Category: Sanskritik

  • चाणक्य के उद्धरण Quotes

    चाणक्य के उद्धरण Quotes

    ” दूसरों की गलतियों से सीखें …आप इतनी देर तक जीवित नहीं रह सकते कि आप उन सभी गलतियों को खुद ही कर सकें” ~ चाणक्य

    चाणक्य एक भारतीय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और सलाहकार थे। चाणक्य एक महान विचारक और कूटनीतिज्ञ रहे हैं। चाणक्य पूरे उपमहाद्वीप में फैले एकजुट भारत की परिकल्पना करने वाले शुरुआती लोगों में से एक हैं। मूल रूप से तक्षशिला के प्राचीन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शिक्षक, चाणक्य ने पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त को कम उम्र में सत्ता में लाने में कामयाबी हासिल की थी। नतीजतन, उन्हें व्यापक रूप से मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त और उनके पुत्र बिन्दुसार दोनों के मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य किया।

    उनकी शिक्षाओं को दो पुस्तकों- अर्थशास्त्र (“भौतिक लाभ का विज्ञान”) और चाणक्य नीति में एक साथ रखा गया है । अर्थशास्त्र  _इसे चाणक्य की प्रशिक्षण पुस्तिका माना जाता है जिसके द्वारा उन्होंने चन्द्रगुप्त को एक नागरिक से एक राजा में बदल दिया। ऐसा कहा जा रहा है कि, कोई भी उनकी बुद्धिमत्ता पर सवाल नहीं उठा सकता। वह कोई योद्धा नहीं था, लेकिन उसने अपने मस्तिष्क का उपयोग करके लड़ाई लड़ी।

    “एक बार जब आप किसी चीज़ पर काम करना शुरू कर दें तो असफलता से न डरें और न ही उसे छोड़ें। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वे सबसे ज्यादा खुश रहते हैं।” ~  चाणक्य

    “शेर से एक उत्कृष्ट बात जो सीखी जा सकती है वह यह है कि एक आदमी जो कुछ भी करने का इरादा रखता है उसे पूरे दिल और ज़ोरदार प्रयास के साथ करना चाहिए।” ~  चाणक्य

    “उससे बचो जो तुम्हारे सामने मीठी-मीठी बातें करता है, परन्तु तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हें बरबाद करने की कोशिश करता है, क्योंकि वह जहर से भरे घड़े के समान है जिसके ऊपर दूध डाला जाता है।” ~  चाणक्य

    “शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है। शिक्षा सुंदरता और यौवन को मात देती है।” ~  चाणक्य

    “एक विद्वान व्यक्ति को लोगों द्वारा सम्मानित किया जाता है। एक विद्वान व्यक्ति अपनी शिक्षा के लिए हर जगह सम्मान पाता है। सचमुच, सीखने का हर जगह सम्मान किया जाता है।” ~  चाणक्य

    “धन, मित्र, पत्नी और राज्य पुनः प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन यह शरीर खो जाने पर फिर कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता।” ~  चाणक्य

    ” दूसरों की गलतियों से सीखें …आप इतनी देर तक जीवित नहीं रह सकते कि आप उन सभी गलतियों को खुद ही कर सकें” ~ चाणक्य

    “आदमी अकेला पैदा होता है और अकेला ही मर जाता है; और वह अपने कर्मों के अच्छे और बुरे परिणाम अकेले ही भोगता है; और वह अकेला ही नरक या परमधाम चला जाता है।” ~  चाणक्य

    “जब तक आपका शरीर स्वस्थ और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, तब तक अपनी आत्मा को बचाने का प्रयास करें; जब मृत्यु आसन्न है तो आप क्या कर सकते हैं?” ~  चाणक्य

    “अशिक्षित मनुष्य का जीवन कुत्ते की पूँछ के समान बेकार है जो न तो उसके पिछले हिस्से को ढकती है और न ही उसे कीड़ों के काटने से बचाती है।” ~  चाणक्य

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    “ज्ञान अभ्यास में लाए बिना खो जाता है; अज्ञान के कारण मनुष्य खो जाता है”

    “वाणी की शुद्धता, मन की पवित्रता, इंद्रियों की शुद्धता और दयालु हृदय की आवश्यकता उस व्यक्ति को होती है जो दिव्य मंच पर चढ़ने की इच्छा रखता है।” ~  चाणक्य

    “फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है।” लेकिन, व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है” ~ चाणक्य

    “हमें जो बीत गया उसके लिए चिंतित नहीं होना चाहिए, न ही हमें भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए; समझदार लोग केवल वर्तमान क्षण से ही निपटते हैं । ~  चाणक्य

    “कभी भी यह प्रकट न करें कि आपने क्या करने के बारे में सोचा है, बल्कि बुद्धिमानी से सलाह के द्वारा इसे क्रियान्वित करने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर इसे गुप्त रखें।” ~  चाणक्य

    “जिसका ज्ञान किताबों तक ही सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्जे में है , वह आवश्यकता पड़ने पर न तो ज्ञान और न ही धन का उपयोग कर सकता है।” ~  चाणक्य

    ” पृथ्वी सत्य की शक्ति पर टिकी हुई है, यह सत्य की शक्ति ही है जो सूर्य को चमकाती है और हवाएँ चलती है, वास्तव में सभी चीजें सत्य पर टिकी हैं।” ~  चाणक्य

    “आप जिस लायक हैं उससे कम पर कभी समझौता न करें। यह घमंड नहीं, स्वाभिमान है।” ~  चाणक्य

    मोदी जी CM बनाने के पहले कभी चुनाव नहीं लड़े। उन्हें  गुजरात के उप मुख्यमंत्री का दायित्व निभाने के लिए कहा गया। उस समय केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। नरेंद्र मोदी जी ने कहा वे गुजरात में मुख्यमंत्री की हैशियत से ही कार्य करना चाहते हैं। तदुपरान्त उन्हें गुजरात मुख्यमंत्री का दायित्व दे कर २००२ में भेजा गया।  

    “जो भविष्य के लिए तैयार रहता है और जो आने वाली किसी भी स्थिति से चतुराई से निपटता है, दोनों खुश रहते हैं, लेकिन भाग्यवादी व्यक्ति जो पूरी तरह से भाग्य पर निर्भर रहता है, वह बर्बाद हो जाता है।” ~  चाणक्य

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    “धन, मित्र, पत्नी और राज्य पुनः प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन यह शरीर खो जाने पर फिर कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता।” ~  चाणक्य

    ” दूसरों की गलतियों से सीखें …आप इतनी देर तक जीवित नहीं रह सकते कि आप उन सभी गलतियों को खुद ही कर सकें” ~ चाणक्य

    चाणक्य एक भारतीय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और सलाहकार थे। चाणक्य एक महान विचारक और कूटनीतिज्ञ रहे हैं। चाणक्य पूरे उपमहाद्वीप में फैले एकजुट भारत की परिकल्पना करने वाले शुरुआती लोगों में से एक हैं। मूल रूप से तक्षशिला के प्राचीन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शिक्षक, चाणक्य ने पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त को कम उम्र में सत्ता में लाने में कामयाबी हासिल की थी। नतीजतन, उन्हें व्यापक रूप से मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है। चाणक्य ने सम्राट चंद्रगुप्त और उनके पुत्र बिन्दुसार दोनों के मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य किया।

    उनकी शिक्षाओं को दो पुस्तकों- अर्थशास्त्र (“भौतिक लाभ का विज्ञान”) और चाणक्य नीति में एक साथ रखा गया है । अर्थशास्त्र  _इसे चाणक्य की प्रशिक्षण पुस्तिका माना जाता है जिसके द्वारा उन्होंने चन्द्रगुप्त को एक नागरिक से एक राजा में बदल दिया। ऐसा कहा जा रहा है कि, कोई भी उनकी बुद्धिमत्ता पर सवाल नहीं उठा सकता। वह कोई योद्धा नहीं था, लेकिन उसने अपने मस्तिष्क का उपयोग करके लड़ाई लड़ी।

    “एक बार जब आप किसी चीज़ पर काम करना शुरू कर दें तो असफलता से न डरें और न ही उसे छोड़ें। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वे सबसे ज्यादा खुश रहते हैं।” ~  चाणक्य

    “शेर से एक उत्कृष्ट बात जो सीखी जा सकती है वह यह है कि एक आदमी जो कुछ भी करने का इरादा रखता है उसे पूरे दिल और ज़ोरदार प्रयास के साथ करना चाहिए।” ~  चाणक्य

    “उससे बचो जो तुम्हारे सामने मीठी-मीठी बातें करता है, परन्तु तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हें बरबाद करने की कोशिश करता है, क्योंकि वह जहर से भरे घड़े के समान है जिसके ऊपर दूध डाला जाता है।” ~  चाणक्य

    “शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति का हर जगह सम्मान होता है। शिक्षा सुंदरता और यौवन को मात देती है।” ~  चाणक्य

    “एक विद्वान व्यक्ति को लोगों द्वारा सम्मानित किया जाता है। एक विद्वान व्यक्ति अपनी शिक्षा के लिए हर जगह सम्मान पाता है। सचमुच, सीखने का हर जगह सम्मान किया जाता है।” ~  चाणक्य

    ” दूसरों की गलतियों से सीखें …आप इतनी देर तक जीवित नहीं रह सकते कि आप उन सभी गलतियों को खुद ही कर सकें” ~ चाणक्य

    “आदमी अकेला पैदा होता है और अकेला ही मर जाता है; और वह अपने कर्मों के अच्छे और बुरे परिणाम अकेले ही भोगता है; और वह अकेला ही नरक या परमधाम चला जाता है।” ~  चाणक्य

    “अशिक्षित मनुष्य का जीवन कुत्ते की पूँछ के समान बेकार है जो न तो उसके पिछले हिस्से को ढकती है और न ही उसे कीड़ों के काटने से बचाती है।” ~  चाणक्य

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     “ज्ञान अभ्यास में लाए बिना खो जाता है; अज्ञान के कारण मनुष्य खो जाता है”

    “वाणी की शुद्धता, मन की पवित्रता, इंद्रियों की शुद्धता और दयालु हृदय की आवश्यकता उस व्यक्ति को होती है जो दिव्य मंच पर चढ़ने की इच्छा रखता है।” ~  चाणक्य

    “फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है।” लेकिन, व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है” ~ चाणक्य

    “हमें जो बीत गया उसके लिए चिंतित नहीं होना चाहिए, न ही हमें भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए; समझदार लोग केवल वर्तमान क्षण से ही निपटते हैं । ~  चाणक्य

    “कभी भी यह प्रकट न करें कि आपने क्या करने के बारे में सोचा है, बल्कि बुद्धिमानी से सलाह के द्वारा इसे क्रियान्वित करने के लिए दृढ़ संकल्पित होकर इसे गुप्त रखें।” ~  चाणक्य

    “जिसका ज्ञान किताबों तक ही सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्जे में है , वह आवश्यकता पड़ने पर न तो ज्ञान और न ही धन का उपयोग कर सकता है।” ~  चाणक्य

    ” पृथ्वी सत्य की शक्ति पर टिकी हुई है, यह सत्य की शक्ति ही है जो सूर्य को चमकाती है और हवाएँ चलती है, वास्तव में सभी चीजें सत्य पर टिकी हैं।” ~  चाणक्य

    “आप जिस लायक हैं उससे कम पर कभी समझौता न करें। यह घमंड नहीं, स्वाभिमान है।” ~  चाणक्य

    मोदी जी CM बनाने के पहले कभी चुनाव नहीं लड़े। उन्हें  गुजरात के उप मुख्यमंत्री का दायित्व निभाने के लिए कहा गया। उस समय केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री थे। नरेंद्र मोदी जी ने कहा वे गुजरात में मुख्यमंत्री की हैशियत से ही कार्य करना चाहते हैं। तदुपरान्त उन्हें गुजरात मुख्यमंत्री का दायित्व दे कर २००२ में भेजा गया।  

    “जो भविष्य के लिए तैयार रहता है और जो आने वाली किसी भी स्थिति से चतुराई से निपटता है, दोनों खुश रहते हैं, लेकिन भाग्यवादी व्यक्ति जो पूरी तरह से भाग्य पर निर्भर रहता है, वह बर्बाद हो जाता है।” ~  चाणक्य

  • मोढेरा देश का पहला ऐसा गांव जहां 24 घंटे सोलर से जलेगी बिजली

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के सूर्य मंदिर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने लाइट एंड साउंड शो देखा।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित मोढेरा गांव को सातों दिन, 24 घंटे सोलर एनर्जी की सप्लाई वाला गांव घोषित किया। इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि मोढेरा को सूर्य मंदिर के लिए जाना जाता था और अब इसे सौर ऊर्जा की आपूर्ति के लिए भी जाना जाएगा। मोदी ने कहा, ‘छतों पर सोलर पैनल से पैदा होने वाली बिजली से मोढेरा के लोगों को न केवल मुफ्त बिजली मिलेगी, बल्कि उन्हें अतिरिक्त बिजली बेचकर पैसे कमाने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि मकान मालिक और किसान अब बिजली फैक्टरी के मालिक बन गए हैं।’

    मोढेरा की सौर परियोजना देश में अपने तरह की पहली परियोजना है, जिसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री ने की थी। इसमें जमीन पर सोलर पैनल लगाने के साथ-साथ 1300 घरों और सरकारी इमारतों की छतों पर भी सोलर पैनल लगाए गए हैं। प्रधानमंत्री ने करीब 3,900 करोड़ रुपये की विभिन्न परियोजनाओं का उद्‌घाटन किया और आधाशिला रखी।

    1000 से ज्यादा पैनल लगाए गए
    सौर्य परियोजना स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मोढेरा अपने सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। ट्वीट्स की एक श्रृंखला में जानकारी साझा करने वाली गुजरात सरकार के अनुसार, गांव के घरों में 1000 से अधिक सौर पैनल लगाए गए हैं, जिससे ग्रामीणों के लिए चौबीसों घंटे बिजली पैदा होती है।

    जीरो कॉस्ट पर मिलेगी सोलर बिजली
    आपको बता दें कि गांववालों को जीरो कॉस्ट पर सोलर बिजली मुहैया कराई जाएगी। गुजरात सरकार ने कहा है कि उसने भारत में अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के प्रधान मंत्री के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए गुजरात में विभिन्न कल्याणकारी परियोजनाओं के सतत कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया है।

  • माताभूमिपुत्रोहंपृथिव्या: Earth is my mother

    माताभूमिपुत्रोहंपृथिव्या: Earth is my mother

    यत् ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं, यास्त ऊर्जस्तन्व: संबभूवु: तासु नो धे ह्यभि : पवस्व माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: पर्जन्य: पिता : पिपर्तु।।

    अर्थात् “हे पृथ्वी, यह जो तुम्हारा मध्यभाग है और जो उभरा हुआ ऊधर्वभाग है, ये जो तुम्हारे शरीर के विभिन्न अंग ऊर्जा से भरे हैं, हे पृथ्वी मां, तुम मुझे अपने उसी शरीर में संजो लो और दुलारो कि मैं तो तुम्हारे पुत्र जैसा हूं, तुम मेरी मां हो और पर्जन्य का हम पर पिता के जैसा साया बना रहे” वैदिक ऋषि ने पृथ्वी से जिस प्रकार का रक्त-सम्बन्ध स्थापित किया है, वह इतना विलक्षण और आकर्षक है कि दैहिक माता-पिता से किसी भी प्रकार कम नहीं !”

    माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥

    (यह भूमि जहाँ हम जन्म लिए हैं हमारी माता है और हम सब इसके पुत्र हैं। ‘पर्जन्य’ अर्थात मेघ हमारे पिता हैं। और ये दोनों मिल कर हमारा ‘पिपर्तु’ अर्थात पालन करते हैं।)

    ✍️—अथर्ववेद, १२वां कांड, सूक्त १, १२वीं ऋचा।✍️—अथर्ववेद, १२वां कांड, सूक्त १, १२वीं ऋचा।

    ध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः

    तासु नो धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः

    पर्जन्यः पिता नः पिपर्तु ॥१२॥

    अथर्ववेद के भूमि सूक्त का यह मंत्र पृथ्वी और मानव के बीच में माता और संतान का संबंध स्थापित करता है, इसका अर्थ है कि “हे पृथ्वी आपके भीतर एक पवित्र उर्जा का स्रोत है, हमें उस उर्जा से पवित्र करें, हे पृथ्वी आप मेरी माता हैं और पर्जन्य (वर्षा के देवता) मेरे पिता हैं।”

    माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः!!

    “पृथ्वी माता सांस भी लेती हैं, वृक्ष हमारी माता के फेफड़े हैं, हम इस धरती माता का आदर करते हैं, और वह हमसे कितना प्रेम करती हैं कि हमारे लिए फल, फूल और अन्न के लिए मिट्टी और खाद देती हैं, हमें जल देती हैं, सब कुछ तो पृथ्वी माता ही देती हैं।”

    नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
    महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।

    (हे वात्सल्य मयी मातृ भूमि, तुम्हें सदा प्रणाम करता हूँ। इस मातृभूमि ने अपने बच्चों की तरह प्रेम और स्नेह दिया है। हमें इस सुखपूर्वक हिन्दू भूमि पर में बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि के लिए में अपने नश्वर शरीर को मातृभूमि के लिए अर्पण करते हुए इस भूमि को बार बार प्रणाम करता हूँ।)

    “हमारे धर्म में पृथ्वी को माता का ही स्थान प्राप्त है, और बार बार हम यह कहते आए हैं कि यह पृथ्वी हमारी माता है और यही कारण था कि पृथ्वी को माता मानने वाला हिन्दू धर्म सहज रूप से वृक्षों को काटने से दूरी बनाता रहा।”

    “यही कारण है कि मौर्य काल में भारत में आने वाले यात्री मेगस्थनीज ने युद्ध के विषय में लिखा है कि यदि युद्ध भी हो रहे होते थे, तो भी किसानों को हर प्रकार के खतरों से मुक्त रखा जाता था। सैनिक खेतों में फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाते थे और परस्पर युद्ध करने वाले राजा न ही अपने शत्रुओं की भूमि में आग लगते थे और न ही वृक्ष काटते थे!”

    “वह पर्यावरण की रक्षा करने के लिए युद्ध के मध्य भी तत्पर रहा करते थे। और अब यह एक वैज्ञानिक शोध में भी यह बात उभर कर आई है कि हमारी पृथ्वी पर ही जीवन नहीं है बल्कि हमारी धरती का अपना मस्तिष्क भी हो सकता है।”

    वैज्ञानिकों ने इस विचार को “ग्रहीय बुद्धिमत्ता” का नाम दिया है और जिसमें उन्होंने कहा है:- “यह किसी भी ग्रह की सामूहिक बुद्धि एवं संज्ञात्मक क्षमताओं का वर्णन करता है।”

    यह शोध इंटरनेश्नल जर्नल ऑफ एस्ट्रोबायोलोजी में प्रकाशित हुआ है और इस पेपर में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस बात के प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि “पृथ्वी पर फंगस का एक ऐसा नेटवर्क प्राप्त हुआ है, जो आपस में परस्पर संवाद करते रहते हैं और जिससे यह प्रमाणित होता है कि पृथ्वी पर एक अदृश्य बुद्धिमत्ता उपस्थित है।”

    इसमें लिखा है कि “इस ग्रह पर एक संज्ञानात्मक गतिविधि के विविध रूप उपस्थित हैं, (अर्थात वेर्नदस्काई की सांस्कृतिक बायोजियोकेमिकल ऊर्जा)। और यह यहाँ पर किसी भी पशु तंत्रिका प्रणाली के विकसित होने से पहले से और साथ ही होमो-जीनस के उपस्थित होने से भी पहले से उपस्थित है। यदि इस ग्रह के फीडबैक लूप्स का निर्माण करने वाले माइक्रोब्स के प्रति यह कहा जा सकता है कि वह अपने संसार की सभी बातें जानते हैं तो यह भी पूछा जाना उपयोगी है कि यदि यह ज्ञान बड़े पैमाने पर उपस्थित होता है तो जो व्यवहार उभर कर आता है, वह ग्रहीय बुद्धिमत्ता कहा जाता है!”

    “भारत में वेदों में न जाने कब से इस पृथ्वी के जीवित होने की बात की जाती रही है। बार बार यह कहा गया कि यह धरती एक जीवंत ग्रह है, जो सांस लेती है, जिसमें से रस उत्पन्न होते हैं।”

    अथर्ववेद के भूमिसूक्त में लिखा है:-

    यत्ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः ।
    तासु नो धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः ।
    पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु ॥१२॥

    “हे पृथ्वी माता, तेरा जो मध्य भाग है, जो नाभि क्षेत्र है, और जो तेरे शरीर से उत्पन्न रस है, वह सभी हमें प्रदान करें, हमें पवित्र करें! भूमि माता है और मैं इसका पुत्र हूँ, पर्जन्य पिता हैं, वह हमारा पालनपोषण करें!”

    और फिर आगे लिखा है
    त्वज्जातास्त्वयि चरन्ति मर्त्यास्त्वं बिभर्षि द्विपदस्त्वं चतुष्पदः ।
    तवेमे पृथिवि पञ्च मानवा येभ्यो ज्योतिरमृतं मर्त्येभ्य उद्यन्त्सूर्यो रश्मिभिरातनोति ॥१५॥
    आप से उत्पन्न हुए प्राणी आप में ही विचरण करते हैं, आप दो पैरों वालों को धारण करने वाली हैं और चार पैर वालों को धारण करती हैं। हे पृथ्वी, सभी मनुष्य तेरे हैं और जिनके लिए उदय होता हुआ सूर्य अपनी किरण से अमृततुल्य प्रकाश फैलाता है!”

    पृथ्वी को वैदिक काल से ही हम पृथ्वी को माता क्यों कहते हैंयह डॉ रामवीर सिंह कुशवाह ने भी अपने ब्लॉग में स्पश्ट किया है। 

    नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
    महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।

    (हे वात्सल्य मयी मातृ भूमि, तुम्हें सदा प्रणाम करता हूँ। इस मातृभूमि ने अपने बच्चों की तरह प्रेम और स्नेह दिया है। हमें इस सुखपूर्वक हिन्दू भूमि पर में बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि के लिए में अपने नश्वर शरीर को मातृभूमि के लिए अर्पण करते हुए इस भूमि को बार बार प्रणाम करता हूँ।)

    प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता इमे सादरं त्वां नमामो वयम्।
    त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम् शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।।
    (हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे।)

    अजय्यां विश्वस्य देहीश शक्तिं सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्।
    श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।।
    (हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर
    काँटों रहित करेंगे।)

    समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं परं साधनं नाम वीरव्रतम्।
    तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।।
    (ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे।)

    विजेत्री नः संहता कार्यशक्तिर् विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
    परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।
    (आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।)

    श्री राम अपने भाई लक्ष्मण से कहते हैं:-
    नेयं स्वर्णपुरी लङ्का रोचते मम लक्ष्मण।
    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

    (हे लक्ष्मण! यह स्वर्णपुरी लंका मुझे (अब) अच्छी नहीं लगती। माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बडे होते है।)

  • भारत को आजादी दिलाने में सुभाष बोस की अहम् भूमिका : ब्रिटिश पी एम

    कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीबी चक्रवर्ती, जिन्होंने भारत में पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में भी काम किया था, ने डॉ आर सी मजूमदार की पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ बंगाल’ के प्रकाशक को संबोधित एक पत्र में लिख कर खुलसा किया: “जब मैं कार्यवाहक गवर्नर था, लॉर्ड एटली, जिन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन को हटाकर हमें स्वतंत्रता दिलाई थी, ने अपने भारत दौरे के दौरान कलकत्ता के गवर्नर पैलेस में दो दिन बिताए थे। उस समय मैं उनके साथ उन वास्तविक कारकों के बारे में लंबी चर्चा हुई, जिनके कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।”

    “मेरा उनसे सीधा सवाल था कि

    चूंकि गांधी का” भारत छोड़ो “आंदोलन कुछ समय पहले धीमा पड़ गया था और 1947 में ऐसी कोई नई बाध्यकारी स्थिति पैदा नहीं हुई थी जिससे जल्दबाजी में ब्रिटिश प्रस्थान की आवश्यकता हो, तो उन्हें क्यों छोड़ना पड़ा?”? 

    अपने जवाब में एटली ने कई कारणों का हवाला दिया, उनमें से प्रमुख नेताजी की सैन्य गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारतीय सेना और नौसेना कर्मियों के बीच ब्रिटिश क्राउन के प्रति वफादारी का क्षरण था। 

    हमारी चर्चा के अंत में मैंने एटली से पूछा कि भारत छोड़ने के ब्रिटिश निर्णय पर गांधी के प्रभाव की सीमा क्या थी। इस सवाल को सुनकर, एटली के होठों में  व्यंग्यात्मक मुस्कान थी  क्योंकि एटली ने धीरे-धीरे “न्यूनतम!” शब्द गुनगुनाया ।((सुभाष चंद्र बोस, द इंडियन नेशनल आर्मी , एंड द वार ऑफ इंडियाज लिबरेशन-रंजन बोर्रा, जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल रिव्यू , नंबर 3, 4 (विंटर 1982))।

    जस्टिस चक्रवर्ती की तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से हुई वार्तालाप का उल्लेख जनरल जीडी बख्शी ने अपनी पुस्तक नॉलेज वर्ल्ड पब्लिकेशन, बोस: एन इंडियन समुराई में भी किया है।

    Mr. Fenner Brockway, Political Secretary of the Independent Labor Party  द्वारा एटली के विचारों को प्रतिध्वनित किया गया था, “ भारत के स्वतंत्र होने के तीन कारण थे । एक, भारतीय लोग स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए दृढ़ थे। दूसरा, भारतीय नौसेना द्वारा विद्रोह था। तीन, तीन ब्रिटेन भारत को अलग नहीं करना चाहता था, जो उसके लिए एक बाजार और खाद्य पदार्थों का स्रोत था। https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx

    Surce: https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx)

    पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा है कि ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी सिर्फ अहिंसा आंदोलन के बल पर नहीं मिली है बल्कि क्रांतिकारियों का बलिदान और योगदान भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के सामने आने से पहले कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ और उसी ने स्वतंत्रता की लौ जलायी। बाद में महात्मा गांधी ने इस काज में जन-मानस को साथ जोड़ा।

    स्वतंत्रता सेनानी वीर दामोदर सावरकर ने लिखा है, जब आप स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सोचते हैं तो आपको 1857 से 1947 तक सोचने की जरूरत है। आपको स्वतंत्रता संग्राम के 90 साल के बारे में सोचने की जरूरत है।

  • राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण: सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की धारणा संकीर्ण नहीं इसके प्रमाण सुप्रीम कोर्ट के दो ऐतिहासिक फैसले हैं। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेएस वर्मा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच ने दिसंबर 1995 में कहा था कि हिंदुत्व धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है. कोर्ट ने कहा था, ‘हिंदुत्व शब्द भारतीय लोगों के जीवन पद्धति की ओर इशारा करता है. इसे सिर्फ उन लोगों तक सीमित नहीं किया जा सकता, जो अपनी आस्था की वजह से हिंदू धर्म को मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट का दूसरा फैसला 9 नवंबर 2019 राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण से सम्बंधित है।

    राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए एक लम्बे अरसे से चल रही अदालती लड़ाई पर आखिरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ ही गया। 2016 में, अदालत ने मामले की नए सिरे से सुनवाई शुरू की गई। 2017 में, SC ने कहा कि मामला संवेदनशील था और मामले को अदालत से बाहर निपटाने का सुझाव दिया। इसने हितधारकों से बातचीत करने और एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के लिए कहा। हालांकि, कोई समाधान नहीं निकला। 2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने भूमि विवाद मामले की सुनवाई के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया।

    9 नवंबर, 2019 को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने जिसमें एक मुस्लिम न्यायाधीश भी थे सर्वसम्मति से फैसला सुनाया कि विवादित भूमि को राम जन्मभूमि न्यास को मंदिर निर्माण के लिए दिया जाए, और मुस्लिम पक्ष को एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन के साथ मुआवजा दिया जाए। अयोध्या में मस्जिद बनाने की जगह।

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 अगस्त, 2019 से इस मामले की दैनिक सुनवाई शुरू की और कार्यवाही के बीच में अधिवक्ताओं को अक्टूबर तक तर्क समाप्त करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर, 2019 को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सुनवाई पूरी की और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जो 9 नवंबर को पारित किया गया था। शीर्ष अदालत ने एक सर्वसम्मत फैसले में विवादित भूमि का स्वामित्व दिया अयोध्या में राम जन्मभूमि ट्रस्ट को 2.77 एकड़ जमीन। इसने आदेश दिया कि अयोध्या में “उपयुक्त” और “प्रमुख” स्थान पर भूमि का एक वैकल्पिक टुकड़ा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिया जाना चाहिए। अर्थात मुस्लिम पक्ष को एक प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन के साथ मुआवजा दिया जाए। अयोध्या में मस्जिद बनाने की जगह। कोर्ट ने सरकार से तीन महीने के भीतर एक योजना तैयार करने और एक ट्रस्ट स्थापित करने को भी कहा, जो अयोध्या में एक मंदिर का निर्माण करेगा।

    फरवरी 2020 में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में घोषणा की कि सरकार ने अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण और अन्य संबंधित मुद्दों की देखभाल के लिए “श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र” ट्रस्ट के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है।

    छह महीने बाद, उन्होंने राम जन्मभूमि स्थल पर राम मंदिर के निर्माण के लिए आधारशिला (40 किलो चांदी की ईंट) रखने के लिए अयोध्या का दौरा किया। कोरोनोवायरस महामारी की छाया के बावजूद, यह आयोजन असाधारण था, जिसमें 175 आमंत्रित थे। मंदिर के पहले तल का काम 2022 तक लगभग 60 फीसदी पूरा हो चुका है. मंदिर के पहले तल में कुल 160 पिलर होंगे. जबकि मंदिर के दूसरे तल में करीब 82 पिलर होंगे. राम मंदिर में कुल 12 दरवाजे होंगे । अयोध्‍या में 108 एकड़ में होगा राम जन्मभूमि परिसर। राम जन्मभूमि परिसर में भव्य मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है और इसके दिसंबर 2023 तक बनकर तैयार हो जाने का अनुमान है. मंदिर में जनवरी 2024 (मकर संक्रांति) तक भगवान राम लला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने की संभावना है।

    राम जन्मभूमि आंदोलन के सबसे प्रमुख राजनीतिक चेहरे, भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ने शनिवार को कहा कि अयोध्या मुद्दे पर ऐतिहासिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनके रुख की पुष्टि की है और वह एक शानदार राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले फैसले से बहुत धन्य महसूस करते हैं। .

    योगी आदित्यनाथ ने कहा, “मैं कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं, अयोध्या आज नई चमक से जगमगा रही है। खुशी है कि सभी ने फैसले को स्वीकार कर लिया। दुनिया हमारे लोकतंत्र की ताकत की सराहना करती है।”

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान सभी पक्षों को बहुत धैर्य के साथ सुना और यह पूरे देश के लिए खुशी की बात है कि फैसला सभी की सहमति से आया, पी एम मोदी ने कहा।

  • आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    वेद सहित सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों नेआत्महत्या या सासामूहिक आत्महत्या को पाप ही नहीं बताया बल्कि इसे ईश्वर का अपमान भी कहा है। यह सत्य धर्म प्रिय भारत के नेतृत्व और जनता समझती है। अतएव वेदिक नेतृत्व और जनता का कर्तव्य है कि वे कम से कम आत्महत्या से जीरो आत्महत्या प्राप्ति की ओर बढ़ें।

    वेदों की उद्घोषणा है- प्रज्ञानाम ब्रह्म, अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, अयम आत्म ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति अर्थात- ब्रह्म परम चेतना है, मैं ही ब्रह्म हूं, तुम ब्रह्म हो, यह आत्मा ब्रह्म है और यह संपूर्ण दृश्यमान जगत् ब्रह्मरूप है, क्योंकि यह जगत् ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है। ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो। कंकर-कंकर में शंकर का वास है इसीलिए जीव हत्या को ‘ब्रह्महत्या’ माना गया है।

    सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है इसका सबूत है वेद।वेद वैदिककाल की वाचिक परंपरा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। ध्यान और मोक्ष निर्वाण अर्थात जीरो शून्य o भारत अर्थात सनातन हिन्दू धर्म की ही देन है।

    वैदक जनों केलिए जीवन ही है प्रभु। कर्म करने के साथ साथ जरूरी नियमों की भी जरूरत होती है। 

    जीवन के 4 पुरुषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसके लिए अनुशासन और कर्तव्य पालन जरूरी है। सनातन धर्म ने मनुष्य की हर गतिविधि को वैज्ञानिक नियम में बांधा है। वैदिक प्रार्थना और ध्यान तथा देश समाज सेवा से भी हमारा धर्म है। अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। उनमें से एक है:

    यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः, एवा मे प्राण मा विभेः।

    जिस प्रकार आकाश व पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। ये ही सब जीवन की कला है।

    संसार में मुख्यतः दो प्रकार के धर्म हैं। एक कर्म-प्रधान दूसरे विश्वास-प्रधान। हिन्दू धर्म कर्म-प्रधान है, अहिन्दू अर्थात गैर सनातनी धर्म विश्वास-प्रधान। जैन, बौद्ध, सिख ये तीनों सनातन के अंतर्गत हैं। इस्लाम, ईसाई, यहूदी ये तीनों अहिन्दू धर्म के अंतर्गत हैं। हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर या देवी-देवताओं को मानने व पूजने की और यदि विश्वास न हो तो न मानने व न पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। अहिन्दू धर्म में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। RSS प्रमुख श्री मोहन भगवत जी कभी हाल ही के जो वक्तव्य हैं और क्रिस्चियन एवं मुस्लिम धर्म गुरुओं से मुलाकातें हैं वे इसी के प्रमाण हैं।

    नरेंद्र मोदी जी की भी विश्व के क्रिस्चियन और मुस्लिम देशों  के प्रमुखों से जो दोस्ताना और आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध हैं यह भी प्रमाण है कि वसुधैव कुटुम्कम वैदिक जनों का ध्येय वाक्य है, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता है।

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दु: भाग्भवेत।।

    अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्।

    उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।

    उदारता और सहिष्णुता हमारे रोम रोम में है। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां उसकी भिन्नता ही उसकी एकता का कारण बनी हुई है। भिन्नता में एकता का कारण हिन्दू धर्म की सहिष्णुता और उदारता के कारण ही है।

    जीवन के हर क्षेत्र और प्रकृति को समझकर ही जो संस्कार और कर्तव्य बताएं गए हैं वह मनोविज्ञान और विज्ञान पर ही आधारित हैं। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 22वें श्लोक में कहा गया है- ‘जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीवात्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है।’ चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में कहा गया है- ‘हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गए हैं। बस फर्क यह है कि मैं उन सबको जानता हूं, परंतु हे परंतप! तू उसे नहीं जानता।’

    वैदिक धर्म और उसे मानने वाला धर्मावलम्बी पंथ निरपेक्ष भारत विस्तारवादी नहीं है। हम मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर है अर्थात प्रत्येक कण में ईश्वर है। इसका यह मतलब नहीं कि प्रत्येक कण को पूजा जाए। इसका यह मतलब है कि प्रत्येक कण में जीवन है। वृक्ष भी सांस लेते हैं और लताएं भी। वेदों में प्रकृति के हर तत्व के रहस्य और उसके प्रभाव को उजागर किया गया है।

    पुराणों में परोपकार : राजा रंतिदेव को 40 दिन तक भूखे रहने के बाद  भोजन मिला तो भी उन्होंने शरण में आए भूखे अतिथि को वह भोजन देकर प्रसन्न हुए। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां तक दे दी, शिव जी  ने विष का पान कर लिया, कर्ण ने कवच और कुंडल दान दे दिए, यह है भारत की वैदिक शाश्वत परम्परा।

    हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। उद्देश्य है – चलो हम सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं:

    वेद और अन्य धर्म ग्रंथों में आत्महत्या को निंदनीय माना जाता है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। ऐसे में उसे पूरा जीना चाहिए समय के पूर्व उसे ख़त्म नहीं करना चाहिए और मानव कल्याण के लिए कुछ अच्छे काम करने चाहिए। पद्म पुराण में 84 लाख योनियों का जिक्र मिलता है, पशु, पक्षी, कीड़े, मनुष्य, पेड़, पौधे आदि मिलकर 84 लाख योनियों बनाते हैं।

    अथर्ववेद में त्वां मृत्युर्दयतां मा प्र मेष्ठा: कह कर बताया कि मृत्यु तेरी रक्षा करे और तू समय से पूर्व न मरे। अथर्ववेद में ही उत तवां मृत्योरपीपरं कह कर वेद भगवान ने संदेश दिया हे जीवात्मा मैं मृत्यु से तुझको ऊपर उठाता हूं। मृत्यो मा पुरुषवधी: कह कर वेद ने संदेश दिया कि हे मृत्यु तू पुरुष को समय से पूर्व मत मार।

    दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

    तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार

    भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।

    मनुष्य जीवन दुर्लभ क्यों हैं? क्यूंकि जीवन एक ही बार मिलता है और क्या पता कब क्या और जन्म होगा।

    भगवान बुद्ध ने तो यहाँ तक कहा हैकि ‘जो मनुष्य रूप में जन्म लेना है, वह देवताओं को भी सुगति प्रदान करताहै।’

    भगवद गीता के अनुसार मानव जीवन का परम उद्देश्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बनना है। ज्ञान योग या अष्टांग योग का अभ्यास करने वाले भी अंततः इसे समझते हैं। इसलिए, हमें अपने मानव जीवन का सही उपयोग करना चाहिए और बिना किसी भौतिक उद्देश्य के गंभीरता से कृष्ण भक्ति करनी चाहिए, जैसा की भगवद गीता में कहा गया है। गीता में कर्म योग को सर्वश्रेष्ठ कहा हैं, सांख्य या भक्ति योग से भी श्रेष्ठ। अतः कर्म करो आसक्ति और फल कि चाहत के विना।

     “कई जन्मों और मृत्युओं के बाद, जो वास्तव में ज्ञान में है, वह मुझे सभी कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में जाता है। ऐसी महान आत्मा दुर्लभ है।

    भगवद गीता 7.19

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ऋग्वेद में कहागया है कि हम भी श्रेष्ठ बनें और सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं।

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ: जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के अनुसार तीन कृपाएं अत्यंत दुर्लभ हैं, मनुष्य देह, मुमुक्षा अर्थात भगवान को पाने की भूख और तीसरा है महापुरुष का मिलना। इसमें से मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। देवी देवता भी इसे पाने के लिए तरसते हैं। क्योंकि केवल  मनुष्य जीवन ही ज्ञान और कर्मप्रधान होता है। ज्ञान तो देवताओं में भी होता है, लेकिन कर्म करने का अधिकार उन्हें नहीं होता। यदि हमने ज्ञानशक्ति का सही दिशा अर्थात परमार्थ के लिए उपयोग नहीं किया तो यह उसका दुरुपयोग ही होगा।

    भगवान की कृपा से ही यह मानव तन प्राप्त होता है। ईश्वर की लीला अनंत है, इस कारण कभी-कभी इतर योनियों में भी मुक्ति ईश्वर की कृपा से मिलती है, पर मोक्ष हेतु अवसर तो मानव के पास ही है–

    नर समान नहिं कवनिउ देहि। देत ईस बिन हेतु सनेही।।

    बड़े भाग मानुष तनु पावा।  सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हिं गावा।।

    वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति के लिए एक श्लोक लिखा गया है, जो इस प्रकार है…

    असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता। तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

    अर्थात: आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।

    #धर्मग्रंथों_के_अनुसार जिन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, उनका हल उसे जिंदा रहने पर तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरुआत हो जाती है। इन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने का दंड भोगना पड़ता है।

    गरुड़ पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है। जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं सकते बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं। आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया है ना कि आत्मघात का।

    आत्महत्या का दंड क्या होता है इस विषय में गरुड़ पुराण कहता है कि दंड स्वरुप आत्महत्या करने वाले की आत्मा अधर में लटक जाती है।  आत्महत्या निंदनीय है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है ऐसे में उसे व्यर्थ गंवा देना मूर्खता और अपराध है।इसीलिए आत्महत्या करने के बाद जो जीवन होता है वो ज्यादा कष्टकारी होता है।

    कृष्ण भगवान भगवद्गीता में अर्जुन कौ एक हि सन्देश देते हैं कि मोह त्याग, कर्म करने कौ खड़ा हो जा, आसक्ति छोड़, सुख दुख में समत्व भाव अपना, व्यक्ति कौ कर्म करने में अधिकार हैं, फल में नहींइस

    अर्थात रामायण हो या गीता धर्म स्थापना और असुर नाश सज्जन को राहत ही भगवान के अवतरित होने के मुख्य करण है.

    मानव शरीर के बारे में संत तुलसीदास जी ने कहा है

    बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।

    साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई जेहिं परलोक सँवारा।।

    यह मानव तन अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साधन योनि है, जिससे हम अपना परलोक सुधार सकते हैं, यह मानव तन ही मोक्ष का द्वार भी है।

    “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।

    प्रसंग “रामगीता का है, मानव जीवन प्राप्त कर विषयवासनाओं में मन लगाना, अमृत के बदले विष ग्रहण करने जैसी मूर्खता है और इसे कोई भी अच्छा नहीं कहता, यथा

    नरतनु पाइ बिसय मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।

    ताहि कबहुँ भल कहइ कि कोई। गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidiumsui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है।

    एकमात्र मनुष्य तन के द्वारा ही कर्म करके हम कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। यह मानव जीवन सब कुछ दे सकने का सामर्थ्य रखता है:

    नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी। ज्ञान विराग सकल सुख देनी।।

    अतः यह सिद्ध है, कि मनुष्य के समान कोई शरीर नहीं है, जिसकी याचना देव भी करते हैं

    नर समान नहि कवनिउ देही।

    यह बडभागी मानव तन को पाकर भी जिसने अपना परलोक नहीं सँवारा उसके भाग्य में पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता और वह दु:ख भोगता है।

    साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाइ न जेहि परलोक सँवारा।।

    सो परत्र दु:ख पावई , सिर धुनि धुनि पछ्तिाइ।

    चूँकि ईश्वर की बड़ी कृपा से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है

    कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस  बिनु हेत सनेही।।

    इस कारण इस शरीर को विषयों में जाया करना कहां तक समझदारी है,  स्वर्ग भी तो अल्प समय के लिए होता है और अन्तत: दु:ख ही भोगना पड़ता है।

    यहि तन कर फल विषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दु:खदायी।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidium, sui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है। इसमें सुसाइड बॉम्बर्स फिदायीन भी सम्मलित हैं। Pakitan is the founder of fidayeens aaaand suicide bombers.

    पाकिस्तानी टेररिस्ट की ये कैसी मां! आतंकी बेटे के कत्लेआम पर दी शाबासी तू जाबांज है. तू साहसी है. अल्लाह तुम्हें जन्न्त दे!

    सामूहिक हत्या भी इसी श्रेणी में आती हैं। सामूहिक आत्महत्या का एक उदाहरण 1978 में “जॉन्सटाउन” पंथिक आत्महत्या (कल्ट सुसाइड) का है जिसमें जिमजोन्स के नेतृत्व वाले एक अमरीकी पंथ पीपुल्स टेम्पल के 918 सदस्यों ने साइनाइड से अंगूर के रस से बने स्वाद वाले साधन द्वारा अपना जीवन समाप्त किया था। साइपान युद्ध के अंतिम दिनों में 10,000 से अधिक जापानी नागरिकों ने “आत्महंता चोटी” और “बान्ज़ाई चोटी” से कूद कर आत्महत्या कर ली थी।

  • मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy

    मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy


    प्राचीन काल में जब युद्ध का समय आता था तो राजा युद्ध शुरू होने से पहले ही अपना पक्ष मजबूत करने के लिए गठबंधनों पर जीत हासिल करने लगते थे, उस समय की इस नीति को  “कूट नीति” के नाम से जाना जाने लगा। मोदी जी कूटनीति” के लिए प्रसिद्ध हैं, यह बहुत स्पष्ट है क्योंकि वह और अमित शाह अन्य पार्टियों के प्रमुख सदस्यों का देश में चुनाव जीतने के लिए बहुत चतुराई से उपयोग करते हैं। वे  न केवल इस चाणक्य नीति का उपयोग करके देश में चुनाव जीतते हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विश्व के बड़े छोटे नेताओं को अपना मित्र भी बना लेते हैं।

    नरेंद्र मोदी ने चाणक्य नीति अपनाई। उन्होंने पाकिस्तान और चीन की घेराबंदी के लिए पहले तो अतंरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधों को मजबूत किया। फिर चीन की घेराबंदी के लिए नेपाल, भूटान, मंगोलिया, जापान, मंगोलिया आदि देशों से अपने संबंध मजूबत बनाए। दूसरी ओर अफगानिस्तान, ईरान, मालदीव, कजाकिस्तान, तकाकिस्तान, अमेरिका, रशिया, जर्मन, फ्रांस और इसराइल से अपने संबंध मजूबत करके पाकिस्तान को हर मोर्चे पर मात दी।

    It for Tat: शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना: चाणक्य मानते थे कि शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना चाहिए जो भाषा वह समझता है। यदि राजा कोई कड़ा फैसला नहीं लेता है तो उसे कमजोर माना जाता है और राज्य में भय का माहौल पैदा हो जाता है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ने भी इस नीति को अपनाया। जब पाकिस्तान ने 18 सितम्बर 2016 जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर पर भारतीय सेना के मुख्यालय पर किए गए आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे तब पीएम मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान को कड़ा संदेश देकर सर्जिकल स्ट्राइक करवा दी थी। इसी तरह जब पुलवामा में पाकिस्तान समर्थित फिदायीन हमले में 40 जवान शहीद हुए थे तब एयर स्ट्राइक करके सख्त संदेश दे दिया था।

    चाणक्य के अनुसार दो तरह के शत्रु होते हैं। पहले वो जिन्हें हम देख सकते हैं या पहचानते हैं और दूसरे शत्रु वे होते हैं जो छिप कर रहते हैं और समय आने पर वार करते हैं। शत्रु को पराजित करने के लिए चाणक्य ने कुछ ज़रूरी बातें बताई है:

    योजना- चाणक्य नीति के अनुसार एक व्यक्ति को अपनी योजनाओं को लेकर हर व्यक्ति से चर्चा नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति जब किसी गंभीर और महत्वपूर्ण काम या ज़िम्मेदारी को हाथ में लेता है तो उसे विश्वासपात्र लोगों के साथ ही अपनी योजनाओं को साझा करना चाहिए। क्योंकि शत्रु के हाथ में अगर आपकी योजना की जानकारी लग जाये तो वो उसमे अड़चने डाल सकता है। मोदी अपनी योजनाओं को अपने खास विश्वासपात्र  नेताओं जैसे अमित शाह से ही चर्चा करते हैं। अचानक निर्णय लेने के लिए प्रसिसद्ध हैं मोदी जी।  तीनों नए कृषि कानून वापस लेने का फैसला अचानक लिया। नोट बंदी और GST जैसे अनेक निर्णय मोदी जी ने अचानक लेकर सबको आश्चर्यचकित कर दिये थे। 

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए।

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए। कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था, उस समय देश विरोधी कुछ आंदोलनकारियों ने ” मोदी तू मरजा मरजा। .. ” के नारे लगाए थे , अन्य समय पर भी इसी प्रकार की मोदी जी को उकसाने वाली हरकतें होती रही हैं पर मोदी जी क्रोधित न होकर उन्हें नजरअंदाज करते रहे हैं।

    जब तक शत्रु की दुर्बलता का पता न चले, तब तक उसे मित्रता के भाव से रखना चाहिए। सदियों पुरानी होने के बावजूद,चाणक्य नीति आधुनिक जीवनशैली पर लागू की जा सकती है. हम सभी को चाणक्य की कुछ नीतियों के बारे में अवश्य जानना चाहिए। दुश्मन को पराजित करने हेतु पहला वार हथियार से न करके शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं अर्थात उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें। जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    दुश्मन पर पहला वार करने के पहले…? दुश्मन को पराजित करने के लिए कभी भी उस पर पहला वार हथियार से नहीं करना चाहिए । शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं मतलब उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें. जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    कोई भी कार्य शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न जरूर पूछने चाहिए- मैं ये क्यों कर रहा हूं, इसका रिजल्ट क्या हो सकता है और क्या मैं सफल हो पाऊंगा? और इसके बाद जब गहराई से सोचने समझने के बाद इन सवालों के संतोषजनक जवाब मिल जाएं, तभी आगे बढ़ने का फैसला लें.चीन और पाकिस्तान के सम्बन्ध में मोदी जी चाणक्य नीति ही अपना रहे हैं।

    पीएम नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक समुदाय को दियाचाणक्य मंत्र

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित किया। मोदी ने भारत के महान अर्थशास्त्री और नीति के जानकार चाणक्य के कथन को कहकर संयुक्त राष्ट्र को अहम सलाह दी है।


    पीएम मोदी ने अपने भाषण में आचार्य चाणक्य, दीन दयाल उपाध्याय और रवींद्रनाथ टैगोर का जिक्र किया। पीएम मोदी ने भारतीय रणनीतिकार चाणक्य के शब्दों को याद किया, जिन्होंने कहा था, “जब सही समय पर सही काम नहीं किया जाता है, तो समय ही उस काम की सफलता को नष्ट कर देता है।” प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि, “यदि संयुक्त राष्ट्र को खुद को प्रासंगिक रखना है, तो उसे अपनी प्रभावशीलता में सुधार करना होगा और इसकी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी।”

    आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्री जगत को एकजुट किया: विश्व के पहले व्यक्ति मोदी ही हैं जिन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्‍ट्री जगत को एकजुट किया। नरेंद्र मोदी ने ही विश्‍व को यह समझाया कि आतंकवाद लॉ एंड आर्डर, एक स्टेट या देश का मामला नहीं है बल्कि यह एक वैश्‍विक समस्या है। पीएम मोदीजी ने ही अंतरराष्ट्रीय जगत को समझाया कि गुड या बैड आतंकवाद नहीं होता। मोदी जी ने धीरे–धीरे आतंकवाद की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जबकि इससे पहले आतंकवाद को गुड एवं बैड कहकर परिभाषित किया जा रहा था उन्होंने विश्व को आतंकवाद क्या है समझाया आतंकवाद मानवता का दुश्मन है, न गुड है न बैड।

    उन्होंने पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध विश्व बिरादरी का ध्यान खींचा।मोदी ने भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई अनुकूल गठजोड़ किए हैं। उदाहरण के लिए, ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार बंदरगाह परियोजना, अमेरिका के साथ संचार अनुकूलता और सुरक्षा समझौता, सिंगापुर के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, रूस के साथ आतंकवाद विरोधी समझौता, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ आईबीएसए फंड समझौता, जापान के साथ बुले

    आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में सफल जीवन जीने के लिए कई तरीके बताए हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं जो व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ना चाहता है, वो उसके लिए मेहनत करता है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बिना मेहनत के कामयाबी पाना चाहते हैं ।आचार्य ने लोगों को कभी भी इन चीजों पर भरोसा नहीं करने को कहा है। 

    इस सन्दर्भ में मुझे अमेरिका के पूर्व प्रेसीडेंट वाशिंगटन का स्मरण हो रहा है। उन्होंने अपने कमरे के दरवाजे के ऊपर P लिखा था जिससे उसे सदैव स्मरण रहे कि उसे प्रेसिडेंट  बनाना है। भले ही मोदी जी ने वाशिंगटन जैसा नहीं सोचा हो पर लगातार लगन से ईमानदारी से प्रयास और परिश्रम से मोदी जी नरेंद्र से पी एम मोदी  बन गए।

    Modi के शासन पर चाणक्य नीति का असर, Amit Shah की Book ने किया खुलासा

    आज हमारा देश विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां हर व्‍यक्ति के पास अपना शासक चुनने का अधिकार है, मतलब आज वोट डालने वाला हर नागरिक चाणक्य है।आचार्य चाणक्य का मानना था कि आम जनता को साथ लाए बगैर घनानंद के शासन को उखाड़ फेंकना मुमकिन नहीं है। इसीलिए चाणक्य ने आम जनता के दम पर अपनी एक सेना बनाई और घनानंद का तख्‍ता पलट कर दिया। आचार्य चाणक्‍य ने इस सफलता से सीख दी कि जनभागीदारी से ही शासन व्‍यवस्‍था को बदला जा सकता है। लोकतंत्र में आम जनता के पास बड़ी ताकत होती है।

    नरेंद्र मोदी चाणक्य की इसी नीति को आत्मसात कर कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी उसे बेअसर कर राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं।

    पीएम मोदी ने नोटबंदी पर अपनाई चाणक्य नीति

    Dec 2016: नोटबंदी के बाद पहली बार संसदीय दल को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के दौरान सांसदो को चाणक्य नीति का पाठ पढ़ाया। बेनामी संपत्ति को लेकर पीएम मोदी ने चाणक्य नीति के 15 वें अध्याय के छठे दोहे का जिक्र किया। पाप से कमाया हुआ पैसा 10 साल तक रह सकता है। 11वें वर्ष लगते ही वह मूलधन के साथ नष्ट हो जाता है। 

    आर्थिक फैसले: आचार्य चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में राजस्व, कर राज्य व्यवस्था, कृषि, न्याय एवं राजनीति के बारे में विस्तार से लिखा है। चाणक्य मानते थे कि कर संग्रह के साथ ही जनकल्याण के कार्य भी जारी रहना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक ओर जहाँ GST लागू किया तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को सुधारने का कार्य किया वहीं उन्होंने जन कल्याण से जुड़ी कई योजनाओं को लांच करके गरीब जनता को लाभ पहुंचाया।

     परिवारवाद की राजनीति ख़त्म: आचार्य चाणक्‍य ने उस काल में परिवारवाद की राजनीति को खत्म करके लोकतंत्र का समर्थन करते हुए घनानंद के शासन को खत्‍म किया था। आचार्य चाणक्‍य का मानना था कि शासन की बागडोर उसी को संभालनी चाहिए, जो उसके लायक हो और जनता जिसे पसंद करती हो। ऐसे व्‍यक्ति को शासन करने का कोई अधिकार नहीं, जो जनता की समस्‍याओं को न सुनता हो। राहुल गाँधी जनता की तो क्या अपने पार्टी के प्रमुख नेताओं की भी बात नहीं सुनते।  हिमन्त विश्व शर्मा जैसे नेता से मिलाने की अपेक्षा वे अपने कुत्ते से मस्ती करना उचित समझा।

    यही बात पी एम नरेंद्र मोदी अपनी पहले लोकसाभ चुनाव से अब तक बोलते आए हैं कि परिवारवाद देश के लिए घातक है। कुछ पार्टिया एक ही परिवार की पार्टियां हैं। भाजपा किसी परिवार की नहीं जनता की पार्टी है। यहां एक चाय वाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है। भ्रष्टाचार और वंशवाद की राजनीति प्रहार करते हुए मोदी जी ने कहा था कि राज्य को “पहले लोग, पहले परिवार नहीं” सरकार की जरूरत है।इस तरह के परिवारवाद के खिलाफ चाणक्य भी थे।

    उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि भारत आज इतने सारे देशों के साथ काम कर रहा है और श्री मोदी दुनिया के अधिक से अधिक देशों के साथ काम करने की योजना बनाते जा रहे हैं।

    यदि हम मोदी जी की कार्य प्रणाली, राजनीति और कूटनीति को समझने का अध्यन करें तो हमें चाणक्य के निम्न लिखित श्लोक की झलक भी दिखेंगी:

    गते शोको कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् वर्तमानेन कालेन प्रवर्त्तन्ते विचक्षणाः चाणक्यनीतिः, अध्यायः १३

    अतीत पर शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के बारे में चिंतित नहीं रहना चाहिए। बुद्धिमान लोग केंद्रित होते हैं और वर्तमान में लगे रहते हैं।” – चाणक्य

    यद्‌ दूर यद्‌ दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम्‌ ।

    तत्सर्व तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रममू ॥ – १७.३ चाणक्य-नीतिः

    कोई वस्तु चाहे कितनी ही दूर क्‍यों न हो, उसका मिलना कितना ही कठिन क्यों

    न हो, और वह पहुँच से बाहर क्यों न हो, कठिन तपस्या अर्थात परिश्रम से उसे

    भी प्राप्त किया जा सकता है। परिश्रम सबसे शक्तिशाली वस्तु है।

    यह भारत के लोकतंत्र की ताकत  कि बचपन में चाय बेचने वाला चौथी बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण दे रहा है

  • राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    16 Aug 2018 : जब भी गुजरात दंगों का जिक्र होता है तो अटल बिहारी वाजपेयी के ‘राजधर्म’ की चर्चा जरूर होती है। एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि आप मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई संदेश लेकर आए हैं? इस पर वाजपेयी जी ने अपने उसी चिर-परिचित अंदाज में जवाब दिया, ‘मैं इतना ही कहूंगा, वह राज धर्म का पालन करें। ये शब्द काफी सार्थक हैं। मैं उसी का पालन कर रहा हूं और पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। एक राजा या शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता है, न जन्म के आधार पर, न जाति और संप्रदाय के आधार पर…।’
    सुप्रीम कोर्ट ने दी गोधरा कांड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी क्लीन चिट ।

    पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के विशेष जांच दल (एसआइटी) द्वारा 2002 के गोधरा दंगा मामले में गुजरात तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। रविशंकर ने बताया कि याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी। रविशंकर ने तीस्ता सीतलवाड़ के साथ कांग्रेस, राजद प्रमुख लालू प्रसाद और वामदलों को भी निशाने पर लिया।

    9 दिसंबर 2022 गुजरात ने बना दिया इतिहास, बीजेपी को 156 सीटें ही नहीं दी, ये रिकॉर्ड भी बनाया।
    गुजरात के चुनावी इतिहास में बीजेपी ने अब तक की सबसे बड़ी और धमाकेदार जीत दर्ज की है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है।

    वैदिक राजधर्म व्यवस्था

    राजधर्म का अर्थ है – ‘राजा का धर्म’ या ‘राजा का कर्तव्य’। राज वर्ग को देश का संचालन कैसे करना है, इस विद्या का नाम ही ‘राज धर्म’ है। राज धर्म की शिक्षा के मूल वेद हैं।
    महाभारत के विदुर प्रजागर तथा शान्ति पर्व, चाणक्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र आदि में भी राजधर्म की बहुत सी व्याख्या है, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी सत्यार्थ प्रकाश में एक पूरा समुल्लास राजधर्म पर लिखा है। महाभारत में इसी नाम का एक उपपर्व है जिसमें राजधर्म का विस्तृत विवेचन किया गया है।

    मनुस्मृति के ७वें अध्याय में राजधर्म की चर्चा की गयी है।
    पुत्र इव पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचरिष्यन्ति स राजा राजसत्तम ॥
    यथा पुत्रः पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचारिष्यन्ति स राजा राजसत्तम् ॥

    मनुस्मृति में दण्ड वही राजा व दण्ड प्रजा का शासनकर्त्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है, इसी लिये बुद्धिमान लोग दण्ड ही को धर्म कहते हैं। यदि राजा दण्ड को अच्छे प्रकार विचार से धारण करे तो वह सब प्रजा को आनन्दित कर देता है और जो विना विचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा का विनाश कर देता है

    चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं। पिता श्री चणक के पुत्र होने के कारण वह चाणक्य कहे गए। विष्णुगुप्त कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति के महाविद्वान ,और अपने महाज्ञान का ‘कुटिल’ ‘सदुपयोग ,जनकल्याण तथा अखंड भारत के निर्माण जैसे सृजनात्मक कार्यो में करने के कारण वह; कौटिल्य’ ‘कहलाये।
    कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजधर्म की चर्चा है।
    प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्।
    नात्मप्रियं प्रियं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥ (अर्थशास्त्र 1/19)

    (अर्थात्-प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है।)
    तस्मात् स्वधर्म भूतानां राजा न व्यभिचारयेत्।
    स्वधर्म सन्दधानो हि, प्रेत्य चेह न नन्दति॥ (अर्थशास्त्र 1/3)

    (अर्थात्- राजा प्रजा को अपने धर्म से विमुख न होने दे। राजा भी अपने धर्म का आचरण करे। जो राजा अपने धर्म का इस भांति आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक में सुखी रहता है।) एक राजा का धर्म युध भूमि में अपने दुश्मनों को मारना ही नहीं होता अपितु अपने प्रजा को बचाना भी होता है

    मुखर्जी (2013) के अनुसार भारतीय शास्त्रों में सुशासन को राज धर्म कहा गया है। राजधर्म”’आचार संहिता’ या ‘कानून का नियम’ था जो शासक की इच्छा से श्रेष्ठ था और उसके सभी कार्यों को नियंत्रित करता था (कश्यप, 2010)। राजधर्म आचार संहिता अर्थात सुशासन जिसका उल्लेख प्राचीन भारतीय शास्त्रों में संस्कृत और पालि जैसे भगवद गीता , वेद , महाभारत के अलावा शांतिपर्व, नीतिसार , रामायण , अर्थशास्त्र, दीघ निकाय , जातक में भी विशेष रूप से है। सभी नागरिकों का मूल अधिकार सरकार से सुशासन प्राप्त करना है और सरकार बाध्य है इसके लिए।

    सर्वे धर्म सोपधर्मस्त्रायणं रण्यो धर्मादिति वेदाचुनोमि
    एवम धर्मन् राजधर्मेषु सरवन सर्वस्तम सम्प्रलिनन निबोध

    जिसका अर्थ है “सभी धर्म राजधर्म में विलीन हो गए हैं , और इसलिए यह सर्वोच्च धर्म है ” ( महाभारत शांतिपर्व 63, 24-25 )।

    अत्रिसंहिता में वर्णित सुशासन के लिए नैतिक व्यवहार और नैतिक मानकों के रूप में राज्य के अनिवार्य कार्यों की आवश्यकता है:
    दुष्टस्य दण्ड सुजानस्य पूजा न्यायेन कोषस्य च संप्रविधि
    अपेक्षापथोर्तिर्शु राष्ट्ररक्षा पंचैव यज्ञ कथिता नृपन्नम

    उक्त श्लोक में पाँच निःस्वार्थ कर्तव्य बताये गए हैं जिन्हें राजा [राज्य] द्वारा किए जाने चाहिए । ( अत्रिसंहिता-28 ).
    कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में उक्त सिद्धांतों को शामिल किया है:
    प्रजासुखे सुखं राज्य प्रजानन च हिते हितम्
    नातम्प्रियं हितं राज्य प्रजनम तु प्रियं हितम्

    अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख है।

    सरकार के साथ साथ नागरिकों के भी कर्तव्य हैं:
    राज धर्म और व्यवहारधर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जहां राजा और प्रजा को धर्म का पालन करना होता है- ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से जिसके परिणामस्वरूप सुशासन होगा (जोइस, 2017)।

    आजादी से पहले राजपथ को किंग्स वे और जनपथ को क्वींस वे के नाम से जाना जाता था। स्वतंत्रता मिलने के बाद क्वींस वे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया था। जबकि किंग्स वे राजपथ के नाम से जाना जाने लगा। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद अब इसका नाम कर्तव्य पथ कर दिया गया है। केंद्र सरकार का मानना है कि राजपथ से राजा के विचार की झलक मिलती है, जो शासितों पर शासन करता है। जबकि लोकतांत्रिक भारत में जनता सर्वोच्च। नाम में बदलाव जन प्रभुत्व और उसके सशक्तिकरण का एक उदाहरण है।

    व्यक्ति को शास्त्रों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए ”( भगवदगीता , अध्याय XVI, श्लोक 24)।

    अक्रोध सत्यवचनम संविभाग क्षमा तथा

    प्रजना शेषु दारेषु शौचमद्रोह अव च

    आर्जवं ब्रुत्यभरणं नवैते सर्ववर्णिका 

    “सत्य, क्रोध से मुक्त होना, दूसरों के साथ धन बांटना ( संविभाग ), क्षमा, अकेले अपनी पत्नी से संतानोत्पत्ति (यौन नैतिकता), पवित्रता, शत्रुता का अभाव, सीधापन और स्वयं पर निर्भर व्यक्तियों को बनाए रखना ये नौ नियम हैं।” सभी वर्णों के व्यक्तियों का धर्म ” (महाभारत शांतिपर्व 6-7-8) 

    *

    finsindia.org ने धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म, उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां, समानता, एकता आदि पर भी प्रकाश डाला है। 

    धर्म की सर्वोच्चता

    केवल राजशाही का निर्माण पर्याप्त नहीं था, धर्म राजा से श्रेष्ठ एक शक्ति थी, जिसे राजा को लोगों की रक्षा करने और देने में सक्षम बनाने के लिए बनाया गया था। धर्म  की परिभाषा इस प्रकार है : 

    तदेतत क्षत्रस्य क्षत्रं युधर्मा, तस्मध धर्मत्परं नास्त्य

    अथो अबलियान बलियान समाशमसते धर्मेना, यथा राज्य एवम 

    धर्म  राजाओं का राजा है। धर्म  से श्रेष्ठ कोई नहीं ; राजा की शक्ति से सहायता प्राप्त धर्म कमजोरों को मजबूत पर हावी होने में सक्षम बनाता है बृहदारण्यकोपनिषद 1-4-14)

    धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म :

    अपने धर्म का पालन करने के अधिकार को राजा धर्म  में मान्यता दी गई थी पशंदानाइगम श्रेणी पूव्व्रत गणदिशु, संरक्षित्समयं राजा दुर्गे जनपद  (नारद स्मृति ( धर्मकोष P-870)

    भारत में जहां वेदों को सर्वोच्च माना जाता था, वेदों में अविश्वासियों को उसी तरह से संरक्षित किया जाना था जैसे वेदों में विश्वास करने वालों को , यह दर्शाता है कि राज धर्म के तहत, धर्म धर्मनिरपेक्ष है (जोइस, 2017)

    समानता 

    “कोई भी श्रेष्ठ ( अज्यस्तसो ) या हीन ( अकनिष्टस ) नहीं है। सब भाई-भाई हैं ( एते भरतरः )। सभी को सभी के हित के लिए प्रयास करना चाहिए और सामूहिक रूप से प्रगति करनी चाहिए ( सौभाग्य सं वृद्धु )। (ऋग्वेद मंडल-5, सूक्त-60, मंत्र-5)

    “भोजन और पानी की वस्तुओं पर सभी का समान अधिकार है। जीवन रथ का जूआ सबके कंधों पर समान रूप से रखा है। सभी को एक साथ मिलकर एक दूसरे का समर्थन करते हुए रहना चाहिए, जैसे रथ के पहिये की धुरी उसके रिम और हब को जोड़ती है ” (अथर्ववेदसंज्ञान सूक्त)

    रामायण में शासन और समानता: रामराज्य का कोई लिखित संविधान न होने के बावजूद , नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त था और विकास के रास्ते सभी के लिए खुले थे। कानून की नजर में सब एक समान थे। 

    महाभारत में महाभारत में शासन और समानता:

    राजा राज्य का प्रमुख होगा और लोगों और उनकी संपत्तियों की रक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। स्वामी बोधानंद (2010) शासन के संदर्भ में महाभारत में धर्म का विश्लेषण इस प्रकार करते हैं:

    मैं। न्याययुक्त प्रारंभिक धर्म – “ न्याय और निष्पक्षता पर आधारित कोई भी उपक्रम”।

    द्वितीय।  तत परस्य समदध्यात् प्रतिकुलम यदत्मनः एश संक्षेपतो धर्मः – “धर्म का अर्थ है दूसरों के साथ ऐसा न करना जो स्वयं के लिए अप्रिय हो” ( महाभारतअनुसासन पर्व, 113-8)।

    महाभारत युद्घ के समाप्त होने के बाद महाराज युधिष्ठिर को भीष्म ने राजधर्म का उपदेश दिया था।

    युधिष्ठर को समझाते हुए भीष्म पितामह कहते हैं-

    राजन जिन गुणों को आचरण में लाकर राजा उत्कर्ष लाभ करता है, वे गुण छत्तीस हैं। राजा को चाहिए कि वह इन गुणों से युक्त होने का प्रयास करें।

    उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां:

    स्मृतियों ने न्याय प्रदान करने के लिए उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता करके न्याय के प्रशासन की जिम्मेदारी लेने वाले राजा की आवश्यकता पर बल दिया ।

    हर्माशास्त्रं पुरस्कृत्य प्रदिवावकमते स्तिता,

    समाहितमति पश्येत व्यवहारानुक्रमात्   

    “राजा को कानून के अनुसार और मुख्य न्यायाधीश की राय का पालन करते हुए बड़ी सावधानी से मामलों की सुनवाई करनी चाहिए” ( नारद स्मृति, 1-35, 24-74, स्मृति चंद्रिका, 66 और 89)

    वेद हमें सत्य बोलने और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं: 

    सत्यम वड़ाधर्मम चर! – ( तैत्तिरीय उपनिषद, i-II ) 

    January 12, 2023 की मीडिया भारत के अनुसार: जगदीप धनखड़ ने साफ शब्दों में कहा कि संसद की कानून बनाने की शक्ति को न्यायपालिका अमान्य नहीं कर सकती। ऐसा देखा जा रहा है कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बयानों का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून, तभी कानून का रूप लेगा, जबकि उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी। धनखड़ जब राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया था, तब भी उन्होंने कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। तब यह कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं।

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  • लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    वैदिक राज्य व्यवस्थान में राजतंत्र न होकर गणतांत्रिक व्यवस्था थी। लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। लोकतंत्र की धारणा वैदिक युग की ही देन है। महाभारत और बौद्ध काल में भी गणराज्य थे। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।

    ऋग्वेद में सभा मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही किसी  भी विषय या नेतृत्व कौन करे इस पर  वार्तालाप बहस होने के बाद बहुमत से निर्णय अर्थात फैसला होता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था।

    भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। दशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं का युद्ध या दशराजन युद्ध एक युद्ध था जिसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है।

    ।। त्रीणि राजाना विदथें परि विश्वानि भूषथ: ।।-ऋग्वेद मं-3 सू-38-6

    भावार्थ : ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिल के सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धि कारक राज्य के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा अर्थात- विद्यार्य्यसभा, धर्मार्य्य सभा, राजार्य्यसभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वतंत्रता, धर्म, सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।

    ।। तं सभा च समितिश्च सेना च ।1।- अथर्व-कां-15 अनु-2,9, मं-2

    भावार्थ: उस राज धर्म को तीनों सभा संग्राम आदि की व्यवस्था और सेना मिलकर पालन करें।

    1.सभा : धर्म संघ की धर्मसभा, शिक्षा संघ की विद्या सभा और राज्यों की राज्य सभा।

    2.समिति : समिति जन साधरण की संस्था है। सभा गुरुजनों की संस्था अर्थात गुणिजनों की संस्था।

    3.प्रशासन : न्याय, सैन्य, वित्त आदि ये प्रशासनिक, पदाधिकारियों, के विभागों के नाम है। जो राजा या सम्राट के अधिन है।
     

    राजा : राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए ही सभा ओर समिति है जो राजा को पदस्थ और अपदस्थ कर सकती है। वैदिक काल में राजा पद पैतृक था किंतु कभी-कभी संघ द्वारा उसे हटाकर दूसरे का निर्वाचन भी किया जाता था। जो राजा निरंकुश होते थे वे अवैदिक तथा संघ के अधिन नहीं रहने वाले थे। ऐसे राजा के लिए दंड का प्रावधान होता है। राजा ही आज का प्रधान है।

    प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथमं सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध

    विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अजिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ।। (ऋक–२-२१-१) एवा वस्व इन्द्रः सत्य. सम्रान्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. । पुरष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य । (ऋक् — ४-२१-१०)

              विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नूजित उबंराजिते ।

    अश्वजिते गोजिते अल्जिते भरेन्द्राय सोम॑ यजताथ हर्यंतम्‌ ॥

    (ऋकू–रर२१-१)

    एवा वस्व इन्द्र: सत्य. सम्नाड्हस्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. ।

    दुरष्ट्त क्रद्ना न: शग्धि रायों भक्षीय तेश्वसों देव्यस्य ॥।

    (कक ब-र-१०)

    पाश्चात्य विद्वानों ने संसार की सबसे महान्‌ और प्राचीन पुस्तक “’ऋग्वेद’ और

    उसके परिवार दे 4, «मीय ग्रंथों का अनुशीलन करके हमारी ऐतिहासिक स्थिति को बतलाने की चेष्टा की है, और उनका यह स्तुत्य प्रयत्न बहुत दिनों से हो रहा है । कितु इस ऐतिहासिक खोज से हमारे भारतीय इतिहास की सामग्री एकत्रित करने में बहुत-सी सहायता मिली है उसी के साथ अपूर्ण अनुसंघानो के कारण और किसी अंश में सेमेटिक प्राचीन धर्म पुस्तक (06 ’68/80060/) के ऐतिहासिक विवरणों को मानदण्ड मान लेने से बहुत-सी श्रांत कल्पनायें भी चल पडी है ।

    बहुत दिनों त पहले, ईसा के २००० वर्ष पूर्वे का समय ही सृष्टि के प्रागू ऐतिहासिक काल को भी अपनी परिधि में ले आता था । क्योंकि ईसा से २००० वर्ष पूर्व जलप्रलय का होना माना जाता था और सृष्टि के आरंभ से २००० वेषें के अनन्तर जल-प्रलय का समय निर्धारित था-इस प्रकार ईसा से ४००० वर्ष पहले सृष्टि का आरंभ माना जाता था । बहुत संभव है कि इसका कारण वही अन्तनिहित घामिक प्रेरणा रही हो जो उन शोधकों के हृदय मे बद्धमुल थी । प्राय: इसी के वशवर्त्ती होकर बहुत से प्रकांडपण्डितों ने भी, ,ऋग्वेद के समय-निर्धारण मे संकीण॑ता का परिचय दिया है। हुष॑

    का विषय है कि प्रत्नततत्व और भूग्भ शास्त्र के नये-नये अन्वेषणों और आविष्कारों १. आर्यावत्त और प्रथम सम्राट इन्द्र ‘कोशोत्सव स्मारक संग्रह’ मे सबत्‌ १९८५ में हुआ और ‘दाशराज्ञ युदध’ गंगा के दे ंक में पोष संवत्‌ १९८८ में प्रकाशित हुआ । उमभय निबन्ध भायें संस्कृति के आरम्भिक अध्यायो पर एकतान चिन्तन की फलकश्रृति में प्रस्तुत है-सुतरा क्रमबद्ध रूप से एकीकृत किया गया है। (सं ) प्राचीन आर्यावत्त-प्रथम सम्राट इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध : १०९

    इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। राजतन्त्र को समाप्त कर पुनः लोकतंत्र की बहाली का पुण्य कार्य दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र दुष्यंत ने ही किया।

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  • वैदिक गणित और आधात्म: Vedic Mathematics and Spirituality

    वैदिक गणित और आधात्म: Vedic Mathematics and Spirituality

    गणित और धर्म: कृष्ण तीर्थ को 16 गणितीय सूत्रों की खोज का श्रेय दिया जाता है जो चार वेदों में से एक अथर्ववेद के परिशिष्ट (परिशिष्ट) का हिस्सा थे (बॉक्स देखें)। तीर्थ के सरल सूत्र जटिल गणितीय गणनाओं को संभव बनाते हैं। गणित में आस्था रखना धर्म में आस्था रखने के समान है: यह किसी ऐसी अमूर्त चीज में विश्वास करना है जो अभी तक विश्वासियों के मन में मूर्त है। गणित और धर्म इस मायने में एक जैसे हैं कि वे दोनों एक प्रकार की कृपा की कामना करते हैं । वे कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलने के सचेत प्रयास हैं।

    गणित भी ईश्वर पर विशवास करने का एक कारण हैं: म गणित पर भरोसा कर सकते हैं इसका कारण यह है कि हमारा विश्वासयोग्य, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लगातार हमारे ब्रह्मांड को एक साथ रखता है (कुलुस्सियों 1:17)। वह सुनिश्चित करता है कि जोड़, घटाव, गुणा और भाग के सिद्धांत हमेशा स्पष्ट उत्तर देंगे। गणित एक ऐसी भाषा है जो आपके आसपास के जीवन में हर चीज की पेचीदगियों का वर्णन, चित्रण और अभिव्यक्ति भी करती है। एक भाषा जो भौतिक सीमाओं से ऊपर की चीजों के कामकाज का सही-सही वर्णन कर सकती है । इसलिए गणित को ‘ईश्वर की भाषा’ कहा जाता है।

    शून्यकाआविष्कारभीभारतमेंही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

    शून्य का आविष्कार भी भारत में ही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

    में उनकी स्थिति के आधार पर अंकों के अलग-अलग मान होते हैं। जैसे संख्या 22 में, बायाँ 2 बीस का और दायाँ 2 दो का प्रतिनिधित्व करता है।

    शून्य का आविष्कार भी भारत में ही हुआ, जिसके आधार पर गणित की सारी बड़ी गणनाएँ होती हैं। ऐसा माना जाता है कि बाकी दुनिया को जब शून्य का पता भी नहीं था तब भारत में 75वीं ईसवी में शून्य का चलन बहुत ही आम था। लगभग डेढ़ हज़ार साल पहले गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य के प्रयोग से जुड़ी एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने शून्य के प्रयोग के बारे में विस्तार से बताते हुए इसके आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी भी दी।

    एलेक्स बेलोस का कहना है कि आध्यात्मिक शून्यता के भारतीय विचारों ने गणितीय शून्य को जन्म दिया। उन्होंने कहा, “शून्य का मतलब कुछ भी नहीं है। लेकिन भारत में इसे शून्य की अवधारणा का मतलब एक तरह का मोक्ष है।” “जब हमारी सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, तब हम निर्वाण या शून्य या पूर्ण मोक्ष की ओर जाते हैं।” “शून्यता” की पारलौकिक स्थिति, जब आप पीड़ा और इच्छाओं से मुक्त हो जाते हैं।“

    भारत में हिंदू, बुद्ध और जैन धर्म में संख्याओं और निर्वाण के आपसी संबंध की अलग-अलग व्याख्या है। प्रतिष्ठित गणितज्ञ IIT मुंबई के प्रोफेसर एसजी दानी गणित और निर्वाण के संबंध में कहते हैं,”आमतौर पर बातचीत के दौरान भी हम संख्याओं का प्रयोग करते हैं। 10 से 17 तक की संख्याओं को ‘परार्ध’ कहा गया है और इसका अर्थ होता है स्वर्ग यानी मुक्ति का आधा मार्ग तय होना।“

    मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में गणित के इतिहासकार जॉर्ज गैवगीज जोसेफ के मुताबिक, ”भारत द्वारा दी गई गणित की पद्धति अद्भुत है। जैसे यदि हम 111 लिखते हैं तो इसमें पहला ‘एक’ इकाई को दर्शाता है, जबकि दूसरे ‘एक’ का मतलब दहाई से और तीसरे ‘एक’ का मतलब सैकड़े से है. अर्थात् भारतीय गणित पद्धति में किसी एक संख्या के स्थान से ही उसकी स्थानिक मान का निर्धारण होता है।”

    एलेक्स बेलोस केअनुसार शून्य की गणितीय अवधारणा लगभग डेढ़ हजार साल पहले भारत में उभरी थी। ग्वालियर किले के नजदीक एक ऐतिहासिक मंदिर (विष्णु मंदिर) है। इस मंदिर की एक दीवाल पर सबसे पुराने ज्ञात शून्य चिह्न लिखे हुए हैं।

    मंदिर के शिलालेख में शिलालेख में प्रतीक शून्य के दो उदाहरण हैं: संख्या ‘270’ में, आकार 270 x 187 हस्ता की भूमि के एक टुकड़े का जिक्र है, जहां हस्ता लंबाई की एक इकाई है, और संख्या “50” में, दैनिक 50 फूलों की माला भेंट की। 2 और 7 भी आधुनिक ‘अरबी’ अंकों के समान हैं। ये शिलालेख इस बात का दस्तावेजी प्रमाण है कि अरबी अंकों की उत्पत्ति वास्तव में भारत में हुई थी।

    पुरी के वर्तमान शंकराचार्य अनंतश्री निश्‍चलानंद सरस्‍वती संख्याओं और अध्यात्म के संबंध पर कहते हैं, ”वेदांतों में जिसे ब्रह्म और परमात्मा कहा गया है, वह शून्य परमात्मा का प्रतीक है, अनंत का नाम ही शून्य है। गणित के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है. भारतीय संख्या प्रणाली को पूरी दुनिया में अपनाया गया क्योंकि यह अन्य सभी प्रणालियों से श्रेष्ठ थी, और यह दो मुख्य कारणों से है: “स्थानीय मान”, और शून्य। संख्या ”

    भारतीय गणित का इतिहास

    प्राचीन हिंदू गणितज्ञों ने दशमलव प्रणाली, शून्य, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित, अंकगणित, ऋणात्मक संख्याएँ, शक्तियाँ, वर्गमूल और द्विघात समीकरण जैसी कई अवधारणाओं को विकसित किया और उनमें प्रमुख योगदान दिया। वे काफी उन्नत थे, यूरोप सहित दुनिया के लगभग सभी अन्य हिस्सों के गणितज्ञों से बहुत आगे थे।

    आदि काल (500 इस्वी पूर्व तक)

    (क) वैदिक काल (१००० इस्वी पूर्व तक)- शून्य और दशमलव की खोज

    (ख) उत्तर वैदिक काल (१००० से ५०० इस्वी पूर्व तक) इस युग में गणित का भारत में अधिक विकास हुआ। इसी युग में बोधायन शुल्व सूत्र की खोज हुई जिसे हम आज पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानते है।

    २. पूर्व मध्य काल – sine, cosine की खोज हुई।

    ३. मध्य काल – ये भारतीय गणित का स्वर्ण काल है। आर्यभट, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य आदि श्रेष्ठ गणितज्ञ हुए।

    ४. उत्तर-मध्य काल (१२०० इस्वी से १८०० इस्वी तक) – नीलकण्ठ ने १५०० में sin r का मान निकालने का सूत्र दिया जिसे हम अब ग्रेगरी श्रेणी के नाम से जानते हैं।

    ५. वर्तमान काल – रामानुजम आदि महान गणितज्ञ हुए।

    संख्यात्मक संगणनाओं को हल करने के एक से अधिक तरीके हैं। कुछ संकरे हैं, जबकि कुछ गहरे हैं। ऐसे कई दृष्टिकोणों में, वैदिक गणित गणित का एक तरीका है, भारतीय तरीका है।

    श्री रामानुजम को गणित का भगवानकहा जाता है। श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920) एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित में कोई औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद संख्या सिद्धांत, निरंतर अंश और अनंत श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में महान योगदान दिया । उनका अनुमानित आईक्यू 185 था।

    एक सहज गणितीय प्रतिभा, रामानुजन की खोजों ने गणित के कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है, लेकिन वह संभवतः संख्या सिद्धांत और अनंत श्रृंखला में उनके योगदान के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं , उनमें से आकर्षक सूत्र (पीडीएफ) हैं जिनका उपयोग असामान्य तरीकों से पाई के अंकों की गणना के लिए किया जा सकता है।  उन्होंने कैंब्रिज में सादा जीवन व्यतीत किया।

    शिक्षा में नेतृत्व क्षमता और भारतीयता बढ़ाने के लिए वैदिक गणित

    गणित (Mathematics) एक ऐसा विषय है, जिसका हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी जीवन की परीक्षाओ से लेकर दैनिक हिसाब किताब में भी गणित विषय अहम् भूमिका निभाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी गणित विषय से काफी सारे प्रश्न पूछे जाते है, परंतु गणित की जिस पद्धति का उपयोग हो रहा है। उससे बच्चों में गणित के प्रति डर है।

    काफी बच्चों का वीक पॉइंट गणित विषय है, क्योंकि स्कूलों में जहाँ बच्चों की नींव बनती है। वहाँ वैदिक गणित का चलन लगभग समाप्त हो गया है। भारत देश में बहुत से गणितज्ञयों ने जन्म लिया। गणित की शिक्षा कोई आज का विषय नहीं है। यह 3000 साल पुराना है।

    इतिहासकारों ने भी माना हैं कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र गणित का ही अभिन्न अंग है। यहाँ पर गणित की शिक्षा इतनी ज्यादा अच्छी थी कि आर्यभट्ट (Aryabhata) और वराह मिहिर (Varāhamihira) जैसे विद्वान हमारे देश में पैदा हुए।

    गणित से विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास: गणित विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास का समर्थन करता है, जिससे उन्हें गहरी सोच विकसित करने और दुनिया के काम करने के तरीके पर सवाल उठाने में मदद मिलती है । गणित के माध्यम से विधार्थी हमारे दैनिक जीवन में गणित की समृद्धि और शक्ति की सराहना प्राप्त करते हैं। वैदिक गणित या वैदिक गणित संख्यात्मक संगणनाओं को जल्दी और तेजी से हल करने के लिए विधियों या सूत्रों का एक संग्रहहै । इसमें 16 सूत्र सूत्र और 13 उपसूत्र उपसूत्र कहलाते हैं, जिन्हें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, कलन, शंकु आदि में समस्याओं के समाधान के लिए लागू किया जा सकता है।

    वैदिक गणित  से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ जाती है, जो शोध-अनुसंधान के लिए जरूरी है। वैदिक गणित के अध्यन और अभ्यास से आत्मविश्वास समझदारी एवं मानसिक शक्ति के अलावा नैतिक एवं तकनिकी गुणों में भी वृध्धि होती है।

    फेयोल ने नेतृत्व केलिए जिन 5 गुणों का उल्लेख किया है उनमें से 2 हैं समझदारी एवं मानसिक शक्ति तथा नैतिक गुण। उसी प्रकार से उर्विक ने नेतृत्व के  साहस, इच्छा शक्ति, ज्ञान तथा ईमानदारी। प्रो. कैट्ज़ ने प्रशासक के रूप में एक नेता में तीन प्रकार के गुणों के होने पर विशेष बल दिया है इनमें प्रमुख है तकनीकी गुण। तकनीकी गुणों से आशय उसकी योग्यता से है जिसके द्वारा वह अपने ज्ञान, विधियों एवं तकनीकों का समुचित रूप से अपने कार्य-निष्पादन में प्रयोग करने में समर्थ हो पाता है। यह योग्यता उसको अनुभव, शिक्षा तथा प्रशिक्षण से प्राप्त होती है। बर्नार्ड ने स्फूर्ति को शक्ति, चेतना और सजगता का मिश्रण अथवा सहिष्णुता बतलाया है। एक अच्छे नेता में यह गुण होना आवश्यक है।

    24 April: मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लड़के से बात करते हुए कहा था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए उसे वैदिक गणित पढ़ना चाहिए। फिर पीएम ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर चर्चा करते हुए कहा था कि गणितीय चिंतन-शक्ति और वैज्ञानिक मानस बच्चों में विकसित हों, यह बहुत आवश्यक है। गणितीय चिंतन-शक्ति का मतलब केवल गणित के सवाल हल करना नहीं, बल्कि यह सोचने का एक तरीका है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को कैसे शामिल किया जाए, यह एक चुनौती है?

    प्रचलित धारणा है कि वेदों में प्रकृति या देवों का स्तुतिगान हैं, लेकिन यह पश्चिमी देशों के प्राच्यवादियों का खतरनाक षड्यंत्र था। इसका उद्देश्य था समृद्ध भारतीय ज्ञान-विज्ञान को दबाकर खत्म कर देना, ताकि भारतीयों पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित करते हुए स्थायी आधिपत्य कायम किया जा सके। कायम किया जा सके।यह समझ लें कि यह गणित के सवाल हल करने का शॉर्टकट तरीका है। शिक्षा में भारतीयता को पुनर्स्थापित करने में वैदिक गणित एक महत्वपूर्ण उपकरण है।