Category: Sanskritik

  • शस्त्र-शास्त्र: महात्मा गांधी के विचारों में नीहित है यूक्रेन-रूस युद्ध के अंत और जलवायु संकट का जवाब

    शस्त्र-शास्त्र: महात्मा गांधी के विचारों में नीहित है यूक्रेन-रूस युद्ध के अंत और जलवायु संकट का जवाब

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों चाहिए

    9 दिसंबर, 2021 को CDS Gen Bipin Rawatऔर अन्य को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए ‘Veer Vanakkam’, Bharat Mata ki Jai’ के नारों से गूंज उठी थी। तमिलनाडु के लोगों पर बहुत गर्व है। महान आत्मा के लिए आपकी भावनाएं राजनीतिक भाषणों और अंतर्राष्ट्रीय प्रचार से बहुत परे हैं…

    तमिलनाडु: स्थानीय लोगों ने सीडीएस बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य सैनिक अधिकारियों के पार्थिव शरीर को ले जाने वाली एम्बुलेंस पर फूलों की पंखुड़ियों की बौछार की, जो कुन्नूर हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए, नीलगिरी जिले के मद्रास रेजिमेंटल सेंटर से सुलूर एयरबेस के लिए रवाना हुए।एक राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय पहचान की एक साझा भावना और एक साझा समझ है कि एक जन समूह एक सामान्य जातीय/भाषाई/सांस्कृतिक पृष्ठभूमि साझा करता है। ऐतिहासिक रूप से, राष्ट्रीय चेतना का उदय किसी राष्ट्र के निर्माण की दिशा में पहला कदम रहा है।

    दीनदयाल उपाध्याय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारक रहे हैं। चाणक्य नीति अध्याय 7  के कुछ ऐसे श्लोकों पर विचार करने पर हम समझ सकते हैं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों की आवश्यकताहोती है

    भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, एक हाथ में शस्त्र होगा और दूसरे हाथ में शास्त्र शास्त्र– लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए शस्त्र- दुष्टों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए – मुख्यमंत्री #YogiAdityanath

    Feb 04, 2022, 07:23 नामांकन के साथ दाखिल अपने हलफनामे में मुख्यमंत्री @myogiAdityanath ने उल्लेख किया है कि उनके खिलाफ एक भी आपराधिक मामला नहीं है. योगी आदित्यनाथ के पास दो हथियार हैं, जिनमें एक लाख रुपये की रिवॉल्वर और 80,000 रुपये की राइफल शामिल है. उनकी जमा पूंजी में दिल्ली में एक खाते में 35.24 लाख रुपये शामिल हैं. उनके गोरखपुर और लखनऊ में भी बैंक खाते हैं. योगी आदित्यनाथ के कान के छल्ले 20 ग्राम सोने से बने हैं और उनके पास रुद्राक्ष के साथ सोने की एक चेन है, जिसकी कीमत 12,000 रुपये है. मुख्यमंत्री के पास कोई अचल संपत्ति नहीं है.

    चाणक्य नीति: Free Download PDF of Chanakya Niti in Hindi

    हस्ती अंकुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते।
    शृंगीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥

    भावार्थ हाथी अंकुश से, घोड़ा चाबुक से, बैल आदि सींग वाले जानवर डण्डे से बस में रहते हैं, लेकिन बुरे लोगों को बस में करने के लिए तो कई बार तलवार ही हाथ में लेनी पड़ती है।

    व्याख्या – शस्त्र और शास्त्र दोनों ही आवश्यक हैं। भारत के पराभूत होने का एक कारण यह भी है कि हमने शास्त्र को तो बहुत अधिक महत्व दिया, लेकिन शस्त्र बिल्कुल ही छोड़ दिए। कहते भी तो हैं कि “शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते” अर्थात् शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में शास्त्र-चर्चा होती है। बाहुबल के अभाव में मनोबल पराभूत हो ही जाता है। बहुत से लोग शान्ति और अध्यात्म को न समझते हैं, न ही समझ सकते हैं। ऐसे में या तो स्वयं दुर्जनों के हाथों दलन को स्वीकार करें या मारे जाएँ अथवा तेजस्विता का वरण करें और खड्ग से धर्म की रक्षा करें। हाँ, यह सदैव ध्यान में रहे कि खड्ग का उपयोग धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए हो, न कि निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए। अतः प्रत्येक व्यक्ति को मनोबल और विद्याबल के साथ बाहुबल को बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए।

    महात्मा गांधी चाहते थे कि गांवों का विकास हो. साथ ही वे चाहते थे कि ग्रामीण जीवन के मूल्यों का संरक्षण किया जाए।

    दीनदयाल उपाध्याय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारक रहे हैं। चाणक्य नीति अध्याय 7  के कुछ ऐसे श्लोकों पर विचार करने पर हम समझ सकते हैं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों की आवश्यकताहोती है

    हस्ती अंकुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते।
    शृंगीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥

    भावार्थ हाथी अंकुश से, घोड़ा चाबुक से, बैल आदि सींग वाले जानवर डण्डे से बस में रहते हैं, लेकिन बुरे लोगों को बस में करने के लिए तो कई बार तलवार ही हाथ में लेनी पड़ती है।

    व्याख्या शस्त्र और शास्त्र दोनों ही आवश्यक हैं। भारत के पराभूत होने का एक कारण यह भी है कि हमने शास्त्र को तो बहुत अधिक महत्व दिया, लेकिन शस्त्र बिल्कुल ही छोड़ दिए। कहते भी तो हैं कि “शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते” अर्थात् शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में शास्त्र-चर्चा होती है। बाहुबल के अभाव में मनोबल पराभूत हो ही जाता है। बहुत से लोग शान्ति और अध्यात्म को न समझते हैं, न ही समझ सकते हैं। ऐसे में या तो स्वयं दुर्जनों के हाथों दलन को स्वीकार करें या मारे जाएँ अथवा तेजस्विता का वरण करें और खड्ग से धर्म की रक्षा करें। हाँ, यह सदैव ध्यान में रहे कि खड्ग का उपयोग धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए हो, न कि निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए। अतः प्रत्येक व्यक्ति को मनोबल और विद्याबल के साथ बाहुबल को बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए।

    Tags: Cultural Nationalism, Shastra-Shastra needed, PM Narendra Modi in Tamil Nadu, Veer Vanakkam, CDS Gen Bipin Rawat, Deen Dayal Upadhyay, Yogi Aditya Nath Tweet, Chanakya Niti, Russia-Ukraine War Ending, Can Do, Cimate Crisis, Mahatma Gandhi’ Ideas, Atmnirbhar Bharat

  • 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर, Hindu UK PM Rishi Sunak और  अटल जी की कविता में भी छिपी है G-20 logo की Theme

    1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर, Hindu UK PM Rishi Sunak और अटल जी की कविता में भी छिपी है G-20 logo की Theme

    G-20 के Logo में कमल का फूल हमारी आस्था और बौद्धिकता को कर रहा चित्रित, ‘वसुधैव कुटुंबकम’  #vasudhaivkutumkam जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो ही Theme में भी समाहित- PM @narendramodi

    #G20  @g20org

    पीएम @narendrmodi ने G-20 का Logo का अनावरण करते हुए कहा कि इसमें कमल का फूल, भारत की पौराणिक धरोहर, हमारी आस्था और हमारी बौद्धिकता को चित्रित कर रहा है। हमारे यहां अद्वैत का चिंतन जीव मात्र के एकत्व का दर्शन रहा है। ये दर्शन, आज के वैश्विक द्वंदों और दुविधाओं के समाधान का माध्यम बने, इस Logo और Theme के जरिए हमने ये संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध से मुक्ति के लिए बुद्ध के जो संदेश हैं, हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं, G-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे रहा है। #vasudhaivkutumkam के मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो विचार इस Logo और Theme में प्रतिबिम्बित हो रहा है।

    भारत की सोच और सामर्थ्य से विश्व को परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी

    पीएम मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि दुनिया में जब भी G-20 जैसे बड़े platforms का कोई सम्मेलन होता है, तो उसके अपने diplomatic और geo-political मायने होते हैं। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन भारत के लिए ये समिट केवल एक डिप्लोमैटिक मीटिंग नहीं है। भारत इसे अपने लिए एक नई ज़िम्मेदारी और अपने प्रति दुनिया के विश्वास के रूप में देखता है। आज विश्व में भारत को जानने की, भारत को समझने की एक अभूतपूर्व जिज्ञासा है। भारत का नए आलोक में अध्ययन, हमारी वर्तमान की सफलताओं का आकलन किया जा रहा है। इसके साथ ही हमारे भविष्य को लेकर अभूतपूर्व आशाएँ प्रकट की जा रही हैं। ऐसे में ये हम देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हम इन आशाओं-अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर करके दिखाएं। ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत की सोच और सामर्थ्य से, भारत की संस्कृति और समाजशक्ति से विश्व को परिचित कराएं।

    अटल जी की कविता : हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय

    डेस्‍क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले और गाय की पूजा करने वाले #UK के PM @RishiSunak

    साल 2020 में ऋषि सुनक को वित्‍त मंत्री की शपथ दिलाई गई

    इस दौरान उन्‍होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली

    उन्‍होंने एक बार कहा था, ‘भारत मेरी धार्मिक और सांस्‍कृतिक विरासत है’

    ऋषि सुनक को वित्‍त मंत्री की शपथ दिलाई गई। इस दौरान उन्‍होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली और वो हर भारतीय के फेवरिट बन गए। इस पर एक ब्रिटिश अखबार ने जब उनसे पूछा तो उन्‍होंने अपने ही अंदाज में ऋषि ने कहा, ‘मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं लेकिन मेरा धर्म हिंदू है। भारत मेरी धार्मिक और सांस्‍कृतिक विरासत है। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है।’ अपनी डेस्‍क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले सुनक धार्मिक आधार पर बीफ त्‍यागने की अपील भी कर चुके हैं। वो खुद भी बीफ का सेवन नहीं करते हैं। ऋषि, शराब भी नहीं पीते हैं। 

    मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।

    मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।

    मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

    मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

    मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।

    इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।

    हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

    मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।

    जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?

    शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।

    विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।

    यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।

    गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?

    हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

    अटल जी की इस कविता में भी छिपी है G-20 थीम Theme G-20 Bharat 23 India logo की Theme

    1857 क्रांति: अंग्रेजों ने दुनिया को बोला था झूठ, वीर सावरकर ने बताया था प्रथम राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम

    1857 की क्रांति एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने इतिहास में कालविभाजक की स्थिति अर्जित की। क्रांतिकारी और विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रांति पर अपनी कालजयी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में इस क्रांति को भारत का ‘प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम’ का नाम दिया।

    1857 की पहली घटना से लेकर स्वाधीनता के लिए आखिरी सांस तक जूझते भारतीय सैनिकों के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाही विद्रोह कहकर दुनिया की आंखों में बखूबी धूल झोंकी। अगर वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति को आज भी अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखा जाता। उन्होंने ही इस क्रांति के यथार्थ को सामने रखा व इसे प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य समर के रूप में प्रतिष्ठापित किया।

    1857 की क्रांति अपने प्रभाव व क्षेत्र में इतनी विस्तृत और तीव्र थी कि इसने अंग्रेजों को लगभग हतोत्साहित कर दिया था। उनके हृदय से भारत पर चिरकाल तक शासन कर पाने की आकांक्षाएं तिरोहित हो चुकी थीं।

    1857 में क्रांति की चिंगारी देश में हर तरफ धधक रही थी. क्रांतिकारियों द्वारा इस चिंगारी को भरपूर हवा दी जा रही थी, लेकिन इस चिंगारी को लहर बनाने के लिए जरूरी था कि आम नागरिक इस आंदोलन से जुड़ जाएं।

    महारानी लक्ष्मीबाई ने लोगों तक क्रांति का संदेश पहुंचाने के लिए दो प्रतीक चिन्हों को चुना.ये प्रतीक चिन्ह थे रोटी और खिला हुआ कमल।

    रोटी और कमल, क्रांति का प्रतीक चिन्ह भी हो सकता है यह अंग्रेजों के लिए सोचना मुश्किल था. लोगों ने एक दूसरे के घर तक रोटी और कमल पहुंचाया तो क्रांति का संदेश घर-घर तक पहुंच गया. इस रोटी और कमल ने कमाल कर दिया और फिर एक साथ सभी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया।

    1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को कभी ‘किसान विद्रोह’ तो कभी ‘सैनिक विद्रोह’ का नाम दिया गया, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह सुनियोजित अभियान था। ‘रोटी’ और ‘कमल’ इस अभियान की खासियत थे। कानपुर के वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, नाना साहब पेशवा के रणनीतिकार तात्या टोपे ने बेहद कुशलता से इसे अमलीजामा पहनाया और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी हैरान रह गए। वे कमल और रोटी के निहितार्थ समझ ही नहीं सके।

    नवीन चंद पटेल ने बताया कि रोटी और कमल को चुनने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण था. रोटी इस बात का प्रमाण थी कि आपको अपने लिए भोजन और रसद की तैयारी भी रखनी होगी क्योंकि युद्ध कब तक चलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं था. इसी तरह कमल को सुख और समृद्धि के प्रतीक के रूप में चुना गया था।  इसके माध्यम से यह सन्देश पहुंचाया गया कि अगर पूरी ताकत से युद्ध लड़ा गया तो अंग्रेजों को भगा दिया जाएगा और सुख समृद्धि वापस आ जाएगी. रोटी और कमल की जोड़ी ने जो कमाल किया था उसी को आज हम 1857 की क्रांति के रूप में याद करते हैं।

    Tags: UK PM Rishi Sunak, G-20 Logo Theme, Kamal Flower, Vasudhaivkutumkam, Narendra Modi, Buddh Message, Atal Bihari Vajpayee poem, Hindu Tanman Hindu jivan, 1857 kamal roti

  • Tirupati मंदिर धार्मिक आस्था व सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

    Tirupati मंदिर धार्मिक आस्था व सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

    तिरुपति मंदिर आस्था व सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है, हमारी शाश्वत आस्था का प्रतीक है, राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है। तिरुपति बालाजी भारत की आस्था हैं, भारत के आदर्श हैं। बालजी सबके हैं, सब में हैं और उनकी यही सर्वव्यापकता भारत का विविधता में एकता का चरित्र दिखाती है। आस्था के प्रतीकों से सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था को मिलती है ताकत। संस्कृत का संवर्द्धन राष्ट्र का कर्तव्य है।

    तिरुपति बालाजी मंदिर अपनी धार्मिक मान्यताओं और वैज्ञानिक रहस्यों के कारण भारत का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है।  भारत की संस्कृति और आस्था का प्रतीक है।

    रविंद्र नाथ टैगोर गोर ने कहा है, ‘भारत ने तीर्थ यात्रा के स्थलों को वहां चुना, जहां प्रकृति में कुछ विशिष्ट रमणीयता या सुंदरता थी, जिससे उसका मन संकीर्ण आवश्यकताओं से ऊपर उठ सके और अनंत में अपनी स्थिति का परिज्ञान कर सके।’तिरुपति बालाजी भगवान भारत की सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक हैं। देश में बाला जी  के प्रति गहरी आस्था व निष्ठा है।

    तीर्थ भारतीय मन के आकर्षण हैं। प्राय रमणीय स्थलों पर सैर-सपाटे को पर्यटन कहते हैं तो श्रद्धाभाव से धार्मिक स्थलों की यात्रा तीर्थाटन। पर्यटक उपभोक्ता होता है और तीर्थयात्री सांस्कृतिक। तीर्थ से लौटे व्यक्ति-परिवार में आनंद होता है। तीर्थ असाधारण मान्यता है। यह मान्यता अत्यंत प्राचीन है। भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चार पुरुषार्थ हैं। पर्यटन में अर्थ और काम केवल दो पुरुषार्थ हैं, परंतु तीर्थाटन में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थ हैं।

    Itihasa | तिरुपति बाला जी: इतिहास और विरासत

    तिरुपति मंदिर हजारों वर्षों से पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और दक्षिण में पल्लवों से विजयनगर के राय राजवंश द्वारा संरक्षित किया गया था। इस मंदिर में आज भी लाखों श्रद्धालु आते हैं।

    यह मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति शहर में तिरुमाला या तिरुमलय पहाड़ी पर स्थित है। यह पूर्वी घाट में शेषचलम श्रेणी का हिस्सा है जिसमें सात चोटियाँ हैं। भक्तों का मानना ​​है कि ये सात चोटियां नागराज आदिश के सात फनों का प्रतिनिधित्व करती हैं। पर्वतमाला को देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी कुंडली में सांप बैठा हो।

    कहा जाता है कि तिरुमाला के भगवान श्री वेंकटेश्वर का सबसे पहला उल्लेख ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के तमिल साहित्यिक ग्रंथ तोल्काप्पियम में पाया गया था। श्री वेंकटेश्वर को सात पहाड़ों के भगवान के रूप में जाना जाता है और माना जाता है कि कलियुग (हिंदू धर्म के अनुसार दुनिया के चार राज्यों में से एक) में भगवान विष्णु का अवतार था। कहा जाता है कि यहाँ के मुख्य देवता की मूर्ति एक स्वयंभू मूर्ति है। इस कारण मंदिर को अपने सभी भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है।

    पुराणों में मंदिर के बारे में कई कथाएं और कथाएं हैं। वराह पुराण के अनुसार, मंदिर का निर्माण टोंडमन शासक द्वारा किया गया था। राजा टोंडमन ने इस मंदिर को एक बांबी (चींटियों का पहाड़) से खोजा था और फिर इसे बनवाया और यहां पूजा करने लगे। कहा जाता है कि टोंडमन ने मंदिर में कई त्योहारों की शुरुआत की थी।

    मूल मंदिर के विस्तार और दान का उल्लेख है। 9वीं शताब्दी के बाद से पल्लव, चोल और विजयनगर राय राजवंशों द्वारा मंदिर का विस्तार और दान किया गया था। मंदिर की दीवारों, स्तंभों और गोपुरम में तमिल, तेलुगु और संस्कृत भाषाओं में 600 से अधिक शिलालेख हैं। इनसे हमें 9वीं शताब्दी में पल्लव शासकों के समय में मंदिर के क्रमिक उत्थान से लेकर 17वीं शताब्दी में विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय और उनके उत्तराधिकारी अच्युतदेव राय के समय तक मंदिर के वैभव और धन के बारे में जानकारी मिलती है।

    टोंडैमंडलम में बदलते राजनीतिक परिदृश्य का असर मंदिर और मंदिर के प्रशासन पर भी पड़ता था।

    तिरुमाला-तिरुपति क्षेत्र को बाद में तोंडमंडलम में मिला दिया गया।

    मंदिर में पाए गए पल्लव शासन के अभिलेखों में पल्लव शासकों द्वारा शुरू किए गए प्रकाश, भोजन के लिए दान और मंदिर के प्रशासन का उल्लेख है। दिलचस्प बात यह है कि पल्लव के अधीन चोल राजा राजा- I की पत्नी सामवई, 966 के आसपास मंदिर के दानदाताओं में से एक थीं। उन्होंने मंदिर को दो भूमि और बहुत सारे गहने दान किए।

    तोंडमंडलम पर चोल राजा आदित्य-प्रथम ने 10वीं शताब्दी में कब्जा कर लिया था और तब से यह 13वीं शताब्दी के मध्य तक चोल साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। चोल राजाओं ने न केवल मंदिर का विस्तार किया, बल्कि मंदिर के प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंदिर के प्रबंधन के लिए प्रबंधकों की नियुक्ति की जाती थी, जिस पर चोल राजाओं के अधिकारी उनकी देखभाल करते थे।

    तोंडमंडलम के इतिहास में अगला चरण तिरुपति बालाजी मंदिर के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। 1336 में विजयनगर राजवंश ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और यह चोल वंश के अंत तक उसी साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। विजयनगर राजाओं के शासनकाल में ही इस मंदिर को सबसे अधिक सुरक्षा मिली और इससे इसकी संपत्ति में वृद्धि हुई और इसकी महिमा भी बढ़ी। तिरुमाला और तिरुपति ने विजयनगर साम्राज्य (14वीं से 17वीं शताब्दी) के संगम वंश, सालुवा वंश, तुलुवा वंश और अरविदु वंश के शासन के दौरान अपना उदय देखा।

    अभिलेखों से पता चलता है कि संगम वंश के प्रमुख जागीरदार महामंदेश्वर मंगिदेव ने 1369 में गर्भगृह में सोने की कलश लगाकर मंदिर के शीर्ष पर एक सोने का कलश स्थापित किया था। 1495 के अभिलेखों के अनुसार, सलुवा वंश के नरसिंह राय ने मंदिर में तीज-त्योहार शुरू किया था और एक उद्यान और एक गोपुरम का निर्माण किया था। उन्होंने मंदिर के रख-रखाव के लिए करीब एक दर्जन गांवों को दान दिया।

    तुलुव वंश के दो प्रमुख शासक कृष्णदेव राय और अच्युतदेव राय, श्री वेंकटेश्वर के भक्त थे और उन्होंने मंदिर के लिए बहुत दान दिया। विजयनगर के प्रमुख राजाओं में से एक कृष्णदेव राय (1509-1529) ने अनुदान के रूप में मंदिर को लगभग बीस गाँव दान में दिए। वे श्री वेंकटेश्वर को अपना अधिष्ठाता देवता मानते थे। तिरुपति मंदिर में पाए गए लगभग 85 शिलालेखों में कृष्णदेव राय और उनकी पत्नियों की तिरुमाला की यात्रा और उनके द्वारा मंदिर को दिए गए दान का उल्लेख है। कृष्णदेव राय के शासनकाल में बहुत समृद्धि थी, यह इस तथ्य से जाना जाता है कि उस समय के कुलीन, सैनिक और शाही अधिकारी मंदिर को धन दान करते थे। उनके दान के एवज में मंदिर में उनके नाम पर धार्मिक संस्कार और अनुष्ठान किए जाते थे। राजा ने मंदिर को सोने-चांदी के कई बर्तन, आभूषण आदि भी दान में दिए। कहा जाता है कि तिरुपति वेंकटेश्वर के मंदिर में सोने की कलाई कृष्णदेव राय द्वारा बनाई गई थी।

    श्री वेंकटेश्वर की मूर्ति

    हालांकि 17वीं शताब्दी में विजयनगर का पतन हो गया था, मैसूर के वाडियार और नागपुर के भोंसले शासकों ने मंदिर की मदद करना जारी रखा।

    उस समय तिरुमाला-तिरुपति क्षेत्र पर 17वीं शताब्दी के मध्य तक गोलकुंडा के सुल्तानों का कब्जा था। इसके बाद 1758 में फ्रांसीसियों ने तिरुपति पर कब्जा कर लिया और उन्होंने मंदिर से प्राप्त राजस्व से अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया। इस क्षेत्र पर कर्नाटक के नवाबों का भी शासन था जिन्होंने 1690 और 1801 के बीच दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्रों (पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच दक्षिण भारत का क्षेत्र) पर शासन किया था।

    19वीं शताब्दी की शुरुआत में भारत में अंग्रेजों के आने के बाद, मंदिर का प्रबंधन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में चला गया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंदिर के प्रबंधन, उससे होने वाली आय, आय के स्रोत, पूजा और पूजा की अन्य परंपराओं आदि पर नजर रखना शुरू कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि 1801 और 1811 के बीच तिरुपति मंदिर का राजस्व एक लाख रुपये था। 19वीं शताब्दी के मध्य में मंदिर प्रशासन में फेरबदल किया गया।

    सन1500 में उत्तर भारत के संत हाथीराम भावजी या हाथीराम बाबा भक्त 1500 में उत्तर भारत के संत हाथीराम भावजी या हाथीराम बाबा मंदिर आए थे और श्री वेंकटेश्वर के भक्त बन गए थे। 1843 और 1932 के बीच मठ ने एक कार्यकारी समिति या मध्यस्थ के रूप में मंदिर की जिम्मेदारी संभाली। 1932 में, मद्रास सरकार ने तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम अधिनियम पारित किया, जिसके तहत मंदिर के लिए एक ट्रस्ट बनाया गया, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम। स्वतंत्रता के बाद, जब भारतीय राज्यों को भाषा के आधार पर विभाजित किया गया, तिरुपति और मंदिर आंध्र प्रदेश में चले गए।

    आज तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम एक बड़ा संगठन बन गया है, जिसके तहत न केवल तिरुपति मंदिर आता है, बल्कि पूरा तिरुपति शहर भी आता है। यह ट्रस्ट तिरुपति नगर निगम से लेकर विष्णु के निवास तक की सात पहाड़ियों की देखभाल भी करता है।

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  • कार्बन मुक्त भारत के लिए सूर्य और पवन पुत्र की पूजा अर्थात पवन और सौर ऊर्जा का अति महत्त्व

    कार्बन मुक्त भारत के लिए सूर्य और पवन पुत्र की पूजा अर्थात पवन और सौर ऊर्जा का अति महत्त्व

    दिल्ली ही नहीं सम्पूर्ण भारत के ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिए पवन और सौर ऊर्जा को महत्त्व देना आवश्यक। सौर ऊर्जा जैसे ही विंड टरबाइन का भी महत्व भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए महत्त्व पूर्ण है। ऊर्जा प्रणाली में सौर और ऑन- और ऑफशोर पवन ऊर्जा को एकीकृत करने की भारत की क्षमता की विस्तृत चर्चा एक रिसर्च पेपर में की गई है।

    जर्मनी में कोयले और पेट्रोल की जगह सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। जर्मनी ने पिछले सालों में जीवाश्म उर्जा पर निर्भरता कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का फैसला किया और इसके लिए वहां लगातार कदम उठाए जा रहे हैं।

    CR2 सौर ऊर्जा जैसे ही विंड टरबाइन का भी महत्व भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए महत्त्व पूर्ण है। अपनी ऊर्जा प्रणाली में सौर और ऑन- और ऑफशोर पवन ऊर्जा को एकीकृत करने की भारत की क्षमता की चर्चा यहाँ की गई है। सौर ऊर्जा जैसे ही विंड टरबाइन का भी महत्व भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए महत्त्व पूर्ण  है। इसके लिए  करने के लिए जर्मनी का अनुकरण करना आवश्यक है। जर्मनी में कोयले और पेट्रोल की जगह सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। जर्मनी ने पिछले सालों में जीवाश्म उर्जा पर निर्भरता कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का फैसला किया और इसके लिए वहां लगातार कदम उठाए जा रहे हैं।

    नवीकरणीय ऊर्जा जीवाश्म-आधारित विकल्पों का उपयोग करके आपूर्ति की जा सकने वाली ऊर्जा के साथ सस्ती या कम से कम प्रतिस्पर्धी बिजली का स्रोत प्रदान कर सकती है।

    क्या होती है नवीकरणीय ऊर्जा?

    यह ऐसी ऊर्जा है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन, ज्वार, जल और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को शामिल किया जाता है।

    उल्लेखनीय है कि यह कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है और इसे लगातार नवीनीकृत किया जाता है।

    नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों (जो कि दुनिया के काफी सीमित क्षेत्र में मौजूद हैं) की अपेक्षा काफी विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं और ये सभी देशों को काफी आसानी हो उपलब्ध हो सकते हैं।

    ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि इनके साथ कई प्रकार के आर्थिक लाभ भी जुड़े होते हैं।

    पवन और सौर ऊर्जा द्वारा देश की कोयले पर वर्तमान निर्भरता को कम करना  आवश्यक

    सस्ती या कम से कम प्रतिस्पर्धी बिजली का स्रोत: भविष्य की भारतीय बिजली अर्थव्यवस्था के विकल्पों पर विचार करता है जिसमें नवीकरणीय, पवन और सौर, देश की कोयले पर वर्तमान निर्भरता को कम करते हुए अनुमानित 2040 बिजली की मांग का 80% पूरा कर सकते हैं। 

    India’s potential for integrating solar and on- and offshore wind power into its energy system

    भारत में बिजली उत्पादन की क्षमता 2018 में 344 GW थी, जिसमें 197 GW (57%), हाइड्रो 49.8 GW (14%), विंड 34.0 GW (10%), गैस 24.9 GW (7%) और कोयले की हिस्सेदारी थी। सौर 21.7 GW (6%) बायोमास 8.8 GW (3%) और परमाणु 6.8 GW (2%)

    NITI Aayog (भारत सरकार के लिए एक नीति थिंक टैंक) ने 2022 के लिए 175 GW अक्षय क्षमता का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसमें से 160 GW पवन या सौर 2 के रूप में होगा । इन विचारों का अनुसरण करते हुए, भारत के ऊर्जा क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने के लिए व्यवहार्य अक्षय मार्गों का आकलन एक महत्वपूर्ण और तत्काल चुनौती पेश करता है। भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद राष्ट्रीय एकता के साथ साथ भारत के आर्थिक तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है।

    कार्बन मुक्त भारत के लिए सूर्य और पवन पुत्र की पूजा अर्थात पवन और सौर ऊर्जा का अति महत्त्व है।

    छठ सूर्य उपासना ही नहीं आमतौर पर भारत में दिन सूर्य नमस्कार surynamaskar के साथ शुरु होता है। इसमें लोग सूर्य को जल चढ़ाते हैं और मंत्र पढ़कर प्रार्थना करते हैं। भारतीय लोग प्रकृति की पूजा Nature Worship करते हैं और यह इस संस्कृति की अनूठी बात है। 

    कोणार्क मोढेरा सूर्य मंदिर और सूर्य नमस्कार भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद  के प्रतीक, प्रधानमंत्री ने मोढेरा को भारत का पहला 24×7 सौर ऊर्जा संचालित गांव भी घोषित किया।         

    स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम में, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को गुजरात के मेहसाणा जिले के एक गांव मोढेरा को भारत का पहला सौर ऊर्जा संचालित गांव घोषित करेंगे , राज्य सरकार ने कहा। मोढेरा अपने सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । ट्वीट्स की एक श्रृंखला में जानकारी साझा करने वाली गुजरात सरकार के अनुसार, गाँव के घरों में 1000 से अधिक सौर पैनल लगाए गए हैं, जिससे ग्रामीणों के लिए चौबीसों घंटे बिजली पैदा होती है। गौरतलब है कि उन्हें जीरो कॉस्ट पर सोलर बिजली मुहैया कराई जाएगी।

    वायु जीवन के लिए मूलभूत घटक है। यह Golden egg shell में प्रकट होने के समय भगवान श्री हरि विष्णु के साथ विकसित हुआ था। इसका नियंत्रण पवन-वायु देव द्वारा किया जाता है। पवन देव श्री हनुमान जी महाराज और भीम सेन के पिता हैं। केसरी नंदन होते हुए भी वायु पुत्र क्यों कहलाते हैं हनुमान जी: पवन वेग जैसी शक्ति युक्त होने से सूर्य के साथ उनके रथ के समानांतर चलते-चलते अनन्य विद्याओं एवं ज्ञान की प्राप्ति करके अंजनी पुत्र पवन पुत्र हनुमान कहलाए। 

    सौर ऊर्जा जैसे ही विंड टरबाइन का भी महत्व भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए महत्त्व पूर्ण है। 

    वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो जर्मनी में कोयले और पेट्रोल की जगह सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। जर्मनी ने पिछले सालों में जीवाश्म उर्जा पर निर्भरता कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का फैसला किया और इसके लिए वहां लगातार कदम उठाए जा रहे हैं।

    वर्तमान में पवन ऊर्जा क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ रहा है। खासकर चीन और अमेरिका ने पवन ऊर्जा से संबंधित अपनी शक्ति दोगुनी कर ली है। वैश्विक विद्युत उत्पादन के अक्षय ऊर्जा स्रोतों में पवन ऊर्जा का भाग बढ़ रहा है। हाल ही में इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन ने बताया है कि अपतटीय पवन ऊर्जा की संभावना आन्तरिक पवन ऊर्जा से कहीं अधिक है। इस क्षेत्र में निवेश की आकर्षक संभावनाएँ हैं।

    प्राचीन काल में पवन ऊर्जा का उपयोग नावों और जलपोतों को चलाने में किया जाता था। फिर इस ऊर्जा का उपयोग पनचक्कियों में पाइपों द्वारा पानी को उठाने में किया जाने लगा। अब वैज्ञानिकों ने पवन वेग से टरबाइनों को चला कर विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में नई क्रांति ला दी है। उम्मीद है कि पवन टरबाइनों के जरिए अब पूरे विश्व की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जा सकेगा।

    Gautam Group ने बनाया स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से ऊंचा विंड टर्बाइन

  • छठ सूर्य उपासना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

    छठ सूर्य उपासना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

    छठ पर्व परअपने मन की बात के 94वें एपिसोड में प्रधानमंत्री ने कहा, “छठ का त्योहार भी एक भारत श्रेष्ठ भारत का एक उदाहरण है। र्य उपासना की परंपरा इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था का, प्रकृति से कितना गहरा जुड़ाव है।

    उत्तराखंड का उत्तरायण पर्व, केरल का ओणम, कर्नाटक की रथसप्तमी और पूर्वी भारत में छठ-पूजा सूर्योपासना के प्रमाण हैं। सूर्योपासन ऋगवैदिक काल से होती आ रही है। विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि में सूर्योपासना का वर्णन है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित होती। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है।

    दिने दिने नवम् नवम्…. नमामि नंद नंदनंभारतीय संस्कृति के अनुसार नित्य नए उत्सव और पर्वों को मनाकर हम नित्य नवीन भावों से जीवन को भर लेते है। छठ पर्व पर सूर्य उपासना सांस्कृतिकराष्ट्रवादका प्रतीक है। भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एकता के प्रतीक पर्वों की कड़ी मे लोहड़ी, मकर संक्रांति, पोंगल, बिहू तिल कुट माघी खिचड़ी अन्य अनेकादि नामों से जाने जाने वाले सभी पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं। #HappyChhath


    दिने दिने नवम् नवम्…. नमामि नंद नंदनं… भारतीय संस्कृति के अनुसार नित्य नए उत्सव और पर्वों को मनाकर हम नित्य नवीन भावों से जीवन को भर लेते है। छठ पर पीएम मोदी ने कहा कि सूर्य उपासना की परंपरा इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था का, प्रकृति से कितना गहरा जुड़ाव

    छठ पूजा एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है जो स्वस्थ, सुखी और समृद्ध जीवन के लिए सूर्य भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य के प्रकाश में विभिन्न रोगों और स्थितियों का इलाज होता है। पवित्र नदी में डुबकी लगाने से कुछ औषधीय और आध्यात्मिक लाभ भी मिलते हैं। इसे आज का विज्ञान भी मान्यता देता है, भारत में सूर्योपासना की परंपरा वैदिककाल से ही रही है

    आमतौर पर भारत में दिन सूर्य नमस्कार surynamaskar के साथ शुरु होता है। इसमें लोग सूर्य को जल चढ़ाते हैं और मंत्र पढ़कर प्रार्थना करते हैं। भारतीय लोग प्रकृति की पूजा Nature Worship करते हैं और यह इस संस्कृति की अनूठी बात है। हिंदू धर्म में पेड़ों और जानवरों को भगवान की तरह पूजा जाता है। लोग भगवान में विश्वास रखते हैं और कई त्यौहारों पर उपवास रखते हैं। वे सुबह का ताज़ा खाना गाय को और रात का आखिरी खाना कुत्ते को देते हैं। दुनिया में कहीं भी इस तरह की उदारता नहीं देखी जाती।

    सूर्य देव का वरदान है- सौर ऊर्जा: पीएम मोदी ने कहा, “सूर्य देव का ये वरदान है – ‘सौर ऊर्जा’। Solar Energy आज एक ऐसा विषय है, जिसमें पूरी दुनिया अपना भविष्य देख रही है और भारत के लिए तो सूर्य देव सदियों से उपासना ही नहीं, जीवन पद्धति के भी केंद्र में रह रहे हैं। भारत, आज अपने पारंपरिक अनुभवों को आधुनिक विज्ञान से जोड़ रहा है, तभी, आज हम, सौर ऊर्जा से बिजली बनाने वाले सबसे बड़े देशों में शामिल हो गए हैं। सौर ऊर्जा से कैसे हमारे देश के गरीब और मध्यम वर्ग के जीवन में बदलाव आ रहा है, वो भी अध्ययन का विषय है।”

    वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। सौर-सिद्धांत के अनुसार हर जातक के पराक्रम, तेज, यश, ज्ञान, क्रोध और हिंसा के भाव सूर्य प्रभाव से निर्धारित होते हैं। सूर्य की उपासना से ओजस, तेजस और ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है। भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। ये सिंह राशि के स्वामी है। पिता का प्रतिधिनित्व करने वाले सूर्य पुरुष ग्रह हैं, जिनके प्रभाव से आयु की गणना होती है। मंदिर, महल, जंगल, किला और नदी औरंगाबाद जिला के देव में अवस्थित इस सूर्य मंदिर का मुख पश्चिम दिशा की ओर है। मंदिर का शिल्प उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता है, जो दो भागों में बना है। पहला गर्भ गृह, जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर स्वर्ण कलश है। दूसरा भाग मुखमंडप है, जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तंभ है। मंदिर का गुंबद करीब सौ फीट ऊंचा है।

    भारत के लिए, सूर्य भगवान की न केवल सदियों से पूजा की जाती रही है, बल्कि यह हमारे जीवन के तरीके का भी केंद्र बिंदु रहा है। आज प्रधानमंत्री ने कहा, भारत अपने पारंपरिक अनुभवों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ रहा है और सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने वाले सबसे बड़े देशों में से एक बन गया है। उन्होंने कहा कि सौर ऊर्जा देश के गरीब और मध्यम वर्ग के जीवन को कैसे बदल रही है यह भी अध्ययन का विषय है। आपने कुछ दिन पहले, देश के पहले सूर्य ग्राम- गुजरात के मोढेरा की खूब चर्चा सुनी होगी। उन्होंने जानकारी दी कि मोढेरा सूर्य ग्राम के ज्यादातर घर, सोलर पावर से बिजली पैदा करने लगे हैं और अब वहाँ के कई घरों में महीने के आखिर में बिजली का बिल नहीं आ रहा, बल्कि, बिजली से कमाई का चेक आ रहा है। उन्होंने बताया कि हमारा देश, Solar Sector के साथ ही अंतरिक्ष सेक्टर में भी कमाल कर रहा है। पूरी दुनिया, आज भारत की उपलब्धियाँ देखकर हैरान है।

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  • नाथद्वारा में स्थापित हुई दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा

    नाथद्वारा में स्थापित हुई दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा

    शाह बानो मामला: जब मुस्लिम कट्टरपंथियों, मौलवियों ने 1984 में चुनी गई तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण अधिनियम), 1986 पारित करने के लिए प्रेरित किया। इस कानून ने शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलट दिया। अर्थात राजीव गांधी ने तलाक के दौरान मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार की रक्षा करने वाले SC के फैसले को पलट दिया।

    1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में उन्हें तलाक देने वाले शौहर को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल बताकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जबरदस्त विरोध करने लगे। 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए, संसद में कानून बनाकर फैसला पलट दिया।

    इसके बाद राजिक गाँधी सरकार पर  सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगने लगे। डैमेज कंट्रोल के लिए राजीव गांधी ने एक और ऐतिहासिक भूल कर दी। इस बार हिंदू तुष्टीकरण की। 37 सालों से बंद अयोध्या के विवादित बाबरी ढांचे स्थित रामललाका 1986 में ताला खोल दिया गया। ताला ही नही खुला। राजीव गांधी ने खुद अयोध्या पहुंच पूजा-अर्चना की। विवादित स्थल के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास तक कर डाला। राजीव गांधी की इस दूसरी गलती से अयोध्या मामला गरमा गया। लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ दिया। उसी आंदोलन की बदौलत बीजेपी ने पहले राज्यों और फिर बाद में केंद्र में सत्ता का स्वाद चखा। आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में है। कई राज्यों में उसकी सरकारें हैं। २०२४ के लोक सभा चुनाव में भी  —–के जीत की भविष्यवाणी राजनीतिज्ञ ुर सर्वे  कर रहे हैं।

    इसी वोटबैंकपोलिटिक्स और ब्रिटिश अंग्रेजों की Divide & Rule की नीति को कांग्रेस १९४७े बाद भी अपनाते आ रही है। कांग्रेस शासित राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है।

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की  विरोधी कोंग्रस

    राजस्थान सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार करते हुए राजस्थान की गहलोत सरकार में धर्म के आधार पर भेदभाव, रीट एग्जाम में उतरवाए गए दुपट्टे, मंगलसूत्र और चूड़ियां, हिजाब पहनकर परीक्षा देने की मिली छूट: कांग्रेस शासित राज्यों में हिन्दू होना गुनाह बन गया है। इसका प्रमाण राजस्थान में रीट एग्जाम के दौरान देखने को मिला। परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र में प्रवेश को लेकर प्रशासन ने इतनी सख्ती दिखाई कि हिन्दू महिलाओं और युवतियों के दुपट्टे उतरवा दिए गए और कपड़ों पर लगे बटन तक काट दिए। यहीं नहीं महिलाओं के मंगलसूत्र, चूड़ियां, बालों की क्लिप, साड़ी पिन निकलवा दी गई।

    राजस्थान सरकार ने मदरसों में पढ़ने वाले 5वीं कक्षा के छात्रों की बोर्ड परीक्षा की फीस माफ करने का फैसला किया है। छात्र तो सब एक होते हैं फिर उनके साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। रमजान के महीने में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बिजली कटौती नहीं करने का आदेश दिया। इसके विपरीत, हिंदू त्योहारों पर कई जिलों में धारा 144 लागू किया गया और रैली आदि निकालने के लिए पुलिस की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया।

    कॉन्ग्रेस की ‘मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट चढ़े कन्हैया लाल:राजस्थान के उदयपुर (Udaipur, Rajasthan) में मंगलवार (28 जून 2022) को कन्हैया लाल साहू नाम के हिंदू व्यक्ति की गला काटकर दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। इस्लामी आतंकियों ने न सिर्फ गला काटा, बल्कि बाद में वीडियो भी बनाया और उनके रसूल की गुस्ताखी पर लोगों को धमकाया।

    मुस्लिम तुष्टिकरण की हद पार करने के बाद हार की कगार पर कड़ी गहलोत सरकार हिन्दुओं को खुश करने के लिए राजस्थान के नाथद्वार में दुनिया की सबसे ऊंची 369 फीट की शिव प्रतिमा का आज अनावरण नवंबर २९, २०२२ को किया गया।

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उद्घोषक भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार

    Kahi[Tamil-Sangamam

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला 2014 में क्यों किया था ? इस  सवाल का जवाब वास्तव तत्काल चुनावी गणना के अलावा  सांस्कृतिक संदर्भें भी छिपा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए 13 दिसंबर, 2021 में मोदी ने कहा था कि काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन भारत को एक निर्णायक दिशा देगा और एक उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत करेगा।

    मध्यकाल में अस्था के स्थलों पर सुनियोजित हमले हुए। किन्तु आस्था का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण हुआ था। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। साँस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। यह क्रम निरंतर जारी है।

    अब ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।

    ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजन

    कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है।

    कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है। “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजनहै।

    अयोध्या में भव्य राम मंदिर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक

    अयोध्या में श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण से भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जुड़ रहा है। वास्तव में भारत का राष्ट्रवाद राजनीतिक नहीं, भौतिकवादी नहीं, सांस्कृतिक है और उस
    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे पहली घोषणा श्री राम ने की थी। इसलिए वे राष्ट्र पुरुष हैं, केवल धार्मिक नहीं। श्री राम ने लंका जीत ली। अयोध्या वापसी की तैयारी होने लगी तो लक्ष्मण ने कहा,‘‘भैया अब सोने की लंका हमारी हैहम यहीं पर क्यों रहेंअयोध्या जाने की क्या आवश्यकता हैतब श्री राम ने उत्तर दिया था:

    ‘‘अति स्वर्णमयी लंका मे लक्ष्मण रोचते

    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

    यही है भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उसके बाद के देश के पूरे इतिहास में इसी राष्ट्रवाद की झलक मिलती है। विश्व में शायद कोई
    ऐसा देश नहीं जिसकीसीमाएं हजारों वर्ष पहले के ग्रंथों में मिलती हैं।

     

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  • सभी धर्मों के लिए #UAE capital #Abudhabi में पहला #Hindutemple

    सभी धर्मों के लिए #UAE capital #Abudhabi में पहला #Hindutemple

    दुबई में एक नवनिर्मित हिंदू मंदिर बुधवार अक्टूबर ५, २०२२ को एक भव्य समारोह में सभी धर्मावलंबियों के लिए खोल दिया गया। 2000 से ज्यादा कलाकृतियां इस मंदिर में लगाये जाने का निर्णय लिया गया है।मंदिर की दीवारों पर हाथियों को मालाओं के साथ उकेरा गया है।
    पं मोदी नेUAE में पहले हिन्दू मनीर की बुनियाद रखी थी २०१८ में।
    भारत के राजदूत और UAE में रहने वाले प्रवासियों का कहना है कि वे “सहिष्णुता का एक चमकदार उदाहरण” हैं जो उन्हें घर जैसा महसूस कराता है। लगभग 35 लाख भारतीय यूएई में रह रहे हैं।
    दुबई स्थित गल्फ न्यूज ने एक रिपोर्ट में कहा कि मंदिर, जो सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला है, का उद्घाटन 1 सितंबर को किया गया था । इसे यूएई का पहला समुदाय संचालित मंदिर कहा जाता है। मंदिर के बयान में कहा गया है, “हम 2022 में स्थापित एक समुदाय संचालित मंदिर हैं। हिंदू मंदिर दुबई परंपरा द्वारा सूचित एक स्थान है, जिसे विश्वास से पोषित किया जाता है और भविष्य के लिए तैयार किया जाता है।”
    यह सभी धर्मों के लिए एक समकालीन आध्यात्मिक केंद्र है, जिसमें सांप्रदायिक संबंध से लेकर पूजा, ज्ञान और सामाजिक सहायता तक देवत्व के कई चेहरे हैं।

    इसे सहिष्णुता, शांति और सद्भाव के एक मजबूत संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। गौरतलब है कि जेबेल अली गांव अलग-अलग धर्मों के उपासना स्थलों के लिए मशहूर है और वहां सात गिरजाघर, एक गुरुद्वारा और एक हिंदू मंदिर है। मंदिर 70,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला हुआ है। मंदिर में हिंदू धर्म के 16 देवी-देवताओं की मूर्तियों की स्थापना के साथ एक ज्ञान कक्ष और अन्य धार्मिक गतिविधियों के लिए सामुदायिक केंद्र है।
    बता दें कि यह मंदिर दुबई का दूसरा हिंदू मंदिर है। यहां का पहला हिंदू मंदिर 1958 में तैयार हुआ था। मंदिर की पहली मंजिल पर प्रार्थना सभागार होगा। इसके साथ ही सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब को रखने के लिए एक अलग कक्ष भी होगा।
    इन क्षेत्रों में 4,000 वर्ग फुट का बैंक्वेट हॉल, एक मल्टीपर्पस कक्ष और ज्ञान कक्ष शामिल है, जो ग्राउंड फ्लोर पर है। सामुदायिक हॉल और ज्ञान कक्ष में कई एलसीडी स्क्रीन भी इंस्टॉल किया जाएगा।
    मंदिर के ट्रस्टी राजू श्रॉफ ने कहा , “यूएई के शासकों की उदारता और सामुदायिक विकास प्राधिकरण (सीडीए) के सहयोग से, Octber ५, 2022 को दुबई में हिंदू मंदिर का आधिकारिक उद्घाटन संपन्न हुआ है। हैं।
    सहिष्णुता और सह-अस्तित्व मंत्री और संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय राजदूत के अलावा, कई हाई-प्रोफाइल सीडीए अधिकारी समारोह में भाग लिये थे।
    मंदिर की वेबसाइट आगंतुकों को प्री-बुक स्लॉट के लिए प्रोत्साहित करती है। आगंतुक और भक्त अपना नाम, मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी और आगंतुकों की संख्या प्रदान करके आधे घंटे का स्लॉट बुक कर सकते हैं। एक समूह में अधिकतम चार आगंतुकों की अनुमति है।
    यह सुबह 6 बजे से शाम 8.30 बजे तक जनता के लिए खुला रहता है और इसके लिए आगंतुकों को मामूली कपड़े पहनने की आवश्यकता होती है।
    Tags : October 5, 2022, Gulf News, Hindu Temple Dubai, All Faiths Religions, PM Narendra Modi laid the foundation, Hindu manir in UAE

  • वाराणसी ही नहीं दक्षिण भारत में भी है काशी

    वाराणसी ही नहीं दक्षिण भारत में भी है काशी

    16 नवंबर से 16 दिसंबर 2022 तक काशी-तमिल संगमम फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य तमिलनाडु और काशी में ज्ञान की प्राचीन कड़ी को जोड़ना है

    तमिलनाडु में तेनकाशी को दक्षिण की काशी के नाम से जाना जाता है।

    दस का अर्थ है दक्षिण, इसलिए तेनकाशी दक्षिण की काशी है। यह मंदिर बहुत भव्य है और भगवान शिव को समर्पित है।

    श्रीकांतेश्वर मंदिर मैसूर शहर में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को अक्सर दक्षिण भारत की काशी के रूप में जाना जाता है।

    श्रीकालहस्ती को “दक्षिणा काशी” के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र हिंदू मंदिर है जो सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के दौरान भी खोला जाता है। प्रमुख त्योहार: महा शिवरात्रि यहां देवताओं के जुलूस के साथ मनाए जाने वाले सबसे बड़े त्योहारों में से एक है।

    केरल में किस मंदिर को दक्षिण काशी के नाम से जाना जाता है?

    दक्षिण काशी के नाम से लोकप्रिय थ्रीक्कनड मंदिर बेकल से लगभग 1 किमी दूर अरब सागर के तट पर स्थित है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और मृतकों की आत्माओं की भलाई के लिए किए गए विभिन्न रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है।

    प्राचीन काल में किस शहर को दक्षिण काशी के नाम से जाना जाता था?

    कोल्हापुर को ‘दक्षिण काशी’ या दक्षिण की काशी के रूप में जाना जाता है क्योंकि इसके आध्यात्मिक इतिहास और इसके मंदिर महालक्ष्मी की पुरातनता, जिसे अंबाबाई के नाम से जाना जाता है।

    श्रीकांतेश्वर मंदिर मैसूर शहर में स्थित भगवान शिव को समर्पित एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को अक्सर दक्षिण भारत की काशी के रूप में जाना जाता है।

    किस मंदिर को दक्षिणा कैलाशम के नाम से जाना जाता है?

    महेश्वरम श्री शिवपार्वती मंदिर जिसे ‘दक्षिणा कैलासम’ के नाम से भी जाना जाता है, चेंकल, तिरुवनंतपुरम में स्थित है। यह दुनिया का एकमात्र मंदिर है, जहां भक्त एक ही स्थान पर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों और भगवान गणेश के 32 रूपों की पूजा कर सकते हैं।

    तेलंगाना में किस मंदिर को दक्षिण काशी के नाम से जाना जाता है?

    द्रश्रम भीमेश्वर मंदिर (दक्षिणा काशी के रूप में जाना जाता है), पूर्वी गोदावरी जिला (एपी) के बारे में

    नंजनगुड मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?

    कहा जाता है कि 11वीं और 12वीं शताब्दी में चोल राजाओं ने होयसल और विजयनगर राजाओं द्वारा महत्वपूर्ण परिवर्धन के साथ मंदिर का निर्माण शुरू किया था।

    https://www.thehindu.com/news/national/karnataka/1000yearold-nanjangud-temple-to-get-a-facelift-soon/article8631997.ece

    कर्नाटक काशी किस स्थान को कहा जाता है?

    मैसूर (मैसूर), भारत
    इस स्थान को “दक्षिण काशी” भी माना जाता है जिसका अर्थ दक्षिण भारत का वाराणसी है।

    वेमुलावाड़ा के किस मंदिर को दक्षिण काशी दक्षिण काशी* 1 बिंदु कहा जाता है?

    वेमुलावाड़ा शिव मंदिर उर्फ ​​दक्षिण काशी महाशिवरात्रि के लिए भक्तों से भर गया। दक्षिण की काशी कहे जाने वाले वेमुलावाड़ा में महाशिवरात्रि का उत्सव भव्य तरीके से मनाया जा रहा है। भगवान नंजुंदेश्वर कौन हैं?

    नंजुंदेश्वर मंदिर (जिसे श्रीकांतेश्वर मंदिर भी कहा जाता है) कर्नाटक राज्य, दक्षिणी भारत में हिंदू तीर्थ शहर नंजनगुडु में एक प्राचीन मंदिर है। यह भगवान नंजुंदेश्वर के प्राचीन मंदिर के लिए जाना जाता है ( भगवान शिव का दूसरा नाम , जिसे नंजुंदेश्वर भी कहा जाता है)।

    जैनियों की काशी किस शहर को कहा जाता है?

    कई जैन बसदी या जैन मंदिरों के अस्तित्व के कारण मुदाबिद्री को जैन काशी के नाम से जाना जाता है। यह जैनियों के लिए एक जरूरी जगह है। प्रसिद्ध स्थानों में जैन मंदिर रोड में 1000 स्तंभ बसदी, मल्लीनाथ बसदी, यहां बसदी और कई अन्य बसदी शामिल हैं।

    राजराजेश्वर मंदिर के बारे में क्या खास है?

    मंदिर को प्राचीन केरल के मौजूदा 108 प्राचीन शिव मंदिरों में से एक माना जाता है । दक्षिण भारत के कई शिव मंदिरों में भी इसका प्रमुख स्थान है। अपने समय के मंदिरों में इसका सबसे ऊंचा शिखर था। राजराजेश्वर मंदिर की चोटी लगभग 90 टन है।

    हिंदू किंवदंती के अनुसार, तमिल या व्यक्तित्व रूप में तमिल थाई (मदर तमिल) भगवान शिव द्वारा बनाई गई थी । तमिल भगवान के रूप में पूजनीय मुरुगन ने ऋषि अगस्त्य के साथ इसे लोगों तक पहुंचाया।

    क्या संस्कृत तमिल से पुरानी है?

    तथ्य यह है कि संस्कृत शब्द आज भी तमिल शब्दावली का 40% है, इसलिए संस्कृत पुरानी है । सच है सर, संस्कृत दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है।

    It is believed that Tamil language is born out of pellet drum which fell from Lord Shiva while he was dancing. Another School of thought is that Lord Muruga created Tamil language.” “As per mythology, Lord Shiva presided over the first academy (First Tamil Sangam).13-Sept-2021

    Tamil is the Language of Gods, says Madras High Court

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     क्या भगवान शिव तमिल भगवान हैं?

    अस्तामासिधि, सिलंबम, तमिलों में शिव को पहला सिद्धर (तमिल परंपरा में, एक सिद्ध व्यक्ति जिसने आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त की हैं) माना जाता था और यहां तक ​​​​कि योग, सिलंबम, नोक्क्कु वरमम पर शिक्षा प्रदान करने वाले पहले राजा भी थे।

    तमिल प्रथम भगवान कौन है?

    मुरुगन , दक्षिण भारत के प्राचीन तमिलों के प्रमुख देवता, योद्धा देवी कोर्रावाई के पुत्र। बाद में उनकी पहचान उत्तर भारतीय युद्ध देवता स्कंद के साथ हुई। उनका पसंदीदा हथियार त्रिशूल या भाला था, और उनके बैनर में जंगली पक्षी का प्रतीक था।

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