नास्तिक पुतिन पी एम् मोदी की मित्रता से ईश्वरवादी बन गए !

यह सर्वविदित है कि मार्क्स और माओ वादी नास्तिक हैं, भगवान पर उन्हें विष्वास नहीं और धर्म को वे अफीम मानते हैं। परन्तु पी एम् मोदी की मित्रता से पुतिन ईश्वर वादी बन गए। किसी संत ने अपने प्रवचन में कहा है कि दूसरे की चमक को देख कर प्रभावित होने की अपेक्षा अपनी स्वयं की चमक इतनी बढ़ाओ कि वह आपसे प्रभावित हो।

किसी संत ने अपने प्रवचन में कहा है कि दूसरे की चमक को देख कर प्रभावित होने की अपेक्षा अपनी स्वयं की चमक इतनी बढ़ाओ कि वह आपसे प्रभावित हो। नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही किया और नतीजन हम देख रहे है कि पुतिन मोदी से कितने प्रभावित हुए हैं।

व्लादिमीर पुतिन ने शोकग्रस्त माताओं से कहा: “हम सभी नश्वर हैं, हम सभी भगवान के अधीन हैं। और हम किसी दिन इस दुनिया को छोड़ देंगे। यह अपरिहार्य है।” 

“सवाल यह है कि हम कैसे रहते हैं। कुछ जीते हैं या नहीं रहते हैं, यह स्पष्ट नहीं है।

मुस्कुराते हुए रूसी नेता ने कहा: “और वे कैसे वोडका या कुछ और से मर जाते हैं।”

पुतिन उदासीन दिखाई दिए जैसा उन्होंने कहा: “और फिर, वे चले गए और जीवित रहे, या नहीं, किसी का ध्यान नहीं गया। और आपका बेटा जीवित रहा। और उसका लक्ष्य प्राप्त हो गया। इसका मतलब है कि वह कुछ भी नहीं मरा।”

यहाँ पर शहीद भगत सिंह के गुरु करतारा सिंह का उदाहरण देना उचित होगा। करतारा सिंह के बाबा जेल मेंमें जब अपने पोते से मिलने पहुंचे तो उन्हीने कहा –अरे करतारा तू जिनके लिए फांसी के फंदे पर चढ़ रहा है वे तो तेरे को गाली दे रहे हैं। बाबा के कहे शब्दों के पीछे जो भावना थी वे समझ गए। तात्पर्य था कि माफ़ी मांग करबाहर आजा। इस पर करतारा बोले- बाबा मं जेल से बाहर आ गया तो क्या बता सकते हैं मेरे जीवन में कब क्या होगा और क्या नहीं? हो सकता है सांप काट देऔर मैं…. इसे सुन कर बाबा के आँखों से अश्रु की धारा बहाने लगी……

एक इंटरव्यू में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं ईश्वरवादी हूं. मैं आशावादी हूं और परम शक्ति में विश्वास रखता हूं. लेकिन मैं ये मानता हूं कि मुझे उसे परेशान नहीं करना चाहिए. मुझे जिस काम के लिए उसने भेजा है, वो मुझे करना चाहिए, ईश्वर को बार-बार जाकर परेशान मत करो कि मेरे लिए ये करो वो करो. लोग सुबह-शाम मंदिर जाकर ईश्वर को काम बता देते हैं कि मेरे लिए ये करो, वो करो. ईश्वर हमारा एजेंट नहीं है. परमात्मा ने हमें भेजा है, वो हमसे जो करवाएगा, हमें वो करना चाहिए. परमात्मा जो सदबुद्धि देगा, उसी के आधार पर मार्ग पर चलते जाना है।

व्लादिमीर पुतिन ने शोकग्रस्त माताओं से मुस्कुराते हुए कहा: “और वे कैसे वोडका या कुछ और से मर जाते हैं।पुतिन उदासीन दिखाई दिए जैसा उन्होंने कहा: “और फिर, वे चले गए और जीवित रहे, या नहीं, किसी का ध्यान नहीं गया। और आपका बेटा जीवित रहा। और उसका लक्ष्य प्राप्त हो गया। इसका मतलब है कि वह कुछ भी नहीं मरा।मतलब आपका बेटा अमर हो गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में बना नेशनल वॉर मेमोरियल राष्ट्र को समर्पित किया।

पीएम मोदी ने कहा कि पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर हमला घिनौना है। मैं इसकी कड़ी निंदा करता हूं। उन्होंने कहा कि बहादुर जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। पीएम मोदी ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी बात की है। पीएम मोदी ने कहा कि शहीदों के परिवारों के साथ पूरा देश है। 

Aug 28, 2021

पीएम नरेंद्र मोदी ने जलियांवाला बाग स्मारक के पुनर्निर्मित परिसर का उद्घाटन किया और कहा कि यह एक ऐसा स्थान है जिसने असंख्य क्रांतिकारियों को साहस दिया। वर्चुअल इवेंट के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि अपने इतिहास को संरक्षित रखना हर देश की जिम्मेदारी है।

“न हम पहले झुके हैं, न आगे झुकेंगे। राष्ट्रहित में जो उचित होगा वैसा करेंगे। पहले हम पश्चिम की चाल समझते थे पर हाथ बंधे थे लेकिन ये पी एम् मोदी सरकार चुप नहीं बैठती, मुंह पर सुना देती है।”

नरेंद्र मोदी की विदेश नीति के दीवाने हुए पुतिन ने कहा, ‘भारत ने ब्रिटेन के उपनिवेश से आधुनिक राज्य बनने के बीच जबरदस्त प्रगति की है। इसने ऐसे विकास किए हैं जो भारत के लिए सम्मान और प्रशंसा का कारण बनते हैं। पीएम मोदी के नेतृत्व में पिछले वर्षों में बहुत कुछ किया गया है। स्वाभाविक रूप से वह एक देशभक्त हैं।’ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि रूस १९४७ से ही भारत का एक अच्छा विश्वसनीय मित्र है। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, 1971 के समय पुतिन KGB चीफ की हैसियत से देहली में ही थे।

पी एम् मोदी जैसे ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन न परिवारवादी रहे हैं और न ही किसी अन्य देश के अंध भक्त रहे हैं चाहे वह अमेरिका हो या चीन।

मार्क्सवाद और धर्म: 19 वीं सदी के जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स , मार्क्सवाद के संस्थापक और प्राथमिक सिद्धांतकार , ने धर्म को “स्मृतिहीन परिस्थितियों की आत्मा” या ” लोगों की अफीम ” के रूप में देखा। कार्ल मार्क्स के अनुसार, शोषण की इस दुनिया में धर्म संकट की अभिव्यक्ति है और साथ ही यह वास्तविक संकट का विरोध भी है। दूसरे शब्दों में, दमनकारी सामाजिक परिस्थितियों के कारण धर्म जीवित रहता है। जब इस दमनकारी और शोषणकारी स्थिति का नाश हो जाएगा, तब धर्म अनावश्यक हो जाएगा। उसी समय, मार्क्स ने धर्म को श्रमिक वर्गों द्वारा उनकी खराब आर्थिक स्थिति और उनके अलगाव के खिलाफ विरोध के रूप में देखा डेनिस टर्नर , मार्क्स और ऐतिहासिक धर्मशास्त्र के विद्वान, मार्क्स के विचारों को उत्तर-धर्मवाद के पालन के रूप में वर्गीकृत किया , एक दार्शनिक स्थिति जो देवताओं की पूजा को अंततः अप्रचलित मानती है, लेकिन अस्थायी रूप से आवश्यक है, मानवता के ऐतिहासिक आध्यात्मिक विकास में चरण। 

मार्क्सवादी-लेनिनवादी व्याख्या में, सभी आधुनिक धर्मों और चर्चों को “श्रमिक वर्ग के शोषण और मूर्खता” के लिए “बुर्जुआ प्रतिक्रिया के अंग” के रूप में माना जाता है। 20वीं शताब्दी में कई मार्क्सवादी-लेनिनवादी सरकारें जैसे व्लादिमीर लेनिन के बाद सोवियत संघ और माओत्से तुंग के तहत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना ने राज्य नास्तिकता को लागू करने वाले नियमों को लागू किया ।

राज्य नास्तिकता राजनीतिक व्यवस्थाओं में सकारात्मक नास्तिकता या गैर-ईश्वरवाद का समावेश है। यह सरकारों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मनिरपेक्षता के प्रयासों का भी उल्लेख कर सकता है। यह धर्म-राज्य संबंध का एक रूप है जो आमतौर पर वैचारिक रूप से अधर्म और कुछ हद तक अधर्म को बढ़ावा देने से जुड़ा होता है।   

** नास्तिकता सिद्धांत या विश्वास है कि कोई भगवान नहीं है। इसके विपरीत, अज्ञेयवादी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जो न तो किसी ईश्वर या धार्मिक सिद्धांत में विश्वास करता है और न ही अविश्वास करता है। अज्ञेयवादियों का दावा है कि यह जानना असंभव है कि ब्रह्मांड कैसे बनाया गया था और दैवीय प्राणी मौजूद हैं या नहीं।

**एकेश्वरवादी, सर्वेश्वरवादी, और सर्वेश्वरवादी धर्मों में ईश्वर की धारणा – या एकेश्वरवादी धर्मों में सर्वोच्च देवता – अमूर्तता के विभिन्न स्तरों तक विस्तारित हो सकते हैं: एक शक्तिशाली, व्यक्तिगत, अलौकिक प्राणी के रूप में, या एक गूढ़, रहस्यमय या दार्शनिक इकाई या श्रेणी के देवता के रूप में;

नास्तिक vs अज्ञेयवादी: क्या अंतर है?

एक नास्तिक किसी ईश्वर या ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं करता है । नास्तिक शब्द की उत्पत्ति ग्रीक एथियोस से हुई है, जो a- (“बिना”) और  थियोस  (“एक ईश्वर”) की जड़ों से बना है। नास्तिकता सिद्धांत या विश्वास है कि कोई भगवान नहीं है।

इसके विपरीत, अज्ञेयवादी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को संदर्भित करता है जो न तो किसी ईश्वर या धार्मिक सिद्धांत में विश्वास करता है और न ही अविश्वास करता है । अज्ञेयवादियों का दावा है कि यह जानना असंभव है कि ब्रह्मांड कैसे बनाया गया था और दैवीय प्राणी मौजूद हैं या नहीं।

अज्ञेयवादी शब्द जीवविज्ञानी टीएच हक्सले द्वारा गढ़ा गया था और ग्रीक एग्नोस्टोस से आया है, जिसका अर्थ है “अज्ञात या अनजाना।” सिद्धांत को अज्ञेयवाद के रूप में जाना जाता है।

नास्तिक औरअज्ञेय  दोनों  का उपयोग विशेषण के रूप में भी किया जा सकता है। विशेषण  नास्तिक भी प्रयोग किया जाता है। और अज्ञेयवादी  शब्द  का उपयोग धर्म के संदर्भ के बाहर एक अधिक सामान्य तरीके से भी किया जा सकता है, जो किसी राय, तर्क, आदि के किसी भी पक्ष का पालन नहीं करते हैं।

Dictionary.com/e/atheism-agnosticism/

किसी संत ने अपने प्रवचन में कहा है कि दूसरे की चमक को देख कर प्रभावित होने की अपेक्षा अपनी स्वयं की चमक इतनी बढ़ाओ कि वह आपसे प्रभावित हो। दूसरे की लाइन को मिटाने की अपेक्षा उसके समानान्तर अपनी लाइन उससे बड़ी खींचें। नरेंद्र मोदी ने ऐसा ही किया और नतीजा हम देख रहे है….

दूसरे की लाइन को मिटाने की अपेक्षा उसके समानान्तर अपनी लाइन उससे बड़ी खींचें। यूक्रेन के जेलेस्की ने रूस की लाइन मिटाकर अपनी लाइन बढ़ानी चाही।  उसने अमेरिका के झांसे में आकर नाटो किसदस्यता की रत लगा कर रूस की स्वतन्त्रता को उसी प्रकार से चुनौत देनी चाही जैसे पाकिस्तान बंगलादेश चीन आज भारत के लिए सिरदर्दबन हुए हैं।  पाकिस्तान बांग्लादेश उसी प्रकार से अखंड भारत में थे जिस प्रकार से यूक्रेन और नाटो के कुछ अन्य देश जो अमेरकी जालसाजी के तहत USSR से अलग किये गए। अगर चीन ने आक्रमण कर भारत के पडोसी देश तिब्बत को नहीं हड़पा होता और १९६२ के युद्ध में नेहरू ने सेल्फ गोल करवाकर लगभग १ ८००० हजार वर्ग km अपनी जमीन चीन को गिफ़्ट नहीं किया होता तो चीन अज्ज बार बार भारत को आँख दिखाने की हिम्मत नहीं करता।

मानवता की हिफाजत, “वसुधैव कुटुंबकम्” की विरासत आज वक्त और विश्व की जरूरत है। ऐसी दुनिया में जो हिंसा और आतंकवाद से पीड़ित युद्ध के चरणों से गुजर रही है, इसकी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है गांधीवादीअहिंसा का विचार पिछले दिनों की तुलना में आज अधिक से अधिक हो रहा है। ऐसी दुनिया में जो हिंसा और आतंकवाद से पीड़ित यूक्रेन रूस युद्ध की त्रासदी से गुजर रही है, इसकी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है गांधीवादीअहिंसा का विचार पिछले दिनों की तुलना में आज अधिक से अधिक हो रहा है।

By- Premendra Agrawal @premendraind @rashtravadind @lokshakti.in