सावरकर सचमुच सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के व्याख्याकार थे। भारत में स्वदेशी आंदोलन की नींव सावरकर ने ही रखी। देश में स्वदेशी का पहला आह्वान उन्होंने किया। अक्तूबर 1905 को पुणे की विशाल जन सभा में सावरकर ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की घोषणा की थी। बाद में उसी स्वदेशी आंदोलन को महात्मा गांधी ने अपनाया। स्वदेशी आंदोलन को सावरकर ने राष्ट्र, संस्कृति और अपने पारंपरिक स्वावलंबन व स्वरोजगार के साथ जोड़ा। इसके बाद महात्मा गाँधी और फिर दीनदयाल उपाध्याय जी ने इस स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाया.
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1906 में सावरकर ने 1857 का स्वतंत्रता समर पुस्तक लिखने का संकल्प लिया। 1909 में लिखी पुस्तक द इंडियन वार आफ इंडिपेंडेंस -1857 में सावरकर ने इस लड़ाई को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई घोषित की।
10 मई 1907 को इस संग्राम की लंदन के इंडिया हाउस में 50वीं वर्षगांठ मनाने हेतु सावरकर ने फ्री इंडिया सोसायटी के नेतृत्व में एक भव्य आयोजन संपन्न किया। उस दिन सावरकर ने इसे तार्किक रूप में सैन्य विद्रोह अथवा गदर के रूप में खारिज किया और अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का पहला सशस्त्र युद्ध घोषित किया। इस पहली लड़ाई को संग्राम का दर्जा दिलाने में सावरकर कामयाब रहे।
यही नहीं एक महत्वपूर्ण बात, वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया था। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया। ऐसा इस देश में पहली बार हुआ था।
दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद फिर से लिखा।
“Many parties including the Congress opposed the oil painting in the Parliament House, but now Savarkar is present there and Savarkar’s ideology is influential in the whole country today. To be honest, Savarkar was the exponent of cultural nationalism, not a Hindu.“
1947 में भारत के बंटवारे के वे खिलाफ थे। वीर सावरकर ने बंटवारे का जबरदस्त विरोध किया था। 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर की मृत्यु के बाद कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे। सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है। 1970 में सावरकर जी पर डाक टिकट जारी किया गया।
1947 में भारत के बंटवारे के वे खिलाफ थे। वीर सावरकर ने बंटवारे का जबरदस्त विरोध किया था। 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर की मृत्यु के बाद कांग्रेस की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने कहा था कि सावरकर एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे, प्रखर राष्ट्रवादी थे। सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करने की हिम्मत करना हमारी आजादी की लड़ाई में अपना अलग ही स्थान रखता है।
15 अक्तूबर 2019 को भाजपा की महाराष्ट्र इकाई ने अपने चुनावी घोषणापत्र में सावरकर को ‘भारतरत्न’ से सम्मानित करने की बात कही और अगले दिन 16 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के अकोला में ‘महाजनादेश संकल्प सभा’ में कहा- ‘वीर सावरकर के संस्कार हैं कि राष्ट्रवाद हमारे मूल में है।
सावरकर ने हिंदू जीवन-पद्धति को अन्य जीवन पद्धतियों से अलग और विशिष्ट रूप में प्रस्तुत किया. वह ‘हिंदुत्व’ विचारधारा के प्रवर्तक और सिद्धांतकार बने. सारी बहसें इस विचारदृष्टि को लेकर है. इसके समर्थकों की संख्या आज कहीं अधिक है और कांग्रेस, उसके नेता राहुलगांधी हाशिये पर।
सोफिया विवि के प्रोफेसर सालो अगस्तीन आरएसएस को ‘हिंदुत्व’ की ‘कोर-संस्था’ कहते हैं. संघ ने ‘हिंदुत्व’ की विचारधारा को केवल प्रचारित ही नहीं किया, उसने इसकी सांगठनिक संरचना (शाखा) जमीनी स्तर तक विकसित की। सावरकर सिद्धांतकार थे और हेडगेवार संगठनकर्ता. ‘हिंदुत्व’ विचारधारा से जुड़ा राजनीतिक दल भाजपा है।
सावरकर को2023 – 24 में भारतरत्न’ दिया जायेगा ऐसे संभावना है। वर्ष 2023 में सावरकर की ‘हिंदुत्व’ पुस्तिका की प्रकाशन शती है।
हिंदुत्व की तुलना isis से राहुल के गुरु सलमान खुर्शीद ने की है। एक और दूसरे गुरु शिराज पाटिल ने महाभारत के श्री कृष्णा को जिहादी की संज्ञा जकिर नायक के पदचिन्हों पर चल कर की है। इसी भगोड़े जाकिर को राहुलगांधी के तीसरे गुरु दिग्विजय सिंह ने शांति दूत कहा था।
इदिरा गांधीकी 105 वीं जयंतिकी के एक दिन पूर्व 18 नवंबर 2022 को भी राहुल गाँधी के बेतुके आधारहीन टिप्पणियों ने विनायक दामोदर सावरकर सुर्खियों और बहसों में हैं.
पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का वीर सावरकर के सम्मान में लिखा एक पत्र एक पत्र:
नेहरू जी के ठीक विपरीत अखंड भारत के विभाजन के विरोधी सावरकर वंशवाद के भी विरोधी थे।वीर सावरकर के IITian नाती पुणे की streets पर भूखे उसी प्रकार से जैसे सरदार पटेल पुत्री मणिबेन गरीबी में…
कैसे नेहरू ने एक राजनीतिक राजवंश की स्थापना की, लेकिन सरदार पटेल की बेटी को कंगाल मरने के लिए छोड़ दिया
सरदार पटेल भी राजनीति में वंशवाद के घोर विरोधी थे, कहा जाता है कि सरदार पटेल ने हिदायत दे रखी थी कि जब तक वो दिल्ली में हैं, तब तक उनके रिश्तेदार दिल्ली में कदम न रखें और संपर्क न करें. उन्हें डर था कि इस कारण उनके नाम का दुरुपयोग हो सकता है. हालांकि उनका परिवार बहुत बड़ा नहीं था. सरदार पटेल के परिवार में एक बेटा और एक बेटी मणिबेन पटेल थे।
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By – Premendra Agrawal @premendraind
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