फ़िरोज़ और इंदिरा का विवाह भी हिन्दू रीति रिवाज़ों से हुआ था। कैथरीन और बर्टिल ने इस पर भी विस्तार से लिखा है।
धनजीभाई फ़रदूनभाई Ghandy कोई और नहीं, फ़िरोज़ गाँधी के दादा थे। मीडिया में असली और नकली गाँधी सरनामे की चर्चा होते रही है। Ghandy से Gandhi कैसे कौन हुआ इसका भी रोचक इतिहास है।
62 वीं पुण्यतिथि 2022 : झाड़ियों में छिप गई फ़िरोज़ गांधी की पहचान, दादा को भूल गए राहुल और प्रियंका Ghandy (Gandhi-Vadra) : 8 सितम्बर को स्वतंत्रता सेनानी फ़िरोज़ गांधी की पुण्यतिथि और 12 सितंबर को जन्मतिथि। गूगल पर जब आप गांधी सरनेम के विषय में रिसर्च करते हैं तो पता चलता है कि भारत में करीब 1 लाख 56 हजार लोग अपने नाम के आगे गांधी सरनेम लगाते हैं, ये संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन जिस तरह से Gandhi सरनेम का दोहन एक राजनीतिक घराने ने किया है, वैसा शायद ही किसी ने किया हो।
ये बहुत बड़ी विडंबना है कि आज के दौर के गांधी बड़े-बड़े सरकारी बंगलों में रहते हैं और सुविधाओं का दोहन करते हैं, जबकि असली गांधियों को कोई जानता भी नहीं. भारत सहित दुनिया के ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि नेहरू गांधी परिवार ही महात्मा गांधी का असली वंशज हैं. लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत है।
महात्मा गांधी की पारवारिक वंशावली फैमिली में आपको इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी या राहुल गांधी का नाम देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इनका गांधी जी के असली परिवार से कोई संबंध नहीं है। महात्मा गांधी के 4 बेटे थे. हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास. महात्मा गांधी के 154 वंशज दुनिया के 6 देशों में रह रहे हैं।
कनुभाई गांधी महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रह रहे थे. 2016 में दो महीने तक वो दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रहे और उसके बाद सूरत के एक वृद्धाश्रम में चले गए। लेकिन नवंबर 2016 में हार्ट अटैक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कनुभाई ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और अमेरिका के डिफेंस डिपार्टमेंट में भी काम किया था। गांधी सरनेम लगाकर राजनीति करने वालों ने इस शब्द को ही हाईजैक कर लिया, जबकि असली गांधी की बात कोई नहीं करता।
डीएनए एनालिसिस में सुधीर चौधरी का प्रश्न था क्या स्पेलिंग में ऐसे ही फेरबदल करके, किसी अर्थ के अलावा किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को भी बदला जा सकता है ? गांधी परिवार के संदर्भ में देखेंगे तो इसका जवाब हां में ही नजर आता है. गांधी सरनेम के सहारे आज राजनीति का गांधी परिवार अपनी तुलना महात्मा गांधी के संघर्षों से करता है। क्या स्पेलिंग में ऐसे ही फेरबदल करके, किसी अर्थ के अलावा किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को भी बदला जा सकता है ? गांधी परिवार के संदर्भ में देखेंगे तो इसका जवाब हां में ही नजर आता है. गांधी सरनेम के सहारे आज राजनीति का गांधी परिवार अपनी तुलना महात्मा गांधी के संघर्षों से करता है.
फिरोज जहांगीर गांधी पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। पारसी समुदाय ने भारत के विकास में काफी बड़ा योगदान दिया है। व्यापार जगत में जमशेद टाटा, जहांगीर रतन टाटा, गोदरेज, नेविल वाडिया ,साइरस मिस्त्री, कोवास्जी इत्यादि, स्वतंत्राता संग्राम सेनानियों में दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, मैडम भिकाजी कामा, रतनबाई पेटिट (जिन्ना की पत्नी) इनके अलावा और भी कई नाम हैं। खेल जगत में नारी कोंट्रेक्टर, पाली उमरीगर, फारूख इंजीनियर, रुसी मोदी, विजय मर्चेंट इत्यादि।
उनका परिवार ईरान से आया और देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था। इलाहाबाद में आज भी फिरोज के बड़े भाई फिरदौस के बेटे रुस्तम रहते हैं। तत्कालीन सांसद फिरोज गांधी के निधन के बाद इलाहाबाद के ममफोर्डगंज मोहल्ले स्थित पारसी समुदाय के कब्रिस्तान में दफन किया गया था। 1980 में मेनका गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी यहां आई थीं। उसके बाद परिवार का कोई सदस्य इस कब्रिस्तान में नहीं आया। इस कब्रिस्तान की देखभाल एक चौकीदार करता है। कब्रिस्तान में कुआं और एक मकान के अलावा चौकीदार के रहने के लिए दो कमरे भी बने हुए हैं। देखभाल के अभाव में फिरोज गांधी सहित उनके पूर्वजों की कब्र जर्जर हो चुकी हैं।
राजीव गांधी के पिता फिरोज गांधी का गुजरात से गहरा नाता था, 1960 में हार्ट अटैक से निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार हिंदू-रीति रिवाज से किया गया था, लेकिन अस्थियों के एक हिस्से को सूरत में दफनाया गया था। खास बात ये है कि उनका अंतिम संस्कार हुआ था हिंदू रीति-रिवाज से था, लेकिन उसमें पारसी प्रक्रिया भी अपनाई गई थी. आइए जानते हैं कि आखिर फिरोज गांधी की अस्थियों को गुजरात के सूरत में ही क्यों दफनाया गया।
09 Sep 2022 दोपहर 12:30 बजे फिरोज गांधी की कब्र पर पहुंचे कांग्रेसियों ने पुष्प अर्पित किया। इस दौरान पार्टी नेताओं का कहना था कि एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर फिरोज गांधी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। परन्तु २० से भी अधिक वासों से फ़ीरोज़े की जर्जर कब्र को भूलचूकें हैं राहुल प्रियंका गाँधी वाड्रा।
प्रयागराज में पारसी कब्रगाह के बीच बनी फिरोज जहांगीर गांधी की कब्रगाह आज भी अपनी पुश्तों का इंतजार कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दादा की मजार की हिफाजत करने वाले बाबूलाल का कहना है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी को अपने पुरखों की कब्रगाह पर आना चाहिए