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  • आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    आत्महत्या ईश्वर का अपमान क्यों है? कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

    वेद सहित सभी हिन्दू धर्म ग्रंथों नेआत्महत्या या सासामूहिक आत्महत्या को पाप ही नहीं बताया बल्कि इसे ईश्वर का अपमान भी कहा है। यह सत्य धर्म प्रिय भारत के नेतृत्व और जनता समझती है। अतएव वेदिक नेतृत्व और जनता का कर्तव्य है कि वे कम से कम आत्महत्या से जीरो आत्महत्या प्राप्ति की ओर बढ़ें।

    वेदों की उद्घोषणा है- प्रज्ञानाम ब्रह्म, अहम् ब्रह्मास्मि, तत्वमसि, अयम आत्म ब्रह्म, सर्व खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति अर्थात- ब्रह्म परम चेतना है, मैं ही ब्रह्म हूं, तुम ब्रह्म हो, यह आत्मा ब्रह्म है और यह संपूर्ण दृश्यमान जगत् ब्रह्मरूप है, क्योंकि यह जगत् ब्रह्म से ही उत्पन्न होता है। ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ सभी प्राणियों को अपनी आत्मा के समान मानो। कंकर-कंकर में शंकर का वास है इसीलिए जीव हत्या को ‘ब्रह्महत्या’ माना गया है।

    सनातन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है इसका सबूत है वेद।वेद वैदिककाल की वाचिक परंपरा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले 6-7 हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। ध्यान और मोक्ष निर्वाण अर्थात जीरो शून्य o भारत अर्थात सनातन हिन्दू धर्म की ही देन है।

    वैदक जनों केलिए जीवन ही है प्रभु। कर्म करने के साथ साथ जरूरी नियमों की भी जरूरत होती है। 

    जीवन के 4 पुरुषार्थ हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इसके लिए अनुशासन और कर्तव्य पालन जरूरी है। सनातन धर्म ने मनुष्य की हर गतिविधि को वैज्ञानिक नियम में बांधा है। वैदिक प्रार्थना और ध्यान तथा देश समाज सेवा से भी हमारा धर्म है। अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। उनमें से एक है:

    यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः, एवा मे प्राण मा विभेः।

    जिस प्रकार आकाश व पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    अथर्ववेद में सुख-संपदा, स्वास्थ, शत्रुविनाश आदि से संबंधित अनेकों मंत्रों का संग्रह है। ये ही सब जीवन की कला है।

    संसार में मुख्यतः दो प्रकार के धर्म हैं। एक कर्म-प्रधान दूसरे विश्वास-प्रधान। हिन्दू धर्म कर्म-प्रधान है, अहिन्दू अर्थात गैर सनातनी धर्म विश्वास-प्रधान। जैन, बौद्ध, सिख ये तीनों सनातन के अंतर्गत हैं। इस्लाम, ईसाई, यहूदी ये तीनों अहिन्दू धर्म के अंतर्गत हैं। हिन्दू धर्म लोगों को निज विश्वासानुसार ईश्वर या देवी-देवताओं को मानने व पूजने की और यदि विश्वास न हो तो न मानने व न पूजने की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। अहिन्दू धर्म में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। RSS प्रमुख श्री मोहन भगवत जी कभी हाल ही के जो वक्तव्य हैं और क्रिस्चियन एवं मुस्लिम धर्म गुरुओं से मुलाकातें हैं वे इसी के प्रमाण हैं।

    नरेंद्र मोदी जी की भी विश्व के क्रिस्चियन और मुस्लिम देशों  के प्रमुखों से जो दोस्ताना और आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध हैं यह भी प्रमाण है कि वसुधैव कुटुम्कम वैदिक जनों का ध्येय वाक्य है, सह-अस्तित्व की स्वीकार्यता है।

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:

    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दु: भाग्भवेत।।

    अयं निज: परोवेति गणना लघुचेतसाम्।

    उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।।

    उदारता और सहिष्णुता हमारे रोम रोम में है। भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां उसकी भिन्नता ही उसकी एकता का कारण बनी हुई है। भिन्नता में एकता का कारण हिन्दू धर्म की सहिष्णुता और उदारता के कारण ही है।

    जीवन के हर क्षेत्र और प्रकृति को समझकर ही जो संस्कार और कर्तव्य बताएं गए हैं वह मनोविज्ञान और विज्ञान पर ही आधारित हैं। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। वैदिक जन पुनर्जन्म में विश्वास रखते है। श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय के 22वें श्लोक में कहा गया है- ‘जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार यह जीवात्मा भी पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करता है।’ चौथे अध्याय के 5वें श्लोक में कहा गया है- ‘हे अर्जुन, मेरे और तुम्हारे अनेक जन्म बीत गए हैं। बस फर्क यह है कि मैं उन सबको जानता हूं, परंतु हे परंतप! तू उसे नहीं जानता।’

    वैदिक धर्म और उसे मानने वाला धर्मावलम्बी पंथ निरपेक्ष भारत विस्तारवादी नहीं है। हम मानते हैं कि कंकर-कंकर में शंकर है अर्थात प्रत्येक कण में ईश्वर है। इसका यह मतलब नहीं कि प्रत्येक कण को पूजा जाए। इसका यह मतलब है कि प्रत्येक कण में जीवन है। वृक्ष भी सांस लेते हैं और लताएं भी। वेदों में प्रकृति के हर तत्व के रहस्य और उसके प्रभाव को उजागर किया गया है।

    पुराणों में परोपकार : राजा रंतिदेव को 40 दिन तक भूखे रहने के बाद  भोजन मिला तो भी उन्होंने शरण में आए भूखे अतिथि को वह भोजन देकर प्रसन्न हुए। दधीचि ने देवताओं की रक्षा के लिए अपनी अस्थियां तक दे दी, शिव जी  ने विष का पान कर लिया, कर्ण ने कवच और कुंडल दान दे दिए, यह है भारत की वैदिक शाश्वत परम्परा।

    हिन्दू धर्म अर्थात सनातन धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। उद्देश्य है – चलो हम सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं:

    वेद और अन्य धर्म ग्रंथों में आत्महत्या को निंदनीय माना जाता है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है। ऐसे में उसे पूरा जीना चाहिए समय के पूर्व उसे ख़त्म नहीं करना चाहिए और मानव कल्याण के लिए कुछ अच्छे काम करने चाहिए। पद्म पुराण में 84 लाख योनियों का जिक्र मिलता है, पशु, पक्षी, कीड़े, मनुष्य, पेड़, पौधे आदि मिलकर 84 लाख योनियों बनाते हैं।

    अथर्ववेद में त्वां मृत्युर्दयतां मा प्र मेष्ठा: कह कर बताया कि मृत्यु तेरी रक्षा करे और तू समय से पूर्व न मरे। अथर्ववेद में ही उत तवां मृत्योरपीपरं कह कर वेद भगवान ने संदेश दिया हे जीवात्मा मैं मृत्यु से तुझको ऊपर उठाता हूं। मृत्यो मा पुरुषवधी: कह कर वेद ने संदेश दिया कि हे मृत्यु तू पुरुष को समय से पूर्व मत मार।

    दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,

    तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार

    भावार्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।

    मनुष्य जीवन दुर्लभ क्यों हैं? क्यूंकि जीवन एक ही बार मिलता है और क्या पता कब क्या और जन्म होगा।

    भगवान बुद्ध ने तो यहाँ तक कहा हैकि ‘जो मनुष्य रूप में जन्म लेना है, वह देवताओं को भी सुगति प्रदान करताहै।’

    भगवद गीता के अनुसार मानव जीवन का परम उद्देश्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बनना है। ज्ञान योग या अष्टांग योग का अभ्यास करने वाले भी अंततः इसे समझते हैं। इसलिए, हमें अपने मानव जीवन का सही उपयोग करना चाहिए और बिना किसी भौतिक उद्देश्य के गंभीरता से कृष्ण भक्ति करनी चाहिए, जैसा की भगवद गीता में कहा गया है। गीता में कर्म योग को सर्वश्रेष्ठ कहा हैं, सांख्य या भक्ति योग से भी श्रेष्ठ। अतः कर्म करो आसक्ति और फल कि चाहत के विना।

     “कई जन्मों और मृत्युओं के बाद, जो वास्तव में ज्ञान में है, वह मुझे सभी कारणों का कारण जानकर मेरी शरण में जाता है। ऐसी महान आत्मा दुर्लभ है।

    भगवद गीता 7.19

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ऋग्वेद में कहागया है कि हम भी श्रेष्ठ बनें और सम्पूर्ण विश्व को श्रेष्ठ बनाएं।

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ: जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    वेदांत का चिंतन दुर्लभ मानव जीवन को श्रेष्ठता की ओर ले जाता है। भारतीय वेदों और उपनिषदों के सूत्र हर युग में प्रासंगिक हैं। यह देश के महापुरुषों की महिमा का ही प्रमाण है कि आज भी सद्कर्मों का प्रवाह निरंतर जारी है। 

    ।।यथा द्यौश्च पृथिवी बिभीतो रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।अथर्ववेद

    अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी भयग्रस्त होते हैं और इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।

    भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं और इसीसे आत्महत्या या सामूहिक हत्या के भाव जन्म ली हैं। । डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।

    आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के अनुसार तीन कृपाएं अत्यंत दुर्लभ हैं, मनुष्य देह, मुमुक्षा अर्थात भगवान को पाने की भूख और तीसरा है महापुरुष का मिलना। इसमें से मनुष्य शरीर का मिलना सबसे दुर्लभ है। देवी देवता भी इसे पाने के लिए तरसते हैं। क्योंकि केवल  मनुष्य जीवन ही ज्ञान और कर्मप्रधान होता है। ज्ञान तो देवताओं में भी होता है, लेकिन कर्म करने का अधिकार उन्हें नहीं होता। यदि हमने ज्ञानशक्ति का सही दिशा अर्थात परमार्थ के लिए उपयोग नहीं किया तो यह उसका दुरुपयोग ही होगा।

    भगवान की कृपा से ही यह मानव तन प्राप्त होता है। ईश्वर की लीला अनंत है, इस कारण कभी-कभी इतर योनियों में भी मुक्ति ईश्वर की कृपा से मिलती है, पर मोक्ष हेतु अवसर तो मानव के पास ही है–

    नर समान नहिं कवनिउ देहि। देत ईस बिन हेतु सनेही।।

    बड़े भाग मानुष तनु पावा।  सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हिं गावा।।

    वैदिक ग्रंथों में आत्महत्या करनेवाले व्यक्ति के लिए एक श्लोक लिखा गया है, जो इस प्रकार है…

    असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता। तास्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।

    अर्थात: आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को जाते हैं।

    #धर्मग्रंथों_के_अनुसार जिन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, उनका हल उसे जिंदा रहने पर तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरुआत हो जाती है। इन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोड़ने का दंड भोगना पड़ता है।

    गरुड़ पुराण कहता है कि अपने कर्मों का परिणाम हर हाल में भोगना पड़ता है। जीवन से भगाने का प्रयास करने पर भी इनसे बच नहीं सकते बल्कि आत्मघात के परिणाम और कष्टकारी होते हैं। आत्मघात किसी भी तरह से मोक्ष नहीं दिला सकता है। विष्णु पुराण में श्रीकृष्ण ने मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना करने का ज्ञान दिया है ना कि आत्मघात का।

    आत्महत्या का दंड क्या होता है इस विषय में गरुड़ पुराण कहता है कि दंड स्वरुप आत्महत्या करने वाले की आत्मा अधर में लटक जाती है।  आत्महत्या निंदनीय है, क्योंकि धर्म के अनुसार कई योनियों के बाद मानव जीवन मिलता है ऐसे में उसे व्यर्थ गंवा देना मूर्खता और अपराध है।इसीलिए आत्महत्या करने के बाद जो जीवन होता है वो ज्यादा कष्टकारी होता है।

    कृष्ण भगवान भगवद्गीता में अर्जुन कौ एक हि सन्देश देते हैं कि मोह त्याग, कर्म करने कौ खड़ा हो जा, आसक्ति छोड़, सुख दुख में समत्व भाव अपना, व्यक्ति कौ कर्म करने में अधिकार हैं, फल में नहींइस

    अर्थात रामायण हो या गीता धर्म स्थापना और असुर नाश सज्जन को राहत ही भगवान के अवतरित होने के मुख्य करण है.

    मानव शरीर के बारे में संत तुलसीदास जी ने कहा है

    बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा।

    साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई जेहिं परलोक सँवारा।।

    यह मानव तन अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह साधन योनि है, जिससे हम अपना परलोक सुधार सकते हैं, यह मानव तन ही मोक्ष का द्वार भी है।

    “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।

    प्रसंग “रामगीता का है, मानव जीवन प्राप्त कर विषयवासनाओं में मन लगाना, अमृत के बदले विष ग्रहण करने जैसी मूर्खता है और इसे कोई भी अच्छा नहीं कहता, यथा

    नरतनु पाइ बिसय मन देहीं। पलटि सुधा ते सठ विष लेहीं।।

    ताहि कबहुँ भल कहइ कि कोई। गुंजा ग्रहइ परसमनि खोई।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidiumsui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है।

    एकमात्र मनुष्य तन के द्वारा ही कर्म करके हम कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं। यह मानव जीवन सब कुछ दे सकने का सामर्थ्य रखता है:

    नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी। ज्ञान विराग सकल सुख देनी।।

    अतः यह सिद्ध है, कि मनुष्य के समान कोई शरीर नहीं है, जिसकी याचना देव भी करते हैं

    नर समान नहि कवनिउ देही।

    यह बडभागी मानव तन को पाकर भी जिसने अपना परलोक नहीं सँवारा उसके भाग्य में पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता और वह दु:ख भोगता है।

    साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाइ न जेहि परलोक सँवारा।।

    सो परत्र दु:ख पावई , सिर धुनि धुनि पछ्तिाइ।

    चूँकि ईश्वर की बड़ी कृपा से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है

    कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस  बिनु हेत सनेही।।

    इस कारण इस शरीर को विषयों में जाया करना कहां तक समझदारी है,  स्वर्ग भी तो अल्प समय के लिए होता है और अन्तत: दु:ख ही भोगना पड़ता है।

    यहि तन कर फल विषय न भाई। स्वर्गउ स्वल्प अंत दु:खदायी।।

    आत्महत्या (लैटिन suicidium, sui caedere से, जिसका अर्थ है “स्वयं को मारना”) जानबूझ कर अपनी मृत्यु का कारण बनने के लिए कार्य करना है। इसमें सुसाइड बॉम्बर्स फिदायीन भी सम्मलित हैं। Pakitan is the founder of fidayeens aaaand suicide bombers.

    पाकिस्तानी टेररिस्ट की ये कैसी मां! आतंकी बेटे के कत्लेआम पर दी शाबासी तू जाबांज है. तू साहसी है. अल्लाह तुम्हें जन्न्त दे!

    सामूहिक हत्या भी इसी श्रेणी में आती हैं। सामूहिक आत्महत्या का एक उदाहरण 1978 में “जॉन्सटाउन” पंथिक आत्महत्या (कल्ट सुसाइड) का है जिसमें जिमजोन्स के नेतृत्व वाले एक अमरीकी पंथ पीपुल्स टेम्पल के 918 सदस्यों ने साइनाइड से अंगूर के रस से बने स्वाद वाले साधन द्वारा अपना जीवन समाप्त किया था। साइपान युद्ध के अंतिम दिनों में 10,000 से अधिक जापानी नागरिकों ने “आत्महंता चोटी” और “बान्ज़ाई चोटी” से कूद कर आत्महत्या कर ली थी।

  • मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy

    मोदी की चाणक्य नीति; Modi’s Chanakya Policy


    प्राचीन काल में जब युद्ध का समय आता था तो राजा युद्ध शुरू होने से पहले ही अपना पक्ष मजबूत करने के लिए गठबंधनों पर जीत हासिल करने लगते थे, उस समय की इस नीति को  “कूट नीति” के नाम से जाना जाने लगा। मोदी जी कूटनीति” के लिए प्रसिद्ध हैं, यह बहुत स्पष्ट है क्योंकि वह और अमित शाह अन्य पार्टियों के प्रमुख सदस्यों का देश में चुनाव जीतने के लिए बहुत चतुराई से उपयोग करते हैं। वे  न केवल इस चाणक्य नीति का उपयोग करके देश में चुनाव जीतते हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विश्व के बड़े छोटे नेताओं को अपना मित्र भी बना लेते हैं।

    नरेंद्र मोदी ने चाणक्य नीति अपनाई। उन्होंने पाकिस्तान और चीन की घेराबंदी के लिए पहले तो अतंरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधों को मजबूत किया। फिर चीन की घेराबंदी के लिए नेपाल, भूटान, मंगोलिया, जापान, मंगोलिया आदि देशों से अपने संबंध मजूबत बनाए। दूसरी ओर अफगानिस्तान, ईरान, मालदीव, कजाकिस्तान, तकाकिस्तान, अमेरिका, रशिया, जर्मन, फ्रांस और इसराइल से अपने संबंध मजूबत करके पाकिस्तान को हर मोर्चे पर मात दी।

    It for Tat: शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना: चाणक्य मानते थे कि शत्रु को उसकी भाषा में ही जवाब देना चाहिए जो भाषा वह समझता है। यदि राजा कोई कड़ा फैसला नहीं लेता है तो उसे कमजोर माना जाता है और राज्य में भय का माहौल पैदा हो जाता है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ने भी इस नीति को अपनाया। जब पाकिस्तान ने 18 सितम्बर 2016 जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर पर भारतीय सेना के मुख्यालय पर किए गए आतंकी हमले में 19 जवान शहीद हो गए थे तब पीएम मोदी ने अपने भाषण में पाकिस्तान को कड़ा संदेश देकर सर्जिकल स्ट्राइक करवा दी थी। इसी तरह जब पुलवामा में पाकिस्तान समर्थित फिदायीन हमले में 40 जवान शहीद हुए थे तब एयर स्ट्राइक करके सख्त संदेश दे दिया था।

    चाणक्य के अनुसार दो तरह के शत्रु होते हैं। पहले वो जिन्हें हम देख सकते हैं या पहचानते हैं और दूसरे शत्रु वे होते हैं जो छिप कर रहते हैं और समय आने पर वार करते हैं। शत्रु को पराजित करने के लिए चाणक्य ने कुछ ज़रूरी बातें बताई है:

    योजना- चाणक्य नीति के अनुसार एक व्यक्ति को अपनी योजनाओं को लेकर हर व्यक्ति से चर्चा नहीं करनी चाहिए। व्यक्ति जब किसी गंभीर और महत्वपूर्ण काम या ज़िम्मेदारी को हाथ में लेता है तो उसे विश्वासपात्र लोगों के साथ ही अपनी योजनाओं को साझा करना चाहिए। क्योंकि शत्रु के हाथ में अगर आपकी योजना की जानकारी लग जाये तो वो उसमे अड़चने डाल सकता है। मोदी अपनी योजनाओं को अपने खास विश्वासपात्र  नेताओं जैसे अमित शाह से ही चर्चा करते हैं। अचानक निर्णय लेने के लिए प्रसिसद्ध हैं मोदी जी।  तीनों नए कृषि कानून वापस लेने का फैसला अचानक लिया। नोट बंदी और GST जैसे अनेक निर्णय मोदी जी ने अचानक लेकर सबको आश्चर्यचकित कर दिये थे। 

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए।

    क्रोध- चाणक्य नीति कहती है की व्यक्ति को जितना हो सके अवगुणों से दूर रहना चाहिए। शत्रु आपको हारने करने के लिए आपकी सबसे कमजोर कड़ी और बुरी आदत पर प्रहार करता है। क्रोध भी एक ऐसी ही बुरी आदत हैं। गुस्से में व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता है। इसलिए अपने गुस्से को काबू कर इस अवगुण से दूर ही रहना चाहिए। कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था, उस समय देश विरोधी कुछ आंदोलनकारियों ने ” मोदी तू मरजा मरजा। .. ” के नारे लगाए थे , अन्य समय पर भी इसी प्रकार की मोदी जी को उकसाने वाली हरकतें होती रही हैं पर मोदी जी क्रोधित न होकर उन्हें नजरअंदाज करते रहे हैं।

    जब तक शत्रु की दुर्बलता का पता न चले, तब तक उसे मित्रता के भाव से रखना चाहिए। सदियों पुरानी होने के बावजूद,चाणक्य नीति आधुनिक जीवनशैली पर लागू की जा सकती है. हम सभी को चाणक्य की कुछ नीतियों के बारे में अवश्य जानना चाहिए। दुश्मन को पराजित करने हेतु पहला वार हथियार से न करके शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं अर्थात उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें। जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    दुश्मन पर पहला वार करने के पहले…? दुश्मन को पराजित करने के लिए कभी भी उस पर पहला वार हथियार से नहीं करना चाहिए । शत्रु को पहले अपनी कूटनीति में जाल में फसाएं मतलब उसकी शक्तियों और सहयोगियों को उससे दूर करें. जब शत्रु अकेला पड़ जाएगा तब उस पर भरपूर प्रहार करें।

    कोई भी कार्य शुरू करने से पहले, स्वयं से तीन प्रश्न जरूर पूछने चाहिए- मैं ये क्यों कर रहा हूं, इसका रिजल्ट क्या हो सकता है और क्या मैं सफल हो पाऊंगा? और इसके बाद जब गहराई से सोचने समझने के बाद इन सवालों के संतोषजनक जवाब मिल जाएं, तभी आगे बढ़ने का फैसला लें.चीन और पाकिस्तान के सम्बन्ध में मोदी जी चाणक्य नीति ही अपना रहे हैं।

    पीएम नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक समुदाय को दियाचाणक्य मंत्र

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित किया। मोदी ने भारत के महान अर्थशास्त्री और नीति के जानकार चाणक्य के कथन को कहकर संयुक्त राष्ट्र को अहम सलाह दी है।


    पीएम मोदी ने अपने भाषण में आचार्य चाणक्य, दीन दयाल उपाध्याय और रवींद्रनाथ टैगोर का जिक्र किया। पीएम मोदी ने भारतीय रणनीतिकार चाणक्य के शब्दों को याद किया, जिन्होंने कहा था, “जब सही समय पर सही काम नहीं किया जाता है, तो समय ही उस काम की सफलता को नष्ट कर देता है।” प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि, “यदि संयुक्त राष्ट्र को खुद को प्रासंगिक रखना है, तो उसे अपनी प्रभावशीलता में सुधार करना होगा और इसकी विश्वसनीयता बढ़ानी होगी।”

    आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्ट्री जगत को एकजुट किया: विश्व के पहले व्यक्ति मोदी ही हैं जिन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध अंतरराष्‍ट्री जगत को एकजुट किया। नरेंद्र मोदी ने ही विश्‍व को यह समझाया कि आतंकवाद लॉ एंड आर्डर, एक स्टेट या देश का मामला नहीं है बल्कि यह एक वैश्‍विक समस्या है। पीएम मोदीजी ने ही अंतरराष्ट्रीय जगत को समझाया कि गुड या बैड आतंकवाद नहीं होता। मोदी जी ने धीरे–धीरे आतंकवाद की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जबकि इससे पहले आतंकवाद को गुड एवं बैड कहकर परिभाषित किया जा रहा था उन्होंने विश्व को आतंकवाद क्या है समझाया आतंकवाद मानवता का दुश्मन है, न गुड है न बैड।

    उन्होंने पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध विश्व बिरादरी का ध्यान खींचा।मोदी ने भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई अनुकूल गठजोड़ किए हैं। उदाहरण के लिए, ईरान और अफगानिस्तान के साथ चाबहार बंदरगाह परियोजना, अमेरिका के साथ संचार अनुकूलता और सुरक्षा समझौता, सिंगापुर के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, रूस के साथ आतंकवाद विरोधी समझौता, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ आईबीएसए फंड समझौता, जापान के साथ बुले

    आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में सफल जीवन जीने के लिए कई तरीके बताए हैं। आचार्य चाणक्य कहते हैं जो व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ना चाहता है, वो उसके लिए मेहनत करता है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बिना मेहनत के कामयाबी पाना चाहते हैं ।आचार्य ने लोगों को कभी भी इन चीजों पर भरोसा नहीं करने को कहा है। 

    इस सन्दर्भ में मुझे अमेरिका के पूर्व प्रेसीडेंट वाशिंगटन का स्मरण हो रहा है। उन्होंने अपने कमरे के दरवाजे के ऊपर P लिखा था जिससे उसे सदैव स्मरण रहे कि उसे प्रेसिडेंट  बनाना है। भले ही मोदी जी ने वाशिंगटन जैसा नहीं सोचा हो पर लगातार लगन से ईमानदारी से प्रयास और परिश्रम से मोदी जी नरेंद्र से पी एम मोदी  बन गए।

    Modi के शासन पर चाणक्य नीति का असर, Amit Shah की Book ने किया खुलासा

    आज हमारा देश विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां हर व्‍यक्ति के पास अपना शासक चुनने का अधिकार है, मतलब आज वोट डालने वाला हर नागरिक चाणक्य है।आचार्य चाणक्य का मानना था कि आम जनता को साथ लाए बगैर घनानंद के शासन को उखाड़ फेंकना मुमकिन नहीं है। इसीलिए चाणक्य ने आम जनता के दम पर अपनी एक सेना बनाई और घनानंद का तख्‍ता पलट कर दिया। आचार्य चाणक्‍य ने इस सफलता से सीख दी कि जनभागीदारी से ही शासन व्‍यवस्‍था को बदला जा सकता है। लोकतंत्र में आम जनता के पास बड़ी ताकत होती है।

    नरेंद्र मोदी चाणक्य की इसी नीति को आत्मसात कर कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी कांग्रेस को सत्ता विहीन ही नहीं किया बल्कि विपक्ष में भी उसे बेअसर कर राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं।

    पीएम मोदी ने नोटबंदी पर अपनाई चाणक्य नीति

    Dec 2016: नोटबंदी के बाद पहली बार संसदीय दल को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के दौरान सांसदो को चाणक्य नीति का पाठ पढ़ाया। बेनामी संपत्ति को लेकर पीएम मोदी ने चाणक्य नीति के 15 वें अध्याय के छठे दोहे का जिक्र किया। पाप से कमाया हुआ पैसा 10 साल तक रह सकता है। 11वें वर्ष लगते ही वह मूलधन के साथ नष्ट हो जाता है। 

    आर्थिक फैसले: आचार्य चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में राजस्व, कर राज्य व्यवस्था, कृषि, न्याय एवं राजनीति के बारे में विस्तार से लिखा है। चाणक्य मानते थे कि कर संग्रह के साथ ही जनकल्याण के कार्य भी जारी रहना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने एक ओर जहाँ GST लागू किया तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को सुधारने का कार्य किया वहीं उन्होंने जन कल्याण से जुड़ी कई योजनाओं को लांच करके गरीब जनता को लाभ पहुंचाया।

     परिवारवाद की राजनीति ख़त्म: आचार्य चाणक्‍य ने उस काल में परिवारवाद की राजनीति को खत्म करके लोकतंत्र का समर्थन करते हुए घनानंद के शासन को खत्‍म किया था। आचार्य चाणक्‍य का मानना था कि शासन की बागडोर उसी को संभालनी चाहिए, जो उसके लायक हो और जनता जिसे पसंद करती हो। ऐसे व्‍यक्ति को शासन करने का कोई अधिकार नहीं, जो जनता की समस्‍याओं को न सुनता हो। राहुल गाँधी जनता की तो क्या अपने पार्टी के प्रमुख नेताओं की भी बात नहीं सुनते।  हिमन्त विश्व शर्मा जैसे नेता से मिलाने की अपेक्षा वे अपने कुत्ते से मस्ती करना उचित समझा।

    यही बात पी एम नरेंद्र मोदी अपनी पहले लोकसाभ चुनाव से अब तक बोलते आए हैं कि परिवारवाद देश के लिए घातक है। कुछ पार्टिया एक ही परिवार की पार्टियां हैं। भाजपा किसी परिवार की नहीं जनता की पार्टी है। यहां एक चाय वाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है। भ्रष्टाचार और वंशवाद की राजनीति प्रहार करते हुए मोदी जी ने कहा था कि राज्य को “पहले लोग, पहले परिवार नहीं” सरकार की जरूरत है।इस तरह के परिवारवाद के खिलाफ चाणक्य भी थे।

    उपरोक्त उदाहरणों से हम समझ सकते हैं कि भारत आज इतने सारे देशों के साथ काम कर रहा है और श्री मोदी दुनिया के अधिक से अधिक देशों के साथ काम करने की योजना बनाते जा रहे हैं।

    यदि हम मोदी जी की कार्य प्रणाली, राजनीति और कूटनीति को समझने का अध्यन करें तो हमें चाणक्य के निम्न लिखित श्लोक की झलक भी दिखेंगी:

    गते शोको कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् वर्तमानेन कालेन प्रवर्त्तन्ते विचक्षणाः चाणक्यनीतिः, अध्यायः १३

    अतीत पर शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के बारे में चिंतित नहीं रहना चाहिए। बुद्धिमान लोग केंद्रित होते हैं और वर्तमान में लगे रहते हैं।” – चाणक्य

    यद्‌ दूर यद्‌ दुराराध्यं यच्च दूरे व्यवस्थितम्‌ ।

    तत्सर्व तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रममू ॥ – १७.३ चाणक्य-नीतिः

    कोई वस्तु चाहे कितनी ही दूर क्‍यों न हो, उसका मिलना कितना ही कठिन क्यों

    न हो, और वह पहुँच से बाहर क्यों न हो, कठिन तपस्या अर्थात परिश्रम से उसे

    भी प्राप्त किया जा सकता है। परिश्रम सबसे शक्तिशाली वस्तु है।

    यह भारत के लोकतंत्र की ताकत  कि बचपन में चाय बेचने वाला चौथी बार संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण दे रहा है

  • राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    राज धर्म: वैदिक काल से अब तक: Raj Dharma: From the Vedic Period to Present

    16 Aug 2018 : जब भी गुजरात दंगों का जिक्र होता है तो अटल बिहारी वाजपेयी के ‘राजधर्म’ की चर्चा जरूर होती है। एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि आप मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई संदेश लेकर आए हैं? इस पर वाजपेयी जी ने अपने उसी चिर-परिचित अंदाज में जवाब दिया, ‘मैं इतना ही कहूंगा, वह राज धर्म का पालन करें। ये शब्द काफी सार्थक हैं। मैं उसी का पालन कर रहा हूं और पालन करने का प्रयास कर रहा हूं। एक राजा या शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता है, न जन्म के आधार पर, न जाति और संप्रदाय के आधार पर…।’
    सुप्रीम कोर्ट ने दी गोधरा कांड में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी क्लीन चिट ।

    पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के विशेष जांच दल (एसआइटी) द्वारा 2002 के गोधरा दंगा मामले में गुजरात तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 63 अन्य लोगों को क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। रविशंकर ने बताया कि याचिका गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दायर की थी। रविशंकर ने तीस्ता सीतलवाड़ के साथ कांग्रेस, राजद प्रमुख लालू प्रसाद और वामदलों को भी निशाने पर लिया।

    9 दिसंबर 2022 गुजरात ने बना दिया इतिहास, बीजेपी को 156 सीटें ही नहीं दी, ये रिकॉर्ड भी बनाया।
    गुजरात के चुनावी इतिहास में बीजेपी ने अब तक की सबसे बड़ी और धमाकेदार जीत दर्ज की है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है. 182 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटें जीतकर नया इतिहास रचा है।

    वैदिक राजधर्म व्यवस्था

    राजधर्म का अर्थ है – ‘राजा का धर्म’ या ‘राजा का कर्तव्य’। राज वर्ग को देश का संचालन कैसे करना है, इस विद्या का नाम ही ‘राज धर्म’ है। राज धर्म की शिक्षा के मूल वेद हैं।
    महाभारत के विदुर प्रजागर तथा शान्ति पर्व, चाणक्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ अर्थशास्त्र आदि में भी राजधर्म की बहुत सी व्याख्या है, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी सत्यार्थ प्रकाश में एक पूरा समुल्लास राजधर्म पर लिखा है। महाभारत में इसी नाम का एक उपपर्व है जिसमें राजधर्म का विस्तृत विवेचन किया गया है।

    मनुस्मृति के ७वें अध्याय में राजधर्म की चर्चा की गयी है।
    पुत्र इव पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचरिष्यन्ति स राजा राजसत्तम ॥
    यथा पुत्रः पितृगृहे विषये यस्य मानवाः ।
    निर्भया विचारिष्यन्ति स राजा राजसत्तम् ॥

    मनुस्मृति में दण्ड वही राजा व दण्ड प्रजा का शासनकर्त्ता, सब प्रजा का रक्षक, सोते हुए प्रजास्थ मनुष्यों में जागता है, इसी लिये बुद्धिमान लोग दण्ड ही को धर्म कहते हैं। यदि राजा दण्ड को अच्छे प्रकार विचार से धारण करे तो वह सब प्रजा को आनन्दित कर देता है और जो विना विचारे चलाया जाय तो सब ओर से राजा का विनाश कर देता है

    चाणक्य चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे कौटिल्य या विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं। पिता श्री चणक के पुत्र होने के कारण वह चाणक्य कहे गए। विष्णुगुप्त कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति के महाविद्वान ,और अपने महाज्ञान का ‘कुटिल’ ‘सदुपयोग ,जनकल्याण तथा अखंड भारत के निर्माण जैसे सृजनात्मक कार्यो में करने के कारण वह; कौटिल्य’ ‘कहलाये।
    कौटिल्य के अर्थशास्त्र में राजधर्म की चर्चा है।
    प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्।
    नात्मप्रियं प्रियं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं प्रियम्॥ (अर्थशास्त्र 1/19)

    (अर्थात्-प्रजा के सुख में राजा का सुख है, प्रजाके हित में उसका हित है। राजा का अपना प्रिय (स्वार्थ) कुछ नहीं है, प्रजा का प्रिय ही उसका प्रिय है।)
    तस्मात् स्वधर्म भूतानां राजा न व्यभिचारयेत्।
    स्वधर्म सन्दधानो हि, प्रेत्य चेह न नन्दति॥ (अर्थशास्त्र 1/3)

    (अर्थात्- राजा प्रजा को अपने धर्म से विमुख न होने दे। राजा भी अपने धर्म का आचरण करे। जो राजा अपने धर्म का इस भांति आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक में सुखी रहता है।) एक राजा का धर्म युध भूमि में अपने दुश्मनों को मारना ही नहीं होता अपितु अपने प्रजा को बचाना भी होता है

    मुखर्जी (2013) के अनुसार भारतीय शास्त्रों में सुशासन को राज धर्म कहा गया है। राजधर्म”’आचार संहिता’ या ‘कानून का नियम’ था जो शासक की इच्छा से श्रेष्ठ था और उसके सभी कार्यों को नियंत्रित करता था (कश्यप, 2010)। राजधर्म आचार संहिता अर्थात सुशासन जिसका उल्लेख प्राचीन भारतीय शास्त्रों में संस्कृत और पालि जैसे भगवद गीता , वेद , महाभारत के अलावा शांतिपर्व, नीतिसार , रामायण , अर्थशास्त्र, दीघ निकाय , जातक में भी विशेष रूप से है। सभी नागरिकों का मूल अधिकार सरकार से सुशासन प्राप्त करना है और सरकार बाध्य है इसके लिए।

    सर्वे धर्म सोपधर्मस्त्रायणं रण्यो धर्मादिति वेदाचुनोमि
    एवम धर्मन् राजधर्मेषु सरवन सर्वस्तम सम्प्रलिनन निबोध

    जिसका अर्थ है “सभी धर्म राजधर्म में विलीन हो गए हैं , और इसलिए यह सर्वोच्च धर्म है ” ( महाभारत शांतिपर्व 63, 24-25 )।

    अत्रिसंहिता में वर्णित सुशासन के लिए नैतिक व्यवहार और नैतिक मानकों के रूप में राज्य के अनिवार्य कार्यों की आवश्यकता है:
    दुष्टस्य दण्ड सुजानस्य पूजा न्यायेन कोषस्य च संप्रविधि
    अपेक्षापथोर्तिर्शु राष्ट्ररक्षा पंचैव यज्ञ कथिता नृपन्नम

    उक्त श्लोक में पाँच निःस्वार्थ कर्तव्य बताये गए हैं जिन्हें राजा [राज्य] द्वारा किए जाने चाहिए । ( अत्रिसंहिता-28 ).
    कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में उक्त सिद्धांतों को शामिल किया है:
    प्रजासुखे सुखं राज्य प्रजानन च हिते हितम्
    नातम्प्रियं हितं राज्य प्रजनम तु प्रियं हितम्

    अर्थात प्रजा के सुख में राजा का सुख है।

    सरकार के साथ साथ नागरिकों के भी कर्तव्य हैं:
    राज धर्म और व्यवहारधर्म एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जहां राजा और प्रजा को धर्म का पालन करना होता है- ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से जिसके परिणामस्वरूप सुशासन होगा (जोइस, 2017)।

    आजादी से पहले राजपथ को किंग्स वे और जनपथ को क्वींस वे के नाम से जाना जाता था। स्वतंत्रता मिलने के बाद क्वींस वे का नाम बदलकर जनपथ कर दिया गया था। जबकि किंग्स वे राजपथ के नाम से जाना जाने लगा। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के बाद अब इसका नाम कर्तव्य पथ कर दिया गया है। केंद्र सरकार का मानना है कि राजपथ से राजा के विचार की झलक मिलती है, जो शासितों पर शासन करता है। जबकि लोकतांत्रिक भारत में जनता सर्वोच्च। नाम में बदलाव जन प्रभुत्व और उसके सशक्तिकरण का एक उदाहरण है।

    व्यक्ति को शास्त्रों के अनुसार व्यवहार करना चाहिए ”( भगवदगीता , अध्याय XVI, श्लोक 24)।

    अक्रोध सत्यवचनम संविभाग क्षमा तथा

    प्रजना शेषु दारेषु शौचमद्रोह अव च

    आर्जवं ब्रुत्यभरणं नवैते सर्ववर्णिका 

    “सत्य, क्रोध से मुक्त होना, दूसरों के साथ धन बांटना ( संविभाग ), क्षमा, अकेले अपनी पत्नी से संतानोत्पत्ति (यौन नैतिकता), पवित्रता, शत्रुता का अभाव, सीधापन और स्वयं पर निर्भर व्यक्तियों को बनाए रखना ये नौ नियम हैं।” सभी वर्णों के व्यक्तियों का धर्म ” (महाभारत शांतिपर्व 6-7-8) 

    *

    finsindia.org ने धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म, उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां, समानता, एकता आदि पर भी प्रकाश डाला है। 

    धर्म की सर्वोच्चता

    केवल राजशाही का निर्माण पर्याप्त नहीं था, धर्म राजा से श्रेष्ठ एक शक्ति थी, जिसे राजा को लोगों की रक्षा करने और देने में सक्षम बनाने के लिए बनाया गया था। धर्म  की परिभाषा इस प्रकार है : 

    तदेतत क्षत्रस्य क्षत्रं युधर्मा, तस्मध धर्मत्परं नास्त्य

    अथो अबलियान बलियान समाशमसते धर्मेना, यथा राज्य एवम 

    धर्म  राजाओं का राजा है। धर्म  से श्रेष्ठ कोई नहीं ; राजा की शक्ति से सहायता प्राप्त धर्म कमजोरों को मजबूत पर हावी होने में सक्षम बनाता है बृहदारण्यकोपनिषद 1-4-14)

    धर्मनिरपेक्षता के रूप में धर्म :

    अपने धर्म का पालन करने के अधिकार को राजा धर्म  में मान्यता दी गई थी पशंदानाइगम श्रेणी पूव्व्रत गणदिशु, संरक्षित्समयं राजा दुर्गे जनपद  (नारद स्मृति ( धर्मकोष P-870)

    भारत में जहां वेदों को सर्वोच्च माना जाता था, वेदों में अविश्वासियों को उसी तरह से संरक्षित किया जाना था जैसे वेदों में विश्वास करने वालों को , यह दर्शाता है कि राज धर्म के तहत, धर्म धर्मनिरपेक्ष है (जोइस, 2017)

    समानता 

    “कोई भी श्रेष्ठ ( अज्यस्तसो ) या हीन ( अकनिष्टस ) नहीं है। सब भाई-भाई हैं ( एते भरतरः )। सभी को सभी के हित के लिए प्रयास करना चाहिए और सामूहिक रूप से प्रगति करनी चाहिए ( सौभाग्य सं वृद्धु )। (ऋग्वेद मंडल-5, सूक्त-60, मंत्र-5)

    “भोजन और पानी की वस्तुओं पर सभी का समान अधिकार है। जीवन रथ का जूआ सबके कंधों पर समान रूप से रखा है। सभी को एक साथ मिलकर एक दूसरे का समर्थन करते हुए रहना चाहिए, जैसे रथ के पहिये की धुरी उसके रिम और हब को जोड़ती है ” (अथर्ववेदसंज्ञान सूक्त)

    रामायण में शासन और समानता: रामराज्य का कोई लिखित संविधान न होने के बावजूद , नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त था और विकास के रास्ते सभी के लिए खुले थे। कानून की नजर में सब एक समान थे। 

    महाभारत में महाभारत में शासन और समानता:

    राजा राज्य का प्रमुख होगा और लोगों और उनकी संपत्तियों की रक्षा के लिए जिम्मेदार होगा। स्वामी बोधानंद (2010) शासन के संदर्भ में महाभारत में धर्म का विश्लेषण इस प्रकार करते हैं:

    मैं। न्याययुक्त प्रारंभिक धर्म – “ न्याय और निष्पक्षता पर आधारित कोई भी उपक्रम”।

    द्वितीय।  तत परस्य समदध्यात् प्रतिकुलम यदत्मनः एश संक्षेपतो धर्मः – “धर्म का अर्थ है दूसरों के साथ ऐसा न करना जो स्वयं के लिए अप्रिय हो” ( महाभारतअनुसासन पर्व, 113-8)।

    महाभारत युद्घ के समाप्त होने के बाद महाराज युधिष्ठिर को भीष्म ने राजधर्म का उपदेश दिया था।

    युधिष्ठर को समझाते हुए भीष्म पितामह कहते हैं-

    राजन जिन गुणों को आचरण में लाकर राजा उत्कर्ष लाभ करता है, वे गुण छत्तीस हैं। राजा को चाहिए कि वह इन गुणों से युक्त होने का प्रयास करें।

    उच्चतम न्यायालय के रूप में राजा की जिम्मेदारियां:

    स्मृतियों ने न्याय प्रदान करने के लिए उच्चतम न्यायालय की अध्यक्षता करके न्याय के प्रशासन की जिम्मेदारी लेने वाले राजा की आवश्यकता पर बल दिया ।

    हर्माशास्त्रं पुरस्कृत्य प्रदिवावकमते स्तिता,

    समाहितमति पश्येत व्यवहारानुक्रमात्   

    “राजा को कानून के अनुसार और मुख्य न्यायाधीश की राय का पालन करते हुए बड़ी सावधानी से मामलों की सुनवाई करनी चाहिए” ( नारद स्मृति, 1-35, 24-74, स्मृति चंद्रिका, 66 और 89)

    वेद हमें सत्य बोलने और सदाचार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं: 

    सत्यम वड़ाधर्मम चर! – ( तैत्तिरीय उपनिषद, i-II ) 

    January 12, 2023 की मीडिया भारत के अनुसार: जगदीप धनखड़ ने साफ शब्दों में कहा कि संसद की कानून बनाने की शक्ति को न्यायपालिका अमान्य नहीं कर सकती। ऐसा देखा जा रहा है कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बयानों का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून, तभी कानून का रूप लेगा, जबकि उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी। धनखड़ जब राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया था, तब भी उन्होंने कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। तब यह कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं।

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  • लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    लोकतान्त्रिक वैदिक काल के पतन के बाद आया राजतन्त्र और पुनः दुष्यंत पुत्र ने लाया लोकतंत्र: Monarchy came after the collapse of democratic Vedic period and Dushyant’s son again brought democracy

    वैदिक राज्य व्यवस्थान में राजतंत्र न होकर गणतांत्रिक व्यवस्था थी। लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की देन है। गणतंत्र शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चालीस बार, अथर्व वेद में 9 बार और ब्राह्माण ग्रंथों में अनेक बार किया गया है। लोकतंत्र की धारणा वैदिक युग की ही देन है। महाभारत और बौद्ध काल में भी गणराज्य थे। वैशाली के पहले राजा विशाल को चुनाव द्वारा चुना गया था।

    ऋग्वेद में सभा मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही किसी  भी विषय या नेतृत्व कौन करे इस पर  वार्तालाप बहस होने के बाद बहुमत से निर्णय अर्थात फैसला होता था। वैदिक काल में इंद्र का चयन भी इसी आधार पर होता था।

    भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। दशराज्ञ युद्ध या दस राजाओं का युद्ध या दशराजन युद्ध एक युद्ध था जिसका उल्लेख ऋग्वेद के सातवें मंडल में ७:१८, ७:३३ और ७:८३:४-८ में मिलता है।

    ।। त्रीणि राजाना विदथें परि विश्वानि भूषथ: ।।-ऋग्वेद मं-3 सू-38-6

    भावार्थ : ईश्वर उपदेश करता है कि राजा और प्रजा के पुरुष मिल के सुख प्राप्ति और विज्ञानवृद्धि कारक राज्य के संबंध रूप व्यवहार में तीन सभा अर्थात- विद्यार्य्यसभा, धर्मार्य्य सभा, राजार्य्यसभा नियत करके बहुत प्रकार के समग्र प्रजा संबंधी मनुष्यादि प्राणियों को सब ओर से विद्या, स्वतंत्रता, धर्म, सुशिक्षा और धनादि से अलंकृत करें।

    ।। तं सभा च समितिश्च सेना च ।1।- अथर्व-कां-15 अनु-2,9, मं-2

    भावार्थ: उस राज धर्म को तीनों सभा संग्राम आदि की व्यवस्था और सेना मिलकर पालन करें।

    1.सभा : धर्म संघ की धर्मसभा, शिक्षा संघ की विद्या सभा और राज्यों की राज्य सभा।

    2.समिति : समिति जन साधरण की संस्था है। सभा गुरुजनों की संस्था अर्थात गुणिजनों की संस्था।

    3.प्रशासन : न्याय, सैन्य, वित्त आदि ये प्रशासनिक, पदाधिकारियों, के विभागों के नाम है। जो राजा या सम्राट के अधिन है।
     

    राजा : राजा की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए ही सभा ओर समिति है जो राजा को पदस्थ और अपदस्थ कर सकती है। वैदिक काल में राजा पद पैतृक था किंतु कभी-कभी संघ द्वारा उसे हटाकर दूसरे का निर्वाचन भी किया जाता था। जो राजा निरंकुश होते थे वे अवैदिक तथा संघ के अधिन नहीं रहने वाले थे। ऐसे राजा के लिए दंड का प्रावधान होता है। राजा ही आज का प्रधान है।

    प्राचीन आर्यावर्त्त-प्रथमं सम्राट् इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध

    विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नृजित उर्वराजिते । अश्वजिते गोजिते अजिते भरेन्द्राय सोमं यजताय हर्यतम् ।। (ऋक–२-२१-१) एवा वस्व इन्द्रः सत्य. सम्रान्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. । पुरष्टुत क्रत्वा नः शग्धि रायो भक्षीय तेऽवसो दैव्यस्य । (ऋक् — ४-२१-१०)

              विश्वजिते धनजिते स्वजिते सत्राजिते नूजित उबंराजिते ।

    अश्वजिते गोजिते अल्जिते भरेन्द्राय सोम॑ यजताथ हर्यंतम्‌ ॥

    (ऋकू–रर२१-१)

    एवा वस्व इन्द्र: सत्य. सम्नाड्हस्ता वृत्रं वरिव. पूरवे क. ।

    दुरष्ट्त क्रद्ना न: शग्धि रायों भक्षीय तेश्वसों देव्यस्य ॥।

    (कक ब-र-१०)

    पाश्चात्य विद्वानों ने संसार की सबसे महान्‌ और प्राचीन पुस्तक “’ऋग्वेद’ और

    उसके परिवार दे 4, «मीय ग्रंथों का अनुशीलन करके हमारी ऐतिहासिक स्थिति को बतलाने की चेष्टा की है, और उनका यह स्तुत्य प्रयत्न बहुत दिनों से हो रहा है । कितु इस ऐतिहासिक खोज से हमारे भारतीय इतिहास की सामग्री एकत्रित करने में बहुत-सी सहायता मिली है उसी के साथ अपूर्ण अनुसंघानो के कारण और किसी अंश में सेमेटिक प्राचीन धर्म पुस्तक (06 ’68/80060/) के ऐतिहासिक विवरणों को मानदण्ड मान लेने से बहुत-सी श्रांत कल्पनायें भी चल पडी है ।

    बहुत दिनों त पहले, ईसा के २००० वर्ष पूर्वे का समय ही सृष्टि के प्रागू ऐतिहासिक काल को भी अपनी परिधि में ले आता था । क्योंकि ईसा से २००० वर्ष पूर्व जलप्रलय का होना माना जाता था और सृष्टि के आरंभ से २००० वेषें के अनन्तर जल-प्रलय का समय निर्धारित था-इस प्रकार ईसा से ४००० वर्ष पहले सृष्टि का आरंभ माना जाता था । बहुत संभव है कि इसका कारण वही अन्तनिहित घामिक प्रेरणा रही हो जो उन शोधकों के हृदय मे बद्धमुल थी । प्राय: इसी के वशवर्त्ती होकर बहुत से प्रकांडपण्डितों ने भी, ,ऋग्वेद के समय-निर्धारण मे संकीण॑ता का परिचय दिया है। हुष॑

    का विषय है कि प्रत्नततत्व और भूग्भ शास्त्र के नये-नये अन्वेषणों और आविष्कारों १. आर्यावत्त और प्रथम सम्राट इन्द्र ‘कोशोत्सव स्मारक संग्रह’ मे सबत्‌ १९८५ में हुआ और ‘दाशराज्ञ युदध’ गंगा के दे ंक में पोष संवत्‌ १९८८ में प्रकाशित हुआ । उमभय निबन्ध भायें संस्कृति के आरम्भिक अध्यायो पर एकतान चिन्तन की फलकश्रृति में प्रस्तुत है-सुतरा क्रमबद्ध रूप से एकीकृत किया गया है। (सं ) प्राचीन आर्यावत्त-प्रथम सम्राट इन्द्र और दाशराज्ञ युद्ध : १०९

    इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भारत में वैदिक काल के पतन के बाद राजतंत्रों का उदय हुआ और वे ही लंबे समय तक शासक रहे। यह संभवत: दशराज्ञा के युद्ध के बाद हुआ था। राजतन्त्र को समाप्त कर पुनः लोकतंत्र की बहाली का पुण्य कार्य दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र दुष्यंत ने ही किया।

    words: 800

  • वैदिक गणित और आधात्म: Vedic Mathematics and Spirituality

    वैदिक गणित और आधात्म: Vedic Mathematics and Spirituality

    गणित और धर्म: कृष्ण तीर्थ को 16 गणितीय सूत्रों की खोज का श्रेय दिया जाता है जो चार वेदों में से एक अथर्ववेद के परिशिष्ट (परिशिष्ट) का हिस्सा थे (बॉक्स देखें)। तीर्थ के सरल सूत्र जटिल गणितीय गणनाओं को संभव बनाते हैं। गणित में आस्था रखना धर्म में आस्था रखने के समान है: यह किसी ऐसी अमूर्त चीज में विश्वास करना है जो अभी तक विश्वासियों के मन में मूर्त है। गणित और धर्म इस मायने में एक जैसे हैं कि वे दोनों एक प्रकार की कृपा की कामना करते हैं । वे कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलने के सचेत प्रयास हैं।

    गणित भी ईश्वर पर विशवास करने का एक कारण हैं: म गणित पर भरोसा कर सकते हैं इसका कारण यह है कि हमारा विश्वासयोग्य, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लगातार हमारे ब्रह्मांड को एक साथ रखता है (कुलुस्सियों 1:17)। वह सुनिश्चित करता है कि जोड़, घटाव, गुणा और भाग के सिद्धांत हमेशा स्पष्ट उत्तर देंगे। गणित एक ऐसी भाषा है जो आपके आसपास के जीवन में हर चीज की पेचीदगियों का वर्णन, चित्रण और अभिव्यक्ति भी करती है। एक भाषा जो भौतिक सीमाओं से ऊपर की चीजों के कामकाज का सही-सही वर्णन कर सकती है । इसलिए गणित को ‘ईश्वर की भाषा’ कहा जाता है।

    शून्यकाआविष्कारभीभारतमेंही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

    शून्य का आविष्कार भी भारत में ही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

    में उनकी स्थिति के आधार पर अंकों के अलग-अलग मान होते हैं। जैसे संख्या 22 में, बायाँ 2 बीस का और दायाँ 2 दो का प्रतिनिधित्व करता है।

    शून्य का आविष्कार भी भारत में ही हुआ, जिसके आधार पर गणित की सारी बड़ी गणनाएँ होती हैं। ऐसा माना जाता है कि बाकी दुनिया को जब शून्य का पता भी नहीं था तब भारत में 75वीं ईसवी में शून्य का चलन बहुत ही आम था। लगभग डेढ़ हज़ार साल पहले गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य के प्रयोग से जुड़ी एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने शून्य के प्रयोग के बारे में विस्तार से बताते हुए इसके आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी भी दी।

    एलेक्स बेलोस का कहना है कि आध्यात्मिक शून्यता के भारतीय विचारों ने गणितीय शून्य को जन्म दिया। उन्होंने कहा, “शून्य का मतलब कुछ भी नहीं है। लेकिन भारत में इसे शून्य की अवधारणा का मतलब एक तरह का मोक्ष है।” “जब हमारी सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, तब हम निर्वाण या शून्य या पूर्ण मोक्ष की ओर जाते हैं।” “शून्यता” की पारलौकिक स्थिति, जब आप पीड़ा और इच्छाओं से मुक्त हो जाते हैं।“

    भारत में हिंदू, बुद्ध और जैन धर्म में संख्याओं और निर्वाण के आपसी संबंध की अलग-अलग व्याख्या है। प्रतिष्ठित गणितज्ञ IIT मुंबई के प्रोफेसर एसजी दानी गणित और निर्वाण के संबंध में कहते हैं,”आमतौर पर बातचीत के दौरान भी हम संख्याओं का प्रयोग करते हैं। 10 से 17 तक की संख्याओं को ‘परार्ध’ कहा गया है और इसका अर्थ होता है स्वर्ग यानी मुक्ति का आधा मार्ग तय होना।“

    मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में गणित के इतिहासकार जॉर्ज गैवगीज जोसेफ के मुताबिक, ”भारत द्वारा दी गई गणित की पद्धति अद्भुत है। जैसे यदि हम 111 लिखते हैं तो इसमें पहला ‘एक’ इकाई को दर्शाता है, जबकि दूसरे ‘एक’ का मतलब दहाई से और तीसरे ‘एक’ का मतलब सैकड़े से है. अर्थात् भारतीय गणित पद्धति में किसी एक संख्या के स्थान से ही उसकी स्थानिक मान का निर्धारण होता है।”

    एलेक्स बेलोस केअनुसार शून्य की गणितीय अवधारणा लगभग डेढ़ हजार साल पहले भारत में उभरी थी। ग्वालियर किले के नजदीक एक ऐतिहासिक मंदिर (विष्णु मंदिर) है। इस मंदिर की एक दीवाल पर सबसे पुराने ज्ञात शून्य चिह्न लिखे हुए हैं।

    मंदिर के शिलालेख में शिलालेख में प्रतीक शून्य के दो उदाहरण हैं: संख्या ‘270’ में, आकार 270 x 187 हस्ता की भूमि के एक टुकड़े का जिक्र है, जहां हस्ता लंबाई की एक इकाई है, और संख्या “50” में, दैनिक 50 फूलों की माला भेंट की। 2 और 7 भी आधुनिक ‘अरबी’ अंकों के समान हैं। ये शिलालेख इस बात का दस्तावेजी प्रमाण है कि अरबी अंकों की उत्पत्ति वास्तव में भारत में हुई थी।

    पुरी के वर्तमान शंकराचार्य अनंतश्री निश्‍चलानंद सरस्‍वती संख्याओं और अध्यात्म के संबंध पर कहते हैं, ”वेदांतों में जिसे ब्रह्म और परमात्मा कहा गया है, वह शून्य परमात्मा का प्रतीक है, अनंत का नाम ही शून्य है। गणित के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है. भारतीय संख्या प्रणाली को पूरी दुनिया में अपनाया गया क्योंकि यह अन्य सभी प्रणालियों से श्रेष्ठ थी, और यह दो मुख्य कारणों से है: “स्थानीय मान”, और शून्य। संख्या ”

    भारतीय गणित का इतिहास

    प्राचीन हिंदू गणितज्ञों ने दशमलव प्रणाली, शून्य, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित, अंकगणित, ऋणात्मक संख्याएँ, शक्तियाँ, वर्गमूल और द्विघात समीकरण जैसी कई अवधारणाओं को विकसित किया और उनमें प्रमुख योगदान दिया। वे काफी उन्नत थे, यूरोप सहित दुनिया के लगभग सभी अन्य हिस्सों के गणितज्ञों से बहुत आगे थे।

    आदि काल (500 इस्वी पूर्व तक)

    (क) वैदिक काल (१००० इस्वी पूर्व तक)- शून्य और दशमलव की खोज

    (ख) उत्तर वैदिक काल (१००० से ५०० इस्वी पूर्व तक) इस युग में गणित का भारत में अधिक विकास हुआ। इसी युग में बोधायन शुल्व सूत्र की खोज हुई जिसे हम आज पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानते है।

    २. पूर्व मध्य काल – sine, cosine की खोज हुई।

    ३. मध्य काल – ये भारतीय गणित का स्वर्ण काल है। आर्यभट, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य आदि श्रेष्ठ गणितज्ञ हुए।

    ४. उत्तर-मध्य काल (१२०० इस्वी से १८०० इस्वी तक) – नीलकण्ठ ने १५०० में sin r का मान निकालने का सूत्र दिया जिसे हम अब ग्रेगरी श्रेणी के नाम से जानते हैं।

    ५. वर्तमान काल – रामानुजम आदि महान गणितज्ञ हुए।

    संख्यात्मक संगणनाओं को हल करने के एक से अधिक तरीके हैं। कुछ संकरे हैं, जबकि कुछ गहरे हैं। ऐसे कई दृष्टिकोणों में, वैदिक गणित गणित का एक तरीका है, भारतीय तरीका है।

    श्री रामानुजम को गणित का भगवानकहा जाता है। श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920) एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित में कोई औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद संख्या सिद्धांत, निरंतर अंश और अनंत श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में महान योगदान दिया । उनका अनुमानित आईक्यू 185 था।

    एक सहज गणितीय प्रतिभा, रामानुजन की खोजों ने गणित के कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है, लेकिन वह संभवतः संख्या सिद्धांत और अनंत श्रृंखला में उनके योगदान के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं , उनमें से आकर्षक सूत्र (पीडीएफ) हैं जिनका उपयोग असामान्य तरीकों से पाई के अंकों की गणना के लिए किया जा सकता है।  उन्होंने कैंब्रिज में सादा जीवन व्यतीत किया।

    शिक्षा में नेतृत्व क्षमता और भारतीयता बढ़ाने के लिए वैदिक गणित

    गणित (Mathematics) एक ऐसा विषय है, जिसका हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी जीवन की परीक्षाओ से लेकर दैनिक हिसाब किताब में भी गणित विषय अहम् भूमिका निभाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी गणित विषय से काफी सारे प्रश्न पूछे जाते है, परंतु गणित की जिस पद्धति का उपयोग हो रहा है। उससे बच्चों में गणित के प्रति डर है।

    काफी बच्चों का वीक पॉइंट गणित विषय है, क्योंकि स्कूलों में जहाँ बच्चों की नींव बनती है। वहाँ वैदिक गणित का चलन लगभग समाप्त हो गया है। भारत देश में बहुत से गणितज्ञयों ने जन्म लिया। गणित की शिक्षा कोई आज का विषय नहीं है। यह 3000 साल पुराना है।

    इतिहासकारों ने भी माना हैं कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र गणित का ही अभिन्न अंग है। यहाँ पर गणित की शिक्षा इतनी ज्यादा अच्छी थी कि आर्यभट्ट (Aryabhata) और वराह मिहिर (Varāhamihira) जैसे विद्वान हमारे देश में पैदा हुए।

    गणित से विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास: गणित विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास का समर्थन करता है, जिससे उन्हें गहरी सोच विकसित करने और दुनिया के काम करने के तरीके पर सवाल उठाने में मदद मिलती है । गणित के माध्यम से विधार्थी हमारे दैनिक जीवन में गणित की समृद्धि और शक्ति की सराहना प्राप्त करते हैं। वैदिक गणित या वैदिक गणित संख्यात्मक संगणनाओं को जल्दी और तेजी से हल करने के लिए विधियों या सूत्रों का एक संग्रहहै । इसमें 16 सूत्र सूत्र और 13 उपसूत्र उपसूत्र कहलाते हैं, जिन्हें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, कलन, शंकु आदि में समस्याओं के समाधान के लिए लागू किया जा सकता है।

    वैदिक गणित  से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ जाती है, जो शोध-अनुसंधान के लिए जरूरी है। वैदिक गणित के अध्यन और अभ्यास से आत्मविश्वास समझदारी एवं मानसिक शक्ति के अलावा नैतिक एवं तकनिकी गुणों में भी वृध्धि होती है।

    फेयोल ने नेतृत्व केलिए जिन 5 गुणों का उल्लेख किया है उनमें से 2 हैं समझदारी एवं मानसिक शक्ति तथा नैतिक गुण। उसी प्रकार से उर्विक ने नेतृत्व के  साहस, इच्छा शक्ति, ज्ञान तथा ईमानदारी। प्रो. कैट्ज़ ने प्रशासक के रूप में एक नेता में तीन प्रकार के गुणों के होने पर विशेष बल दिया है इनमें प्रमुख है तकनीकी गुण। तकनीकी गुणों से आशय उसकी योग्यता से है जिसके द्वारा वह अपने ज्ञान, विधियों एवं तकनीकों का समुचित रूप से अपने कार्य-निष्पादन में प्रयोग करने में समर्थ हो पाता है। यह योग्यता उसको अनुभव, शिक्षा तथा प्रशिक्षण से प्राप्त होती है। बर्नार्ड ने स्फूर्ति को शक्ति, चेतना और सजगता का मिश्रण अथवा सहिष्णुता बतलाया है। एक अच्छे नेता में यह गुण होना आवश्यक है।

    24 April: मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लड़के से बात करते हुए कहा था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए उसे वैदिक गणित पढ़ना चाहिए। फिर पीएम ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर चर्चा करते हुए कहा था कि गणितीय चिंतन-शक्ति और वैज्ञानिक मानस बच्चों में विकसित हों, यह बहुत आवश्यक है। गणितीय चिंतन-शक्ति का मतलब केवल गणित के सवाल हल करना नहीं, बल्कि यह सोचने का एक तरीका है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को कैसे शामिल किया जाए, यह एक चुनौती है?

    प्रचलित धारणा है कि वेदों में प्रकृति या देवों का स्तुतिगान हैं, लेकिन यह पश्चिमी देशों के प्राच्यवादियों का खतरनाक षड्यंत्र था। इसका उद्देश्य था समृद्ध भारतीय ज्ञान-विज्ञान को दबाकर खत्म कर देना, ताकि भारतीयों पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित करते हुए स्थायी आधिपत्य कायम किया जा सके। कायम किया जा सके।यह समझ लें कि यह गणित के सवाल हल करने का शॉर्टकट तरीका है। शिक्षा में भारतीयता को पुनर्स्थापित करने में वैदिक गणित एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

  • वैदिक काल से विनिमय के लिए धातु सिक्क्के: Metal coins for exchange from the Vedic period

    वैदिक काल से विनिमय के लिए धातु सिक्क्के: Metal coins for exchange from the Vedic period

    भारत का सिक्का निर्माण पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व से छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच कहीं भी शुरू हुआ, और इसके प्रारंभिक चरण में मुख्य रूप से तांबे और चांदी के सिक्के शामिल थे। [1] इस काल के सिक्के कर्षपण या पण थे। शुरुआती भारतीय सिक्कों की एक किस्म, हालांकि, पश्चिम एशिया में परिचालित लोगों के विपरीत, धातु की छड़ों पर मुहर लगाई गई थी, यह सुझाव देते हुए कि मुद्रांकित मुद्रा का नवाचार टोकन मुद्रा के पहले से मौजूद रूप में जोड़ा गया था जो पहले से ही मुद्रा में मौजूद था। प्रारंभिक ऐतिहासिक भारत के जनपद और महाजनपद राज्य । जिन राज्यों ने अपने सिक्के ढाले उनमें शामिल हैंगांधार , कुंतला , कुरु , मगध , पांचाल , शाक्य , सुरसेन , सौराष्ट्र और विदर्भ आदि।

    प्रागैतिहासिक और कांस्य युग की उत्पत्ति

    कौड़ी के गोले का उपयोग पहली बार भारत में कमोडिटी मनी के रूप में किया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता ने व्यापार गतिविधियों के लिए चांदी जैसे निश्चित वजन की धातुओं का उपयोग किया हो सकता है, जो हड़प्पा काल (दिनांक 1900-1800 ईसा पूर्व या 1750 ईसा पूर्व) के मोहनजोदड़ो के डीके क्षेत्र से स्पष्ट है।

    वैदिक काल से विनिमय के लिए कीमती धातु की गणना योग्य इकाइयों का उपयोग किए जाने के प्रमाण हैं। ऋग्वेद में निष्क शब्द इसी अर्थ में प्रकट हुआ है। बाद के ग्रंथ सोने के पादों से सुशोभित उपहार के रूप में दी गई गायों की बात करते हैं। एक पाद , शाब्दिक रूप से एक चौथाई, कुछ मानक भार का एक चौथाई होता। शतमान नामक एक इकाई, शाब्दिक रूप से एक ‘सौ मानक’, जो 100 कृष्णों का प्रतिनिधित्व करती है, का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में किया गया है । कात्यायन श्रौतसूत्र की एक बाद की व्याख्या बताती है कि एक शतमान 100 रत्ती भी हो सकता है ।. इन सभी इकाइयों को किसी न किसी रूप में स्वर्ण मुद्रा के रूप में संदर्भित किया जाता था लेकिन बाद में इन्हें चांदी की मुद्रा के रूप में अपनाया गया।

    कौड़ी के गोले का उपयोग पहली बार भारत में कमोडिटी मनी के रूप में किया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता ने व्यापार गतिविधियों के लिए चांदी जैसे निश्चित वजन की धातुओं का उपयोग किया हो सकता है, जो हड़प्पा काल (दिनांक 1900-1800 ईसा पूर्व या 1750 ईसा पूर्व) के मोहनजोदड़ो के डीके क्षेत्र से स्पष्ट है।

    “पहले दक्षिण एशियाई सिक्के”, 400-300 ईसा पूर्व, ब्रिटिश संग्रहालय। ब्रिटिश संग्रहालय के अनुसार, दक्षिण एशिया में पहले सिक्के लगभग 400 ईसा पूर्व अफगानिस्तान में जारी किए गए थे, और फिर उपमहाद्वीप में फैल गए।

    भारतीय रुपये ( INR ) के सिक्के पहली बार 1950 में ढाले गए थे। तब से हर साल नए सिक्कों का उत्पादन किया जाता रहा है और वे भारतीय मुद्रा प्रणाली का एक मूल्यवान पहलू बनाते हैं। आज चलन में चल रहे सिक्के एक रुपये, दो रुपये, पांच रुपये, दस रुपये और बीस रुपये के मूल्यवर्ग में मौजूद हैं। ये सभी कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, नोएडा में भारत भर में स्थित चार टकसालों द्वारा निर्मित हैं।

    भारतीय उपमहाद्वीप के 1947 से पहले के इतिहास

  • भारत में तांबे की प्लेट पर शिलालेख,पहले और अब: Inscriptions on copper plates in India, then and now

    भारत में तांबे की प्लेट पर शिलालेख,पहले और अब: Inscriptions on copper plates in India, then and now

    तांबे की चद्दर का वह टुकड़ा जिसपर प्राचीन काल में अक्षर खुदवाकर दानपत्र या प्रशस्ति-पत्र आदि लिखे जाते थे, वह ताम्रपत्र कहलाता था. राजाओं द्वारा लोगों को ताम्रपत्र दिए जाते थे।पल्लव वंश के राजाओं द्वारा 4थी शताब्दी में जारी की गई कुछ शुरुआती प्रमाणीकृत तांबे की प्लेटें प्राकृत और संस्कृत में हैं । प्रारंभिक संस्कृत शिलालेख का एक उदाहरण जिसमें कन्नड़ शब्दों का उपयोग भूमि सीमाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है, पश्चिमी गंगा राजवंश के तुंबुला शिलालेख हैं , जो 2004 के एक भारतीय समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार 444 तक के हैं। उत्तर भारत में गुप्तकाल की दुर्लभ ताम्रपत्रिकाएँ मिली हैं। ताम्रपत्र शिलालेखों का उपयोग बढ़ा और कई शताब्दियों तक वे कानूनी अभिलेखों के प्राथमिक स्रोत बने रहे। ताम्र-पत्र तांबेकीप्लेटोंपरशिलालेख थे । वे भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

    पल्लव वंश के राजाओं द्वारा 4थी शताब्दी में जारी की गई कुछ शुरुआती प्रमाणीकृत तांबे की प्लेटें प्राकृत और संस्कृत में हैं । प्रारंभिक संस्कृत शिलालेख का एक उदाहरण जिसमें कन्नड़ शब्दों का उपयोग भूमि सीमाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता है, पश्चिमी गंगा राजवंश के तुंबुला शिलालेख हैं , जो 2004 के एक भारतीय समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार 444 तक के हैं। उत्तर भारत में गुप्तकाल की दुर्लभ ताम्रपत्रिकाएँ मिली हैं। ताम्रपत्र शिलालेखों का उपयोग बढ़ा और कई शताब्दियों तक वे कानूनी अभिलेखों के प्राथमिक स्रोत बने रहे।

    भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना ज्ञात ताम्र-प्लेट चार्टर तीसरी शताब्दी ई.पू. के आंध्र इक्ष्वाकु राजा एहुवाला चम्तामुला का पतागंडीगुडेम शिलालेख है। उत्तरी भारत का सबसे पुराना ज्ञात ताम्र-प्लेट चार्टर संभवतः ईश्वररता का कलाचल अनुदान है, जो पुरालेखीय आधार पर चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध का है।

    भारतीय उपमहाद्वीप का एक और पुराना ज्ञात ताम्र-प्लेट चार्टर तीसरी शताब्दी ई.पू. के आंध्र इक्ष्वाकु राजा एहुवाला चम्तामुला का पतागंडीगुडेम शिलालेख है। उत्तरी भारत का सबसे पुराना ज्ञात ताम्र-प्लेट चार्टर संभवतः ईश्वररता का कलाचल अनुदान है, जो पुरालेखीय आधार पर चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध का है।

    Raikaa Raja kaa Tamrapatra

    1300 वर्ष प्राचीन तांबे के ताम्रपत्र अभिलेख – श्रीपुरुष-122 पत्तों वाली तांबे की प्लेटों के कुल 17 सेट

    स्वतन्त्रता के उपरांत……

    स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में ताम्रपत्र प्रदान किए गए थे। पहला ताम्रपत्र समारोह 15 अगस्त, 1972 को दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के दीवान-ए-आम में आयोजित किया गया था। इसी तरह के समारोह समय-समय पर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजित किए गए थे।
    picture मोज़े रिबा
    Moje Riba (1890-1982) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया और 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद अरुणाचल प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले पहले व्यक्ति थे 15 अगस्त 1972 को, उन्हें भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती द्वारा ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया था। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके बलिदान और योगदान के लिए इंदिरा गांधी । 1982 को डारिंग गांव में उनके आवास पर उनका निधन हो गया।

    आपातकाल के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली के लिए संघर्ष करने वाले हरियाणा के 37 निवासियों को गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान ‘ताम्र पत्र’ से सम्मानित किया गया था।

  • मोदी है तो मुमकिन है: दुनिया को झुकाना आता है हमें, क्यों कि शेर हैं हम..

    मोदी है तो मुमकिन है: दुनिया को झुकाना आता है हमें, क्यों कि शेर हैं हम..

    नेहरू शेख अब्दुल्ला द्वारा पैदा किये गये कश्मीर मसले को कर रहें हैं खत्म पीएम मोदी

    केंद्र की मोदी सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद जिस मिशन कश्मीर और पूर्वोत्तर को धार दी, उसके पीछे पीएम मोदी के विजन के साथ ही सरदार वल्लभभाई पटेल के सिद्धांतों की प्रेरणा भी है। मोदी सरकार के इन कदमों से न सिर्फ जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाओं में कमी और पर्यटकों की संख्या में रिकार्ड तेजी आई है, बल्कि पूर्वोत्तर में आठ हजार से ज्यादा उग्रवादियों ने हथियार डालकर शांति और अमन की राह पकड़ी है।

    कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से सरदार वल्लभभाई पटेल का सपना साकार हुआ है। इस कदम के बाद ही घाटी का भारत  के साथ असल में एकीकरण हुआ। बिखरी रियासतों को एक सूत्र में पिरोने वाले, भारत की एकता और अखंडता के सूत्रधार सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे।

    सरदार पटेल न होते तो देश की 550 से ज्यादा रियासतें एकजुट होकर भारत में नहीं मिली होती। नरेंद्र  मोदी ने कहा कि अगर भारत के पास सरदार पटेल जैसा नेतृत्व न होता तो क्या होता? अगर 550 से ज्यादा रियासतें एकजुट न हुई होती तो क्या होता? हमारे ज्यादातर राजा रजवाड़े त्याग की पराकाष्ठा न दिखाते, तो आज हम जैसा भारत देख रहे हैं हम उसकी कल्पना न कर पाते। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और पूर्वोत्तर तक ये कार्य सरदार पटेल ने ही सिद्ध किए हैं।

    गुजरात में पीएम मोदी ने कहा कि अतीत की तरह ही भारत के उत्थान से परेशान होने वाली ताकतें आज भी मौजूद हैं। जातियों के नाम हमें लड़ाने के लिए तरह-तरह के नरेटिव गढ़े जाते हैं। इतिहास को भी ऐसे पेश किया जाता हैं कि जिससे देश जुड़े नहीं। मोदी जी काकहना ठीक ही है। जनु के टुकड़े टुकड़े गैंग अब कांग्रेस में उसी प्रकार घुसपैठ बना चुके हैं जिस प्रकार १९६२ के बाद कम्युनिष्टों ने कांग्रेस में घुश पैठ की थी।

    नरेन्द्र मोदी सरकार चीन के रूख को देखते हुए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर पर्याप्त ध्यान दे रही है। पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र विकास के लिये अनेकों योजनाएं लाई गई और यह क्रम निरंतर जारी है । इन योजनाओं  से विशेषकर मणिपुर, त्रिपुरा और असम के पर्वतीय खेत्र लाभान्वित हुए हैं।

    नरेन्द्र मोदी की सरकार की नीतियों के कारण ही पूर्वोत्तर में उग्रवादी गुटों के कारण हिंसा की आग से पूर्वोत्तर को बचाया जा सका। मोदी जी ने सशस्त्र गुटों से बातचीत की पहल शुरू की। 2014 से अब तक लगभग आठ हजार से अधिक उग्रवादी हथियार डालकर देश की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। 2014 की तुलना में 2021 में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी और सुरक्षा बलों में 60 प्रतिशत और आम नागरिकों की जनहानि में 89 प्रतिशत की कमी आई है।

    पूर्वोतर की तरह कश्मीर भी अब अमन की राह पर है। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के हटने से पहले के 37 महीनों और बाद के 37 महीनों की तुलना करें तो आतंकी घटनाओं में 34 प्रतिशत और सुरक्षा बलों की मृत्यु के मामलों में 54 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

    नागालैंड की राजा मिर्च, त्रिपुरा का कटहल पहुंचा विदेश, असम के लेमन का भी लंदन में निर्यात:

    एपीडा की पहल से त्रिपुरा के कटहल को पहली बार एक स्थानीय निर्यातक के माध्यम से लंदन तथा नागालैंड के राजा मिर्च को लंदन में निर्यात किया गया। इसके अतिरिक्त, असम के स्थानीय फल लेटेकु को दुबई में निर्यात किया गया तथा असम के पान के पत्तों को नियमित रूप से लंदन में निर्यात किया जा रहा है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के जीआई उत्पादों जैसे कि भुत जोलोकिया, असम लेमन आदि की तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ध्यान गया था। मोदी जी ने अपने मन की बात कार्यक्रम के दौरान इसका उल्लेख किया। असम लेमन का अब नियमित रूप से लंदन तथा मध्य पूर्व देशों को निर्यात होता है और 2022  तक 50 एमटी से अधिक असम लेमन का निर्यात किया जा चुका है। लीची तथा कद्दू की भी कई खेपें एपीडा द्वारा असम से विभिन्न देशों में निर्यात की जा चुकी हैं।

    जम्मू-कश्मीर के हित में क्रांतिकारी  फैसले

    अनुच्छेद 370 को खत्म करने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का युगांतरकारी फैसला था। तब राज्यसभा में बहुमत न होने के बावजूद पीएम मोदी ने साबित कर दिखाया कि जो वो ठान लेते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। उनका फैसला रंग ला रहा है।अनुच्छेद 370 को खत्म करने के ऐतिहासिक फैसले का ही परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर अब सचमुच ही ‘स्वर्ग’ बनने की दिशा में अग्रसर है। न सिर्फ देशी-विदेशी पर्यटक, बल्कि दुनियाभर से इस साल आए 1.62 करोड़ पर्यटकों ने भी 75 साल का रिकार्ड तोड़कर धरती के स्वर्ग के साथ कदम से कदम मिलाए हैं।

  • सिर्फ अहिंसा से आज़ादी दिलाने वालों को भी हुई थी फांसी और अंडमान जेल काला पानी की सजा!

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर को फिल्माया बीबीसी के एक ब्रिटिश पत्रकार ने, सेलुलर जेल में। वीर सावरकर, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल आदि का अपमान करने वाले सभी लोग, भारत को स्वतंत्रता सिर्फ अहिंसा से मिली कहकर क्रांतिकारियों को कमजोर करने का इरादा रखते हैं।

    काला पानी की सजा के दौरान सेलुलर जेल में स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने जेल की दीवारों पर कील व कोयले से लिखी ६००० कवितायें , फिर कंठस्थ की।

    सेलुलर जेल में काला पानी की सजा भुगतने और भारत माता की जय का नारा लगा कर फांसी के फंदे को हंसते हुए चूमने वालों की लिस्ट प्रकाशित करे सरकार फिर चाहे वे अहिंसा से आज़ादी दिलाने वाले हों या या भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, आदि।

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर इस दुनिया के एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनकी किताब ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ प्रकाशित होने से पहले ही अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी। यह वह किताब है जिसके द्वारा वीर सावरकर ने यह सिद्ध किया था कि 1857 की क्रांति जिसे अंग्रेज महज एक सिपाही विद्रोह ग़दर मानते हैं, वह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। वीर सावरकर वही क्रांतिवीर हैं जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने क्रांति के अपराध में काले पानी की सजा देकर 50 साल के लिए अंडमान की सेल्युलर जेल भेज दिया था। 10 साल बाद जब वीर सावरकर काला पानी की दिल दहला देने वाली यातनाएं सहकर जेल से बाहर आए, तभी से हमारे देश के कुछ बुद्धूजीवी और वंशवादी पार्टी नेता अपने और अपने पूर्वजों के देश विरोधी काले कारनामें जैसे नेहरू ने मांगी थी माफ़ी छिपाने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगने का आरोप वीर सावरकर पर लगा रहे हैं।

    जिस माफीनामे के बारे में बताया जाता रहा है, वह सिर्फ़ एक सामान्य सी याचिका थी, जिसे फ़ाइल करना राजनीतिक कैदियों के लिए एक सामान्य कानूनी विधान था। पारिख घोष जो कि महान क्रांतिकारी अरविंद घोष के भाई थे, सचिन्द्र नाथ सान्याल, जिन्होंने एचआरए का गठन किया था, इन सबने भी ऐसी ही याचिकाए दायर की थी और इनकी याचिकाए स्वीकार भी हुई थी।

    जॉर्ज पंचम की भारत यात्रा और प्रथम विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में राजनीतिक बंदियों को अपने बचाव के लिए ऐसी सुविधाएं दी गयी थीं। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, तब-तब मैंने याचिका दायर की’। स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने भी अपनी याचिका इसीलिए दायर की थी कि कहीं ऐसा न हो कि उनका जीवन जेल की सलाखों के पीछे ही फंसकर समाप्त हो जाए और भारतीय स्वतंत्रता का उनका महालक्ष्य अधूरा रह जाए।

    महात्मा गांधी ने भी 1920-21 में अपने पत्र ‘यंग इंडिया’ में वीर सावरकर के पक्ष में लेख लिखे थे। गांधी जी का भी विचार था कि सावरकर को चाहिए कि वे अपनी मुक्ति के लिए सरकार को याचिका भेजें।

    न्यायालय ने तो वीर सावरकर को कब का बाइज़्ज़त बरी कर दिया था लेकिन हमने आज तक उस देशभक्त भारत माता के महान सपूत को कटघरे में खड़ा कर रखा है। हमें दुःख होना चाहिए कि अपने ही राष्ट्र नायकों पर हमने प्रश्न चिन्ह उठाए। यह क्रम अभी भी जारी है। हमारी सेना ने जो सर्जिकल स्ट्राइक की, लद्दाख से गलवान घाटी से न सिर्फ भगाया बल्कि १०० से अधिक चीनी सैनको को भी मार गिराया। उस भी प्रश्न चिन्ह ?

    सिर्फ अहिंसा से आज़ादी दिलाने वालों को भी हुई थी फांसी और अंडमान जेल काला पानी की सजा!

    भगत सिंह के गुरु थे करतारा। जेल में उनसे मिलाने उनके दादा गए तो उन्होंने कहा अरे करतारा तुम जिनके लिए फांसी पर चढ़ रहे हो वे तो तुमको गाली दे रहे हैं! दादा के कहने का तात्पर्य था की माफ़ी मांग कर जय से बाहर आ जाओ। करतारा ने पूछा क्या गॅरंटी है जेल से बाहर आकर कितने दिन मैं जीऊंगा, हो सकता है मुझे उसी समय सांप काट ले! दादा निरुत्तर हो गए!

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर कहते थे, ‘माता भूमि पुत्रो अहम् पृथिव्याः।‘ ये भारत भूमि ही मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं।
    नेहरू जी देश को एक जमीन का टुकड़ा मानते थे। उनके पद चिन्हों पर चलने वाली लॉबी आज भी भारत को भारत माता कहने में संकोच करती हैं।
  • भोजपत्र पर लिखे जाते थे वेद और पुराण: Vedas and Puranas were written on Bhojpatra

    भोजपत्र पर लिखे जाते थे वेद और पुराण: Vedas and Puranas were written on Bhojpatra

    पुरातनकाल में जब लिखने के लिए कागज का आविष्कार नहीं हुआ था, तब वेदों और पुराणों की रचना विषेशकर भोजपत्र, पाम पत्र, ताम्रा पत्र  पर लिखकर की गई थी। मंदिरों की दीवालों पर भी प्राचीन शिलालेख पाए जाते हैं।  भोजपत्र एक ऐसा दुर्लभ पत्र है जो  हिमालय की तराई के घने जंगलों से प्राप्त किया जाता था। 

    आध्यात्मिक नगरी देवघर के एक नर्सरी में भोजपत्र का दुर्लभ पेड़ लगाकर प्राचीन भारत की समृद्ध विरासत को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न अब हो रहा है।

    भोजपत्र के पौधे को हिमाचल से लाकर यहां लगाया गया है।  इस पौधे की विशेषता है कि इसके तने को किसी भी जगह पर दबाने पर गड्ढा बन जाता है. और परत दर परत इसके छाल निकाले जा सकते हैं।

    भोजपत्र में लिखी गई कोई भी चीज हजारों वर्ष तक रहता है. उस काल के विक्रमशिला, मिथिला, नालंदा या अन्य विश्वविद्यालय में भोजपत्र पर लिखे अनगिनत ग्रंथ थे, जिन्हें विदेशी आक्रमण के दौरान नष्ट कर दिया गया था।  बाद में भोजपत्र पर लिखे कई महत्वपूर्ण दस्तावेज को अंग्रेजों के शासनकाल में यहा से उठा कर जर्मनी ले जाया गया था जो आज भी वहां के म्युनिक पुस्तकालय में सुरक्षित है।

    भोजपत्र में लिखी गई कोई भी चीज हजारों वर्ष तक रहती है. उस काल के विक्रमशिला, मिथिला, नालंदा या अन्य विश्वविद्यालय में भोजपत्र पर लिखे अनगिनत ग्रंथ थे, जिन्हें विदेशी आक्रमण के दौरान नष्ट कर दिया गया था।  बाद में भोजपत्र पर लिखे कई महत्वपूर्ण दस्तावेज को अंग्रेजों के शासनकाल में यहा से उठा कर जर्मनी ले जाया गया था जो आज भी वहां के म्युनिक पुस्तकालय में सुरक्षित है।