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  • भारत को आजादी दिलाने में सुभाष बोस की अहम् भूमिका : ब्रिटिश पी एम

    कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पीबी चक्रवर्ती, जिन्होंने भारत में पश्चिम बंगाल के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में भी काम किया था, ने डॉ आर सी मजूमदार की पुस्तक ‘ए हिस्ट्री ऑफ बंगाल’ के प्रकाशक को संबोधित एक पत्र में लिख कर खुलसा किया: “जब मैं कार्यवाहक गवर्नर था, लॉर्ड एटली, जिन्होंने भारत से ब्रिटिश शासन को हटाकर हमें स्वतंत्रता दिलाई थी, ने अपने भारत दौरे के दौरान कलकत्ता के गवर्नर पैलेस में दो दिन बिताए थे। उस समय मैं उनके साथ उन वास्तविक कारकों के बारे में लंबी चर्चा हुई, जिनके कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा।”

    “मेरा उनसे सीधा सवाल था कि

    चूंकि गांधी का” भारत छोड़ो “आंदोलन कुछ समय पहले धीमा पड़ गया था और 1947 में ऐसी कोई नई बाध्यकारी स्थिति पैदा नहीं हुई थी जिससे जल्दबाजी में ब्रिटिश प्रस्थान की आवश्यकता हो, तो उन्हें क्यों छोड़ना पड़ा?”? 

    अपने जवाब में एटली ने कई कारणों का हवाला दिया, उनमें से प्रमुख नेताजी की सैन्य गतिविधियों के परिणामस्वरूप भारतीय सेना और नौसेना कर्मियों के बीच ब्रिटिश क्राउन के प्रति वफादारी का क्षरण था। 

    हमारी चर्चा के अंत में मैंने एटली से पूछा कि भारत छोड़ने के ब्रिटिश निर्णय पर गांधी के प्रभाव की सीमा क्या थी। इस सवाल को सुनकर, एटली के होठों में  व्यंग्यात्मक मुस्कान थी  क्योंकि एटली ने धीरे-धीरे “न्यूनतम!” शब्द गुनगुनाया ।((सुभाष चंद्र बोस, द इंडियन नेशनल आर्मी , एंड द वार ऑफ इंडियाज लिबरेशन-रंजन बोर्रा, जर्नल ऑफ हिस्टोरिकल रिव्यू , नंबर 3, 4 (विंटर 1982))।

    जस्टिस चक्रवर्ती की तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से हुई वार्तालाप का उल्लेख जनरल जीडी बख्शी ने अपनी पुस्तक नॉलेज वर्ल्ड पब्लिकेशन, बोस: एन इंडियन समुराई में भी किया है।

    Mr. Fenner Brockway, Political Secretary of the Independent Labor Party  द्वारा एटली के विचारों को प्रतिध्वनित किया गया था, “ भारत के स्वतंत्र होने के तीन कारण थे । एक, भारतीय लोग स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए दृढ़ थे। दूसरा, भारतीय नौसेना द्वारा विद्रोह था। तीन, तीन ब्रिटेन भारत को अलग नहीं करना चाहता था, जो उसके लिए एक बाजार और खाद्य पदार्थों का स्रोत था। https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx

    Surce: https://www.esamskriti.com/e/NATIONAL-AFFAIRS/Did-Gandhi-colon-s-Ahimsa-get-India-freedom-1.aspx)

    पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा है कि ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी सिर्फ अहिंसा आंदोलन के बल पर नहीं मिली है बल्कि क्रांतिकारियों का बलिदान और योगदान भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। महात्मा गांधी के सामने आने से पहले कई क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में हुआ और उसी ने स्वतंत्रता की लौ जलायी। बाद में महात्मा गांधी ने इस काज में जन-मानस को साथ जोड़ा।

    स्वतंत्रता सेनानी वीर दामोदर सावरकर ने लिखा है, जब आप स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सोचते हैं तो आपको 1857 से 1947 तक सोचने की जरूरत है। आपको स्वतंत्रता संग्राम के 90 साल के बारे में सोचने की जरूरत है।

  • सिर्फ अहिंसा से आज़ादी दिलाने वालों को भी हुई थी फांसी और अंडमान जेल काला पानी की सजा!

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर को फिल्माया बीबीसी के एक ब्रिटिश पत्रकार ने, सेलुलर जेल में। वीर सावरकर, भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल आदि का अपमान करने वाले सभी लोग, भारत को स्वतंत्रता सिर्फ अहिंसा से मिली कहकर क्रांतिकारियों को कमजोर करने का इरादा रखते हैं।

    काला पानी की सजा के दौरान सेलुलर जेल में स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने जेल की दीवारों पर कील व कोयले से लिखी ६००० कवितायें , फिर कंठस्थ की।

    सेलुलर जेल में काला पानी की सजा भुगतने और भारत माता की जय का नारा लगा कर फांसी के फंदे को हंसते हुए चूमने वालों की लिस्ट प्रकाशित करे सरकार फिर चाहे वे अहिंसा से आज़ादी दिलाने वाले हों या या भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, आदि।

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर इस दुनिया के एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनकी किताब ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ प्रकाशित होने से पहले ही अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित कर दी गई थी। यह वह किताब है जिसके द्वारा वीर सावरकर ने यह सिद्ध किया था कि 1857 की क्रांति जिसे अंग्रेज महज एक सिपाही विद्रोह ग़दर मानते हैं, वह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था। वीर सावरकर वही क्रांतिवीर हैं जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने क्रांति के अपराध में काले पानी की सजा देकर 50 साल के लिए अंडमान की सेल्युलर जेल भेज दिया था। 10 साल बाद जब वीर सावरकर काला पानी की दिल दहला देने वाली यातनाएं सहकर जेल से बाहर आए, तभी से हमारे देश के कुछ बुद्धूजीवी और वंशवादी पार्टी नेता अपने और अपने पूर्वजों के देश विरोधी काले कारनामें जैसे नेहरू ने मांगी थी माफ़ी छिपाने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगने का आरोप वीर सावरकर पर लगा रहे हैं।

    जिस माफीनामे के बारे में बताया जाता रहा है, वह सिर्फ़ एक सामान्य सी याचिका थी, जिसे फ़ाइल करना राजनीतिक कैदियों के लिए एक सामान्य कानूनी विधान था। पारिख घोष जो कि महान क्रांतिकारी अरविंद घोष के भाई थे, सचिन्द्र नाथ सान्याल, जिन्होंने एचआरए का गठन किया था, इन सबने भी ऐसी ही याचिकाए दायर की थी और इनकी याचिकाए स्वीकार भी हुई थी।

    जॉर्ज पंचम की भारत यात्रा और प्रथम विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में राजनीतिक बंदियों को अपने बचाव के लिए ऐसी सुविधाएं दी गयी थीं। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ‘जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, तब-तब मैंने याचिका दायर की’। स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने भी अपनी याचिका इसीलिए दायर की थी कि कहीं ऐसा न हो कि उनका जीवन जेल की सलाखों के पीछे ही फंसकर समाप्त हो जाए और भारतीय स्वतंत्रता का उनका महालक्ष्य अधूरा रह जाए।

    महात्मा गांधी ने भी 1920-21 में अपने पत्र ‘यंग इंडिया’ में वीर सावरकर के पक्ष में लेख लिखे थे। गांधी जी का भी विचार था कि सावरकर को चाहिए कि वे अपनी मुक्ति के लिए सरकार को याचिका भेजें।

    न्यायालय ने तो वीर सावरकर को कब का बाइज़्ज़त बरी कर दिया था लेकिन हमने आज तक उस देशभक्त भारत माता के महान सपूत को कटघरे में खड़ा कर रखा है। हमें दुःख होना चाहिए कि अपने ही राष्ट्र नायकों पर हमने प्रश्न चिन्ह उठाए। यह क्रम अभी भी जारी है। हमारी सेना ने जो सर्जिकल स्ट्राइक की, लद्दाख से गलवान घाटी से न सिर्फ भगाया बल्कि १०० से अधिक चीनी सैनको को भी मार गिराया। उस भी प्रश्न चिन्ह ?

    सिर्फ अहिंसा से आज़ादी दिलाने वालों को भी हुई थी फांसी और अंडमान जेल काला पानी की सजा!

    भगत सिंह के गुरु थे करतारा। जेल में उनसे मिलाने उनके दादा गए तो उन्होंने कहा अरे करतारा तुम जिनके लिए फांसी पर चढ़ रहे हो वे तो तुमको गाली दे रहे हैं! दादा के कहने का तात्पर्य था की माफ़ी मांग कर जय से बाहर आ जाओ। करतारा ने पूछा क्या गॅरंटी है जेल से बाहर आकर कितने दिन मैं जीऊंगा, हो सकता है मुझे उसी समय सांप काट ले! दादा निरुत्तर हो गए!

    स्वातंत्र्य वीर सावरकर कहते थे, ‘माता भूमि पुत्रो अहम् पृथिव्याः।‘ ये भारत भूमि ही मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं।
    नेहरू जी देश को एक जमीन का टुकड़ा मानते थे। उनके पद चिन्हों पर चलने वाली लॉबी आज भी भारत को भारत माता कहने में संकोच करती हैं।
  • कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती

    कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती

    शनिवार, 10 दिसंबर, 2022 को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने घोषणा की कि उसने ‘सलाम आरती’ का नाम बदलने का फैसला किया है, जो 18वीं शताब्दी के इस्लामिक अत्याचारी टीपू सुल्तान द्वारा शुरू की गई एक रस्म थी। मंत्री शशिकला जोले ने स्पष्ट किया कि केवल नाम बदले जाएंगे और रस्म हमेशा की तरह जारी रहेगी।“देवतिगे सलाम का नाम बदलकर देवीतिगे नमस्कार, सलाम आरती को आरती नमस्कार, और सलाम मंगलारती को मंगलारती नमस्कार करने का निर्णय लिया गया है। मंत्री शशिकला जोले ने कहा, “इन फारसी नामों को बदलने और मंगला आरती नमस्कार या आरती नमस्कार जैसे पारंपरिक संस्कृत नामों को बनाए रखने के प्रस्ताव और मांगें थीं। इतिहास को देखें तो हम वही वापस लाए हैं जो पहले चलन में था।”

    विश्व इतिहास में भारतीय संस्कृति का वही स्थान एवं महत्व है जो असंख्य द्वीपों के सम्मुख सूर्य का है.” भारतीय संस्कृति अन्य संस्कृतियों से सर्वथा भिन्न तथा अनूठी है. अनेक देशों की संस्कृति समय-समय पर नष्ट होती रही है, किन्तु भारतीय संस्कृति आज भी अपने अस्तित्व में है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति सृष्टि के इतिहास में सर्वाधिक प्राचीन है भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता की अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है और कहा है ।”

    यह फैसला हिंदुत्ववादी तथा अन्य संगठनों ने संगठनों की मांग पर लिया गया। इन संगठनों ने राज्य सरकार से टीपू सुल्तान के नाम पर होने वाले अनुष्ठानों को खत्म करने की मांग की थी, जिसमें सलाम आरती भी शामिल थी। इससे स्पष्ट है कि जनता की मांग पूरी कर रही है कर्णाटक की सर्कार सरकार।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से दिए पंच प्राण में से एक गुलामी के सारे प्रतीक चिह्नों के खात्मे का आह्वान किया था। ताकि आजादी के अमृतकाल में विकसित भारत की ओर कदम बढ़ा रहा देश स्वाभिमानी भारत बन सके। मोदी सरकार ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। ब्रिटिश काल के कई कानूनों के खात्मे से लेकर राजपथ से कर्तव्य पथ तक। 

    “दी इंडियन पीनल कोड” की पांडुलिपि लॉर्ड मैकॉले ने तैयार की थी। अंग्रेजी को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इनका बड़ा हाथ था। भारत मे नौकर उत्पन्न करने का कारखाना खोला जिसे हम school , college , university कहतें हैं ।ये आज भी हमारे समाज हर साल लाखों के संख्या में देश मे नौकर उत्पन्न करता है जिसके कारण देश मे बेरोजगारी की सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हुई जो आज पूरे देश मे महामारी की तरह फैल रही है। भारत की बेरोजगारी की बजह भारत की राजनीति को जाता है भारत मे इस समय बेरोजगारी,आर्थिक व्यवस्था चरम सीमा पर पहुंच गयी हैं भारत की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है सबसे बड़ी समस्या ये है कि इन्होने भारत की भाषा हिंदी को ही बदल के सरकारी जगहों पर अंग्रेजी को लागू कर दिया जो अब भी हर जगह मौजूद हैं।

    यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें, ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें। समग्रता में देखें तो 2014 से अब तक मोदी सरकार ने लगभग अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाने वाले सैकड़ों कानूनों को तिलांजलि दी है।

    राजपथ का नामकरण इंग्लैंड के महाराज किंग जार्ज पंचम के सम्मान में किया गया था। गुलामी के उस प्रतीक को हटाना अनिवार्य हो गया था। मोदी सरकार ने यहां पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का निर्णय किया, जिन्हें स्वतंत्र भारत के कथित इतिहासकारों ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वह सर्वथा सुपात्र थे। इसी प्रकार नौ सेना के नए ध्वज से ब्रिटिश नौसेना के उस प्रतीक को हटा दिया गया, जो पता नहीं किन कारणों से इन 75 वर्षों तक हमारी सामुद्रिक सेना के ध्वज से चिपका रहा। यह उचित ही है कि अब नौसेना के ध्वज में स्वाभिमान के पर्याय छत्रपति शिवाजी के प्रतीक की छाप अब नजर आ रही है। इससे पहले गणतंत्र दिवस पर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में कई वर्षों से बजाई जाने वाली अंग्रेजी धुन के बजाय भारतीयता से ओतप्रोत धुन को वरीयता दी गई।

    वही sugar coated कुत्सित प्रयास इस्लामिक अत्याचारी टीपू ने किया था। इसी कारण वर्त्तमान में भी इस्लामिक अत्याचारी टीपू के भक्त राजनीतिक कारणों से कर्णाटक में मौजूद हैं। कोल्लूर में मूकाम्बिका मंदिर के पुजारी के अनुसार, टीपू ने जो किया वह धर्म या लोगों के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए किया। पुजारी का कहना है , ‘जब टीपू सुल्तान मैसूर क्षेत्र पर शासन कर रहा था तो वह इस मंदिर को नष्ट करने आया था लेकिन दैवीय शक्तियों के कारण प्रवेश नहीं कर सका। जब वे देवता को प्रणाम करने आए, तो आरती की जा रही थी, उन्होंने आरती का नाम ‘सलाम आरती’ रखा। उस दिन से, टीपू सुल्तान के मंदिर में आने की याद में सलाम आरती की जाती है।’

    कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान कई विवादों के केंद्र में रहे हैं। वाम-उदारवादी टुकड़े टुकड़े गैंग और मुस्लिम तुष्टिकरण तथा वोट बैंक पॉलिटिक्स  ने मार्क्सवादी विकृतियों के साथ-साथ अत्याचारी शासक का महिमामंडन किया है। बार-बार, सुल्तान को एक बहादुर और क्रूर योद्धा के साथ-साथ एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी, शांतिपूर्ण नेता के रूप में चित्रित किया गया है। ‘एक योद्धा जो कभी कोई युद्ध नहीं हारा’। पर यह सही इतिहास नहीं है। टीपू एक तानाशाह और धार्मिक उन्मादी से ज्यादा कुछ नहीं था, जो जबरदस्ती धर्मांतरण और नरसंहार के लिए जाना जाता है। खैर, इतने दशकों के बाद यह कैसे मायने रखता है? यह करता है, क्योंकि इतिहास किसी भी देश के राजनीतिक पाठ्यक्रम को निर्धारित करता है और इस प्रकार राष्ट्र के भविष्य को प्रभावित करता है। और भारत के साथ भी यही हो रहा है।

    टीपू सुल्तान का विरोध करने के ये हैं प्रमुख आधार
    विरोध करने के ये हैं प्रमुख आधार

    • टीपू धर्मनिरपेक्ष नहीं, बल्कि एक असहिष्णु और निरंकुश शासक था। 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में भी टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक लेख छपा था, जिसमें टीपू को दक्षिण का औरंगजेब बताया गया था।

    • टीपू सुल्तान के संबंध में प्रसिद्ध लेखक चिदानंद मूर्ति कहते हैं, ‘वो बेहद चालाक शासक था। उसने दिखावे के लिए मैसूर में हिंदुओं पर अत्याचार नहीं किया, लेकिन तटीय क्षेत्र जैसे मालाबार में हिंदुओं पर बेहद अत्याचार किए।’

    • ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और इस दौरान उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध कर लटकाया गया। इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं।

    • केट ब्रिटलबैंक की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और 70,000 से ज्यादा ईसाइयों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया, उन्हें मजबूरी में अपने-अपने बच्चों को शिक्षा भी इस्लाम के अनुसार देनी पड़ी। इनमें से कई लोगों को बाद में टीपू सुल्तान की सेना में शामिल किया गया।

    • एकेडमिक माइकल सोराक के मुताबिक इस वक्त टीपू की छवि कट्टर मुगल बादशाह के तौर पर पेश करने के लिए उन फैक्ट को आधार बनाया गया, जो 18वीं सदी में अंग्रेज अधिकारी टीपू सुल्तान के लिए इस्तेमाल करते थे।

    • सांसद राकेश सिन्हा ने नवंबर 2018 में कहा था कि ‘टीपू ने अपने शासन का प्रयोग हिंदुओं का धर्मांतरण करने के लिए किया और यही उनका मिशन था। इसके साथ ही उसने हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा। हिंदू महिलाओं की इज्जत पर प्रहार किया और ईसाइयों के चर्चों पर हमले किए। इस वजह से हम ये मानते हैं कि उनकी जयंती पर समारोह आयोजित करने से युवाओं में गलत संदेश जाता है।’

  • वीर सावरकर का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद vs नेहरू का वंशवाद

    वीर सावरकर का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद vs नेहरू का वंशवाद

    सावरकर सचमुच सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के व्याख्याकार थे। भारत में स्वदेशी आंदोलन की नींव सावरकर ने ही रखी। देश में स्वदेशी का पहला आह्वान उन्होंने किया। अक्तूबर 1905 को पुणे की विशाल जन सभा में सावरकर ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की घोषणा की थी। बाद में उसी स्वदेशी आंदोलन को महात्मा गांधी ने अपनाया। स्वदेशी आंदोलन को सावरकर ने राष्ट्र, संस्कृति और अपने पारंपरिक स्वावलंबन व स्वरोजगार के साथ जोड़ा। इसके बाद महात्मा गाँधी और फिर दीनदयाल उपाध्याय जी ने इस स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाया.

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    1906 में सावरकर ने 1857 का स्वतंत्रता समर पुस्तक लिखने का संकल्प लिया। 1909 में लिखी पुस्तक द इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस -1857 में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित की।

    10 मई 1907 को इस संग्राम की लंदन के इंडिया हाउस में 50वीं वर्षगांठ मनाने हेतु सावरकर ने फ्री इंडिया सोसायटी के नेतृत्व में एक भव्य आयोजन संपन्न किया। उस दिन सावरकर ने इसे तार्किक रूप में सैन्य विद्रोह अथवा गदर के रूप में खारिज किया और अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का पहला सशस्त्र युद्ध घोषित किया। इस पहली लड़ाई को संग्राम का दर्जा दिलाने में सावरकर कामयाब रहे।

    यही नहीं एक महत्वपूर्ण बात, वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया था। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। ऐसा इस देश में पहली बार हुआ था।

    दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद फिर से लिखा। 

    “Many parties including the Congress opposed the oil painting in the Parliament House, but now Savarkar is present there and Savarkar’s ideology is influential in the whole country today. To be honest, Savarkar was the exponent of cultural nationalism, not a Hindu.“

    1947 में भारत के बंटवारे के वे खिलाफ थे। वीर सावरकर ने बंटवारे का जबरदस्त विरोध किया था। 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर की मृत्यु के बाद कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे। सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है। 1970 में सावरकर जी पर डाक टिकट जारी किया गया।

    1947 में भारत के बंटवारे के वे खिलाफ थे। वीर सावरकर ने बंटवारे का जबरदस्त विरोध किया था। 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर की मृत्यु के बाद कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे। सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है।

    15 अक्तूबर 2019 को भाजपा की महाराष्ट्र इकाई ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सावरकर को ‘भारतरत्न’ से सम्मानित करने की बात कही और अगले दिन 16 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के अकोला में ‘महाजनादेश संकल्प सभा’ में कहा- ‘वीर सावरकर के संस्कार हैं कि राष्ट्रवाद हमारे मूल में है।

    सावरकर ने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य जीवन पद्धतियों से अलग और विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया. वह ‘हिंदुत्व’ विचारधारा के प्रवर्तक और सिद्धांतकार बने. सारी बहसें इस विचारदृष्टि को लेकर है. इसके समर्थकों की संख्या आज कहीं अधिक है और कांग्रेस, उसके नेता राहुलगांधी हाशिये पर।

    सोफिया विवि के प्रोफेसर सालो अगस्तीन आरएसएस को ‘हिंदुत्व’ की ‘कोर-संस्था’ कहते हैं. संघ ने ‘हिंदुत्व’ की विचारधारा को केवल प्रचारित ही नहीं किया, उसने इसकी सांगठनिक संरचना (शाखा) जमीनी स्तर तक विकसित की। सावरकर सिद्धांतकार थे और हेडगेवार संगठनकर्ता. ‘हिंदुत्व’ विचारधारा से जुड़ा राजनीतिक दल भाजपा है।

    सावरकर को2023 – 24 में भारतरत्न’ दिया जायेगा ऐसे संभावना है।  वर्ष  2023 में सावरकर की ‘हिंदुत्व’ पुस्तिका की प्रकाशन शती है।

    हिंदुत्व की तुलना isis से राहुल के गुरु सलमान खुर्शीद ने की है। एक और दूसरे गुरु शिराज पाटिल ने महाभारत के श्री कृष्णा को जिहादी की संज्ञा जकिर नायक के पदचिन्हों पर चल कर की है। इसी भगोड़े जाकिर को राहुलगांधी के तीसरे गुरु दिग्विजय सिंह ने शांति दूत कहा था।

    इदिरा गांधीकी 105 वीं जयंतिकी के एक दिन पूर्व 18 नवंबर 2022 को भी राहुल गाँधी के बेतुके आधारहीन टिप्पणियों ने विनायक दामोदर सावरकर सुर्खियों और बहसों में हैं.

    पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का वीर सावरकर के सम्मान में लिखा एक पत्र एक पत्र:

    नेहरू जी के ठीक विपरीत अखंड भारत के विभाजन के विरोधी सावरकर वंशवाद के भी विरोधी थे।वीर सावरकर के IITian नाती पुणे की streets पर भूखे उसी प्रकार से जैसे सरदार पटेल पुत्री मणिबेन गरीबी में…

    https://twitter.com/premendraind/status/1593573129405665280

    कैसे नेहरू ने एक राजनीतिक राजवंश की स्थापना की, लेकिन सरदार पटेल की बेटी को कंगाल मरने के लिए छोड़ दिया 

    https://www.firstpost.com/opinion-news-expert-views-news-analysis-firstpost-viewpoint/how-nehru-founded-a-political-dynasty-but-left-sardar-patels-daughter-to-die-a-pauper-11543451.html

    सरदार पटेल भी राजनीति में वंशवाद के घोर विरोधी थे, कहा जाता है कि सरदार पटेल ने हिदायत दे रखी थी कि जब तक वो दिल्ली में हैं, तब तक उनके रिश्तेदार दिल्ली में कदम न रखें और संपर्क न करें. उन्हें डर था कि इस कारण उनके नाम का दुरुपयोग हो सकता है. हालांकि उनका परिवार बहुत बड़ा नहीं था. सरदार पटेल के परिवार में एक बेटा और एक बेटी मणिबेन पटेल थे।

    https://www.aajtak.in/india/story/sardar-patel-family-list-birth-anniversary-969827-2019-10-31

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    By – Premendra Agrawal @premendraind