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  • हनुमान मंदिर केक काट राम के अस्तित्व को नकारा ?

    हनुमान मंदिर केक काट राम के अस्तित्व को नकारा ?

    नेहरू और  ‘दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को छुआछूत जैसा समझा, और राजनितिक मानचित्र में हाशिये परजाते जारही हैं , विनाषकाले विपरीत बुद्धि…

    https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/lucknow/politics/before-the-up-elections-the-bjp-emphasized-on-cultural-nationalism-how-much-will-it-benefit/articleshow/88093261.cms

    नरेंद्र मोदी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक:  2021 में पांच अगस्त को जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का शिलान्यास रखा गया तब हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्र में मंत्री रहे शांता कुमार ने एक जगह लिखा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संस्थापाक भगवान राम थे। उन्होंने मंदिर निर्माण को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा और यह भी कहा कि प्रत्येक भारतवासी को अपने घर में भगवान राम चित्र पर फूल जरूर चढ़ाना चाहिए।

    बात 2007 की है। तब उस समय की UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। लेकिन, भाजपा इसका विरोध कर रही थी। क्योंकि, इसके परियोजना के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए नया रास्ता बताया जाना था, जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए रामसेतु को तोड़ना पड़ा। लेकिन, रामसेतु की पुरानी मान्यताओं के कारण भाजपा ने सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।

    2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” 

    कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने कई बार भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का काम किया है। इसी क्रम में, कांग्रेस नेता केतकर ने राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर हो रही एक चर्चा के दौरान न केवल श्री राम के ऐतिहासिक अस्तित्व को नकारा बल्कि यह भी कहा कि हिंदू देवी-देवता साहित्य की रचना है। कांग्रेस नेता ने कहा, “रामायण की वजह से राम का अस्तित्व है। हालांकि, इस निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बाकी है कि राम इतिहास या साहित्य की रचना है या नहीं। वाल्मीकि ने एक महान महाकाव्य लिखा था और इसका प्रभाव भारत और विदेशों दोनों में महसूस किया गया था। लेकिन, मुझे नहीं पता कि वह इतिहास में मौजूद है या नहीं।”

    Nov 14, 2022 को प्रेषित @AnkitaBnsl की विभिन्न ट्वीट्स के आधार पर NASA के बाद भी हम कह सकते हैं कि  राम सेतु 7 हजार साल पुराना, है।  समुद्र विज्ञान के अध्ययन में खुलासा हुआ है।  कांग्रेस ने कहा था राम सेतु  काल्पनिक है , जानिए वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य

    राम सेतु के बारे में जानने के लिए 12 रोचक वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य!

    1. राम सेतु के बारे में जानने के लिए 12 रोचक वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य समुद्र विज्ञान के अध्ययन में सामने आए हैं। इस अध्ययन से पता चलता है कि राम सेतु 7000 साल पुराना है।

    2.नुषकोडी से मन्नार द्वीप के पास समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग रामायण की तारीख से मेल खाती है कि राम सेतु के निर्माण का समय रामायण की तारीख से मेल खाती है। एक समय धनुषकोटि बड़ा नगर था और रामेश्वरम एक छोटा सा गांव था। उस समय यहां से श्रीलंका के लिए नौकायें चलती थी और किसी प्रकार पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती थी। धनुषकोटि जैसे समृद्ध शहर के लिए 22 दिसंबर 1964 की रात दुर्भाग्य लेकर आई जब एक भयानक समुद्री तूफान में यह नगर पूर्णतः बर्बाद हो गया। रामायण कालीन धनुषकोटि का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। आसपास अनेक स्थल भगवान राम से सम्बंधित प्रसंगों के दर्शनीय हैं। राम ने विभीषण को यहां शरण दी थी तथा लंका विजय के बाद विभीषण के अनुरोध पर राम ने धनुष तोड़ने का अनुरोध मान कर धनुष का एक सिरा तोड़ दिया। तब ही से इसका नाम धनुषकोटि पड़ गया। यह स्थान रामेश्वरम से करीब 19 किमी दूर है। श्रीलंका समुद्र द्वारा यहां से 18 किमी दूर बताई जाती है।

    3. 15वीं शताब्दी तक इस पुल से पैदल ही जाया जा सकता था जब तक कि तूफानों ने चैनल को गहरा नहीं कर दिया। कुछ रिकॉर्ड बताते हैं कि राम सेतु 1480 तक पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था जब यह एक चक्रवात से टूट गया था।

    4. पुल 50 किमी लंबा है और मन्नार की खाड़ी को पाक जलडमरूमध्य से अलग करता है।

    5. राम सेतु को आदम का पुल, नाला सेतु और सेतु बांदा भी कहा जाता है।

    6. राम सेतु को रामायण के पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में लिया जाता है।

    7. वाल्मीकि रामायण में सबसे पहले इस सेतु का उल्लेख किया गया था। वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों के द्वारा समुद्रतट तक ले आए थे। कुछ वानर सौ योजन लंबा सूत पकड़े हुए थे। अर्थात सेतु का निर्माण सूत से एक सीध में हो रहा था। (वाल्मीकि रामायण-6/22/62)

    8. जब प्रभु श्री राम भारत भूमि के छोर पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र देव से लंका पार जाने का उपाय करने की प्रार्थना की।

    9. श्रीराम द्वारा समुद्र देवता की पूजा आरंभ की गई। लेकिन जब कई दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र को सुखा देने के उद्देश्य से अपना धनुष-बाण उठा लिया। उनके इस कदम से समुद्र के प्राण सूखने लगे। तभी भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, “श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं।“ समुद्र देव ने कहा कि उनकी सेना के दो वानर ​​नल और नील को वरदान है कि अगर वे पत्थर को पानी में फेंकेंगे तो पत्थर कभी नहीं डूबेंगे।

    10. यह सुनकर पूरी सेना ने भारी पत्थरों पर प्रभु राम का नाम लिखना शुरू कर दिया, जबकि नल और नील ने पुल बनाने के लिए उन्हें पानी में फेंकना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं तथा दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा। दरअसल नल और नील भगवान विश्‍वकर्मा के पुत्र थे, जिन्‍हें उस वक्‍त के निर्माण कार्यों की बारीकियों के बारे में भली-भांति ज्ञान था। उन्‍होंने पूरी वानर सेना के साथ मिलकर इस पुल का निर्माण किया। रामायण में बताया गया है कि बचपन से ही नल और नील दोनों बहुत शरारती थे। ये दोनों इतने नटखट थे कि ऋषियों का सामान समुद्र में फेंक दिया करते थे। वस्तु डूब जाने के कारण ऋषियों को परेशानी होती थी। फिर ऋषियों ने इन्‍हें शाप दिया तुम्हारा फेंका सामान जल में डूबेगा नहीं। उनका यह शाप सेतु निर्माण के वक्‍त लाभदायी साबित हुआ। इसलिए नल और नील जो पत्‍थर फेंकते थे, वे डूबते नहीं थे।

    11. नासा के चित्र और उस क्षेत्र में तैरते पत्थरों की उपस्थिति राम सेतु के ऐतिहासिक अस्तित्व के ठोस संकेत देते हैं। अमेरिका के साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ ये दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद रामसेतु- प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है यानी इसे किसी इंसान ने बनाया था. अमेरिका के वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि रामसेतु के पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं।

    12. इस खूबसूरत जगह पर आप चट्टानों की श्रृंखला, सैंडबैंक और टापुओं को देख सकते हैं जो लगभग श्रीलंका को भारत से जोड़ते हैं। इतिहासकार और पुरातत्वविदों के मुताबिक- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है। ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया। इतिहासकारों की मानें तो साल 1480 में आए एक तूफान में ये पुल काफी टूट गया। उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और वाहन के जरिए इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे।

    1. Stone राम सेतु से अलग हुई चट्टानें आज भी समुद्र के ऊपर तैर रही हैं। मैंने, @jainrk59 ने नीचे की तस्वीर क्लिक की, जहां कई चट्टानें तैरती देखी जा सकती हैं।

    2..राज भगत पी #Mapper4Life @rajbhagatt जुलाई 7, 2020

    कॉन्ट शेल्फ़ के कारण गहरी समुद्री धाराएँ श्रीलंका और भारत के बीच के खंड में प्रवेश नहीं करती हैं। इस खंड में समुद्र की सतह पर दो दिशाओं में लंबी तट धाराएँ हावी हैं – एक मन्नार की खाड़ी से और दूसरी पाक जलडमरूमध्य से और वे विपरीत दिशाओं में हैं

    क्या है राम सेतु?: तमिलनाडु के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार के बीच आपस में जुड़ी लाइमस्टोन की एक श्रृंखला है। भूगर्भशास्त्री मानते हैं कि पहले यह श्रृंखला समुद्र से पूरी तरह ऊपर थी। इससे श्रीलंका तक चल कर जाया जा सकता था। हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया सेतु माना जाता है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसके मानव निर्मित होने की मान्यता है। ईसाई और पश्चिमी लोग इसे एडम्स ब्रिज कहने लगे।

    राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग: राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर संरक्षण देने की मांग पर जल्द सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी को आश्वासन दिया कि मामला विस्तार से सुना जाएगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के शासनकाल में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था। बाद में कोर्ट के दखल के बाद यह कार्रवाई रुक गई थी। तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई लंबित है।

  • लवजिहाद के माध्यम से सांस्कृतिक नरसंहार

    लवजिहाद के माध्यम से सांस्कृतिक नरसंहार

    लव जिहाद के माध्यम से सांस्कृतिक नरसंहार के अनेक भयावह उदाहरण performindia लव जिहाद के माध्यम से सांस्कृतिक नरसंहार के अनेक भयावह उदाहरण में भी दिये गये हैं।

    अफताब का असली चेहरा प्रेमिका श्रद्धा के 35 टुकड़े कर 18 दिनों तक दिल्ली के जंगलों में बिखेरता रहा

    लव जिहाद की भेंट चढ़ी एक और हिंदू बेटी, आफताब ने शादी से बचने के लिए श्रद्धा की हत्या के बाद किए 35 टुकड़े कर दिए गए।

    आखिर कितनी बेटियां गंवाएंगे हम? #JusticeForAnkitaSingh pic.twitter.com/CTl38JxAvM

    झारखंड के दुमका में अंकिता ने बात करने से मना किया तो शाहरुख ने पेट्रोल डालकर आग लगा दी।

    मंत्री गिरिराज सिंह ने 15 नवंबर को मीडिया से बातचीत करते हुए कहा था कि देश में लव जिहाद के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं. लव जिहाद देश में एक मिशन बन गया है: गिरिराज सिंह

    किसी मुस्लिम को हिन्दू लड़की से प्रेम हो जायेऔर वह उससे विवाह कर सुख शांति से अपना जीवन जिए इसे लव जिहाद कोई नहीं कहेगा। लव जिहाद के माध्यम से सांस्कृतिक नरसंहार के अनेक भयावह उदाहरण में भी दियेगये हैं। किसी मुस्लिम को हिन्दू लड़की से प्रेम हो जायेऔर वह उससे विवाह कर सुख शांति से अपना जीवन जिए इसे लव जिहाद कोई नहीं कहेगा।

    इसके अनेक उदहारण बीजेपी में हैं। सिकंदर बख्त से लेकर शाहनवाज, नकवी, नजमा हेपतुल्लाह, एमजे अकबर …तक BJP में मुसलमान होना अकेलेपन की भावना न जनसंघ की स्थापना के समय और न अभी बीजेपी के समय पैदा होती है।

    ‘पद्म भूषण’ सिकंदर बख़्त, जो एक समय कांग्रेस में थे.  बख्त हफ्ते भर के लिए भारत के विदेश मंत्री भी रहे. ये पहले राज्यपाल थे केरल के, जिनकी पद पर रहने के दौरान मौत हो गई. ये वो मुस्लिम नेता थे, जिन्हें बीजेपी अपना फाउंडिंग मेंबर कहती थी। अभी भी केरल केराज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान हैं। सिकंदर बख्त ने भी ज्यादातर भाजपाई मुसलमान नेताओं की तरह एक हिंदू महिला से शादी की थी. राज शर्मा से उनके दो बेटे हुए. जिनके उन्होंने हिंदू नाम रखे, अनिल बख्त और सुनील बख्त।

    पहले जनसंघ के और उसके बाद बीजेपी के मुस्लिम नेताओं ने हिन्दू महिला से विवाह किया क्या उसे कोई लव जिहाद कहेगा?

    सांस्कृतिक नरसंहार एक अवधारणा है जिसे 1944 में वकील राफेल लेमकिन ने नरसंहार के एक घटक के रूप में प्रतिष्ठित किया था । हालांकि सांस्कृतिक नरसंहार की सटीक परिभाषा पर विवाद बना हुआ है . नरसंहार की कानूनी परिभाषा उस सटीक तरीके के बारे में अनिश्चित है जिसमें नरसंहार किया जाता है, केवल यह कहते हुए कि यह एक नस्लीय, धार्मिक, जातीय या राष्ट्रीय समूह को नष्ट करने के इरादे से विनाश है। 

    डॉ. दिलीप कुमार कौल ने नेहा की लव स्टोरी  Book की समीक्षा करते हुए नरसंहार और सांस्कृतिक नरसंहार शीर्षक के अपने लेख में इस विषय पर उचित प्रकाश डाला है। संसार को जीनोसाइड जैसा शब्द देने वाले और संयुक्त राष्ट्र में जीनोसाइड के क़ानून लागू करवाने के लिए असाधारण संघर्ष करने वाले पोलिश वकील Rafael lemkin ने सांस्कृतिक नरसंहार पर विशेष बल दिया था। किसी देश का विध्वंस करना कितना घातक होता है लेम्किन ने स्पष्ट कर दिया था। उन्होंने कहा था कि संसार में उतनी ही संस्कृति और उतनी ही बौद्धिक शक्ति होती है जितनी उसमें उपस्थित सभी राष्ट्र मिलकर बनाते हैं। राष्ट्र के विचार की व्याख्या करते हुए वे कहते हैं कि राष्ट्र अनिवार्यतः लोगों के सहयोग और मौलिक योगदान से बनता है।

    यह सहयोग और योगदान वास्तविक परंपराओं, वास्तविक संस्कृति और एक सुविकसित राष्ट्रीय मनोविज्ञान पर आधारित होता है। तो किसी राष्ट्र का विनाश, संसार को इसके भावी योगदान से वंचित कर देता है। सभ्यता के आधारभूत लक्षणों में से एक लक्षण है उन राष्ट्रीय विशेषताओं और गुणों की समझ और उनके प्रति सम्मान, जिनका योगदान विभिन्न देशों ने वैश्विक संस्कृति को दिया। इन विशेषताओं और गुणों को राष्ट्र की राजनीतिक या अन्य प्रकार की शक्ति संपत्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

    कहना न होगा कि ईसाई और इस्लामी दोनों ही संस्कृतियां हिन्दू समुदाय,जिसकी भारत में युगों पुरानी परंपरा है, का अतिक्रमण करके उसका विनाश करके संसार के उसके योगदान से वंचित करने पर तुली हुई हैं। यह अतिक्रमण अनेक स्तरों पर होता है। https://www.indiaspeaksdaily.com/love-jihad-and-cultural-massacre/

    Amit Srivastava March 31, 2016 https://hindupost.in/society-culture/1558/

    अमित श्रीवास्तव ने भी अपनीक लेख मै इस विषय पर प्रकाश डेल हुए कहा है ,”संस्कृति का मानव सभ्यता से गहरा संबंध है। सभ्यता की आत्मा वहां की संस्कृति है। संस्कृति के खत्म होते ही सभ्यता का भी विनाश हो जाता है। इसका ज्वलंत  उदाहरण हमने यूनान, रोम और मिस्र आदि सभ्यताओं के विलुप्त होने में देख सकते हैं। लोग भले ही उन पुरानी सभ्यताओं में रहने वाले लोगों के ही वंशज हों, किन्तु आज वे सांस्कृतिक रूप से बिलकुल अलग हैं। इस प्रकार संस्कृति मानव सभ्यता की आत्मा है। वर्तमान समय के सभी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां इन पुरातन सभ्यताओं की ही देन है। विज्ञान, गणित व खगोल के लगभग सभी प्रारंभिक ज्ञान भारतीय, चीनी, यूनानी, एवं सभ्यताओं से लिए गए हैं।

    वर्तमान समय में कई समृद्ध सभ्यताओं का वजूद खत्म हो गया है, और उनको समाप्त करने के पीछे संसार के दो सबसे बड़े इब्राहीमी पंथों – इस्लाम और ईसाई – के चरमपंथियों का सक्रिय योगदान है। इन पंथों की ऐसी प्रवृति के पीछे उनकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा है। इस्लाम और ईसाई के अलावा दुनिया के किसी भी पंथ में पूरी दुनिया का धर्मपरिवर्तन कराने का उद्देश्य नहीं है। मुरुभूमि में जन्में इन दो पंथों ने धर्म के नाम पर जीतने लोगों को मारा है, उतने लोग किसी भी विश्व-युद्ध, आकाल या महामारी में नहीं मारे गए। लोगों को मारने के साथ साथ इन्होने वहाँ की संस्कृति का भी समूल नाश कर अपने पंथ को स्थापित किया। जिस प्रकार इस्लाम में गैर-मुस्लिमों को ‘काफिर’ जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाता है, उसी प्रकार ईसाईयों द्वारा सनातन धर्मियों को ‘पैगान’ कह कर नीचा दिखाया जाता है। वास्तव में इन दो पंथो जैसा धर्मांध, असहिष्णु तथा विस्तारवादी विश्व में कोई अन्य पंथ नहीं है..”

    Tags: Love jihadii Cultural Genocide,  love jihad,  Aftab cut Shraddha, Minister Giriraj Singh, Padma Bhushan Sikandar Bakht, Muslim leegi, BJP muslim leaders, Bakht First Muslim leader of Jana Sangh BJP, Raphael Lemkin, Culture  soul of human civilization, Islam Christianity expansionist, Sanatan Dharma

    By – Premendra Agrawal @premendraind

  • डॉ वाल्टर एंडरसन: गांधी और उपाध्याय जी के विचारों में समानता

    डॉ वाल्टर एंडरसन: गांधी और उपाध्याय जी के विचारों में समानता

    अमेरिकी विद्वान डॉ वाल्टर एंडरसन वर्तमान में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के प्रमुख हैं और जिन्होंने आरएसएस पर कई प्रशंसित रचनाएँ लिखी हैं, ने ‘एकात्म मानववाद’ (दीनदयाल अनुसंधान संस्थान द्वारा प्रकाशित) पर एक संग्रह में एक दिलचस्प निबंध लिखा है। वे गांधी की तुलना आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक और विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय से करते हैं।

    उपाध्याय भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे, जो भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अवतार थे। “अंतर्जातीय मानवतावाद” सत्तारूढ़ भाजपा की आधिकारिक विचारधारा है।

    1992 में प्रकाशित गांधी और दीनदयाल: टू सीर्स नामक निबंध में, एंडरसन ने गांधी और उपाध्याय के बीच तुलना की और कई चीजों को सामान्य पाया।

    1920 के दशक में मोहनदास गांधी के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख व्यक्ति के रूप में उभरने के बाद, उनके जीवन, विचार और कार्यक्रम बेंचमार्क बन गए, जिसके खिलाफ अन्य भारतीय राजनीतिक और सामाजिक हस्तियों की तुलना की गई। Bhartiy जनता पार्टी की चुनावी जीत के बाद से गांधी में रुचि का एक उल्लेखनीय पुनरुत्थान हुआ है, जिनमें से कई नेता पार्टी की वैचारिक जड़ों का पता लगाते हैं।

    इसके साथ ही दीनदयाल उपाध्याय के जीवन में रुचि विकसित हुई है। कुछ समय पहले तक, उन्हें जनसंघ की सीमाओं के बाहर व्यापक रूप से नहीं जाना जाता था।

    बौद्धिक और वैचारिक दोनों कारणों से यह लगभग अपरिहार्य था कि दोनों व्यक्तियों की तुलना की जाएगी। हालाँकि, ऐसा करने के किसी भी प्रयास में बड़ी कठिनाइयाँ हैं। जिस राजनीतिक माहौल में उन्होंने काम किया वह अलग था; उनकी अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि एक जैसी नहीं थी; उनके सबसे तात्कालिक राजनीतिक उद्देश्य समान नहीं थे। शायद सबसे कठिन समस्या उपाध्याय पर उपलब्ध सामग्री का अभाव है। गांधी के विपरीत, जो निजी पुरुषों में सबसे अधिक सार्वजनिक थे, उपाध्याय एक शांत व्यक्ति थे, जो स्पॉटलाइट से बाहर काम करना पसंद करते थे। उनके जीवन और विचार पर प्रकाशित संग्रह अभी भी बहुत पतला है। स्थिति को सुधारने के लिए भारत में अब शोध चल रहा है और वह समय निकट आ सकता है जब हमें भारत के सामाजिक और राजनीतिक चिंतन में उनके योगदान की एक और पूरी तस्वीर मिलेगी। फलस्वरूप, उपाध्याय और गांधी की तुलना करने का कोई भी प्रयास बहुत प्रारंभिक होना चाहिए और अधिक जानकारी के प्रकाश में आने पर बहुत संशोधन के अधीन होना चाहिए। उन पर बोलने के लिए सबसे योग्य वे लोग हैं जिन्होंने उपाध्याय के साथ मिलकर काम किया और उम्मीद है कि वे उन लोगों के प्रयासों में योगदान देंगे जो उन पर सामग्री एकत्र कर रहे हैं।

    गांधी और उपाध्याय वास्तव में न तो इस शब्द के पारंपरिक अर्थों में बुद्धिजीवी थे – जो अकादमिक योग्यता और किताबों की लंबी सूची वाले विद्वान और परिष्कृत पुरुष हैं। न तो नैतिकता और राजनीति पर व्यवस्थित संधियाँ लिखीं, न ही कोई दार्शनिक था, इस अर्थ में कि वे अमूर्त सैद्धांतिक योगों में विशेष रुचि नहीं रखते थे। उदाहरण के लिए, गांधी ने *सत्याग्रह* की अवधारणा पर शोध करने वाले एक विद्वान से कहा: “लेकिन सत्याग्रह शोध का विषय नहीं है – आपको इसका अनुभव करना चाहिए, इसका उपयोग करना चाहिए, इसके द्वारा जीना चाहिए” (जोन बंडुरेंट, हिंसा की विजय – पृष्ठ 146)।  इसी तरह का किस्सा उपाध्याय का भी दोहराया जा सकता है।

    दोनों व्यक्ति करिश्माई शख्सियत थे, हालांकि गांधी का बड़ा प्रभाव था, क्योंकि बहुत से लोग उन्हें संत नहीं तो एक संत व्यक्ति मानते थे। उनकी तपस्या ने कई लोगों को आश्वस्त किया कि वे उन आदर्शों को महसूस करने में सक्षम थे, जिन्हें बहुत से लोग मानते थे, लेकिन जिन्हें कुछ ही लोग महसूस कर सकते थे। (लॉयड और सुसैन रूडोल्फ, मॉडर्निटी ऑफ ट्रेडिशन, भाग 2 में अध्ययन देखें)।

    “Gandhi transformed the Indian National Congress… His charismatic appeal as ‘Mahatma’ transformed the Congress into the effective action of the arm of independence movement… Upadhyaya also possessed the character of the saintly… He had a similar effect on the cadre of Jana Sangh.”

    दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रीय जागृति युवाओं एवं राष्ट्रीय एकता के लिए कटिबद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। 1942-51 तक प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) के रूप में सेवा की 1951 तक वे संघ में विभिन्न पदों पर रहकर समाज चेतना का कार्य करते रहे।1951 में वे जब जनसंघ की स्थापना हुई तब से उन्होंने अपनी सेवाएं जनसंघ को अर्पित कर दी। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनकी संगठन क्षमता से इतने अधिक प्रभावित हुए कि कानपुर अधिवेशन के बाद उनके मुंह से यही उद्गार निकले कि मेरे पास 2 दीनदयाल होते तो मैं भारत का राजनीतिक रूप बदल देता।

    दुर्भाग्य से 1953 में डां मुखर्जी की मृत्यु हो गई। मुखर्जी की मौत के बाद भारत का राजनीतिक स्वरूप बदलने की जिम्मेदारी पंडित दीनदयाल के कंधों पर आ गई। उन्होंने इस कार्य को इतने चुपचाप और विशेष ढंग से पूरा किया कि जब 1967 के आम चुनाव के परिणाम सामने आने लगे तो देश आश्चर्यचकित रह गया। वोट प्रतिशत के लिहाज से जनसंघ राजनीति राजनीतिक दलों में दूसरे क्रमांक पर पहुंच गया। दौरान कुछ छोटे दलबदल थे, जनसंघ एकमात्र प्रमुख भारतीय पार्टी थी जिसे कोई महत्वपूर्ण दरार नहीं हुई। यह उस एकजुट संगठन का प्रमाण है जिस पर उन्होंने विचार किया।

    यद्यपि दीनदयाल जी महान नेता बन गए परंतु अति साधारण ढंग से ही रहते थे। वह अपने अपने कपड़े स्वयं ही साफ करते थे। विदेशी के बारे में शोर नहीं मचाते थे परंतु वे कभी भी विदेशी वस्तु नहीं खरीदते थे।

    गांधी का राजनीतिक उद्देश्य स्वराज (स्वशासन) था। लेकिन उन्होंने स्वराज की व्याख्या केवल अंग्रेजों से स्वतंत्रता से अधिक की; इसने एक व्यापक आत्मनिर्भरता के अर्थ को ग्रामीण स्तर तक पहुँचाया। आत्मनिर्भरता कार्रवाई के एक ठोस कार्यक्रम में परिवर्तित हो गई जिसने उन्हें स्वदेशी (आत्मनिर्भरता) का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया।

    गांधी ‘स्वराज’ और ‘स्वदेशी’ के प्रबल समर्थक थे। उपाध्याय ने ‘एकात्म मानववाद’ की बात करते समय उन्हीं दर्शनों पर जोर दिया। वास्तव में, विकास के पश्चिमी मॉडलों की अस्वीकृति गांधी और उपाध्याय दोनों की विचार प्रक्रिया का आधार थी।

    उपाध्याय के लेखन में विकास के पश्चिमी मॉडल के प्रभावों के खिलाफ तुलनीय आक्रोश प्रदर्शित होता है। पूना में 1964 में एकात्म मानववाद पर व्याख्यान की एक श्रृंखला में, जिसे बाद में जनसंघ के आधिकारिक वैचारिक बयान के रूप में अपनाया गया, उन्होंने समाजवाद और पूंजीवाद दोनों पर जमकर निशाना साधा। “लोकतंत्र और पूंजीवाद शोषण को मुक्त शासन देने के लिए हाथ मिलाते हैं। समाजवाद ने पूंजीवाद की जगह ले ली और अपने साथ लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अंत कर दिया” (एकात्म मानववाद – पृष्ठ 10)। उनके स्थान पर, वह एक मॉडल का प्रस्ताव करता है जो मानव स्थिति के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है, “शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा – ये चार एक व्यक्ति को बनाते हैं”। (एकात्म मानववाद – पृष्ठ 24) 

    उपाध्याय विज्ञान, प्रौद्योगिकी या यहां तक ​​कि शहरीकरण के चयनात्मक अपनाने के प्रतिकूल नहीं थे। (एकात्म मानववाद – पृष्ठ 8)

    उनके विचार में राष्ट्र की केंद्रीयता इस धारणा पर टिकी हुई है कि इसकी एक आत्मा है (यानी, “चिति”), जो किसी दिए गए भौगोलिक स्थान के भीतर अनुभवों से आकार लेती है और एक अति-आदर्श आदर्श से प्रेरित होती है (एकात्म मानववाद – पृष्ठ 36-37) “मानव जाति के विभिन्न आदर्शों की इस पारस्परिक रूप से पूरक प्रकृति की मान्यता पर आधारित एक प्रणाली, उनकी आवश्यक सद्भाव, एक प्रणाली जो कानून तैयार करती है जो विसंगति को दूर करती है और उनकी पारस्परिक उपयोगिता और सहयोग को बढ़ाती है, केवल मानव जाति के लिए शांति और खुशी हो सकती है; स्थिर विकास सुनिश्चित कर सकते हैं” (एकात्म मानववाद – पृष्ठ 39) 

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    By – Premendra Agrawal @premendraind

  • सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संबधित महात्मा गाँधी और दीन दयाल उपाद्याय जी के विचारों में समानता…..

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संबधित महात्मा गाँधी और दीन दयाल उपाद्याय जी के विचारों में समानता…..

    ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’, ‘एकात्म मानववाद’ व ‘अंत्योदय’ के प्रणेता, भाजपा परिवार के प्रेरणापुरुष, जिन्होंने जीवनपर्यंत समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के उत्थान की चिंता की, ऐसे महापुरुष, अजातशत्रु,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को  कोटिशः नमनl #DeenDayalUpadhyay

    एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि भारतवर्ष विश्व में सर्वप्रथम रहेगा तो अपनी सांस्कृतिक संस्कारों के कारण। उनके द्वारा स्थापित एकात्म मानववाद की परिभाषा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ज्यादा सामयिक है।

    गांधी का राष्ट्रवाद श्रम शक्ति का पक्षधर था। गांधी का मानना था कि हर व्यक्ति को श्रम करके पूरी ईमानदारी से समाज में अपना योगदान देना चाहिए। तभी जाकर वह कुछ भी ग्रहण करने का अधिकार रखता है। गांधी के मुताबिक हर व्यक्ति के पास रोजगार प्राप्त करने का मूल अधिकार है। आधुनिक सभ्यता के दुष्परिणामों को गांधी का राष्ट्रवाद वर्ष 1909 में ही भांप गया था। तभी तो ‘हिंद स्वराज’ नामक पुस्तिका में गांधी ने इंसानों की आवश्यकताओं को सीमित रखने की वकालत की थी। गांधी चाहते थे कि गांव उत्पादन और उपभोग की प्रमुख इकाई के रूप में उभरें।

    हिंद स्वराज’ नामक पुस्तिका में गांधी ने इंसानों की आवश्यकताओं को सीमित रखने की वकालत की थी। गांधी चाहते थे कि गांव उत्पादन और उपभोग की प्रमुख इकाई के रूप में उभरें।

    इस सन्दर्भ में एक उदहारण है:

    कांग्रेस का अधिवेषन चल रहा था । सुबह का समय था, गांधी जी ; नेहरू जी एवं अन्य स्वयं सेवकों के साथ बातें करते -करते हाथ -मुंह धो रहे थे ।

    गांधी जी ने कुल्ला करने के लिए जितना पानी लिया था वो खत्म हो गया और उन्हें दोबारा पानी लेना पड़ा । इस बात से गांधी जी थोड़ा खिन्न हो गए ।

    गांधी जी के चेहरे के भाव बदलते देख नेहरू जी ने पुछा, ” क्या हुआ , आप कुछ परेशान दिख रहे हैं ?”

    बाकी स्वयंसेवक भी गांधी जी की तरफ देखने लगे ।

    गांधी जी बोले, ” मैंने जितना पानी लिया था वो खत्म हो गया और मुझे दोबारा पानी लेना पड़ रहा है , ये पानी की बर्वादी ही तो है !!!”

    नेहरू जी मुस्कुराये और बोले -” बापू , आप इलाहाबाद में हैं , यहाँ त्रिवेणी संगम है , यहाँ गंगा-यमुना बहती हैं , कोई मरुस्थल थोड़े ही है कि पानी की कमी हो , आ थोड़ा पानी अधिक भी प्रयोग कर लेंगे तो क्या फरक पड़ता है ? “

    गाँधीजी ने तब कहा- ”  किसकी हैं गंगा-यमुना ? ये सिर्फ मेरे लिए ही तो नहीं बहतीं , उनके जल पर तो सभी का समान अधिकार है ?हर किसी को ये बात अच्छी तरह से समझनी चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनो का दुरूपयोग करना ठीक नहीं है , कोई चीज कितनी ही प्रचुरता में मौजूद हो पर हमें उसे आवश्यकतानुसार ही खर्च करना चाहिए ।

    और दूसरा , यदि हम किसी चीज की अधिक उपलब्धता के नाते उसका दुरूपयोग करते हैं तो हमारी आदत बिगड़ जाती है , और हम बाकी मामलों में भी वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं ।”

    गांधी मानते थे कि राष्ट्रीयता और मानवता एक-दूसरे के पूरक ही हैं। गांधी का यह विश्वास था कि त्याग के साथ बलिदान, अच्छे आचार-विचार और दुनिया का कल्याण करने वाले आदर्शों पर राष्ट्रवाद निर्भर करता है। हिंसा के लिए गांधी के राष्ट्रवाद में तनिक भी जगह नहीं रही है। यहां तक कि पश्चिम के राष्ट्रवाद से भी गांधी का राष्ट्रवाद पूरी तरह से अलग खड़ा होता है।

    दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर सुधीर कुमार: भारत को आजादी ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर मिली। भारत का लोकतंत्र अगर टिक पाया तो उसकी वजह भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही है। हमारे पड़ोसी देशों में यह नहीं है, हम वहां का हाल देख रहे हैं। लोकतंत्र बिना किसी संस्‍कति के नहीं रह सकती। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तो भारत के आत्‍मा में है।’

    वे आगे कहते हैं, ‘आप महात्‍मा गांधी जी को ही ले लीजिए। वे कई बार गंगा में नहाकर या बाल मुंडवाकर काम शुरू करते थे। महाभारत से लेकर वेदों तक यह मिल जाएगा, लेकिन कौटिल्‍य ने इसे बहुत अच्‍छे लिखा। लेकिन उसका सार बहुत उदार है। वह सब कल्‍याण के लिए था। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बहस होनी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है क‍ि अब इसका उपयोगी राजनीतिक फायदे के लिए हो रहा।’

    सही मायने में देखा जाए तो राष्ट्रवाद एक ऐसी सशक्त भावना है, जो किसी राष्ट्र के प्रति उसके नागरिकों की निष्ठा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक होती है। आप फ्रांस की राज्यक्रांति से लेकर अब तक के अधिकतर राजनीतिक चिंतन को देख लीजिए, आपको दिख जायेगा कि राष्ट्रवाद किस तरह से हम सबके  रग-रग में बसा है। इसमें कोई शक नहीं कि यह राष्ट्रवाद की भावना ही है, जो किसी देश के नागरिकों को एकता बनाये रखने के लिए प्रेरित करती है, उन्हें अपने सांस्कृतिक मूल्यों से प्यार करना सिखाती है और खुद से पहले राष्ट्र को अहमियत देने की प्रेरणा देती है।

    गांधी का राष्ट्रवाद क्या है और इसकी कौन-कौन सी विशेषताएं रही हैं:

    दक्षिण अफ्रीका में अपने सत्याग्रह के साथ गांधी ने अपने राष्ट्रवाद का बिगुल फूंका था। भारत में चंपारण सत्याग्रह से लेकर खेड़ा सत्याग्रह, वायकोम सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन तक गांधी के राष्ट्रवाद का हिस्सा रहे हैं। उपवास, धरना, असहयोग, हड़ताल, बहिष्कार एवं अनशन आदि गांधी के राष्ट्रवाद के प्रमुख तत्व रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा, स्वराज्य, सांप्रदायिक एकता एवं स्वतंत्रता उनके राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण तत्व रहे हैं। वसुधैव कुटुंबकम भी उनके राष्ट्रवाद का प्रमुख हिस्सा रहा था।

    स्वदेशी पर बल देते हुए उन्होंने इसे राष्ट्र को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का सबसे सशक्त माध्यम बताया था, क्योंकि इससे देश का पैसा देश में ही रहकर देश को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है।

    राजनीति के साथ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वराज्य भी गांधी के राष्ट्रवाद के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं।

    30 Jan 2021

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़ा गांधी का अहिंसा मार्ग

    कलराज मिश्र

    गांधी ही थे जिन्होंने स्वाधीनता आंदोलन को व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते उसे भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों से जोड़ा।

    राष्ट्र के रूप में हमारे देश का विकास केवल यहां के भू-भाग और किसी राजनीतिक सत्ता के अस्तित्व के कारण नहीं, बल्कि पांच हजार से भी अधिक पुरानी हमारी संस्कृति के कारण हुआ है। एक बड़े भू-भाग में भाषा, क्षेत्रों की परम्पराओं में वैविध्यता के बावजूद इसीलिए हमारे सांस्कृतिक मूल्य निरंतर जीवंत रहे हैं। गांधीजी ने आजादी आंदोलन में इसी सांस्कृतिक जीवंतता को अहिंसा और नैतिक जीवन मूल्यों से जोड़ा। यही उनका वह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था जिसमें देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने हेतु आंदोलनों का नेतृत्व करते उन्होंने राष्ट्र को सांस्कृतिक दृष्टि से एक किया।

    राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए उन्होंने अपने आंदोलनों में जन-जन की भागीदारी सुनिश्चित की। उनके लिए स्वाधीनता केवल अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे देश में स्वराज की स्थापना पर उनका जोर था। इसीलिए स्वदेशी को अपनाने के बहाने उन्होंने राष्ट्र और उससे जुड़ी वस्तुओं, संस्कृति से प्रेम करने की राह भी सुझाई।

    नेहरू के विचार इससे भिन्न थे।

    लोकतांत्रिक संस्कृति का विकास

    गांधीजी का यह पक्ष भी मुझे हमेशा से प्रभावित करता रहा है कि राजनीति को दूसरे पक्ष के विरोध की बजाय उन्होंने सृजन और सहनशीलता से जोड़ा। चरखे पर सूत कातना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना दूसरे पक्ष का विरोध नहीं, प्रत्यक्षत: सृजन सरोकार ही थे और सत्याग्रह सहनशीलता। लोगों में परस्पर सद्भाव जगाते जन-मानस में सकारात्मक बदलाव की उन्होंने पहल की। यह एक तरह से उनके द्वारा देश में गुलामी के दौर में भी लोकतांत्रिक संस्कृति का विकास करने जैसा था।

    अहिंसा मार्ग: नील आंदोलन में ब्रिटिश सरकार द्वारा गांधीजी को जब प्रतिबंधित किया गया तो 1917 में उन्होंने न्यायाधीश के समक्ष अपनी जो बात रखी, वह आज भी मन में कौंधती है। उन्होंने कहा, ‘कानून को मैंने तोड़ा है। इसके लिए आप मुझे सजा दे सकते हैं परन्तु मेरा अधिकार है कि मैं अपने देश में कहीं भी

    अहिंसापूर्ण तरीके के आंदोलन से अंतत: अंग्रेजों को चम्पारण आंदोलन में झुकना पड़ा। इस आंदोलन ने देश को वह राह दी जिसमें अलग-थलग पड़े पूरे देश का हिंसक-अहिंसक स्वरूप आजादी आंदोलन के रूप में पूरी तरह से संगठित हुआ और ब्रिटिश राज के खिलाफ अहिंसा एक कारगर हथियार बनी।

    महात्मा गाँधी जी ने राज्य की हिंसा का मुकाबला भारतीय संस्कृति में चली आ रही अहिंसा की परम्परा से करने का नैतिक साहस देश की जनता को दिया। अहिंसा का उनका हथियार ऐसा था जिसमें राज्य के दमन के सारे तर्क विफल हो जाते हैं। इसके बाद फिर भी लोगों को कुचलने के लिए कार्य होता है तो राज्य की अपनी नैतिकता दांव पर लग जाती है। गांधीजी ने अंग्रेजों को इस तरह मानसिक रूप से अशक्त करने का कार्य किया।

    गांधीजी को किसी दल विशेष से जुड़ा नहीं कहा जा सकता। वह देश को इस रूप में पूर्ण स्वतंत्र करने के पक्षधर थे जिसमें अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति के हित को नीति निर्धारण में रखा जा सके।?

    3 March 2020 -पीएम मोदी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री को भारत माता की जय कहने में भी ‘बूÓ आती है। आज़ादी के समय इसी कांग्रेस में कुछ लोग वंदे मातरम बोलने के खिलाफ थे। अब इन्हें ‘भारत माता की जयÓ बोलने में भी दिक्कत हो रही है।

    यहॉ यह उल्लेखनीय है कि २२ फरवरी २०२० को कहा कि राष्ट्रवाद और ‘भारत माता की जयÓ के नारे का इस्तेमाल ‘भारत की उग्र व विशुद्ध भावनात्मक छविÓ गढऩे में गलत रूप से किया जा रहा है जो लाखों नागरिकों को अलग कर देता है ।

    भारत माता शब्द से नेहरू जी को भी ऐलर्जी थी परंतु महात्मा गांधी को नहीं।

    सन् 1936 में बनारस में शिव प्रसाद गुप्त ने भारतमाता का मन्दिर निर्मित कराया। इसका उद्घाटन महात्मा गांधीजी ने किया था।

    पंडित नेहरू कहते थे कि भारत का मतलब है   वह जमीन का टुकड़ा -भारत माता की जय का नारा लगाते हैं तो आप हमारे प्राकृतिक संसाधनों की जय ही करते हैं। नेहरू कहते थे हिन्दुस्तान एक ख़ूबसूरत औरत नहीं है। नंगे किसान हिन्दुस्तान हैं। वे न तो ख़ूबसूरत हैं, न देखने में अच्छे हैं

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  • शस्त्र-शास्त्र: महात्मा गांधी के विचारों में नीहित है यूक्रेन-रूस युद्ध के अंत और जलवायु संकट का जवाब

    शस्त्र-शास्त्र: महात्मा गांधी के विचारों में नीहित है यूक्रेन-रूस युद्ध के अंत और जलवायु संकट का जवाब

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों चाहिए

    9 दिसंबर, 2021 को CDS Gen Bipin Rawatऔर अन्य को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए ‘Veer Vanakkam’, Bharat Mata ki Jai’ के नारों से गूंज उठी थी। तमिलनाडु के लोगों पर बहुत गर्व है। महान आत्मा के लिए आपकी भावनाएं राजनीतिक भाषणों और अंतर्राष्ट्रीय प्रचार से बहुत परे हैं…

    तमिलनाडु: स्थानीय लोगों ने सीडीएस बिपिन रावत, उनकी पत्नी और अन्य सैनिक अधिकारियों के पार्थिव शरीर को ले जाने वाली एम्बुलेंस पर फूलों की पंखुड़ियों की बौछार की, जो कुन्नूर हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गए, नीलगिरी जिले के मद्रास रेजिमेंटल सेंटर से सुलूर एयरबेस के लिए रवाना हुए।एक राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय पहचान की एक साझा भावना और एक साझा समझ है कि एक जन समूह एक सामान्य जातीय/भाषाई/सांस्कृतिक पृष्ठभूमि साझा करता है। ऐतिहासिक रूप से, राष्ट्रीय चेतना का उदय किसी राष्ट्र के निर्माण की दिशा में पहला कदम रहा है।

    दीनदयाल उपाध्याय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारक रहे हैं। चाणक्य नीति अध्याय 7  के कुछ ऐसे श्लोकों पर विचार करने पर हम समझ सकते हैं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों की आवश्यकताहोती है

    भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, एक हाथ में शस्त्र होगा और दूसरे हाथ में शास्त्र शास्त्र– लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के लिए शस्त्र- दुष्टों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए – मुख्यमंत्री #YogiAdityanath

    Feb 04, 2022, 07:23 नामांकन के साथ दाखिल अपने हलफनामे में मुख्यमंत्री @myogiAdityanath ने उल्लेख किया है कि उनके खिलाफ एक भी आपराधिक मामला नहीं है. योगी आदित्यनाथ के पास दो हथियार हैं, जिनमें एक लाख रुपये की रिवॉल्वर और 80,000 रुपये की राइफल शामिल है. उनकी जमा पूंजी में दिल्ली में एक खाते में 35.24 लाख रुपये शामिल हैं. उनके गोरखपुर और लखनऊ में भी बैंक खाते हैं. योगी आदित्यनाथ के कान के छल्ले 20 ग्राम सोने से बने हैं और उनके पास रुद्राक्ष के साथ सोने की एक चेन है, जिसकी कीमत 12,000 रुपये है. मुख्यमंत्री के पास कोई अचल संपत्ति नहीं है.

    चाणक्य नीति: Free Download PDF of Chanakya Niti in Hindi

    हस्ती अंकुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते।
    शृंगीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥

    भावार्थ हाथी अंकुश से, घोड़ा चाबुक से, बैल आदि सींग वाले जानवर डण्डे से बस में रहते हैं, लेकिन बुरे लोगों को बस में करने के लिए तो कई बार तलवार ही हाथ में लेनी पड़ती है।

    व्याख्या – शस्त्र और शास्त्र दोनों ही आवश्यक हैं। भारत के पराभूत होने का एक कारण यह भी है कि हमने शास्त्र को तो बहुत अधिक महत्व दिया, लेकिन शस्त्र बिल्कुल ही छोड़ दिए। कहते भी तो हैं कि “शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते” अर्थात् शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में शास्त्र-चर्चा होती है। बाहुबल के अभाव में मनोबल पराभूत हो ही जाता है। बहुत से लोग शान्ति और अध्यात्म को न समझते हैं, न ही समझ सकते हैं। ऐसे में या तो स्वयं दुर्जनों के हाथों दलन को स्वीकार करें या मारे जाएँ अथवा तेजस्विता का वरण करें और खड्ग से धर्म की रक्षा करें। हाँ, यह सदैव ध्यान में रहे कि खड्ग का उपयोग धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए हो, न कि निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए। अतः प्रत्येक व्यक्ति को मनोबल और विद्याबल के साथ बाहुबल को बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए।

    महात्मा गांधी चाहते थे कि गांवों का विकास हो. साथ ही वे चाहते थे कि ग्रामीण जीवन के मूल्यों का संरक्षण किया जाए।

    दीनदयाल उपाध्याय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारक रहे हैं। चाणक्य नीति अध्याय 7  के कुछ ऐसे श्लोकों पर विचार करने पर हम समझ सकते हैं कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शस्त्र और शास्त्र  दोनों की आवश्यकताहोती है

    हस्ती अंकुशमात्रेण वाजी हस्तेन ताड्यते।
    शृंगीलकुटहस्तेन खड्गहस्तेन दुर्जनः॥

    भावार्थ हाथी अंकुश से, घोड़ा चाबुक से, बैल आदि सींग वाले जानवर डण्डे से बस में रहते हैं, लेकिन बुरे लोगों को बस में करने के लिए तो कई बार तलवार ही हाथ में लेनी पड़ती है।

    व्याख्या शस्त्र और शास्त्र दोनों ही आवश्यक हैं। भारत के पराभूत होने का एक कारण यह भी है कि हमने शास्त्र को तो बहुत अधिक महत्व दिया, लेकिन शस्त्र बिल्कुल ही छोड़ दिए। कहते भी तो हैं कि “शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते” अर्थात् शस्त्र से रक्षित राष्ट्र में शास्त्र-चर्चा होती है। बाहुबल के अभाव में मनोबल पराभूत हो ही जाता है। बहुत से लोग शान्ति और अध्यात्म को न समझते हैं, न ही समझ सकते हैं। ऐसे में या तो स्वयं दुर्जनों के हाथों दलन को स्वीकार करें या मारे जाएँ अथवा तेजस्विता का वरण करें और खड्ग से धर्म की रक्षा करें। हाँ, यह सदैव ध्यान में रहे कि खड्ग का उपयोग धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए हो, न कि निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए। अतः प्रत्येक व्यक्ति को मनोबल और विद्याबल के साथ बाहुबल को बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए।

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  • 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर, Hindu UK PM Rishi Sunak और  अटल जी की कविता में भी छिपी है G-20 logo की Theme

    1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर, Hindu UK PM Rishi Sunak और अटल जी की कविता में भी छिपी है G-20 logo की Theme

    G-20 के Logo में कमल का फूल हमारी आस्था और बौद्धिकता को कर रहा चित्रित, ‘वसुधैव कुटुंबकम’  #vasudhaivkutumkam जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो ही Theme में भी समाहित- PM @narendramodi

    #G20  @g20org

    पीएम @narendrmodi ने G-20 का Logo का अनावरण करते हुए कहा कि इसमें कमल का फूल, भारत की पौराणिक धरोहर, हमारी आस्था और हमारी बौद्धिकता को चित्रित कर रहा है। हमारे यहां अद्वैत का चिंतन जीव मात्र के एकत्व का दर्शन रहा है। ये दर्शन, आज के वैश्विक द्वंदों और दुविधाओं के समाधान का माध्यम बने, इस Logo और Theme के जरिए हमने ये संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि युद्ध से मुक्ति के लिए बुद्ध के जो संदेश हैं, हिंसा के प्रतिरोध में महात्मा गांधी के जो समाधान हैं, G-20 के जरिए भारत उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊर्जा दे रहा है। #vasudhaivkutumkam के मंत्र के जरिए विश्व बंधुत्व की जिस भावना को हम जीते आए हैं, वो विचार इस Logo और Theme में प्रतिबिम्बित हो रहा है।

    भारत की सोच और सामर्थ्य से विश्व को परिचित कराना हमारी जिम्मेदारी

    पीएम मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि दुनिया में जब भी G-20 जैसे बड़े platforms का कोई सम्मेलन होता है, तो उसके अपने diplomatic और geo-political मायने होते हैं। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन भारत के लिए ये समिट केवल एक डिप्लोमैटिक मीटिंग नहीं है। भारत इसे अपने लिए एक नई ज़िम्मेदारी और अपने प्रति दुनिया के विश्वास के रूप में देखता है। आज विश्व में भारत को जानने की, भारत को समझने की एक अभूतपूर्व जिज्ञासा है। भारत का नए आलोक में अध्ययन, हमारी वर्तमान की सफलताओं का आकलन किया जा रहा है। इसके साथ ही हमारे भविष्य को लेकर अभूतपूर्व आशाएँ प्रकट की जा रही हैं। ऐसे में ये हम देशवासियों की ज़िम्मेदारी है कि हम इन आशाओं-अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर करके दिखाएं। ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम भारत की सोच और सामर्थ्य से, भारत की संस्कृति और समाजशक्ति से विश्व को परिचित कराएं।

    अटल जी की कविता : हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय

    डेस्‍क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले और गाय की पूजा करने वाले #UK के PM @RishiSunak

    साल 2020 में ऋषि सुनक को वित्‍त मंत्री की शपथ दिलाई गई

    इस दौरान उन्‍होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली

    उन्‍होंने एक बार कहा था, ‘भारत मेरी धार्मिक और सांस्‍कृतिक विरासत है’

    ऋषि सुनक को वित्‍त मंत्री की शपथ दिलाई गई। इस दौरान उन्‍होंने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली और वो हर भारतीय के फेवरिट बन गए। इस पर एक ब्रिटिश अखबार ने जब उनसे पूछा तो उन्‍होंने अपने ही अंदाज में ऋषि ने कहा, ‘मैं अब ब्रिटेन का नागरिक हूं लेकिन मेरा धर्म हिंदू है। भारत मेरी धार्मिक और सांस्‍कृतिक विरासत है। मैं गर्व से कह सकता हूं कि मैं एक हिंदू हूं और हिंदू होना ही मेरी पहचान है।’ अपनी डेस्‍क पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखने वाले सुनक धार्मिक आधार पर बीफ त्‍यागने की अपील भी कर चुके हैं। वो खुद भी बीफ का सेवन नहीं करते हैं। ऋषि, शराब भी नहीं पीते हैं। 

    मैं अखिल विश्व का गुरु महान्, देता विद्या का अमरदान।

    मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।

    मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।

    मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?

    मेरा स्वर नभ में घहर-घहर, सागर के जल में छहर-छहर।

    इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।

    हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

    मैं तेज पुंज, तमलीन जगत में फैलाया मैंने प्रकाश।

    जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?

    शरणागत की रक्षा की है, मैंने अपना जीवन दे कर।

    विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर।

    यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।

    गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?

    हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!

    अटल जी की इस कविता में भी छिपी है G-20 थीम Theme G-20 Bharat 23 India logo की Theme

    1857 क्रांति: अंग्रेजों ने दुनिया को बोला था झूठ, वीर सावरकर ने बताया था प्रथम राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम

    1857 की क्रांति एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने इतिहास में कालविभाजक की स्थिति अर्जित की। क्रांतिकारी और विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने 1857 की क्रांति पर अपनी कालजयी पुस्तक ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ में इस क्रांति को भारत का ‘प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम’ का नाम दिया।

    1857 की पहली घटना से लेकर स्वाधीनता के लिए आखिरी सांस तक जूझते भारतीय सैनिकों के संघर्ष को अंग्रेजों ने सिपाही विद्रोह कहकर दुनिया की आंखों में बखूबी धूल झोंकी। अगर वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति को आज भी अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखा जाता। उन्होंने ही इस क्रांति के यथार्थ को सामने रखा व इसे प्रथम भारतीय स्वातंत्र्य समर के रूप में प्रतिष्ठापित किया।

    1857 की क्रांति अपने प्रभाव व क्षेत्र में इतनी विस्तृत और तीव्र थी कि इसने अंग्रेजों को लगभग हतोत्साहित कर दिया था। उनके हृदय से भारत पर चिरकाल तक शासन कर पाने की आकांक्षाएं तिरोहित हो चुकी थीं।

    1857 में क्रांति की चिंगारी देश में हर तरफ धधक रही थी. क्रांतिकारियों द्वारा इस चिंगारी को भरपूर हवा दी जा रही थी, लेकिन इस चिंगारी को लहर बनाने के लिए जरूरी था कि आम नागरिक इस आंदोलन से जुड़ जाएं।

    महारानी लक्ष्मीबाई ने लोगों तक क्रांति का संदेश पहुंचाने के लिए दो प्रतीक चिन्हों को चुना.ये प्रतीक चिन्ह थे रोटी और खिला हुआ कमल।

    रोटी और कमल, क्रांति का प्रतीक चिन्ह भी हो सकता है यह अंग्रेजों के लिए सोचना मुश्किल था. लोगों ने एक दूसरे के घर तक रोटी और कमल पहुंचाया तो क्रांति का संदेश घर-घर तक पहुंच गया. इस रोटी और कमल ने कमाल कर दिया और फिर एक साथ सभी क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी सेना पर हमला कर दिया।

    1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम को कभी ‘किसान विद्रोह’ तो कभी ‘सैनिक विद्रोह’ का नाम दिया गया, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह सुनियोजित अभियान था। ‘रोटी’ और ‘कमल’ इस अभियान की खासियत थे। कानपुर के वरिष्ठ इतिहासकार मनोज कपूर के मुताबिक, नाना साहब पेशवा के रणनीतिकार तात्या टोपे ने बेहद कुशलता से इसे अमलीजामा पहनाया और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी हैरान रह गए। वे कमल और रोटी के निहितार्थ समझ ही नहीं सके।

    नवीन चंद पटेल ने बताया कि रोटी और कमल को चुनने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण था. रोटी इस बात का प्रमाण थी कि आपको अपने लिए भोजन और रसद की तैयारी भी रखनी होगी क्योंकि युद्ध कब तक चलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं था. इसी तरह कमल को सुख और समृद्धि के प्रतीक के रूप में चुना गया था।  इसके माध्यम से यह सन्देश पहुंचाया गया कि अगर पूरी ताकत से युद्ध लड़ा गया तो अंग्रेजों को भगा दिया जाएगा और सुख समृद्धि वापस आ जाएगी. रोटी और कमल की जोड़ी ने जो कमाल किया था उसी को आज हम 1857 की क्रांति के रूप में याद करते हैं।

    Tags: UK PM Rishi Sunak, G-20 Logo Theme, Kamal Flower, Vasudhaivkutumkam, Narendra Modi, Buddh Message, Atal Bihari Vajpayee poem, Hindu Tanman Hindu jivan, 1857 kamal roti

  • हिदुओं को मारने में आता है मजा’, पाक आतंकी का कबूलनामा तो इमरान खान पर फायरिंग एक अन्य पाकिस्तानी नावेद ने क्यों की ?

    हिदुओं को मारने में आता है मजा’, पाक आतंकी का कबूलनामा तो इमरान खान पर फायरिंग एक अन्य पाकिस्तानी नावेद ने क्यों की ?

    ग्लोबल टेररिस्ट को बचाने में मजा आता है चीन को

    ‘हिंदुओं को मारने में आता है मजा’, पाक आतंकी का कबूलनामा

    November 03, 2022: इमरान खान पर फायरिंग , एक हमलावर जिसका नाम  नावेद है गिरफ्तार और दूसरा मारा गया है।

    कराची: पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला (वजीराबाद) में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को एक रैली के दौरान गोली मार दी गई। इस हमले के बाद इमरान खान का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा- अल्लाह ने मुझे दूसरी जिंदगी दी है। मैं वापस लडूंगा  इंशाअल्लाह।

    02 जनवरी 2016: पठानकोट टेरर कॉलः आतंकी ने PAK में बैठी मां से फोन पर कहा- फिदायीन मिशन पर हूं।  माँ ने कहा भोजन कर ले जन्नत जायेगा?

    ग्लोबल टेररिस्ट को बचाने में मजा आता है चीन को

    ‘हिंदुओं को मारने में आता है मजा’, पाक आतंकी का कबूलनामा

    November 03, 2022: इमरान खान पर फायरिंग , एक हमलावर जिसका नाम  नावेद है गिरफ्तार और दूसरा मारा गया है।

    कराची: पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला (वजीराबाद) में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को एक रैली के दौरान गोली मार दी गई। इस हमले के बाद इमरान खान का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा- अल्लाह ने मुझे दूसरी जिंदगी दी है। मैं वापस लडूंगा  इंशाअल्लाह।

    02 जनवरी 2016: पठानकोट टेरर कॉलः आतंकी ने PAK में बैठी मां से फोन पर कहा- फिदायीन मिशन पर हूं।  माँ ने कहा भोजन कर ले जन्नत जायेगा?

    Tags: Global terrorist Masood Azhar, China, Fun to kill Hindus, Firing on Imran Khan, Pathankot Terror Attack, Fidayeen mission, Jannat

  • पारसी फिरोज Ghandy से फिरोज Gandhi :  गाँधी सरनेम का दोहन का रोचक इतिहास

    पारसी फिरोज Ghandy से फिरोज Gandhi : गाँधी सरनेम का दोहन का रोचक इतिहास

    फ़िरोज़ और इंदिरा का विवाह भी हिन्दू रीति रिवाज़ों से हुआ था। कैथरीन और बर्टिल ने इस पर भी विस्तार से लिखा है।

    धनजीभाई फ़रदूनभाई Ghandy कोई और नहीं, फ़िरोज़ गाँधी के दादा थे। मीडिया में असली और नकली गाँधी सरनामे की चर्चा होते रही है। Ghandy से Gandhi कैसे कौन हुआ इसका भी रोचक इतिहास है।

    62 वीं पुण्यतिथि 2022 : झाड़ियों में छिप गई फ़िरोज़ गांधी की पहचान, दादा को भूल गए राहुल और प्रियंका Ghandy (Gandhi-Vadra) : 8 सितम्बर को स्वतंत्रता सेनानी फ़िरोज़ गांधी की पुण्यतिथि और 12 सितंबर को जन्मतिथि। गूगल  पर जब आप गांधी सरनेम के विषय में रिसर्च करते हैं तो पता चलता है कि भारत में करीब 1 लाख 56 हजार लोग अपने नाम के आगे गांधी सरनेम लगाते हैं, ये संख्या इससे ज्यादा भी हो सकती है. लेकिन जिस तरह से Gandhi सरनेम का दोहन एक राजनीतिक घराने ने किया है, वैसा शायद ही किसी ने किया हो।

    ये बहुत बड़ी विडंबना है कि आज के दौर के गांधी बड़े-बड़े सरकारी बंगलों में रहते हैं और सुविधाओं का दोहन करते हैं, जबकि असली गांधियों को कोई जानता भी नहीं. भारत सहित दुनिया के ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि नेहरू गांधी परिवार ही महात्मा गांधी का असली वंशज हैं. लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत है।

    महात्मा गांधी की पारवारिक वंशावली फैमिली में आपको इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी या राहुल गांधी का नाम देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इनका गांधी जी के असली परिवार से कोई संबंध नहीं है। महात्मा गांधी के 4 बेटे थे. हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास. महात्मा गांधी के 154 वंशज दुनिया के 6 देशों में रह रहे हैं।

    कनुभाई गांधी महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के बेटे थे और अपनी पत्नी के साथ दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रह रहे थे. 2016 में दो महीने तक वो दिल्ली के एक वृद्धाश्रम में रहे और उसके बाद सूरत के एक वृद्धाश्रम में चले गए।  लेकिन नवंबर 2016 में हार्ट अटैक की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

    आपको जानकर हैरानी होगी कि कनुभाई ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और अमेरिका के डिफेंस डिपार्टमेंट में भी काम किया था। गांधी सरनेम लगाकर राजनीति करने वालों ने इस शब्द को ही हाईजैक कर लिया, जबकि असली गांधी की बात कोई नहीं करता।

    डीएनए एनालिसिस में सुधीर चौधरी का प्रश्न था  क्या स्पेलिंग में ऐसे ही फेरबदल करके, किसी अर्थ के अलावा किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को भी बदला जा सकता है ? गांधी परिवार के संदर्भ में देखेंगे तो इसका जवाब हां में ही नजर आता है. गांधी सरनेम के सहारे आज राजनीति का गांधी परिवार अपनी तुलना महात्मा गांधी के संघर्षों से करता है। क्या स्पेलिंग में ऐसे ही फेरबदल करके, किसी अर्थ के अलावा किसी देश के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को भी बदला जा सकता है ? गांधी परिवार के संदर्भ में देखेंगे तो इसका जवाब हां में ही नजर आता है. गांधी सरनेम के सहारे आज राजनीति का गांधी परिवार अपनी तुलना महात्मा गांधी के संघर्षों से करता है.

    फिरोज जहांगीर गांधी पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। पारसी समुदाय ने भारत के विकास में काफी बड़ा योगदान दिया है। व्यापार जगत में जमशेद टाटा, जहांगीर रतन टाटा, गोदरेज, नेविल वाडिया ,साइरस मिस्त्री, कोवास्जी इत्यादि, स्वतंत्राता संग्राम सेनानियों में दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, मैडम भिकाजी कामा, रतनबाई पेटिट (जिन्ना की पत्नी) इनके अलावा और भी कई नाम हैं। खेल जगत में नारी कोंट्रेक्टर, पाली उमरीगर, फारूख इंजीनियर, रुसी मोदी, विजय मर्चेंट इत्यादि।

    उनका  परिवार ईरान से आया और देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ था। इलाहाबाद में आज भी फिरोज के बड़े भाई फिरदौस के बेटे रुस्तम रहते हैं। तत्कालीन सांसद फिरोज गांधी के निधन के बाद इलाहाबाद के ममफोर्डगंज मोहल्ले स्थित पारसी समुदाय के कब्रिस्तान में दफन किया गया था। 1980 में मेनका गांधी और उसके बाद सोनिया गांधी यहां आई थीं। उसके बाद परिवार का कोई सदस्य इस कब्रिस्तान में नहीं आया। इस कब्रिस्तान की देखभाल एक चौकीदार करता है। कब्रिस्तान में कुआं और एक मकान के अलावा चौकीदार के रहने के लिए दो कमरे भी बने हुए हैं। देखभाल के अभाव में फिरोज गांधी सहित उनके पूर्वजों की कब्र जर्जर हो चुकी हैं।

    राजीव गांधी के पिता फिरोज गांधी का गुजरात से गहरा नाता था, 1960 में हार्ट अटैक से निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार हिंदू-रीति रिवाज से किया गया था, लेकिन अस्थियों के एक हिस्से को सूरत में दफनाया गया था। खास बात ये है कि उनका अंतिम संस्कार हुआ था हिंदू रीति-रिवाज से था, लेकिन उसमें पारसी प्रक्रिया भी अपनाई गई थी. आइए जानते हैं कि आखिर फिरोज गांधी की अस्थियों को गुजरात के सूरत में ही क्यों दफनाया गया।

    09 Sep 2022 दोपहर 12:30 बजे फिरोज गांधी की कब्र पर पहुंचे कांग्रेसियों ने पुष्प अर्पित किया। इस दौरान पार्टी नेताओं का कहना था कि एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर फिरोज गांधी के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। परन्तु २० से भी अधिक वासों से फ़ीरोज़े की जर्जर कब्र को भूलचूकें हैं राहुल प्रियंका गाँधी वाड्रा।

    प्रयागराज में पारसी कब्रगाह के बीच बनी फिरोज जहांगीर गांधी की कब्रगाह आज भी अपनी पुश्तों का इंतजार कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दादा की मजार की हिफाजत करने वाले बाबूलाल का कहना है कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी को अपने पुरखों की कब्रगाह पर आना चाहिए

  • गांधी का नेहरू के लिए अलोकतांत्रिक VETO

    गांधी का नेहरू के लिए अलोकतांत्रिक VETO

    महात्मा गाँधी में ऐसी जादुई शक्ति थी जिसके कारण उनकी हर बात को सातंत्रता की पूर्व के बड़े से बड़े कांग्रेस के नेता को मानना पड़ता था। नेहरू में भी ऐसी काली जादुई शक्ति थी जिसके कारण उनकी हर बात को चाहे कोई मने या ना मने पर महात्मा गाँधी जरूर मानते थे। इसके गवाह सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस से सम्बंधित इतिहास के पन्ने  हैं। पंडित नेहरू और सरदार पटेल दोनों ही महात्मा गाँधी के प्रिय शिष्य थे।

    ‘पटेल न होते तो 565 टुकड़ों में बंट जाता देश’

    सरदार बल्लभ भाई पटेल नहीं होते तो आज यह देश सैकड़ों टुकड़ों में बंटा होता। आजादी के बाद भारत 565 विरासतों में बंटा था और उसे एक सूत्र में बांधने का काम सरदार पटेल ने किया था। इसी कारण सरदार पटेल को लौह पुरुष की उपाधि महात्मा गाँधी ने दी थी। इसके एवज में महात्मा गाँधी ने लौह पुरुष पटेल से गुरु दक्षिणा मांगी या यह कहें कि जैसे माता कुंती ने दानवीर कर्ण से वचन माँगा।

    महात्मा गाँधी और सरदार पटेल कि छवि सनातनी और हिंदुत्व वादी थी।  इसके विपरीत नेहरू की छवि एंटी हिन्दू रही है। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे घटनावश हिन्दू परिवार में जन्मे परंतु शिक्षा से अंग्रेज और संस्कृति से मुस्लिम रहे। परंतु हिन्दुओं के वोट प्राप्त करने के लिये उन्होंने अपने सिर पर टोपी विराजमान रखी तथा अपने नाम के आगे पंडित भी रखा रहा।http://www.lokshakti.in/39411/

    प्रधानमंत्री तय करने  के लिए  अप्रैल 1946 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई थी। मौलाना अब्दुल कलाम कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के पद को छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर उन्हें ये पद छोड़ना पड़ा जिसके बाद महात्मा गांधी पंडित नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते थे।

    उस समय कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थी. ऐसे में किसी भी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया था . 15 में से 12 प्रांतीय कांग्रेस कमेटियों ने सरदार पटेल का और बची हुई 3 कमेटियों ने बैठक में तब पार्टी के महासचिव आचार्य जे बी कृपलानी और पट्टाभी सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया गया था।

    ऐसे में ये तय था कि कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सरदार पटेल के पास ज्यादा लोगों की सहमति रही, दूर- दूर तक जवाहर लाल नेहरू का नाम नहीं था। महात्मा गांधी ही थे जो नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनते हुए देखना चाहते थे. इसके बाद आचार्य कृपलानी को कहना पड़ा, ‘बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए मैं जवाहर लाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित करता हूं.’ यह कहते हुए आचार्य कृपलानी ने एक कागज पर जवाहर लाल नेहरू का नाम खुद से प्रस्तावित कर दिया था।

    महात्मा गांधी के दवाब के कारण पटेल ने भी मान लिया था नेहरू ही अगले प्रधानमंत्री बनेंगे।  यहाँ यह बताना आवश्यक है कि महात्मा गांधी ने अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल के नाम का प्रस्ताव नहीं दिया था।  महात्मा गांधी ने वजह बताते हुए कहा था कि “जवाहर लाल नेहरू बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अंग्रेजी हुकूमत से बेहतर तरीके से समझौता वार्ता कर सकते थे”।

    अपने एक शिष्य नेहरू के लिए पटेल सहित अन्य नेताओं पर महात्मा का दबाव क्या नैतिक और लोकततांत्रिक था ? किसके पास है इसका उत्तर ?

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  • नाथद्वारा में स्थापित हुई दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा

    नाथद्वारा में स्थापित हुई दुनिया की सबसे बड़ी शिव प्रतिमा

    शाह बानो मामला: जब मुस्लिम कट्टरपंथियों, मौलवियों ने 1984 में चुनी गई तत्कालीन राजीव गांधी सरकार को मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण अधिनियम), 1986 पारित करने के लिए प्रेरित किया। इस कानून ने शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलट दिया। अर्थात राजीव गांधी ने तलाक के दौरान मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार की रक्षा करने वाले SC के फैसले को पलट दिया।

    1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में उन्हें तलाक देने वाले शौहर को हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल बताकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जबरदस्त विरोध करने लगे। 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक दिए, संसद में कानून बनाकर फैसला पलट दिया।

    इसके बाद राजिक गाँधी सरकार पर  सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगने लगे। डैमेज कंट्रोल के लिए राजीव गांधी ने एक और ऐतिहासिक भूल कर दी। इस बार हिंदू तुष्टीकरण की। 37 सालों से बंद अयोध्या के विवादित बाबरी ढांचे स्थित रामललाका 1986 में ताला खोल दिया गया। ताला ही नही खुला। राजीव गांधी ने खुद अयोध्या पहुंच पूजा-अर्चना की। विवादित स्थल के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास तक कर डाला। राजीव गांधी की इस दूसरी गलती से अयोध्या मामला गरमा गया। लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी ने राम मंदिर निर्माण के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ दिया। उसी आंदोलन की बदौलत बीजेपी ने पहले राज्यों और फिर बाद में केंद्र में सत्ता का स्वाद चखा। आज नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में है। कई राज्यों में उसकी सरकारें हैं। २०२४ के लोक सभा चुनाव में भी  —–के जीत की भविष्यवाणी राजनीतिज्ञ ुर सर्वे  कर रहे हैं।

    इसी वोटबैंकपोलिटिक्स और ब्रिटिश अंग्रेजों की Divide & Rule की नीति को कांग्रेस १९४७े बाद भी अपनाते आ रही है। कांग्रेस शासित राजस्थान भी इससे अछूता नहीं है।

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की  विरोधी कोंग्रस

    राजस्थान सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की हदें पार करते हुए राजस्थान की गहलोत सरकार में धर्म के आधार पर भेदभाव, रीट एग्जाम में उतरवाए गए दुपट्टे, मंगलसूत्र और चूड़ियां, हिजाब पहनकर परीक्षा देने की मिली छूट: कांग्रेस शासित राज्यों में हिन्दू होना गुनाह बन गया है। इसका प्रमाण राजस्थान में रीट एग्जाम के दौरान देखने को मिला। परीक्षार्थियों के परीक्षा केंद्र में प्रवेश को लेकर प्रशासन ने इतनी सख्ती दिखाई कि हिन्दू महिलाओं और युवतियों के दुपट्टे उतरवा दिए गए और कपड़ों पर लगे बटन तक काट दिए। यहीं नहीं महिलाओं के मंगलसूत्र, चूड़ियां, बालों की क्लिप, साड़ी पिन निकलवा दी गई।

    राजस्थान सरकार ने मदरसों में पढ़ने वाले 5वीं कक्षा के छात्रों की बोर्ड परीक्षा की फीस माफ करने का फैसला किया है। छात्र तो सब एक होते हैं फिर उनके साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। रमजान के महीने में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बिजली कटौती नहीं करने का आदेश दिया। इसके विपरीत, हिंदू त्योहारों पर कई जिलों में धारा 144 लागू किया गया और रैली आदि निकालने के लिए पुलिस की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया।

    कॉन्ग्रेस की ‘मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट चढ़े कन्हैया लाल:राजस्थान के उदयपुर (Udaipur, Rajasthan) में मंगलवार (28 जून 2022) को कन्हैया लाल साहू नाम के हिंदू व्यक्ति की गला काटकर दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। इस्लामी आतंकियों ने न सिर्फ गला काटा, बल्कि बाद में वीडियो भी बनाया और उनके रसूल की गुस्ताखी पर लोगों को धमकाया।

    मुस्लिम तुष्टिकरण की हद पार करने के बाद हार की कगार पर कड़ी गहलोत सरकार हिन्दुओं को खुश करने के लिए राजस्थान के नाथद्वार में दुनिया की सबसे ऊंची 369 फीट की शिव प्रतिमा का आज अनावरण नवंबर २९, २०२२ को किया गया।

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उद्घोषक भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार

    Kahi[Tamil-Sangamam

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला 2014 में क्यों किया था ? इस  सवाल का जवाब वास्तव तत्काल चुनावी गणना के अलावा  सांस्कृतिक संदर्भें भी छिपा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए 13 दिसंबर, 2021 में मोदी ने कहा था कि काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन भारत को एक निर्णायक दिशा देगा और एक उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत करेगा।

    मध्यकाल में अस्था के स्थलों पर सुनियोजित हमले हुए। किन्तु आस्था का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण हुआ था। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। साँस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। यह क्रम निरंतर जारी है।

    अब ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।

    ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजन

    कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है।

    कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है। “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजनहै।

    अयोध्या में भव्य राम मंदिर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक

    अयोध्या में श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण से भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जुड़ रहा है। वास्तव में भारत का राष्ट्रवाद राजनीतिक नहीं, भौतिकवादी नहीं, सांस्कृतिक है और उस
    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे पहली घोषणा श्री राम ने की थी। इसलिए वे राष्ट्र पुरुष हैं, केवल धार्मिक नहीं। श्री राम ने लंका जीत ली। अयोध्या वापसी की तैयारी होने लगी तो लक्ष्मण ने कहा,‘‘भैया अब सोने की लंका हमारी हैहम यहीं पर क्यों रहेंअयोध्या जाने की क्या आवश्यकता हैतब श्री राम ने उत्तर दिया था:

    ‘‘अति स्वर्णमयी लंका मे लक्ष्मण रोचते

    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

    यही है भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उसके बाद के देश के पूरे इतिहास में इसी राष्ट्रवाद की झलक मिलती है। विश्व में शायद कोई
    ऐसा देश नहीं जिसकीसीमाएं हजारों वर्ष पहले के ग्रंथों में मिलती हैं।

     

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