वैदिक गणित और आधात्म: Vedic Mathematics and Spirituality

गणित और धर्म: कृष्ण तीर्थ को 16 गणितीय सूत्रों की खोज का श्रेय दिया जाता है जो चार वेदों में से एक अथर्ववेद के परिशिष्ट (परिशिष्ट) का हिस्सा थे (बॉक्स देखें)। तीर्थ के सरल सूत्र जटिल गणितीय गणनाओं को संभव बनाते हैं। गणित में आस्था रखना धर्म में आस्था रखने के समान है: यह किसी ऐसी अमूर्त चीज में विश्वास करना है जो अभी तक विश्वासियों के मन में मूर्त है। गणित और धर्म इस मायने में एक जैसे हैं कि वे दोनों एक प्रकार की कृपा की कामना करते हैं । वे कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलने के सचेत प्रयास हैं।

गणित भी ईश्वर पर विशवास करने का एक कारण हैं: म गणित पर भरोसा कर सकते हैं इसका कारण यह है कि हमारा विश्वासयोग्य, सर्वशक्तिमान परमेश्वर लगातार हमारे ब्रह्मांड को एक साथ रखता है (कुलुस्सियों 1:17)। वह सुनिश्चित करता है कि जोड़, घटाव, गुणा और भाग के सिद्धांत हमेशा स्पष्ट उत्तर देंगे। गणित एक ऐसी भाषा है जो आपके आसपास के जीवन में हर चीज की पेचीदगियों का वर्णन, चित्रण और अभिव्यक्ति भी करती है। एक भाषा जो भौतिक सीमाओं से ऊपर की चीजों के कामकाज का सही-सही वर्णन कर सकती है । इसलिए गणित को ‘ईश्वर की भाषा’ कहा जाता है।

शून्यकाआविष्कारभीभारतमेंही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

शून्य का आविष्कार भी भारत में ही: 0 का अर्थ निर्वाण मुक्ति भी

में उनकी स्थिति के आधार पर अंकों के अलग-अलग मान होते हैं। जैसे संख्या 22 में, बायाँ 2 बीस का और दायाँ 2 दो का प्रतिनिधित्व करता है।

शून्य का आविष्कार भी भारत में ही हुआ, जिसके आधार पर गणित की सारी बड़ी गणनाएँ होती हैं। ऐसा माना जाता है कि बाकी दुनिया को जब शून्य का पता भी नहीं था तब भारत में 75वीं ईसवी में शून्य का चलन बहुत ही आम था। लगभग डेढ़ हज़ार साल पहले गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने शून्य के प्रयोग से जुड़ी एक किताब लिखी, जिसमें उन्होंने शून्य के प्रयोग के बारे में विस्तार से बताते हुए इसके आधारभूत सिद्धांतों की जानकारी भी दी।

एलेक्स बेलोस का कहना है कि आध्यात्मिक शून्यता के भारतीय विचारों ने गणितीय शून्य को जन्म दिया। उन्होंने कहा, “शून्य का मतलब कुछ भी नहीं है। लेकिन भारत में इसे शून्य की अवधारणा का मतलब एक तरह का मोक्ष है।” “जब हमारी सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, तब हम निर्वाण या शून्य या पूर्ण मोक्ष की ओर जाते हैं।” “शून्यता” की पारलौकिक स्थिति, जब आप पीड़ा और इच्छाओं से मुक्त हो जाते हैं।“

भारत में हिंदू, बुद्ध और जैन धर्म में संख्याओं और निर्वाण के आपसी संबंध की अलग-अलग व्याख्या है। प्रतिष्ठित गणितज्ञ IIT मुंबई के प्रोफेसर एसजी दानी गणित और निर्वाण के संबंध में कहते हैं,”आमतौर पर बातचीत के दौरान भी हम संख्याओं का प्रयोग करते हैं। 10 से 17 तक की संख्याओं को ‘परार्ध’ कहा गया है और इसका अर्थ होता है स्वर्ग यानी मुक्ति का आधा मार्ग तय होना।“

मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में गणित के इतिहासकार जॉर्ज गैवगीज जोसेफ के मुताबिक, ”भारत द्वारा दी गई गणित की पद्धति अद्भुत है। जैसे यदि हम 111 लिखते हैं तो इसमें पहला ‘एक’ इकाई को दर्शाता है, जबकि दूसरे ‘एक’ का मतलब दहाई से और तीसरे ‘एक’ का मतलब सैकड़े से है. अर्थात् भारतीय गणित पद्धति में किसी एक संख्या के स्थान से ही उसकी स्थानिक मान का निर्धारण होता है।”

एलेक्स बेलोस केअनुसार शून्य की गणितीय अवधारणा लगभग डेढ़ हजार साल पहले भारत में उभरी थी। ग्वालियर किले के नजदीक एक ऐतिहासिक मंदिर (विष्णु मंदिर) है। इस मंदिर की एक दीवाल पर सबसे पुराने ज्ञात शून्य चिह्न लिखे हुए हैं।

मंदिर के शिलालेख में शिलालेख में प्रतीक शून्य के दो उदाहरण हैं: संख्या ‘270’ में, आकार 270 x 187 हस्ता की भूमि के एक टुकड़े का जिक्र है, जहां हस्ता लंबाई की एक इकाई है, और संख्या “50” में, दैनिक 50 फूलों की माला भेंट की। 2 और 7 भी आधुनिक ‘अरबी’ अंकों के समान हैं। ये शिलालेख इस बात का दस्तावेजी प्रमाण है कि अरबी अंकों की उत्पत्ति वास्तव में भारत में हुई थी।

पुरी के वर्तमान शंकराचार्य अनंतश्री निश्‍चलानंद सरस्‍वती संख्याओं और अध्यात्म के संबंध पर कहते हैं, ”वेदांतों में जिसे ब्रह्म और परमात्मा कहा गया है, वह शून्य परमात्मा का प्रतीक है, अनंत का नाम ही शून्य है। गणित के अभ्यास से निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है. भारतीय संख्या प्रणाली को पूरी दुनिया में अपनाया गया क्योंकि यह अन्य सभी प्रणालियों से श्रेष्ठ थी, और यह दो मुख्य कारणों से है: “स्थानीय मान”, और शून्य। संख्या ”

भारतीय गणित का इतिहास

प्राचीन हिंदू गणितज्ञों ने दशमलव प्रणाली, शून्य, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित, अंकगणित, ऋणात्मक संख्याएँ, शक्तियाँ, वर्गमूल और द्विघात समीकरण जैसी कई अवधारणाओं को विकसित किया और उनमें प्रमुख योगदान दिया। वे काफी उन्नत थे, यूरोप सहित दुनिया के लगभग सभी अन्य हिस्सों के गणितज्ञों से बहुत आगे थे।

आदि काल (500 इस्वी पूर्व तक)

(क) वैदिक काल (१००० इस्वी पूर्व तक)- शून्य और दशमलव की खोज

(ख) उत्तर वैदिक काल (१००० से ५०० इस्वी पूर्व तक) इस युग में गणित का भारत में अधिक विकास हुआ। इसी युग में बोधायन शुल्व सूत्र की खोज हुई जिसे हम आज पाइथागोरस प्रमेय के नाम से जानते है।

२. पूर्व मध्य काल – sine, cosine की खोज हुई।

३. मध्य काल – ये भारतीय गणित का स्वर्ण काल है। आर्यभट, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य आदि श्रेष्ठ गणितज्ञ हुए।

४. उत्तर-मध्य काल (१२०० इस्वी से १८०० इस्वी तक) – नीलकण्ठ ने १५०० में sin r का मान निकालने का सूत्र दिया जिसे हम अब ग्रेगरी श्रेणी के नाम से जानते हैं।

५. वर्तमान काल – रामानुजम आदि महान गणितज्ञ हुए।

संख्यात्मक संगणनाओं को हल करने के एक से अधिक तरीके हैं। कुछ संकरे हैं, जबकि कुछ गहरे हैं। ऐसे कई दृष्टिकोणों में, वैदिक गणित गणित का एक तरीका है, भारतीय तरीका है।

श्री रामानुजम को गणित का भगवानकहा जाता है। श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920) एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित में कोई औपचारिक शिक्षा न होने के बावजूद संख्या सिद्धांत, निरंतर अंश और अनंत श्रृंखला जैसे क्षेत्रों में महान योगदान दिया । उनका अनुमानित आईक्यू 185 था।

एक सहज गणितीय प्रतिभा, रामानुजन की खोजों ने गणित के कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है, लेकिन वह संभवतः संख्या सिद्धांत और अनंत श्रृंखला में उनके योगदान के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं , उनमें से आकर्षक सूत्र (पीडीएफ) हैं जिनका उपयोग असामान्य तरीकों से पाई के अंकों की गणना के लिए किया जा सकता है।  उन्होंने कैंब्रिज में सादा जीवन व्यतीत किया।

शिक्षा में नेतृत्व क्षमता और भारतीयता बढ़ाने के लिए वैदिक गणित

गणित (Mathematics) एक ऐसा विषय है, जिसका हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। विद्यार्थी जीवन की परीक्षाओ से लेकर दैनिक हिसाब किताब में भी गणित विषय अहम् भूमिका निभाता है। प्रतियोगी परीक्षाओं में भी गणित विषय से काफी सारे प्रश्न पूछे जाते है, परंतु गणित की जिस पद्धति का उपयोग हो रहा है। उससे बच्चों में गणित के प्रति डर है।

काफी बच्चों का वीक पॉइंट गणित विषय है, क्योंकि स्कूलों में जहाँ बच्चों की नींव बनती है। वहाँ वैदिक गणित का चलन लगभग समाप्त हो गया है। भारत देश में बहुत से गणितज्ञयों ने जन्म लिया। गणित की शिक्षा कोई आज का विषय नहीं है। यह 3000 साल पुराना है।

इतिहासकारों ने भी माना हैं कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र गणित का ही अभिन्न अंग है। यहाँ पर गणित की शिक्षा इतनी ज्यादा अच्छी थी कि आर्यभट्ट (Aryabhata) और वराह मिहिर (Varāhamihira) जैसे विद्वान हमारे देश में पैदा हुए।

गणित से विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास: गणित विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास का समर्थन करता है, जिससे उन्हें गहरी सोच विकसित करने और दुनिया के काम करने के तरीके पर सवाल उठाने में मदद मिलती है । गणित के माध्यम से विधार्थी हमारे दैनिक जीवन में गणित की समृद्धि और शक्ति की सराहना प्राप्त करते हैं। वैदिक गणित या वैदिक गणित संख्यात्मक संगणनाओं को जल्दी और तेजी से हल करने के लिए विधियों या सूत्रों का एक संग्रहहै । इसमें 16 सूत्र सूत्र और 13 उपसूत्र उपसूत्र कहलाते हैं, जिन्हें अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, कलन, शंकु आदि में समस्याओं के समाधान के लिए लागू किया जा सकता है।

वैदिक गणित  से तर्कशक्ति, विश्लेषण एवं संश्लेषण क्षमता बहुत बढ़ जाती है, जो शोध-अनुसंधान के लिए जरूरी है। वैदिक गणित के अध्यन और अभ्यास से आत्मविश्वास समझदारी एवं मानसिक शक्ति के अलावा नैतिक एवं तकनिकी गुणों में भी वृध्धि होती है।

फेयोल ने नेतृत्व केलिए जिन 5 गुणों का उल्लेख किया है उनमें से 2 हैं समझदारी एवं मानसिक शक्ति तथा नैतिक गुण। उसी प्रकार से उर्विक ने नेतृत्व के  साहस, इच्छा शक्ति, ज्ञान तथा ईमानदारी। प्रो. कैट्ज़ ने प्रशासक के रूप में एक नेता में तीन प्रकार के गुणों के होने पर विशेष बल दिया है इनमें प्रमुख है तकनीकी गुण। तकनीकी गुणों से आशय उसकी योग्यता से है जिसके द्वारा वह अपने ज्ञान, विधियों एवं तकनीकों का समुचित रूप से अपने कार्य-निष्पादन में प्रयोग करने में समर्थ हो पाता है। यह योग्यता उसको अनुभव, शिक्षा तथा प्रशिक्षण से प्राप्त होती है। बर्नार्ड ने स्फूर्ति को शक्ति, चेतना और सजगता का मिश्रण अथवा सहिष्णुता बतलाया है। एक अच्छे नेता में यह गुण होना आवश्यक है।

24 April: मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लड़के से बात करते हुए कहा था कि प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के लिए उसे वैदिक गणित पढ़ना चाहिए। फिर पीएम ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) पर चर्चा करते हुए कहा था कि गणितीय चिंतन-शक्ति और वैज्ञानिक मानस बच्चों में विकसित हों, यह बहुत आवश्यक है। गणितीय चिंतन-शक्ति का मतलब केवल गणित के सवाल हल करना नहीं, बल्कि यह सोचने का एक तरीका है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इन बिंदुओं को कैसे शामिल किया जाए, यह एक चुनौती है?

प्रचलित धारणा है कि वेदों में प्रकृति या देवों का स्तुतिगान हैं, लेकिन यह पश्चिमी देशों के प्राच्यवादियों का खतरनाक षड्यंत्र था। इसका उद्देश्य था समृद्ध भारतीय ज्ञान-विज्ञान को दबाकर खत्म कर देना, ताकि भारतीयों पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता स्थापित करते हुए स्थायी आधिपत्य कायम किया जा सके। कायम किया जा सके।यह समझ लें कि यह गणित के सवाल हल करने का शॉर्टकट तरीका है। शिक्षा में भारतीयता को पुनर्स्थापित करने में वैदिक गणित एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

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