हनुमान मंदिर केक काट राम के अस्तित्व को नकारा ?

नेहरू और  ‘दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को छुआछूत जैसा समझा, और राजनितिक मानचित्र में हाशिये परजाते जारही हैं , विनाषकाले विपरीत बुद्धि…

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नरेंद्र मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक:  2021 में पांच अगस्त को जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास रखा गया तब हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहे शांता कुमार ने एक जगह लिखा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संस्थापाक भगवान राम थे। उन्होंने मंदिर निर्माण को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा और यह भी कहा कि प्रत्येक भारतवासी को अपने घर में भगवान राम चित्र पर फूल जरूर चढ़ाना चाहिए।

बात 2007 की है। तब उस समय की UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। लेकिन, भाजपा इसका विरोध कर रही थी। क्योंकि, इसके परियोजना के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए नया रास्ता बताया जाना था, जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए रामसेतु को तोड़ना पड़ा। लेकिन, रामसेतु की पुरानी मान्यताओं के कारण भाजपा ने सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।

2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” 

कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने कई बार भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का काम किया है। इसी क्रम में, कांग्रेस नेता केतकर ने राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर हो रही एक चर्चा के दौरान न केवल श्री राम के ऐतिहासिक अस्तित्व को नकारा बल्कि यह भी कहा कि हिंदू देवी-देवता साहित्य की रचना है। कांग्रेस नेता ने कहा, “रामायण की वजह से राम का अस्तित्व है। हालांकि, इस निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बाकी है कि राम इतिहास या साहित्य की रचना है या नहीं। वाल्मीकि ने एक महान महाकाव्य लिखा था और इसका प्रभाव भारत और विदेशों दोनों में महसूस किया गया था। लेकिन, मुझे नहीं पता कि वह इतिहास में मौजूद है या नहीं।”

Nov 14, 2022 को प्रेषित @AnkitaBnsl की विभिन्न ट्वीट्स के आधार पर NASA के बाद भी हम कह सकते हैं कि  राम सेतु 7 हजार साल पुराना, है।  समुद्र विज्ञान के अध्ययन में खुलासा हुआ है।  कांग्रेस ने कहा था राम सेतु  काल्पनिक है , जानिए वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य

राम सेतु के बारे में जानने के लिए 12 रोचक वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य!

1. राम सेतु के बारे में जानने के लिए 12 रोचक वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य समुद्र विज्ञान के अध्ययन में सामने आए हैं। इस अध्ययन से पता चलता है कि राम सेतु 7000 साल पुराना है।

2.नुषकोडी से मन्नार द्वीप के पास समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग रामायण की तारीख से मेल खाती है कि राम सेतु के निर्माण का समय रामायण की तारीख से मेल खाती है। एक समय धनुषकोटि बड़ा नगर था और रामेश्वरम एक छोटा सा गांव था। उस समय यहां से श्रीलंका के लिए नौकायें चलती थी और किसी प्रकार पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती थी। धनुषकोटि जैसे समृद्ध शहर के लिए 22 दिसंबर 1964 की रात दुर्भाग्य लेकर आई जब एक भयानक समुद्री तूफान में यह नगर पूर्णतः बर्बाद हो गया। रामायण कालीन धनुषकोटि का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। आसपास अनेक स्थल भगवान राम से सम्बंधित प्रसंगों के दर्शनीय हैं। राम ने विभीषण को यहां शरण दी थी तथा लंका विजय के बाद विभीषण के अनुरोध पर राम ने धनुष तोड़ने का अनुरोध मान कर धनुष का एक सिरा तोड़ दिया। तब ही से इसका नाम धनुषकोटि पड़ गया। यह स्थान रामेश्वरम से करीब 19 किमी दूर है। श्रीलंका समुद्र द्वारा यहां से 18 किमी दूर बताई जाती है।

3. 15वीं शताब्दी तक इस पुल से पैदल ही जाया जा सकता था जब तक कि तूफानों ने चैनल को गहरा नहीं कर दिया। कुछ रिकॉर्ड बताते हैं कि राम सेतु 1480 तक पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था जब यह एक चक्रवात से टूट गया था।

4. पुल 50 किमी लंबा है और मन्नार की खाड़ी को पाक जलडमरूमध्य से अलग करता है।

5. राम सेतु को आदम का पुल, नाला सेतु और सेतु बांदा भी कहा जाता है।

6. राम सेतु को रामायण के पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में लिया जाता है।

7. वाल्मीकि रामायण में सबसे पहले इस सेतु का उल्लेख किया गया था। वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों के द्वारा समुद्रतट तक ले आए थे। कुछ वानर सौ योजन लंबा सूत पकड़े हुए थे। अर्थात सेतु का निर्माण सूत से एक सीध में हो रहा था। (वाल्मीकि रामायण-6/22/62)

8. जब प्रभु श्री राम भारत भूमि के छोर पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र देव से लंका पार जाने का उपाय करने की प्रार्थना की।

9. श्रीराम द्वारा समुद्र देवता की पूजा आरंभ की गई। लेकिन जब कई दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र को सुखा देने के उद्देश्य से अपना धनुष-बाण उठा लिया। उनके इस कदम से समुद्र के प्राण सूखने लगे। तभी भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, “श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं।“ समुद्र देव ने कहा कि उनकी सेना के दो वानर ​​नल और नील को वरदान है कि अगर वे पत्थर को पानी में फेंकेंगे तो पत्थर कभी नहीं डूबेंगे।

10. यह सुनकर पूरी सेना ने भारी पत्थरों पर प्रभु राम का नाम लिखना शुरू कर दिया, जबकि नल और नील ने पुल बनाने के लिए उन्हें पानी में फेंकना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं तथा दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा। दरअसल नल और नील भगवान विश्‍वकर्मा के पुत्र थे, जिन्‍हें उस वक्‍त के निर्माण कार्यों की बारीकियों के बारे में भली-भांति ज्ञान था। उन्‍होंने पूरी वानर सेना के साथ मिलकर इस पुल का निर्माण किया। रामायण में बताया गया है कि बचपन से ही नल और नील दोनों बहुत शरारती थे। ये दोनों इतने नटखट थे कि ऋषियों का सामान समुद्र में फेंक दिया करते थे। वस्तु डूब जाने के कारण ऋषियों को परेशानी होती थी। फिर ऋषियों ने इन्‍हें शाप दिया तुम्हारा फेंका सामान जल में डूबेगा नहीं। उनका यह शाप सेतु निर्माण के वक्‍त लाभदायी साबित हुआ। इसलिए नल और नील जो पत्‍थर फेंकते थे, वे डूबते नहीं थे।

11. नासा के चित्र और उस क्षेत्र में तैरते पत्थरों की उपस्थिति राम सेतु के ऐतिहासिक अस्तित्व के ठोस संकेत देते हैं। अमेरिका के साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ ये दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद रामसेतु- प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है यानी इसे किसी इंसान ने बनाया था. अमेरिका के वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि रामसेतु के पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं।

12. इस खूबसूरत जगह पर आप चट्टानों की श्रृंखला, सैंडबैंक और टापुओं को देख सकते हैं जो लगभग श्रीलंका को भारत से जोड़ते हैं। इतिहासकार और पुरातत्वविदों के मुताबिक- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है। ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया। इतिहासकारों की मानें तो साल 1480 में आए एक तूफान में ये पुल काफी टूट गया। उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और वाहन के जरिए इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे।

1. Stone राम सेतु से अलग हुई चट्टानें आज भी समुद्र के ऊपर तैर रही हैं। मैंने, @jainrk59 ने नीचे की तस्वीर क्लिक की, जहां कई चट्टानें तैरती देखी जा सकती हैं।

2..राज भगत पी #Mapper4Life @rajbhagatt जुलाई 7, 2020

कॉन्ट शेल्फ़ के कारण गहरी समुद्री धाराएँ श्रीलंका और भारत के बीच के खंड में प्रवेश नहीं करती हैं। इस खंड में समुद्र की सतह पर दो दिशाओं में लंबी तट धाराएँ हावी हैं – एक मन्नार की खाड़ी से और दूसरी पाक जलडमरूमध्य से और वे विपरीत दिशाओं में हैं

क्या है राम सेतु?: तमिलनाडु के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार के बीच आपस में जुड़ी लाइमस्टोन की एक श्रृंखला है। भूगर्भशास्त्री मानते हैं कि पहले यह श्रृंखला समुद्र से पूरी तरह ऊपर थी। इससे श्रीलंका तक चल कर जाया जा सकता था। हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया सेतु माना जाता है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसके मानव निर्मित होने की मान्यता है। ईसाई और पश्चिमी लोग इसे एडम्स ब्रिज कहने लगे।

राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग: राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर संरक्षण देने की मांग पर जल्द सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी को आश्वासन दिया कि मामला विस्तार से सुना जाएगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के शासनकाल में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था। बाद में कोर्ट के दखल के बाद यह कार्रवाई रुक गई थी। तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई लंबित है।