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  • गांधी का नेहरू के लिए अलोकतांत्रिक VETO

    गांधी का नेहरू के लिए अलोकतांत्रिक VETO

    महात्मा गाँधी में ऐसी जादुई शक्ति थी जिसके कारण उनकी हर बात को सातंत्रता की पूर्व के बड़े से बड़े कांग्रेस के नेता को मानना पड़ता था। नेहरू में भी ऐसी काली जादुई शक्ति थी जिसके कारण उनकी हर बात को चाहे कोई मने या ना मने पर महात्मा गाँधी जरूर मानते थे। इसके गवाह सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस से सम्बंधित इतिहास के पन्ने  हैं। पंडित नेहरू और सरदार पटेल दोनों ही महात्मा गाँधी के प्रिय शिष्य थे।

    ‘पटेल न होते तो 565 टुकड़ों में बंट जाता देश’

    सरदार बल्लभ भाई पटेल नहीं होते तो आज यह देश सैकड़ों टुकड़ों में बंटा होता। आजादी के बाद भारत 565 विरासतों में बंटा था और उसे एक सूत्र में बांधने का काम सरदार पटेल ने किया था। इसी कारण सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपाधि महात्मा गाँधी ने दी थी। इसके एवज में महात्मा गाँधी ने लौह पुरुष पटेल से गुरु दक्षिणा मांगी या यह कहें कि जैसे माता कुंती ने दानवीर कर्ण से वचन माँगा।

    महात्मा गाँधी और सरदार पटेल कि छवि सनातनी और हिंदुत्व वादी थी।  इसके विपरीत नेहरू की छवि एंटी हिन्दू रही है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे घटनावश हिन्दू परिवार में जन्मे परंतु शिक्षा से अंग्रेज और संस्कृति से मुस्लिम रहे। परंतु हिन्दुओं के वोट प्राप्त करने के लिये उन्होंने अपने सिर पर टोपी विराजमान रखी तथा अपने नाम के आगे पंडित भी रखा रहा।http://www.lokshakti.in/39411/

    प्रधानमंत्री तय करने  के लिए  अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई थी। मौलाना अब्दुल कलाम कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के पद को छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर उन्हें ये पद छोड़ना पड़ा जिसके बाद महात्मा गांधी पंडित नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे।

    उस समय कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थी. ऐसे में किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया था . 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का और बची हुई 3 कमेटियों ने बैठक में तब पार्टी के महासचिव आचार्य जे बी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया गया था।

    ऐसे में ये तय था कि कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल के पास ज्यादा लोगों की सहमति रही, दूर- दूर तक जवाहर लाल नेहरू का नाम नहीं था। महात्मा गांधी ही थे जो नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहते थे. इसके बाद आचार्य कृपलानी को कहना पड़ा, ‘बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं जवाहर लाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करता हूं.’ यह कहते हुए आचार्य कृपलानी ने एक कागज पर जवाहर लाल नेहरू का नाम खुद से प्रस्तावित कर दिया था।

    महात्मा गांधी के दवाब के कारण पटेल ने भी मान लिया था नेहरू ही अगले प्रधानमंत्री बनेंगे।  यहाँ यह बताना आवश्यक है कि महात्मा गांधी ने अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल के नाम का प्रस्ताव नहीं दिया था।  महात्मा गांधी ने वजह बताते हुए कहा था कि “जवाहर लाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता वार्ता कर सकते थे”।

    अपने एक शिष्य नेहरू के लिए पटेल सहित अन्य नेताओं पर महात्मा का दबाव क्या नैतिक और लोकततांत्रिक था ? किसके पास है इसका उत्तर ?

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