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  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संबधित महात्मा गाँधी और दीन दयाल उपाद्याय जी के विचारों में समानता…..

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संबधित महात्मा गाँधी और दीन दयाल उपाद्याय जी के विचारों में समानता…..

    ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’, ‘एकात्म मानववाद’ व ‘अंत्योदय’ के प्रणेता, भाजपा परिवार के प्रेरणापुरुष, जिन्होंने जीवनपर्यंत समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के उत्थान की चिंता की, ऐसे महापुरुष, अजातशत्रु,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को  कोटिशः नमनl #DeenDayalUpadhyay

    एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि भारतवर्ष विश्व में सर्वप्रथम रहेगा तो अपनी सांस्कृतिक संस्कारों के कारण। उनके द्वारा स्थापित एकात्म मानववाद की परिभाषा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ज्यादा सामयिक है।

    गांधी का राष्ट्रवाद श्रम शक्ति का पक्षधर था। गांधी का मानना था कि हर व्यक्ति को श्रम करके पूरी ईमानदारी से समाज में अपना योगदान देना चाहिए। तभी जाकर वह कुछ भी ग्रहण करने का अधिकार रखता है। गांधी के मुताबिक हर व्यक्ति के पास रोजगार प्राप्त करने का मूल अधिकार है। आधुनिक सभ्यता के दुष्परिणामों को गांधी का राष्ट्रवाद वर्ष 1909 में ही भांप गया था। तभी तो ‘हिंद स्वराज’ नामक पुस्तिका में गांधी ने इंसानों की आवश्यकताओं को सीमित रखने की वकालत की थी। गांधी चाहते थे कि गांव उत्पादन और उपभोग की प्रमुख इकाई के रूप में उभरें।

    हिंद स्वराज’ नामक पुस्तिका में गांधी ने इंसानों की आवश्यकताओं को सीमित रखने की वकालत की थी। गांधी चाहते थे कि गांव उत्पादन और उपभोग की प्रमुख इकाई के रूप में उभरें।

    इस सन्दर्भ में एक उदहारण है:

    कांग्रेस का अधिवेषन चल रहा था । सुबह का समय था, गांधी जी ; नेहरू जी एवं अन्य स्वयं सेवकों के साथ बातें करते -करते हाथ -मुंह धो रहे थे ।

    गांधी जी ने कुल्ला करने के लिए जितना पानी लिया था वो खत्म हो गया और उन्हें दोबारा पानी लेना पड़ा । इस बात से गांधी जी थोड़ा खिन्न हो गए ।

    गांधी जी के चेहरे के भाव बदलते देख नेहरू जी ने पुछा, ” क्या हुआ , आप कुछ परेशान दिख रहे हैं ?”

    बाकी स्वयंसेवक भी गांधी जी की तरफ देखने लगे ।

    गांधी जी बोले, ” मैंने जितना पानी लिया था वो खत्म हो गया और मुझे दोबारा पानी लेना पड़ रहा है , ये पानी की बर्वादी ही तो है !!!”

    नेहरू जी मुस्कुराये और बोले -” बापू , आप इलाहाबाद में हैं , यहाँ त्रिवेणी संगम है , यहाँ गंगा-यमुना बहती हैं , कोई मरुस्थल थोड़े ही है कि पानी की कमी हो , आ थोड़ा पानी अधिक भी प्रयोग कर लेंगे तो क्या फरक पड़ता है ? “

    गाँधीजी ने तब कहा- ”  किसकी हैं गंगा-यमुना ? ये सिर्फ मेरे लिए ही तो नहीं बहतीं , उनके जल पर तो सभी का समान अधिकार है ?हर किसी को ये बात अच्छी तरह से समझनी चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनो का दुरूपयोग करना ठीक नहीं है , कोई चीज कितनी ही प्रचुरता में मौजूद हो पर हमें उसे आवश्यकतानुसार ही खर्च करना चाहिए ।

    और दूसरा , यदि हम किसी चीज की अधिक उपलब्धता के नाते उसका दुरूपयोग करते हैं तो हमारी आदत बिगड़ जाती है , और हम बाकी मामलों में भी वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं ।”

    गांधी मानते थे कि राष्ट्रीयता और मानवता एक-दूसरे के पूरक ही हैं। गांधी का यह विश्वास था कि त्याग के साथ बलिदान, अच्छे आचार-विचार और दुनिया का कल्याण करने वाले आदर्शों पर राष्ट्रवाद निर्भर करता है। हिंसा के लिए गांधी के राष्ट्रवाद में तनिक भी जगह नहीं रही है। यहां तक कि पश्चिम के राष्ट्रवाद से भी गांधी का राष्ट्रवाद पूरी तरह से अलग खड़ा होता है।

    दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुधीर कुमार: भारत को आजादी ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर मिली। भारत का लोकतंत्र अगर टिक पाया तो उसकी वजह भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही है। हमारे पड़ोसी देशों में यह नहीं है, हम वहां का हाल देख रहे हैं। लोकतंत्र बिना किसी संस्‍कति के नहीं रह सकती। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तो भारत के आत्‍मा में है।’

    वे आगे कहते हैं, ‘आप महात्‍मा गांधी जी को ही ले लीजिए। वे कई बार गंगा में नहाकर या बाल मुंडवाकर काम शुरू करते थे। महाभारत से लेकर वेदों तक यह मिल जाएगा, लेकिन कौटिल्‍य ने इसे बहुत अच्‍छे लिखा। लेकिन उसका सार बहुत उदार है। वह सब कल्‍याण के लिए था। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बहस होनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है क‍ि अब इसका उपयोगी राजनीतिक फायदे के लिए हो रहा।’

    सही मायने में देखा जाए तो राष्ट्रवाद एक ऐसी सशक्त भावना है, जो किसी राष्ट्र के प्रति उसके नागरिकों की निष्ठा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक होती है। आप फ्रांस की राज्यक्रांति से लेकर अब तक के अधिकतर राजनीतिक चिंतन को देख लीजिए, आपको दिख जायेगा कि राष्ट्रवाद किस तरह से हम सबके  रग-रग में बसा है। इसमें कोई शक नहीं कि यह राष्ट्रवाद की भावना ही है, जो किसी देश के नागरिकों को एकता बनाये रखने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से प्यार करना सिखाती है और खुद से पहले राष्ट्र को अहमियत देने की प्रेरणा देती है।

    गांधी का राष्ट्रवाद क्या है और इसकी कौन-कौन सी विशेषताएं रही हैं:

    दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह के साथ गांधी ने अपने राष्ट्रवाद का बिगुल फूंका था। भारत में चंपारण सत्याग्रह से लेकर खेड़ा सत्याग्रह, वायकोम सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन तक गांधी के राष्ट्रवाद का हिस्सा रहे हैं। उपवास, धरना, असहयोग, हड़ताल, बहिष्कार एवं अनशन आदि गांधी के राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्व रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा, स्वराज्य, सांप्रदायिक एकता एवं स्वतंत्रता उनके राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण तत्व रहे हैं। वसुधैव कुटुंबकम भी उनके राष्ट्रवाद का प्रमुख हिस्सा रहा था।

    स्वदेशी पर बल देते हुए उन्होंने इसे राष्ट्र को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का सबसे सशक्त माध्यम बताया था, क्योंकि इससे देश का पैसा देश में ही रहकर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है।

    राजनीति के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वराज्य भी गांधी के राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं।

    30 Jan 2021

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़ा गांधी का अहिंसा मार्ग

    कलराज मिश्र

    गांधी ही थे जिन्होंने स्वाधीनता आंदोलन को व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते उसे भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोड़ा।

    राष्ट्र के रूप में हमारे देश का विकास केवल यहां के भू-भाग और किसी राजनीतिक सत्ता के अस्तित्व के कारण नहीं, बल्कि पांच हजार से भी अधिक पुरानी हमारी संस्कृति के कारण हुआ है। एक बड़े भू-भाग में भाषा, क्षेत्रों की परम्पराओं में वैविध्यता के बावजूद इसीलिए हमारे सांस्कृतिक मूल्य निरंतर जीवंत रहे हैं। गांधीजी ने आजादी आंदोलन में इसी सांस्कृतिक जीवंतता को अहिंसा और नैतिक जीवन मूल्यों से जोड़ा। यही उनका वह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था जिसमें देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने हेतु आंदोलनों का नेतृत्व करते उन्होंने राष्ट्र को सांस्कृतिक दृष्टि से एक किया।

    राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए उन्होंने अपने आंदोलनों में जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित की। उनके लिए स्वाधीनता केवल अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे देश में स्वराज की स्थापना पर उनका जोर था। इसीलिए स्वदेशी को अपनाने के बहाने उन्होंने राष्ट्र और उससे जुड़ी वस्तुओं, संस्कृति से प्रेम करने की राह भी सुझाई।

    नेहरू के विचार इससे भिन्न थे।

    लोकतांत्रिक संस्कृति का विकास

    गांधीजी का यह पक्ष भी मुझे हमेशा से प्रभावित करता रहा है कि राजनीति को दूसरे पक्ष के विरोध की बजाय उन्होंने सृजन और सहनशीलता से जोड़ा। चरखे पर सूत कातना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना दूसरे पक्ष का विरोध नहीं, प्रत्यक्षत: सृजन सरोकार ही थे और सत्याग्रह सहनशीलता। लोगों में परस्पर सद्भाव जगाते जन-मानस में सकारात्मक बदलाव की उन्होंने पहल की। यह एक तरह से उनके द्वारा देश में गुलामी के दौर में भी लोकतांत्रिक संस्कृति का विकास करने जैसा था।

    अहिंसा मार्ग: नील आंदोलन में ब्रिटिश सरकार द्वारा गांधीजी को जब प्रतिबंधित किया गया तो 1917 में उन्होंने न्यायाधीश के समक्ष अपनी जो बात रखी, वह आज भी मन में कौंधती है। उन्होंने कहा, ‘कानून को मैंने तोड़ा है। इसके लिए आप मुझे सजा दे सकते हैं परन्तु मेरा अधिकार है कि मैं अपने देश में कहीं भी

    अहिंसापूर्ण तरीके के आंदोलन से अंतत: अंग्रेजों को चम्पारण आंदोलन में झुकना पड़ा। इस आंदोलन ने देश को वह राह दी जिसमें अलग-थलग पड़े पूरे देश का हिंसक-अहिंसक स्वरूप आजादी आंदोलन के रूप में पूरी तरह से संगठित हुआ और ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसा एक कारगर हथियार बनी।

    महात्मा गाँधी जी ने राज्य की हिंसा का मुकाबला भारतीय संस्कृति में चली आ रही अहिंसा की परम्परा से करने का नैतिक साहस देश की जनता को दिया। अहिंसा का उनका हथियार ऐसा था जिसमें राज्य के दमन के सारे तर्क विफल हो जाते हैं। इसके बाद फिर भी लोगों को कुचलने के लिए कार्य होता है तो राज्य की अपनी नैतिकता दांव पर लग जाती है। गांधीजी ने अंग्रेजों को इस तरह मानसिक रूप से अशक्त करने का कार्य किया।

    गांधीजी को किसी दल विशेष से जुड़ा नहीं कहा जा सकता। वह देश को इस रूप में पूर्ण स्वतंत्र करने के पक्षधर थे जिसमें अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के हित को नीति निर्धारण में रखा जा सके।?

    3 March 2020 -पीएम मोदी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री को भारत माता की जय कहने में भी ‘बूÓ आती है। आज़ादी के समय इसी कांग्रेस में कुछ लोग वंदे मातरम बोलने के खिलाफ थे। अब इन्हें ‘भारत माता की जयÓ बोलने में भी दिक्कत हो रही है।

    यहॉ यह उल्लेखनीय है कि २२ फरवरी २०२० को कहा कि राष्ट्रवाद और ‘भारत माता की जयÓ के नारे का इस्तेमाल ‘भारत की उग्र व विशुद्ध भावनात्मक छविÓ गढऩे में गलत रूप से किया जा रहा है जो लाखों नागरिकों को अलग कर देता है ।

    भारत माता शब्द से नेहरू जी को भी ऐलर्जी थी परंतु महात्मा गांधी को नहीं।

    सन् 1936 में बनारस में शिव प्रसाद गुप्त ने भारतमाता का मन्दिर निर्मित कराया। इसका उद्घाटन महात्मा गांधीजी ने किया था।

    पंडित नेहरू कहते थे कि भारत का मतलब है   वह जमीन का टुकड़ा -भारत माता की जय का नारा लगाते हैं तो आप हमारे प्राकृतिक संसाधनों की जय ही करते हैं। नेहरू कहते थे हिन्दुस्तान एक ख़ूबसूरत औरत नहीं है। नंगे किसान हिन्दुस्तान हैं। वे न तो ख़ूबसूरत हैं, न देखने में अच्छे हैं

    Tags: Mahatma Gandhi – Deen Dayal Upadhyay, Cultural Nationalism, Integral Humanism, Book Hind Swaraj, Democratic cultural nationalism, French Revolution, Elements ofNationalism. Vasudhaiva Kutumbakam, Sanskritik Swaraj, Non-violence linked cultural nationalism, Kalraj Mishra, Nation exist with culture, Nehru against Bharat mata ki jai