में उक्त सिद्धांतों को शामिल किया है:
    प्रजासुखे सुखं राज्य प्रजानन च हिते हितम्
    नातम्प्रियं हितं राज्य प्रजनम तु प्रियं हितम्

    अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख है।

    सरकार के साथ साथ नागरिकों के भी कर्तव्य हैं:
    राज धर्म और व्यवहारधर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जहां राजा और प्रजा को धर्म का पालन करना होता है- ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से जिसके परिणामस्वरूप सुशासन होगा (जोइस, 2017)।

    आजादी से पहले राजपथ को किंग्स वे और जनपथ को क्वींस वे के नाम से जाना जाता था। स्वतंत्रता मिलने के बाद क्वींस वे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया था। जबकि किंग्स वे राजपथ के नाम से जाना जाने लगा। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद अब इसका नाम कर्तव्य पथ कर दिया गया है। केंद्र सरकार का मानना है कि राजपथ से राजा के विचार की झलक मिलती है, जो शासितों पर शासन करता है। जबकि लोकतांत्रिक भारत में जनता सर्वोच्च। नाम में बदलाव जन प्रभुत्व और उसके सशक्तिकरण का एक उदाहरण है।

    व्यक्ति को शास्त्रों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए ”( भगवदगीता , अध्याय XVI, श्लोक 24)।

    अक्रोध सत्यवचनम संविभाग क्षमा तथा

    प्रजना शेषु दारेषु शौचमद्रोह अव च

    आर्जवं ब्रुत्यभरणं नवैते सर्ववर्णिका 

    “सत्य, क्रोध से मुक्त होना, दूसरों के साथ धन बांटना ( संविभाग ), क्षमा, अकेले अपनी पत्नी से संतानोत्पत्ति (यौन नैतिकता), पवित्रता, शत्रुता का अभाव, सीधापन और स्वयं पर निर्भर व्यक्तियों को बनाए रखना ये नौ नियम हैं।” सभी वर्णों के व्यक्तियों का धर्म ” (महाभारत शांतिपर्व 6-7-8) 

    *

    finsindia.org ने धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म, उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां, समानता, एकता आदि पर भी प्रकाश डाला है। 

    धर्म की सर्वोच्चता

    केवल राजशाही का निर्माण पर्याप्त नहीं था, धर्म राजा से श्रेष्ठ एक शक्ति थी, जिसे राजा को लोगों की रक्षा करने और देने में सक्षम बनाने के लिए बनाया गया था। धर्म  की परिभाषा इस प्रकार है : 

    तदेतत क्षत्रस्य क्षत्रं युधर्मा, तस्मध धर्मत्परं नास्त्य

    अथो अबलियान बलियान समाशमसते धर्मेना, यथा राज्य एवम 

    धर्म  राजाओं का राजा है। धर्म  से श्रेष्ठ कोई नहीं ; राजा की शक्ति से सहायता प्राप्त धर्म कमजोरों को मजबूत पर हावी होने में सक्षम बनाता है बृहदारण्यकोपनिषद 1-4-14)

    धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म :

    अपने धर्म का पालन करने के अधिकार को राजा धर्म  में मान्यता दी गई थी पशंदानाइगम श्रेणी पूव्व्रत गणदिशु, संरक्षित्समयं राजा दुर्गे जनपद  (नारद स्मृति ( धर्मकोष P-870)

    भारत में जहां वेदों को सर्वोच्च माना जाता था, वेदों में अविश्वासियों को उसी तरह से संरक्षित किया जाना था जैसे वेदों में विश्वास करने वालों को , यह दर्शाता है कि राज धर्म के तहत, धर्म धर्मनिरपेक्ष है (जोइस, 2017)

    समानता 

    “कोई भी श्रेष्ठ ( अज्यस्तसो ) या हीन ( अकनिष्टस ) नहीं है। सब भाई-भाई हैं ( एते भरतरः )। सभी को सभी के हित के लिए प्रयास करना चाहिए और सामूहिक रूप से प्रगति करनी चाहिए ( सौभाग्य सं वृद्धु )। (ऋग्वेद मंडल-5, सूक्त-60, मंत्र-5)

    “भोजन और पानी की वस्तुओं पर सभी का समान अधिकार है। जीवन रथ का जूआ सबके कंधों पर समान रूप से रखा है। सभी को एक साथ मिलकर एक दूसरे का समर्थन करते हुए रहना चाहिए, जैसे रथ के पहिये की धुरी उसके रिम और हब को जोड़ती है ” (अथर्ववेदसंज्ञान सूक्त)

    रामायण में शासन और समानता: रामराज्य का कोई लिखित संविधान न होने के बावजूद , नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त था और विकास के रास्ते सभी के लिए खुले थे। कानून की नजर में सब एक समान थे। 

    महाभारत में महाभारत में शासन और समानता:

    राजा राज्य का प्रमुख होगा और लोगों और उनकी संपत्तियों की रक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। स्वामी बोधानंद (2010) शासन के संदर्भ में महाभारत में धर्म का विश्लेषण इस प्रकार करते हैं:

    मैं। न्याययुक्त प्रारंभिक धर्म – “ न्याय और निष्पक्षता पर आधारित कोई भी उपक्रम”।

    द्वितीय।  तत परस्य समदध्यात् प्रतिकुलम यदत्मनः एश संक्षेपतो धर्मः – “धर्म का अर्थ है दूसरों के साथ ऐसा न करना जो स्वयं के लिए अप्रिय हो” ( महाभारतअनुसासन पर्व, 113-8)।

    महाभारत युद्घ के समाप्त होने के बाद महाराज युधिष्ठिर को भीष्म ने राजधर्म का उपदेश दिया था।

    युधिष्ठर को समझाते हुए भीष्म पितामह कहते हैं-

    राजन जिन गुणों को आचरण में लाकर राजा उत्कर्ष लाभ करता है, वे गुण छत्तीस हैं। राजा को चाहिए कि वह इन गुणों से युक्त होने का प्रयास करें।

    उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां:

    स्मृतियों ने न्याय प्रदान करने के लिए उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता करके न्याय के प्रशासन की जिम्मेदारी लेने वाले राजा की आवश्यकता पर बल दिया ।

    हर्माशास्त्रं पुरस्कृत्य प्रदिवावकमते स्तिता,

    समाहितमति पश्येत व्यवहारानुक्रमात्   

    “राजा को कानून के अनुसार और मुख्य न्यायाधीश की राय का पालन करते हुए बड़ी सावधानी से मामलों की सुनवाई करनी चाहिए” ( नारद स्मृति, 1-35, 24-74, स्मृति चंद्रिका, 66 और 89)

    वेद हमें सत्य बोलने और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं: 

    सत्यम वड़ाधर्मम चर! – ( तैत्तिरीय उपनिषद, i-II ) 

    January 12, 2023 की मीडिया भारत के अनुसार: जगदीप धनखड़ ने साफ शब्दों में कहा कि संसद की कानून बनाने की शक्ति को न्यायपालिका अमान्य नहीं कर सकती। ऐसा देखा जा रहा है कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बयानों का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून, तभी कानून का रूप लेगा, जबकि उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी। धनखड़ जब राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया था, तब भी उन्होंने कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। तब यह कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं।

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  • लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    वैदिक राज्य व्यवस्थान में राजतंत्र न होकर गणतांत्रिक व्यवस्था थी। लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। लोकतंत्र की धारणा वैदिक युग की ही देन है। महाभारत और बौद्ध काल में भी गणराज्य थे। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।

    ऋग्वेद में सभा मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही किसी  भी विषय या नेतृत्व कौन करे इस पर  वार्तालाप बहस होने के बाद बहुमत से निर्णय अर्थात फैसला होता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था।

    भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। दशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं का युद्ध या दशराजन युद्ध एक युद्ध था जिसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है।

    ।। त्रीणि राजाना विदथें परि विश्वानि भूषथ: ।।-ऋग्वेद मं-3 सू-38-6

    भावार्थ : ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिल के सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धि कारक राज्य के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा अर्थात- विद्यार्य्यसभा, धर्मार्य्य सभा, राजार्य्यसभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वतंत्रता, धर्म, सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।

    ।। तं सभा च समितिश्च सेना च ।1।- अथर्व-कां-15 अनु-2,9, मं-2

    भावार्थ: उस राज धर्म को तीनों सभा संग्राम आदि की व्यवस्था और सेना मिलकर पालन करें।

    1.सभा : धर्म संघ की धर्मसभा, शिक्षा संघ की विद्या सभा और राज्यों की राज्य सभा।

    2.समिति : समिति जन साधरण की संस्था है। सभा गुरुजनों की संस्था अर्थात गुणिजनों की संस्था।

    3.प्रशासन : न्याय, सैन्य, वित्त आदि ये प्रशासनिक, पदाधिकारियों, के विभागों के नाम है। जो राजा या सम्राट के अधिन है।
     

    राजा : राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए ही सभा ओर समिति है जो राजा को पदस्थ और अपदस्थ कर सकती है। वैदिक काल में राजा पद पैतृक था किंतु कभी-कभी संघ द्वारा उसे हटाकर दूसरे का निर्वाचन भी किया जाता था। जो राजा निरंकुश होते थे वे अवैदिक तथा संघ के अधिन नहीं रहने वाले थे। ऐसे राजा के लिए दंड का प्रावधान होता है। राजा ही आज का प्रधान है।

    प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथमं सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध

    विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अजिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ।। (ऋक–२-२१-१) एवा वस्व इन्द्रः सत्य. सम्रान्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. । पुरष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य । (ऋक् — ४-२१-१०)

              विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नूजित उबंराजिते ।

    अश्वजिते गोजिते अल्जिते भरेन्द्राय सोम॑ यजताथ हर्यंतम्‌ ॥

    (ऋकू–रर२१-१)

    एवा वस्व इन्द्र: सत्य. सम्नाड्हस्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. ।

    दुरष्ट्त क्रद्ना न: शग्धि रायों भक्षीय तेश्वसों देव्यस्य ॥।

    (कक ब-र-१०)

    पाश्चात्य विद्वानों ने संसार की सबसे महान्‌ और प्राचीन पुस्तक “’ऋग्वेद’ और

    उसके परिवार दे 4, «मीय ग्रंथों का अनुशीलन करके हमारी ऐतिहासिक स्थिति को बतलाने की चेष्टा की है, और उनका यह स्तुत्य प्रयत्न बहुत दिनों से हो रहा है । कितु इस ऐतिहासिक खोज से हमारे भारतीय इतिहास की सामग्री एकत्रित करने में बहुत-सी सहायता मिली है उसी के साथ अपूर्ण अनुसंघानो के कारण और किसी अंश में सेमेटिक प्राचीन धर्म पुस्तक (06 ’68/80060/) के ऐतिहासिक विवरणों को मानदण्ड मान लेने से बहुत-सी श्रांत कल्पनायें भी चल पडी है ।

    बहुत दिनों त पहले, ईसा के २००० वर्ष पूर्वे का समय ही सृष्टि के प्रागू ऐतिहासिक काल को भी अपनी परिधि में ले आता था । क्योंकि ईसा से २००० वर्ष पूर्व जलप्रलय का होना माना जाता था और सृष्टि के आरंभ से २००० वेषें के अनन्तर जल-प्रलय का समय निर्धारित था-इस प्रकार ईसा से ४००० वर्ष पहले सृष्टि का आरंभ माना जाता था । बहुत संभव है कि इसका कारण वही अन्तनिहित घामिक प्रेरणा रही हो जो उन शोधकों के हृदय मे बद्धमुल थी । प्राय: इसी के वशवर्त्ती होकर बहुत से प्रकांडपण्डितों ने भी, ,ऋग्वेद के समय-निर्धारण मे संकीण॑ता का परिचय दिया है। हुष॑

    का विषय है कि प्रत्नततत्व और भूग्भ शास्त्र के नये-नये अन्वेषणों और आविष्कारों १. आर्यावत्त और प्रथम सम्राट इन्द्र ‘कोशोत्सव स्मारक संग्रह’ मे सबत्‌ १९८५ में हुआ और ‘दाशराज्ञ युदध’ गंगा के दे ंक में पोष संवत्‌ १९८८ में प्रकाशित हुआ । उमभय निबन्ध भायें संस्कृति के आरम्भिक अध्यायो पर एकतान चिन्तन की फलकश्रृति में प्रस्तुत है-सुतरा क्रमबद्ध रूप से एकीकृत किया गया है। (सं ) प्राचीन आर्यावत्त-प्रथम सम्राट इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध : १०९

    इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। राजतन्त्र को समाप्त कर पुनः लोकतंत्र की बहाली का पुण्य कार्य दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र दुष्यंत ने ही किया।

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