अमेरिका से भिन्न भारत संप्रभु राष्ट्र: India is a sovereign nation, unlike the US

अमेरिका और पहलेके USSR से भिन्न भारत संप्रभु राष्ट्र है।

कुछ लोगों और उनके भ्रमित नेताओं की यह गलत धारणा है कि, “भारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का एक संघ है।” ऐसे नेताओं को समझना चाहिए कि भारत प्राचीन राष्ट्र है। यहां हजारों वर्षों से सांस्कृतिक निरंतरता है। सबको जोडऩे वाली प्राचीन संस्कृति है।

भारत की *एकता-अखंडता’ की विशेषता की जड़ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है।

1904 में मोहम्मद इकबाल ने हिंद का तराना लिखा,

*’यूनान मिस्त्र रोम सब मिट गए जहाँ से,

अब तक मगर है, बाकी नामो-निशां हमारा।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा ।।”

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना, हिंदी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा.

लेकिन पाकिस्तान बनाने और फिर वहां जाने के बाद ही उनकी कलम से निकला, ‘मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा’।

चीनो अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा, मुस्लिम हैं हम वतन के , सारा जहाँ हमारा.

तोहीद की अमानत, सीनों में है हमारे, आसां नहीं मितान, नामों – निशान हमारा.

इक़बाल ने यह भी लिखा है :

हो जाए ग़र शाहे ख़ुरासान का इशारा

सज्दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर।

उक्त सन्दर्भ में यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 को ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) के पंजाब प्रांत के सियालकोट में एक हिन्दू कश्मीरी परिवार में हुआ था। उनका परिवार कश्मीरी पंडित (सप्रू कबीले का) था जो 15 वीं शताब्दी में इस्लाम में परिवर्तित हो गया था और जिसकी जड़ें दक्षिण कश्मीर के कुलगाम के एक गाँव में थीं।

भारत की संस्कृति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक ही हैं अलग अलग नहीं। इसीलिए हमारे यहाँ अनेकता में एकता है। आसेतु हिमाचल एक संस्कृति है। हम अपनी संस्कृति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के कारण ही“विश्व गुरु’ के स्थान पर हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में “वसुधैव कुटुंबकम ” की भावना समाहित है।

माक्र्सवादी विचारक दामोदर धर्मानंद कोसंबी ने ‘प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता’ में लिखा है, ‘यहां अनेकता के साथ एकता है। पूरे देश की एक भाषा नहीं है। कई रंग वाले लोग हैं। अब तक जो कहा गया, उससे इस धारणा को बल मिल सकता है कि भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा। यह भी कि भारत की सभ्यता और संस्कृति मुस्लिम या ब्रिटिश विजय की ही उपज है। यदि ऐसा होता तो भारतीय इतिहास केवल विजेताओं का ही इतिहास होता।’ कोसंबी की दृष्टि में विदेशी हमलों के पहले भी भारत एक राष्ट्र था। वह याद कराते हैं कि भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता अपने देश में इसकी निरंतरता है।

हिंदी साहित्य के महान आलोचक डॉ रामविलास शर्मा उन गिने-चुने विचारकों में से थे जिन्होंने मार्क्सवाद की भारतीय संदर्भ में सबसे सटीक व्याख्या की थी। बहुत-से इतिहासकारों की तरह डॉ रामविलास शर्मा भी मानते हैं कि आर्य ईरान होकर भारत आए. इसलिए उनका सोचना बहुत स्वाभाविक है कि सूर्योपासना की शुरुआत ईरान में हुई थी. आर्य -अनार्य की बहस वास्तव में साम्राज्यवाद का हथियार रही है।

डा. रामविलास शर्मा ने हजारों वर्ष प्राचीन राष्ट्र का शब्द चित्र प्रस्तुत किया है। वह ‘भारतीय नवजागरण और यूरोप’ में लिखते हैं कि जिस देश में ऋग्वेद के ऋषि रहते हैं, उस पर दृष्टिपात करते हुए लिखा है, ‘यहां एक सुनिश्चित देश का नाम लिया गया है।’

एक अन्य विद्वान् पुसालकर ने इसका समर्थन करते हुए नदी नामों के आधार पर राष्ट्र की रूपरेखा निर्धारित की है। इसमें अफगानिस्तान, पंजाब, अंशत: सिंध, राजस्थान पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश, कश्मीर और सरयू तक का पूर्वी भारत शामिल है। डा. रामविलास शर्मा ने भारत को ऋग्वैदिककालीन राष्ट्र बताया है। उन्होंने अनेक विद्वानों का मत दिया है, ‘जिस देश में सात नदियां बहती हैं, वह वही देश है, जहां जल प्रलय के बाद और भरतजन के विस्थापित होने के बाद हड़प्पा सभ्यता का विकास हुआ। यह देश ऋग्वेद और हड़प्पाकाल के बाद का बहुत दिनों तक संसार का सबसे बड़ा राष्ट्र था।’ राष्ट्र केवल भूमि नहीं है। उस पर बसने वाले जन राष्ट्र हैं।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष संजय पोर्खियाल ने भी स्पष्ट किया है कि राष्ट्र समझौते का परिणाम नहीं होते। राष्ट्र गठन का आधार रिलिजन, पंथ और मजहब नहीं होता। अथर्ववेद के एक मंत्र में राष्ट्र के जन्म और विकास की कथा इस तरह है, ‘ऋषियों ने सबके कल्याण के लिए आत्मज्ञान का विकास किया। कठोर तप किया। दीक्षा आदि नियमों का पालन किया। आत्मज्ञान, तप और दीक्षा से राष्ट्र के बल और ओज का जन्म हुआ।’ ‘ततो राष्ट्रं बलं अजायत।’

राष्ट्र संस्कृत शब्द है और नेशन इसका इंग्लिश ट्रांसलेशन  है। राष्ट्र शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में है। यजुर्वेद में है। अथर्ववेद में है। रामायण और महाभारत में है। राहुल गांधी का ज्ञान न केवल अनूठा, बल्कि दयनीय है। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की भी बात खारिज की। नेहरू ने डिस्कवरी आफ इंडिया में भारत राष्ट्र को अति प्राचीन बताया है।

यूरोपीय यूनियन का उदाहरण व्यर्थ है। यूरोपीय यूनियन समझौते से बनी है। इसके सदस्य देशों की संप्रभुता है, लेकिन यूरोपीय यूनियन की नहीं। भारत में राष्ट्र संप्रभु है। राज्य संप्रभु राष्ट्र के संविधान के अधीन छोटे किए जा सकते हैं और बड़े भी। राज्य व्यवस्था मूलक है। संविधान ने उन्हें अनेक अधिकार दिए हैं।

हमें भारत के संविधान में उल्लिखित राज्यों की सीमा बढ़ाने-घटाने के अधिकार से परिचित होना चाहिए। अमेरिका के राज्य स्थाई हैं। उनका संघ और भारत का संघ भिन्न है। अमेरिका अविनाशी राज्यों का संघ है।

डा. आंबेडकर ने संविधान सभा (25.11.1949) में अमेरिकी कथा सुनाई, ‘अमेरिकी प्रोटेस्टेंट चर्च ने देश के लिए प्रार्थना प्रस्तावित की कि हे ईश्वर हमारे राष्ट्र को आशीर्वाद दो।’ इस पर आपत्तियां उठीं, क्योंकि अमेरिका राष्ट्र नहीं था। प्रार्थना संशोधित हुई, ‘हे ईश्वर इन सयुंक्त राज्यों को आशीर्वाद दो।’

भारतीय राज्य जीवमान सत्ता है। यहां राष्ट्र आराधन के लिए राष्ट्रगान “जन गण मन . . ” है। राष्ट्रगीत “वन्दे  मातरम” है। राष्ट्र का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगे के मद्य अशोक चक्र”  है। राष्ट्रीय पक्षी मोर है। इसलिए राष्ट्र के अस्तित्व पर प्रश्न उठाना आपत्तिजनक है।

यह शाश्वत सत्य है कि हमारी संस्कृति विश्व को जोड़ने का कार्य करती हैं। हमारी भावनाएं हमारे कर्म “वसुधैव कुटुंबकम ” में समाहित हैं। भारतीय आत्मा की सृजनात्मक अभिव्यक्ति सबसे पहले दर्शन, धर्म व संस्कृति के क्षेत्रों में हुई । भारत को ‘ भारतमाता’ कहना ही हमारी ‘ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संस्कार को दरशाता है। हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ही यह देन है कि हम अपने देश में पत्थर, नदियाँ, पहाड़, पेड़-पौधे, पक्षी और संस्कृति पोषक को सदैव पूजते हैं। हमारे देश के कण-कण में शंकरजी का वास बताया जाता है।

संविधान के अनुच्छेद-एक में भारत को राज्यों का संघ बताया गया है, लेकिन उद्देशिका में साफ कहा गया है, ‘हम भारत के लोग भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए यह संविधान अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’उद्देशिका में राष्ट्र की एकता, अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता का भी उल्लेख हैं।

महात्मा गांधी गांधी जी ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राज्यों और पंथों के परस्पर समझौते का विकास किया था यह कथन सही नहीं है। डा. आंबेडकर ने  स्पष्टीकरण (04-11-1948) दिया था, ‘मसौदा समिति स्पष्ट करना चाहती है कि यद्यपि भारत एक संघ है, लेकिन यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते का परिणाम नहीं है।’ भारत संप्रभु राष्ट्र राज्य है। वह किसी समझौते का परिणाम नहीं है। संप्रभु राष्ट्र ने देश की व्यवस्था सही ढंग से चलाने के लिए राज्यों का गठन किया। राष्ट्र ने ही राज्य बनाए।       

पिछले कुछ समय से राहुल गांधी लगातार भारत के विचार पर सवाल उठा रहे हैं। फरवरी 2022 में, भी राहुल गांधी ने भारतीय संसद में कहा था कि भारत सिर्फ “राज्यों का संघ” था, न कि एक राष्ट्र। परन्तु इस बार लंदन के कैम्ब्रिज में। उनकी दृष्टि में भारत एक राष्ट्र नहीं है। ये राज्यों के आपसी समझौते से बना यूनियन ऑफ स्टेट है। अमेरिका का संविधान उन्हें ज्यादा याद क्यों रहता है। हम अमेरिका नहीं हैं जहां लोगों को राज्यों की नागरिकता भी लेनी पड़ती है और देश की भी। हम एक हैं। हम भारत हैं। प्रशासनिक सहूलियत के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के अधिकार सलीके बंटे हुए हैं। लेकिन राष्ट्र के तौर पर हमारे अस्तित्व को कोई चुनौती दे,यह भारत की  जनता स्वीकार नहीं करेगी।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मंगलवार 23 मई 2022 को ‘इंडिया एट 75’ नामक कार्यक्रम में राहुल गांधी पहुंचे थे. जहां पर कॉरपस क्रिस्टी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर और भारतीय मूल की शिक्षाविद डॉक्टर श्रुति कपिला ने उनसे सवाल जवाब किए थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी कैंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ बातचीत में भारत को राज्यों का संघ के रूप में वर्णित किया। कांग्रेस नेता ने कहा किभारत एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि राज्यों का एक संघ है।

लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सटी पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी का आमना-सामना भारतीय सिविल सेवा अधिकारी सिद्धार्थ वर्मा से हुआ। पूरे कार्यक्रम के दौरान दोनों के बीच राष्ट्र और राज्य के मुद्दे पर जमकर सवाल-जवाब हुए।  सिद्धार्थ वर्मा ने मंगलवार 24 मई को एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने राहुल गांधी के ‘आइडिया ऑफ इंडिया’पर आपत्ति जताई थी।

रेलवे ट्रैफिक सर्विस अफसर ने राहुल गांधी के ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ पर प्रश्न उठाते हुए कहा, ‘क्या आपको नहीं लगता कि एक राजनीतिक नेता होने के नाते आपके आइडिया ऑफ इंडिया में न सिर्फ त्रुटियां और गलतियां हैं, बल्कि यह खतरनाक भी है, क्योंकि यह हजारों वर्षों के इतिहास को नकारता है.’

सिद्धार्थ वर्मा राहुल गांधी को कहा कि ‘आपने सविंधान के आर्टिकल 1 का उल्लेख किया, जिसमें भारत को राज्यों का संघ (Union of States) कहा गया है. अगर आप पन्ना पलटेंगे और प्रस्तावना को पढ़ेंगे तो वहां भारत को एक राष्ट्र बताया गया है. भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है और यहां के वेदों (Vedas) में भी राष्ट्र शब्द का उल्लेख है. हम एक बहुत पुरानी सभ्यता हैं. यहां तक कि जब चाणक्य (Chanakya) तक्षिला में छात्रों को पढ़ाते थे तो उन्होंने भी स्पष्ट तौर पर कहा, आप सब अलग-अलग जनपदों से हो सकते हैं, लेकिन आप सभी एक राष्ट्र से जुड़े हैं और वह भारत है। भारत का सिर्फ एक उथला सा राजनीतिक अस्तित्व नहीं है, जिसका इतिहास 75 वर्षों का हो, बल्कि भारतवर्ष हजारों वर्षों से अस्तित्व में है और अनंत काल तक रहेगा..’

अधिकारी ने एक बार फिर राहुल गांधी से कहा, नहीं, नेशन का संस्कृत अनुवाद राष्ट्र होता है।

इसपर राहुल गांधी ने जवाब दिया, ‘क्या उन्होंने नेशन शब्द का इस्तेमाल किया था?’ तो सिद्धार्थ ने कहा उन्होंने ‘राष्ट्र’ शब्द का इस्तेमाल किया था।’ राहुल ने कहा, ‘राष्ट्र साम्राज्य है।’ फिर अधिकारी ने कहा, ‘नहीं, राष्ट्र, नेशन का संस्कृत शब्द है।’

 हालांकि, राहुल ने जोर देकर कहा कि “राष्ट्र” का अर्थ “राज्य” है, न कि “राष्ट्र”।

 राष्ट्र को स्पष्ट करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि ” राष्ट्र” का अर्थ “राज्य” है, न कि “राष्ट्र”।

राष्ट्र शब्द एक पश्चिमी अवधारणा है”, राष्ट्र-राज्यों की अवधारणा पश्चिम में उत्पन्न हुई थी और भारत सिर्फ राज्यों का एक संघ था। इस पर सिद्धार्थ वर्मा ने उनका यह कहते हुए प्रतिवाद किया, “इसलिए जब मैं राष्ट्र के बारे में बात करता हूं, तो मैं केवल राजनीतिक संस्थाओं के बारे में बात नहीं करता क्योंकि हमारे पास दुनिया भर में ये प्रयोग हुए हैं। आपके पास यूएसएसआर था, आपके पास यूगोस्लाविया था, आपके पास संयुक्त अरब गणराज्य था। इसलिए जब तक राष्ट्रों में एक मजबूत सामाजिक-सांस्कृतिक और भावनात्मक बंधन और एक मिश्रित संस्कृति नहीं होती, एक संविधान एक राष्ट्र नहीं बना सकता है।

राहुल गांधी ने फिर कहा, राष्ट्र का मतलब किंगडम (राजा का राज्य) होता है।   

यह तर्क संगत शाश्वत सत्य है कि भारत प्राचीन राष्ट्र है। यहां हजारों वर्षों से सांस्कृतिक निरंतरता है। सबको जोडऩे वाली प्राचीन संस्कृति है..”?

अंग्रेजीराज में सुनियोजित प्रचार हुआ कि भारत को अंग्रेजों ने ही राष्ट्र बनाया। गांधी जी इस मत के विरोधी थे। उन्होंने ‘हिंद स्वराज’ में लिखा है, ‘आपको अंग्रेजों ने ही सिखाया है कि आप एक राष्ट्र नहीं थे। यह बात बिल्कुल बेबुनियाद है। जब अंग्रेज हिंदुस्तान में नहीं थे, तब भी हम एक राष्ट्र थे। तभी अंग्रेजों ने यहां एक राज्य कायम किया।’ गांधी जी के अनुसार भारत एक राष्ट्र था और है। 

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संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 1 की परिभाषा पढ़ी जा सकती है और समझा जा सकता है कि राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है। ये ऐसी है यूनियन है जो तितर-बितर नहीं हो सकती।

के संविधान में इसे लेकर असल में क्या लिखा है. संविधान का सबसे पहला अनुच्छेद ही भारत को परिभाषित करता है।

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