G-20 के Logo में कमल का फूल हमारी आस्था और बौद्धिकता को कर रहा चित्रित, ‘वसुधैव कुटुंबकम’ #vasudhaivkutumkam जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो ही Theme में भी समाहित- PM @narendramodi
#G20 @g20org
पीएम @narendrmodi ने G-20 का Logo का अनावरण करते हुए कहा कि इसमें कमल का फूल, भारत की पौराणिक धरोहर, हमारी आस्था और हमारी बौद्धिकता को चित्रित कर रहा है। हमारे यहां अद्वैत का चिंतन जीव मात्र के एकत्व का दर्शन रहा है। ये दर्शन, आज के वैश्विक द्वंदों और दुविधाओं के समाधान का माध्यम बने, इस Logo और Theme के जरिए हमने ये संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध से मुक्ति के लिए बुद्ध के जो संदेश हैं, हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं, G-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे रहा है। #vasudhaivkutumkam के मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो विचार इस Logo और Theme में प्रतिबिम्बित हो रहा है।
भारत की सोच और सामर्थ्य से विश्व को परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी
पीएम मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि दुनिया में जब भी G-20 जैसे बड़े platforms का कोई सम्मेलन होता है, तो उसके अपने diplomatic और geo-political मायने होते हैं। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन भारत के लिए ये समिट केवल एक डिप्लोमैटिक मीटिंग नहीं है। भारत इसे अपने लिए एक नई ज़िम्मेदारी और अपने प्रति दुनिया के विश्वास के रूप में देखता है। आज विश्व में भारत को जानने की, भारत को समझने की एक अभूतपूर्व जिज्ञासा है। भारत का नए आलोक में अध्ययन, हमारी वर्तमान की सफलताओं का आकलन किया जा रहा है। इसके साथ ही हमारे भविष्य को लेकर अभूतपूर्व आशाएँ प्रकट की जा रही हैं। ऐसे में ये हम देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हम इन आशाओं-अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर करके दिखाएं। ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत की सोच और सामर्थ्य से, भारत की संस्कृति और समाजशक्ति से विश्व को परिचित कराएं।
अटल जी की कविता : हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
डेस्क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले और गाय की पूजा करने वाले #UK के PM @RishiSunak
साल 2020 में ऋषि सुनक को वित्त मंत्री की शपथ दिलाई गई
इस दौरान उन्होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली
उन्होंने एक बार कहा था, ‘भारत मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है’
ऋषि सुनक को वित्त मंत्री की शपथ दिलाई गई। इस दौरान उन्होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली और वो हर भारतीय के फेवरिट बन गए। इस पर एक ब्रिटिश अखबार ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने अपने ही अंदाज में ऋषि ने कहा, ‘मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं लेकिन मेरा धर्म हिंदू है। भारत मेरी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत है। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है।’ अपनी डेस्क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले सुनक धार्मिक आधार पर बीफ त्यागने की अपील भी कर चुके हैं। वो खुद भी बीफ का सेवन नहीं करते हैं। ऋषि, शराब भी नहीं पीते हैं।
मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।
मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।
विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।
यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।
गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
अटल जी की इस कविता में भी छिपी है G-20 थीम Theme G-20 Bharat 23 India logo की Theme
1857 क्रांति: अंग्रेजों ने दुनिया को बोला था झूठ, वीर सावरकर ने बताया था प्रथम राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम
1857 की क्रांति एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने इतिहास में कालविभाजक की स्थिति अर्जित की। क्रांतिकारी और विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रांति पर अपनी कालजयी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में इस क्रांति को भारत का ‘प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम’ का नाम दिया।
1857 की पहली घटना से लेकर स्वाधीनता के लिए आखिरी सांस तक जूझते भारतीय सैनिकों के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाही विद्रोह कहकर दुनिया की आंखों में बखूबी धूल झोंकी। अगर वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति को आज भी अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखा जाता। उन्होंने ही इस क्रांति के यथार्थ को सामने रखा व इसे प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य समर के रूप में प्रतिष्ठापित किया।
1857 की क्रांति अपने प्रभाव व क्षेत्र में इतनी विस्तृत और तीव्र थी कि इसने अंग्रेजों को लगभग हतोत्साहित कर दिया था। उनके हृदय से भारत पर चिरकाल तक शासन कर पाने की आकांक्षाएं तिरोहित हो चुकी थीं।
1857 में क्रांति की चिंगारी देश में हर तरफ धधक रही थी. क्रांतिकारियों द्वारा इस चिंगारी को भरपूर हवा दी जा रही थी, लेकिन इस चिंगारी को लहर बनाने के लिए जरूरी था कि आम नागरिक इस आंदोलन से जुड़ जाएं।
महारानी लक्ष्मीबाई ने लोगों तक क्रांति का संदेश पहुंचाने के लिए दो प्रतीक चिन्हों को चुना.ये प्रतीक चिन्ह थे रोटी और खिला हुआ कमल।
रोटी और कमल, क्रांति का प्रतीक चिन्ह भी हो सकता है यह अंग्रेजों के लिए सोचना मुश्किल था. लोगों ने एक दूसरे के घर तक रोटी और कमल पहुंचाया तो क्रांति का संदेश घर-घर तक पहुंच गया. इस रोटी और कमल ने कमाल कर दिया और फिर एक साथ सभी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया।
1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को कभी ‘किसान विद्रोह’ तो कभी ‘सैनिक विद्रोह’ का नाम दिया गया, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह सुनियोजित अभियान था। ‘रोटी’ और ‘कमल’ इस अभियान की खासियत थे। कानपुर के वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, नाना साहब पेशवा के रणनीतिकार तात्या टोपे ने बेहद कुशलता से इसे अमलीजामा पहनाया और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी हैरान रह गए। वे कमल और रोटी के निहितार्थ समझ ही नहीं सके।
नवीन चंद पटेल ने बताया कि रोटी और कमल को चुनने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण था. रोटी इस बात का प्रमाण थी कि आपको अपने लिए भोजन और रसद की तैयारी भी रखनी होगी क्योंकि युद्ध कब तक चलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं था. इसी तरह कमल को सुख और समृद्धि के प्रतीक के रूप में चुना गया था। इसके माध्यम से यह सन्देश पहुंचाया गया कि अगर पूरी ताकत से युद्ध लड़ा गया तो अंग्रेजों को भगा दिया जाएगा और सुख समृद्धि वापस आ जाएगी. रोटी और कमल की जोड़ी ने जो कमाल किया था उसी को आज हम 1857 की क्रांति के रूप में याद करते हैं।
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