वसुधैवकुटुम्बकम्सनातन धर्म का मूल संस्कार तथा विचारधारा हैजो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधाएवकुटुम्बकम्)। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
अयंनिजःपरोवेतिगणनालघुचेतसाम्।
उदारचरितानांवसुधैवकुटुम्बकम्॥ (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१)
अर्थ – यहमेराअपनाहैऔरयहनहींहै, इसतरहकीगणनाछोटेचित्तवालेलोगकरतेहैं।उदारहृदयवालेलोगोंकीतो (सम्पूर्ण) धरतीहीपरिवारहै।
वसुधैव कुटुंबकम एक संस्कृत वाक्यांश है जो हिंदू ग्रंथों जैसे महा उपनिषद में पाया जाता है, जिसका अर्थ है “विश्व एक परिवार है”। वैदिक परंपरा में “वसुधैव कुटुम्बकम” का उल्लेख है जिसका अर्थ हैकिपृथ्वीपरसभीजीवितप्राणीएकपरिवारहैं ।
महाउपनिषदकायहश्लोकभारत की संसदकेप्रवेशकक्षमेंखुदाहुआहै।
इसके बाद के श्लोक यह कहते हैं कि जिनके पास कोई लगाव नहीं है, वे ब्राह्मण (एक सर्वोच्च, सार्वभौमिक आत्मा जो कि मूल ब्रह्मांड की उत्पत्ति और समर्थन है) को खोजने के लिए जाते हैं। इस श्लोक का संदर्भ एक ऐसे व्यक्ति के गुणों में से एक के रूप में वर्णन करना है जिसने आध्यात्मिक प्रगति के उच्चतम स्तर को प्राप्त कर लिया है, और जो भौतिक संपत्ति के लगाव के बिना अपने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम है।
यह पाठ इसके बाद के प्रमुख हिंदू साहित्य में प्रभावशाली रहा है। लोकप्रिय भागवत पुराण , हिंदू धर्म में साहित्य की पुराण शैली का सबसे अधिक अनुवादित, उदाहरण के लिए, महा उपनिषद के वसुधैव कुटुम्बकम कहावत को “श्रेष्ठतम वेदांतिक विचार” कहता है।
गांधी स्मृति और दर्शन समिति के पूर्व निदेशक डॉ. एन. राधाकृष्णन का मानना है कि जीवन के सभी रूपों के समग्र विकास और सम्मान की गांधीवादी दृष्टि; एक पंथ और रणनीति दोनों के रूप में अहिंसा की स्वीकृति में निहित अहिंसक संघर्ष समाधान; वसुधैव कुटुम्बकम की प्राचीन भारतीय अवधारणा के विस्तार थे।
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा आयोजित विश्व संस्कृति महोत्सव में एक भाषण में इस वाक्यांश का इस्तेमाल किया था, जिसमें कहा गया था कि “भारतीय संस्कृति बहुत समृद्ध है और हम में से प्रत्येक में महान मूल्यों के साथ पैदा हुई है, हम लोग हैं जो यहां से आए हैं। अहम् ब्रह्मास्मि से वसुधैव कुटुम्बकम, हम लोग हैं जो उपनिषदों से उपग्रह तक आए हैं। (उपग्रह)।
इसकाउपयोग 7वेंअंतर्राष्ट्रीयपृथ्वीविज्ञानओलंपियाडकेलोगोमेंकियागयाथा, जो 2013 मेंमैसूर, भारतमेंआयोजितकियागयाथा।इसेस्कूलीपाठ्यक्रममेंपृथ्वीकीउप–प्रणालियोंकेएकीकरणपरजोरदेनेकेलिएडिजाइनकियागयाथा।इसेमैंगलोरयूनिवर्सिटीकेआर. शंकरऔरश्वेताबी. शेट्टीनेडिजाइनकियाथा।
लोगो वसुधैव कुटुम्बकम के पीछे की सोच का प्रतिनिधि है
1 दिसंबर, 2022 से 30 नवंबर, 2023 तक भारत के G20 प्रेसीडेंसी के लिए थीम और लोगो में “वसुधैव कुटुमकम” या “एक पृथ्वी-एक परिवार-एक भविष्य” का उल्लेख है। लोगो डिजाइन प्रतियोगिता के माध्यम से आमंत्रित 2400 अखिल भारतीय प्रविष्टियों की जांच के बाद लोगो का चयन किया गया था
पीएम @narendrmodi ने G-20 का Logo का अनावरण करते हुए कहा कि इसमें कमल का फूल, भारत की पौराणिक धरोहर, हमारी आस्था और हमारी बौद्धिकता को चित्रित कर रहा है। हमारे यहां अद्वैत का चिंतन जीव मात्र के एकत्व का दर्शन रहा है। ये दर्शन, आज के वैश्विक द्वंदों और दुविधाओं के समाधान का माध्यम बने, इस Logo और Theme के जरिए हमने ये संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध से मुक्ति के लिए बुद्ध के जो संदेश हैं, हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं, G-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे रहा है। #vasudhaivkutumkam के मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो विचार इस Logo और Theme में प्रतिबिम्बित हो रहा है।
पीएम मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि दुनिया में जब भी G-20 जैसे बड़े platforms का कोई सम्मेलन होता है, तो उसके अपने diplomatic और geo-political मायने होते हैं। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन भारत के लिए ये समिट केवल एक डिप्लोमैटिक मीटिंग नहीं है। भारत इसे अपने लिए एक नई ज़िम्मेदारी और अपने प्रति दुनिया के विश्वास के रूप में देखता है। आज विश्व में भारत को जानने की, भारत को समझने की एक अभूतपूर्व जिज्ञासा है। भारत का नए आलोक में अध्ययन, हमारी वर्तमान की सफलताओं का आकलन किया जा रहा है। इसके साथ ही हमारे भविष्य को लेकर अभूतपूर्व आशाएँ प्रकट की जा रही हैं। ऐसे में ये हम देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हम इन आशाओं-अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर करके दिखाएं। ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत की सोच और सामर्थ्य से, भारत की संस्कृति और समाजशक्ति से विश्व को परिचित कराएं।
ऋषि सुनक को वित्त मंत्री की शपथ दिलाई गई। इस दौरान उन्होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली और वो हर भारतीय के फेवरिट बन गए। इस पर एक ब्रिटिश अखबार ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने अपने ही अंदाज में ऋषि ने कहा, ‘मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं लेकिन मेरा धर्म हिंदू है। भारत मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है।’ अपनी डेस्क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले सुनक धार्मिक आधार पर बीफ त्यागने की अपील भी कर चुके हैं। वो खुद भी बीफ का सेवन नहीं करते हैं। ऋषि, शराब भी नहीं पीते हैं।
मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।
1857 की क्रांति एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने इतिहास में कालविभाजक की स्थिति अर्जित की। क्रांतिकारी और विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रांति पर अपनी कालजयी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में इस क्रांति को भारत का ‘प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम’ का नाम दिया।
1857 की पहली घटना से लेकर स्वाधीनता के लिए आखिरी सांस तक जूझते भारतीय सैनिकों के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाही विद्रोह कहकर दुनिया की आंखों में बखूबी धूल झोंकी। अगर वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति को आज भी अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखा जाता। उन्होंने ही इस क्रांति के यथार्थ को सामने रखा व इसे प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य समर के रूप में प्रतिष्ठापित किया।
1857 की क्रांति अपने प्रभाव व क्षेत्र में इतनी विस्तृत और तीव्र थी कि इसने अंग्रेजों को लगभग हतोत्साहित कर दिया था। उनके हृदय से भारत पर चिरकाल तक शासन कर पाने की आकांक्षाएं तिरोहित हो चुकी थीं।
1857 में क्रांति की चिंगारी देश में हर तरफ धधक रही थी. क्रांतिकारियों द्वारा इस चिंगारी को भरपूर हवा दी जा रही थी, लेकिन इस चिंगारी को लहर बनाने के लिए जरूरी था कि आम नागरिक इस आंदोलन से जुड़ जाएं।
महारानी लक्ष्मीबाई ने लोगों तक क्रांति का संदेश पहुंचाने के लिए दो प्रतीक चिन्हों को चुना.ये प्रतीक चिन्ह थे रोटी और खिला हुआ कमल।
रोटी और कमल, क्रांति का प्रतीक चिन्ह भी हो सकता है यह अंग्रेजों के लिए सोचना मुश्किल था. लोगों ने एक दूसरे के घर तक रोटी और कमल पहुंचाया तो क्रांति का संदेश घर-घर तक पहुंच गया. इस रोटी और कमल ने कमाल कर दिया और फिर एक साथ सभी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया।
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को कभी ‘किसान विद्रोह’ तो कभी ‘सैनिक विद्रोह’ का नाम दिया गया, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह सुनियोजित अभियान था। ‘रोटी’ और ‘कमल’ इस अभियान की खासियत थे। कानपुर के वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, नाना साहब पेशवा के रणनीतिकार तात्या टोपे ने बेहद कुशलता से इसे अमलीजामा पहनाया और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी हैरान रह गए। वे कमल और रोटी के निहितार्थ समझ ही नहीं सके।
नवीन चंद पटेल ने बताया कि रोटी और कमल को चुनने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण था. रोटी इस बात का प्रमाण थी कि आपको अपने लिए भोजन और रसद की तैयारी भी रखनी होगी क्योंकि युद्ध कब तक चलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं था. इसी तरह कमल को सुख और समृद्धि के प्रतीक के रूप में चुना गया था। इसके माध्यम से यह सन्देश पहुंचाया गया कि अगर पूरी ताकत से युद्ध लड़ा गया तो अंग्रेजों को भगा दिया जाएगा और सुख समृद्धि वापस आ जाएगी. रोटी और कमल की जोड़ी ने जो कमाल किया था उसी को आज हम 1857 की क्रांति के रूप में याद करते हैं।
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वरिष्ठ पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री द्वारा लिखित पुस्तक – “कम्युनिस्ट विश्वासघात की कहानी” में लिखा गया है, ““नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए जब जापान में आजाद हिन्द सेना की स्थापना की तो यही कम्युनिस्ट नेताजी को जापानी कठपुतली, “तोजो का कुत्ता” और देशद्रोही करार देते रहे. इसके बाद भारत विभाजन की रूप रेखा तैयार करने में कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का साथ दिया….”
उन्हीं कम्युनिस्टों के नेता कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य ने Jan 24, 2003, 03:32 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की १०५ वीं जयंती पर अपनी अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी की गलती स्वीकार करते हुए नेताजी को महान बताया।
यह बात तो कोई भारतीय नहीं भूल सकता कि अंग्रेजों ने 200 साल तक हमारे देश पर शासन किया और कई तरह के जुल्म ढहाये। उस समय अंग्रेजों द्वारा रॉयल शिमला क्लब में एक बोर्ड लगाया गया था जिसमें लिखा गया था- इंडियन और डॉग्स को अंदर जाने की इजाजत नहीं। उनका यह घमंड तब चकनाचूर हुआ जब ऋषि सुनक 10 डाउनिंग स्ट्रीट में अपने डॉग के साथ पहुंचे।
सूर्य मंदिर और सूर्य नमस्कार भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद Sanskritik Rashtravad के प्रतीक हैं। सूर्य नमस्कार या सूर्य नमस्कार 12 शक्तिशाली योग मुद्राओं का एक क्रम है। एक बेहतरीन कार्डियोवस्कुलर कसरत होने के अलावा, सूर्य नमस्कार को शरीर और दिमाग पर अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव के लिए भी जाना जाता है।
‘भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। हम खुद को अप्राकृतिक मास्क से ढंक कर रखते हैं। भारत के चेहरे पर मौजूद हल्के निशान रचयिता के हाथों के निशान हैं’। ….. George Bernard Shaw
आमतौर पर भारत में दिन सूर्य नमस्कार surynamaskar के साथ शुरु होता है। इसमें लोग सूर्य को जल चढ़ाते हैं और मंत्र पढ़कर प्रार्थना करते हैं। भारतीय लोग प्रकृति की पूजा Nature Worship करते हैं और यह इस संस्कृति की अनूठी बात है। हिंदू धर्म में पेड़ों और जानवरों को भगवान की तरह पूजा जाता है। लोग भगवान में विश्वास रखते हैं और कई त्यौहारों पर उपवास रखते हैं। वे सुबह का ताज़ा खाना गाय को और रात का आखिरी खाना कुत्ते को देते हैं। दुनिया में कहीं भी इस तरह की उदारता नहीं देखी जाती।
Sun East West Direction: सूरज की प्रिय दिशा है पूर्व, इसलिए उसे कहीं और से आना पसंद नहीं है। पश्चिम में सूरज शाम बिताता है, इसलिए वह सुबह पूर्व से ही आता है। भारत (India) में सबसे पहले सूरजअरुणाचल प्रदेश में उगता है। अरुणाचल प्रदेश में भी कई सारे शहर है। अरुणाचल प्रदेश में स्थित डोंग वैली की देवांग घाटी (Dewang Valley of Dong Valley) नामक जगह पर सबसे पहले सूरज उगता है। इस जगह पर सुबह 4 बजे ही सूरज उग जाता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नेअक्टूबर ९, २०२२ को ट्वीट किया था , ” सूरज की पहली किरण कोणार्क के सूर्य मंदिर को अर्ध्य देती है , पश्चिम में सूरज की आखरी किरण गुजरात के मोढेरा के सूर्य मंदिर को अर्ध्य देती है। “
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नेअक्टूबर ९, २०२२ को गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर का दौरा किया। प्रधानमंत्री के आगमन पर उनका अभिनंदन किया गया। श्री मोदी ने सूर्य मंदिर में Heritage Lighting का उद्घाटन किया। ये भारत का पहला विरासत स्थल बन गया है जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित है। उन्होंने मोढेरा सूर्य मंदिर के 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग का भी उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने इस मंदिर के इतिहास को दर्शाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को भी देखा। प्रधानमंत्री ने मोढेरा को भारत का पहला 24×7 सौर ऊर्जा संचालित गांव भी घोषित किया।मोढेरा को सदियों पहले मिट्टी में मिलाने के लिए आक्रांताओं ने क्या कुछ नहीं किया. मोढेरा पर अनगिनत अत्याचार किए जाते थे, लेकिन अब वह अपनी पौराणिकता के साथ आधुनिकता के लिए भी दुनिया के लिए मिसाल बन रहा है।
कोणार्कसूर्यमंदिर भारत के ओड़िशा के पुरी जिले में समुद्र तट पर पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में कोणार्क में एक 13 वीं शताब्दी सीई (वर्ष 1250) सूर्य मंदिर है। मंदिर का श्रेय पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है। सन् १९८४ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।
गंग वंश राजा नरसिम्हा देव प्रथम द्वारा कोणार्क मन्दिर सूर्य देव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग ‘बिरंचि-नारायण’ कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को उसे अर्क-क्षेत्र (अर्क=सूर्य) या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। मौजूदा सूर्य मंदिर गंगा वंश के राजा नरसिंह देव 1 (1238-64) द्वारा मुसलमानों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में निर्मित किया गया था। 17वीं शताब्दी की शुरूआत में इसे मुगल बादशाह जहांगीर के दूत द्वारा अपवित्र किए जाने के पश्चात बंद कर दिया गया था।
इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपनेसात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्यदेव God Sun अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह मूर्ति सूर्य मन्दिर की सबसे भव्य मूतियों में से एक है। सूर्य की चार पत्नियाँ रजनी, निक्षुभा, छाया और सुवर्चसा मूर्ति के दोनों तरफ़ हैं। सूर्य की मूर्ति के चरणों के पास ही रथ का सारथी अरुण भी उपस्थित है।
मन्दिर का महामण्डप बेहद आकर्षक है, जिसका शीर्ष पिरामिड के आकार का है। इसमेंविभिन्नस्तरोंपरसूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शनिआदिनक्षत्रोंकीप्रतिमाएँहैं। इसके ऊपर विशाल आमलक है। समीप ही सूर्य की पत्नी मायादेवी व वैष्णव मन्दिर खण्डित अवस्था में है। समीप में भोगमण्डप था। एक नवग्रह मन्दिर भी यहाँ पर है।
दीवार पर मन्दिर के बाहर बने विशालकाय चक्र पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं। हर चक्र का व्यास तीन मीटर से ज़्यादा है। चक्रों के नीचे हाथियों के समूह को बेहद बारीकी से उकेरा गया है। सूर्य देवता के रथ के चबूतरे पर बारह जोड़ी चक्र हैं, जो साल के बारह महीने के प्रतीक हैं।
कोणार्क के अतिरिक्त एक अन्य सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भी स्थित है। इस कारण इसे ‘कटारमल सूर्य मन्दिर‘ कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के ‘कोणार्क सूर्य मन्दिर’ के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है।
जैसे ही इस मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार से आप घुसेंगे तो सामने एक नाट्य शाला दिखाई देती है जिसकी ऊपरी छत अब नहीं है। ‘कोणार्क नृत्योत्सव’ के समय हर साल यहाँ देश के नामी कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते है।
मन्दिर को रथ का स्वरूप देने के लिए मन्दिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए। पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए। इन पहियों का व्यास तीन मीटर है। मन्दिर के डिजायन व अंकरण में उस समय के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश का ध्यान रखा गया। आधार की बाहरी दीवार पर लगे पत्थरों पर विभिन्न आकृतियों को इस प्रकार से उकेरा गया कि वे जीवन्त लगें। इनमें कुछ स्थानों पर खजुराहो की तरह कामातुर आकृतियाँ तो कहीं पर नारी सौंदर्य, महिला व पुरुष वादकों व नर्तकियों की विभिन्न भाव-भंगिमाओं को उकेरा गया।
कोणार्क नाम संस्कृत के दो शब्दों से बना है: कोना, जिसका अर्थ है कोना, और अर्का, जिसका अर्थ है सूर्य। इस शहर का नाम इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण पड़ा है जिससे ऐसा लगता है जैसे सूर्य एक कोण पर उगता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर और Sun worship सूर्य पूजा का इतिहास 19 वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है। हालांकि, कोणार्क सूर्य मंदिर 13 वीं शताब्दी में बनाया गया था । कलिंग kaling का ऐतिहासिक क्षेत्र जिसमें आधुनिक Odisha ओडिशा के प्रमुख हिस्से और छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कई हिस्से शामिल हैं, पर 5 वीं शताब्दी ईस्वी से 15 वीं शताब्दी ईस्वी तक पूर्वी गंगा राजवंश के शासकों का शासन था । यह भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था जिसने कोणार्क सूर्य मंदिर और पुरी जगन्नाथ मंदिर जैसे राजसी मंदिरों को अस्तित्व दिया।
भारतीय सांस्कृतिक विरासत के लिए इसके महत्व को दर्शाने के लिए भारतीय १० रुपये का नोट के पीछे कोणार्क सूर्य मंदिर को दर्शाया गया है। सूर्य की इस मन्दिर में मानवीय आकार में मूर्ति है जो अन्य कहीं नहीं है।
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