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  • भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य विविधता में एकता

    भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य विविधता में एकता

    विश्व स्तर पर स्वीकृत भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य विविधता में एकता: भारत का दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता होने का इतिहास 5000 साल पुराना है। वर्त्तमान में भारत 1.7 बिलियन लोगों का घर है और लगभग 10,00,650 विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। लोग विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि शांति से रहते हैं। भारत अनेकता में एकता का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है।

    विविधता में एकता (Unity in diversity) का तात्पर्य विभिन्न असमानता के बावजूद सभी का अस्तित्व बना हुआ है| संस्कृति का तात्पर्य समस्त विचार, मूल्य, परम्परा, विश्वास, ज्ञान एवं अन्य भौतिक तथा अभौतिक वस्तुएं संस्कृति का भाग होती है| भारत एक सांस्कृतिक विविधतापूर्ण देश है| यहाँ विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र विभिन्न धर्म, जाति,भाषा, संस्कृतियाँ विद्यमान है फिर भी देश ने सबको एकता की सूत्र में बाद रखा है।भारतीय संस्कृति विशेषताएँ हैं जो सभी को एकता के सूत्र मे बाँध रखी है। भारत में धर्म का तात्पर्य न तो मजहब है और न ही अंग्रेजी का रिलिजन| यहाँ धर्म का तात्पर्य कर्तव्यों का पालन करना है| भारतीय संस्कृति में लचीलापन है, कोई कठोर सांस्कृतिक नियम नहीं है| इसलिए यहाँ अन्य संस्कृतियाँ भी अपने अस्मिता के साथ अस्तित्व बनाए हुए हैं| भारतीय संस्कृति अपने पराए की भावना न रखकर मानव कल्याण की भावना से प्रेरित है।

    शिवानंद सरस्वती एक योग गुरु, एक हिंदू आध्यात्मिक शिक्षक और वेदांत के समर्थक थे। शिवानंद का जन्म तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के पट्टामदई में कुप्पुस्वामी के रूप में हुआ था। उन्होंने चिकित्सा का अध्ययन किया और मठवाद अपनाने से पहले कई वर्षों तक ब्रिटिश मलाया में एक चिकित्सक के रूप में सेवा की।

    विविधता में एकता भी स्वामी शिवानंद के शिष्यों द्वारा उपयोग किया जाने वाला नारा है । वे अनेकता में एकता का सही अर्थ फैलाने के लिए अमेरिका आए; कि हम सभी में एक हैं और सभी में एक प्रेम करने वाले अहिंसा भगवान हैं। 

    विविधता में एकता का प्रयोग असमान व्यक्तियों या समूहों के बीच सद्भाव और एकता की अभिव्यक्ति के रूप में किया जाता है। यह “एकरूपता के बिना एकता और विखंडन के बिना विविधता” की एक अवधारणा है शारीरिक, सांस्कृतिक, भाषाई, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, वैचारिक और/या मनोवैज्ञानिक मतभेदों की मात्र सहिष्णुता पर आधारित एकता से अधिक जटिल की ओर ध्यान केंद्रित करती है। एकता इस समझ पर आधारित है कि अंतर

    विविधता में एकता की अवधारणा को सूफ़ी दार्शनिक इब्न अल- अराबी (1165-1240) में देखा जा सकता है, जिन्होंने “अस्तित्व की एकता” ( वहदत अलवुजुद ) की आध्यात्मिक अवधारणा को आगे बढ़ाया , अर्थात्, वास्तविकता एक है, और केवल परमेश्वर का ही सच्चा अस्तित्व है; अन्य सभी प्राणी केवल छाया हैं, या परमेश्वर के गुणों के प्रतिबिंब हैं।    अब्द अल-करीम अल-जिली (1366-1424) ने अल-अरबी के काम का विस्तार किया, इसका उपयोग ब्रह्मांड के समग्र दृष्टिकोण का वर्णन करने के लिए किया जो “विविधता में एकता और एकता में विविधता” को दर्शाता है ( अलवहदाह फाईएलकथरा वलकथरा फिलवहदाह )।

    लाइबनिट्स ने वाक्यांश को “सद्भाव” की परिभाषा के रूप में इस्तेमाल किया (सद्भाव विविधता में एकता है ) सच्ची धर्मपरायणता के इन तत्वों में, या ईश्वर के प्रेम पर 948 I.12/A 6.4.1358 लाइबनिट्स ने इस परिभाषा को तोड़-मरोड़ कर पेश किया कि सद्भाव तब होता है जब कई चीजों को किसी तरह की एकता में बहाल किया जाता है, जिसका अर्थ है कि ‘सद्भाव’ तब होता है जब कई [चीजें] किसी तरह की एकता में बहाल हो जाती हैं।

    [ट्रिनिटी] परमेश्वर को अस्तित्व की पूर्णता, सच्चा जीवन, शाश्वत सौंदर्य के रूप में हमारे सामने प्रकट करता है। ईश्वर में भी अनेकता में एकता है, एकता में अनेकता है।

    – रिफॉर्म्ड डॉगमैटिक्स: वॉल्यूम 2 ​​( रिफॉर्म्ड डॉगमैटिक्स ), 1895-99

    “ग्विच’इन जनजातीय परिषद वार्षिक रिपोर्ट 2012 – 2013: विविधता के माध्यम से एकता” (पीडीएफ) । ग्विच’इनजनजातीयपरिषद । 2013 । 2014-09-05 को पुनःप्राप्त ।

    विश्व स्तर पर स्वीकृत भारतीय संस्कृति का आदर्श वाक्य विविधता में एकता :रन फॉर यूनिटी से पहले एकता की शपथ दिलाये पी एम्  मोदी

    By – Premendra Agrawal,
    lokshakti.in @premendraind @rashtravadind @thedynamicpost

  • “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की व्यापक भावना के तहत “काशी-तमिल संगमम”

    “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की व्यापक भावना के तहत “काशी-तमिल संगमम”

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला 2014 में क्यों किया था ? इस  सवाल का जवाब वास्तव तत्काल चुनावी गणना के अलावा  सांस्कृतिक संदर्भें भी छिपा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए 13 दिसंबर, 2021 में मोदी ने कहा था कि काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन भारत को एक निर्णायक दिशा देगा और एक उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत करेगा।

    मध्यकाल में अस्था के स्थलों पर सुनियोजित हमले हुए। किन्तु आस्था का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण हुआ था। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। साँस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। यह क्रम निरंतर जारी है।

    अब ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।

    ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, ‘‘भारत सभ्यतागत जुड़ाव का प्रतीक है। काशी-तमिल संगमम ज्ञान और संस्कृति के दो ऐतिहासिक केंद्रों के जरिए भारत की सभ्यतागत संपत्ति में एकता को समझने के लिए एक आदर्श मंच होगा।इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए हमारे दो नॉलेज पार्टनर एक साथ आए हैं। भारत सरकार, @iitmadras और @bhupro , काशी-तमिल संगमम फेस्टिवल के होस्ट और पार्टनर ऑर्गेनाइजेशन हैं।’

    उन्होंने कहा कि ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत आयोजित होने वाला संगमम प्राचीन भारत और समकालीन पीढ़ी के बीच सेतु का काम करेगा। उन्होंने कहा कि काशी संगमम ज्ञान, संस्कृति और विरासत के इन दो प्राचीन केंद्रों के बीच की कड़ी की पुन: तलाश करेगा।

    केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है : 31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाने की कल्पना की गई थी।  उद्देश्य था विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बना रहे।  माननीय प्रधानमंत्री ने यह प्रतिपादित किया था कि सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता

    तमिल समागम में विविध आयोजन होंगे। जिसमें तमिल से आए कलाकार यहां के नृत्य, गायन व वादन की प्रस्तुति देंगे। वहीं शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ दोनों शहरों के बीच के शिक्षा व्यवस्था को लेकर कार्यशाला व गोष्ठी में विचारों का आदान प्रदान करेंगे।

    यहाँ याद दिलाना जरूरी है कि 31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाने की कल्पना की गई थी जिसके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बनाये जा सके। माननीय प्रधानमंत्री ने यह प्रतिपादित किया था कि सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता के माध्यम से मनाया जाना चाहिए ताकि देश भर में समझ की एक सामान्य भावना प्रतिध्वनित हो। देश के प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश का एक वर्ष के लिए किसी अन्य राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश के साथ जोड़ा बनाया जाए, इस दौरान वे भाषा, साहित्य, भोजन, त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन आदि क्षेत्रों में एक दूसरे के साथ जुडे|

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