Category: Articles

  • किन दो प्रधानमंत्रियों ने तोड़ा घमंड सुभाष बोस को तोजो का डॉग और इंडियंस डॉग कहने वालों का?

    किन दो प्रधानमंत्रियों ने तोड़ा घमंड सुभाष बोस को तोजो का डॉग और इंडियंस डॉग कहने वालों का?

    वरिष्ठ पत्रकार श्री रामशंकर अग्निहोत्री द्वारा लिखित पुस्तक – “कम्युनिस्ट विश्वासघात की कहानी” में लिखा गया है, ““नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए जब जापान में आजाद हिन्द सेना की स्थापना की तो यही कम्युनिस्ट नेताजी को जापानी कठपुतली, “तोजो का कुत्ता” और देशद्रोही करार देते रहे. इसके बाद भारत विभाजन की रूप रेखा तैयार करने में कम्युनिस्टों ने मुस्लिम लीग का साथ दिया….”

    उन्हीं कम्युनिस्टों के नेता कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य ने Jan 24, 2003, 03:32 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की १०५ वीं जयंती पर अपनी अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी की गलती स्वीकार करते हुए नेताजी को महान बताया।

    Jan 24, 2003, 03:32

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट के पास स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया। प्रतिमा का अनावरण आजाद हिंद फौज के पारंपरिक गीत ‘‘कदम, कदम बढ़ाए जा’’ की धुन के साथ किया गया।
     
    नेताजी सुभाष चंद्र की यह प्रतिमा 28 फीट ऊंची है. इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा उसी स्थान पर स्थापित की गई है, जहां इस साल की शुरुआत में पराक्रम दिवस (23 जनवरी) के अवसर पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया था. PM मोदी ने प्रतिमा का अनावरण करने के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की।
    कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं कॉमरेडों द्वारा नेताजी का अपमान किया था और कोन्ग्रेस्स अपने ६० वर्षों के शासनकाल में चुप्पी साधी रही। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेताजी सुभष चंद्र बोस की भव्य मूर्ती की स्थापना कर उन्हें इतिहास में अमर बना दिया।

    यह बात तो कोई भारतीय नहीं भूल सकता कि अंग्रेजों ने 200 साल तक हमारे देश पर शासन किया और कई तरह के जुल्‍म ढहाये। उस समय अंग्रेजों द्वारा  रॉयल शिमला क्लब में एक बोर्ड लगाया गया था जिसमें लिखा गया था- इंडियन और डॉग्स को अंदर जाने की इजाजत नहीं। उनका यह घमंड तब चकनाचूर हुआ जब ऋषि सुनक 10 डाउनिंग स्ट्रीट में अपने डॉग के साथ पहुंचे।

    #UK के नए प्रधान मंत्री: दीवाली के शुभ अवसर पर इससे बड़ा और कौनसा उपहार हो सकता है?

  • Wipro, Nestle, ONGC से अमीर Tirupati Temple

    Wipro, Nestle, ONGC से अमीर Tirupati Temple

    तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने पहली बार मंदिर की कुल संपत्ति की घोषणा की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शनिवार को श्वेत पत्र जारी किया गया है, जिसमें बताया गया कि मंदिर का करीब 5,300 करोड़ का 10.3 टन सोना और 15,938 करोड़ नकद राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा है। मंदिर की कुल संपत्ति 2.26 लाख करोड़ की है।

    तिरुपति के विश्व प्रसिद्ध भगवान वेंकटेश्वर मंदिर की कुल संपत्ति 2.5 लाख करोड़ रुपये (लगभग 30 बिलियन अमरीकी डॉलर) से अधिक घोषित की गई है. मंदिर की ये संपत्ति किसी भी आईटी सेवा फर्म विप्रो (Wipro),खाद्य और पेय कंपनी नेस्ले (Nestle)और राज्य के स्वामित्व वाली तेल दिग्गज  कंपनी ओएनजीसी (ONGC)और आईओसी (IOC) के बाजार पूंजी से भी अधिक है।

    स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा कारोबारी कीमत पर तिरुपति मंदिर की कुल संपत्ति कई ब्लू-चिप भारतीय कंपनियों से ज्यादा है. शुक्रवार को कारोबार के अंत में बेंगलुरु की विप्रो का मार्केट कैप 2.14 लाख करोड़ रुपये था, जबकि अल्ट्राटेक सीमेंट का मार्केट कैप 1.99 लाख करोड़ रुपये था. राज्य के स्वामित्व वाले तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) और Indian Oil Corporation का मूल्य भी मंदिर से कम निकला. इसके अलावा बिजली की दिग्गज कंपनी एनटीपीसी लिमिटेड, ऑटो निर्माता महिंद्रा एंड महिंद्रा और टाटा मोटर्स, दुनिया का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक कोल इंडिया लिमिटेड आदि भी इससे पीछे हैं।

    Rashtriya Thermal Power Corporation Ltd की बाजार पूंजी इस मंदिर की संपत्ति से कम है. Mahindra & Mahindra और Tata Motors तथा विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी Coal India Ltd, खनन कंपनी Vedanta, रियल एस्टेट कंपनी DLF तथा कई अन्य कंपनियां भी सूची में शामिल हैं. सिर्फ दो दर्जन कंपनियों की बाजार पूंजी मंदिर के न्यास की संपत्ति से अधिक है। इनमें Reliance Ind Ltd, Tata Consultancy Services, HDFC Bank, Infosys व अन्य शामिल हैं।

    10 रहस्य:  वैज्ञानिक भी नहीं उठा पाए पर्दा

    कहा जाता है भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर बाल लगे हैं जो असली हैं। यह बाल कभी भी उलझते नहीं हैं और हमेशा मुलायम रहते हैं। मान्यता है कि यहां भगवान खुद विराजमान हैं।

    यहां जाने वाले बताते हैं कि भगवान वेंकटेश की मूर्ति पर कान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की ध्‍वनि सुनाई देती है।

    मंदिर में मुख्‍य द्वार पर दरवाजे के दाईं ओर एक छड़ी है। इस छड़ी के बारे में कहा जाता है कि बाल्‍यावस्‍था में इस छड़ी से ही भगवान बालाजी की पिटाई की।

    भगवान बालाजी के मंदिर में एक दीया सदैव जलता रहता है। इस दीए में न ही कभी तेल डाला जाता है और न ही कभी घी।

    भगवान बालाजी के हृदय पर मां लक्ष्मी विराजमान रहती हैं। माता की मौजूदगी का पता तब चलता है जब हर गुरुवार को बालाजी का पूरा श्रृंगार उतारकर उन्हें

    भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्‍यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।

    वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के चिकने पत्‍थर से बनी है, मगर यह पूरी तरह से जीवंत लगती है। यहां मंदिर के वातावरण को

    भगवान की प्रतिमा को प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से सजाया जाता है। मान्‍यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्‍मी का रूप समाहित है। इस कारण

    भगवान बालाजी के मंदिर से 23 किमी दूर एक गांव है, और यहां बाहरी व्‍यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। यहां पर लोग बहुत ही नियम और संयम के साथ रहते हैं। मान्‍यता है कि बालाजी को चढ़ाने के लिए फल, फूल, दूध, दही और घी सब यहीं से आते हैं। इस गांव में महिलाएं सिले हुए कपड़े धारण नहीं करती हैं।

    मूर्ति को आता है पसीना भी

    वैसे तो भगवान बालाजी की प्रतिमा को एक विशेष प्रकार के चिकने पत्‍थर से

    जब मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश करेंगे तो ऐसा लगेगा कि भगवान श्री वेंकेटेश्वर की मूर्ति गर्भ गृह के मध्य में है। लेकिन आप जैसे ही गर्भगृह के बाहर आएंगे तो चौंक जाएंगे क्योंकि बाहर आकर ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान की प्रतिमा दाहिनी तरफ स्थित है। अब यह सिर्फ भ्रम है या कोई भगवान का चमत्कार इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया है। 

    Tags: Richest Tirupati Temple, Blue chip firms, Tirumala Tirupati’s 10 Mysteries, Tirupati wealth 2.26 lakh crores, Lord Venkateswara temple

  • भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए पवन विंड टरबाइन महत्त्व पूर्ण

    भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए पवन विंड टरबाइन महत्त्व पूर्ण


    भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए पवन विंड टरबाइन महत्त्व पूर्ण है

    अडानी ग्रुप ने गुजरात के मुंद्रा में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue Of Unity) से भी ऊंची विंड टर्बाइन (Wind Turbine) लगाई है। २०० मीटर ४० मंजिल ईमारत से भी ऊँची इस एक विंड टर्बाइन से 4000 घरों में बिजली पहुंचाई जा सकती है। अडानी न्यू इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने गुरुवार को बताया है कि देश के सबसे बड़े विंड टर्बाइन जनरेटर को गुजरात के मुंद्रा में लगाया गया

    जर्मनी जैसे ही विंड टरबाइन का भी महत्व भारत के आर्थिक तंत्र और पर्यारण के लिए महत्त्व पूर्ण है। जर्मनी में कोयले और पेट्रोल की जगह सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है। जर्मनी ने पिछले सालों में जीवाश्म उर्जा पर निर्भरता कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने का फैसला किया और इसके लिए वहां लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। ऊर्जा प्रणाली में सौर और ऑन- और ऑफशोर पवन ऊर्जा को एकीकृत करने की भारत की क्षमता की विस्तृत चर्चा एक रिसर्च पेपर में की गई है।

    पवन टर्बाइन एक रोटरी उपकरण है, जो हवा से ऊर्जा को खींचता है। अगर यांत्रिक ऊर्जा का इस्तेमाल मशीनरी द्वारा सीधे होता है, जैसा कि पानी पंप करने लिए, इमारती लकड़ी काटने के लिए या पत्थर तोड़ने के लिए होता है, तो वह मशीनपवन-चक्की कहलाती है।

    पवन टर्बाइन हवा की शक्ति को उस बिजली में बदल सकते हैं जिसका उपयोग हम सभी अपने घरों और व्यवसायों को बिजली देने के लिए करते हैं ।

    एक अच्छी गुणवत्ता वाली, आधुनिक पवन टरबाइन आम तौर पर 20 वर्षों तक चलती है, हालांकि इसे पर्यावरणीय कारकों और सही रखरखाव प्रक्रियाओं के आधार पर 25 साल या उससे अधिक समय तक बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, संरचना की उम्र के रूप में रखरखाव की लागत में वृद्धि होगी।

    पवन ऊर्जा के फायदे और नुकसान क्या हैं?

    पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने से हमें जीवाश्म ईंधन जलाने की आवश्यकता कम हो जाती है। यह न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करता है बल्कि पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की घटती मात्रा को बचाने में भी मदद करता है। जिससे कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के भंडार लंबे समय तक रहेंगे।

    UPLOAD PHOTO AND GET THE ANSWER NOW! Solution : डेनमार्क।

    पवन ऊर्जा पैदा करने वाला चीन दुनिया का सबसे बड़ा देश है. वह अपनी क्षमता में और विस्तार करने की योजना बना रहा है.

    गुजरात के कच्छ का लाम्बा एशिया का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र है।


    प्राप्त आंकड़ों के अनुसार मार्च 2010 के अंत तक इसकी पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता 4889 मेगावाट हो चुकी थी। पवन ऊर्जा का यह केंद्र तमिलनाडु के अरलवाईमोड़ी के पास पुप्पंदल गाँव में स्थित है।


    1,600MW जैसलमेर विंड पार्क भारत का सबसे बड़ा विंड फार्म है। सुजलॉन एनर्जी द्वारा विकसित, इस परियोजना में भारत के राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित पवन खेतों का एक समूह है।

    हेलियाडे-एक्स 14 मेगावाट इंग्लैंड के पूर्वोत्तर तट पर स्थित डोगर बैंक सी अपतटीय पवन फार्म में है, दान करेगी।

    Tags: पवन टरबाइन, सौर ऊर्जा, अदानी समूह की टर्बाइन, मुंद्रा गुजरात, हवा से ऊर्जा, सीना पवन ऊर्जा, कच्छ का लांबा, गुजरात में, तमिलनाडु पवन ऊर्जा, जैसलमेर पवन पार्क, हेलियाडे-एक्स 14 मेगावाट

  • RBI Launches Digital Currency: असंख्य पेड़ों को मिलेगा जीवन !

    RBI Launches Digital Currency: असंख्य पेड़ों को मिलेगा जीवन !

    जगदीश चन्द्र बसु ने सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी जीव है। पेपर प्रोडक्शन के लिए पर्यावरण के रक्षक हमारे जीवन के रक्षक  जंगल कै जंगल असंख्य पेड़ों की हत्या की जाती है।  डिजिटल करेंसी से अब ऐसा नहीं हो सकेगा।  

    आरबीआई ने आज नोवेम्बर २, २०२२ को जारी किया डिजिटल करेंसी का पायलट प्रोजेक्ट। इसके लांच होते ही इसका आशा से भी अधिक रेस्पोंसे मिल रहा है। आते ही छा गई आरबीआई की डिजिटल करेंसी, पहले दिन हुए 275 करोड़ रुपये के 50 ट्रांजैक्शन। इस पायलट प्रोजेक्ट में हिस्सा ले रहे हैं नौ बैंक।

    डिजिटल करेंसी: 100 रुपये के नोट छापने में खर्च होते हैं 17 रुपये, अब आरबीआई ऐसे करेगा करोड़ों की बचत। एक करेंसी नोट अधिकतम चार साल तक चलता है। केंद्रीय बैंक को नए नोट छापने हैं जिनकी कीमत हजारों करोड़ रुपये है। वित्त वर्ष 2021-22 में आरबीआई ने 4.19 लाख अतिरिक्त नोट छापे थे, जिनकी कीमत हजारों करोड़ रुपये थी। वहीं डिजिटल करेंसी की कीमत लगभग जीरो होगी, जिससे सरकार के अरबों रुपये की बचत होगी।

    ई-आरयूपीआई डिजिटल भुगतान के लिए एक कैशलेस और संपर्क रहित साधन है। इसमें कहा गया है कि ई-आरयूपीआई इलेक्ट्रॉनिक वाउचर की एक अवधारणा है जो प्रधानमंत्री के सुशासन के दृष्टिकोण को आगे ले जाती है।

    इस सेंट्रल बैंक की डिजिटल करेंसी यानी CBDC का नाम दिया गया है। अभी इसका ट्रायल चल रहा है और इसमें 9 बैंकों को शामिल किया गया है जिनके जरिए लेनदेन किया जाएगा। अभी डिजिटल करेंसी को रोजमर्रा के भुगतान के लिए शुरू नहीं किया गया है, बल्कि इसका इस्तेमाल सरकारी सुरक्षा के लेन-देन में किया जा रहा है। इसका ट्रायल आज मंगलवार को शुरू हुआ। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, यह भारत की मुद्रा के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है और यह कारोबार करने के पूरे तरीके को बदल देगा।

    इसमें हिस्सा लेने वाले हर बैंक का एक डिजिटल करेंसी अकाउंट है जिसे सीबीडीसी अकाउंट (CBDC Account) नाम दिया गया है। इसे आरबीआई मेनटेन कर रहा है। बैंकों को पहले अपने अकाउंट्स से इस अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने होंगे। अगर एक्स बैंक किसी वाई बैंक से बॉन्ड्स खरीद रहा है तो एक्स बैंक के सीबीडीसी बैंक से डेबिट होगा और वाई बैंक के उसी अकाउंट में क्रेडिट होगा। इसमें उसी दिन डिजिटल सेटलमेंट होगा।

    इस सेंट्रल बैंक की डिजिटल करेंसी यानी CBDC का नाम दिया गया है। अभी इसका ट्रायल चल रहा है और इसमें 9 बैंकों को शामिल किया गया है जिनके जरिए लेनदेन किया जाएगा। अभी डिजिटल करेंसी को रोजमर्रा के भुगतान के लिए शुरू नहीं किया गया है, बल्कि इसका इस्तेमाल सरकारी सुरक्षा के लेन-देन में किया जा रहा है। इसका ट्रायल आज मंगलवार को शुरू हुआ। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार, यह भारत की मुद्रा के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है और यह कारोबार करने के पूरे तरीके को बदल देगा।

    भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और कोटक महिंद्रा बैंक ने भी डिजिटल रुपये के पहले पायलट परीक्षण में भाग लिया। आरबीआई ने कहा कि उसकी योजना एक महीने के भीतर डिजिटल रुपये का पायलट ट्रायल शुरू करने की है। परीक्षण एक विशिष्ट उपयोगकर्ता समूह के बीच चुनिंदा स्थानों पर आयोजित किया जाएगा, जिसमें ग्राहक और व्यापारी शामिल हैं।

    आरबीआई की डिजिटल करेंसी में डील सेटलमेंट से सेटलमेंट कॉस्ट में कमी आने की संभावना है। CBDC केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए गए करेंसी नोटों का डिजिटल संस्करण है। दुनिया भर के केंद्रीय बैंक सीबीडीसी शुरू करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में डिजिटल रुपया पेश करने की घोषणा की थी।

    डिजिटल करेंसी से  न सिर्फ सरकार का पैसा बचेगा, बल्कि इसका इस्तेमाल करने वालों को भी कई फायदे मिलेंगे. मसलन जेब में नोट ले जाने की जरूरत नहीं होगी और न ही बैंक जाकर नोट जमा कराने की जरूरत होगी. इसका भुगतान तेज और सुरक्षित होगा। वॉलेट में पैसे रखने की जगह मोबाइल वॉलेट जैसा सिस्टम काम करेगा।

    ई-आरयूपीआई के बाद अब डिजिटल करेंसी का ा जारी हों होना  एक और  उदाहरण है कि भारत कैसे आगे बढ़ रहा है और 21वीं सदी में लोगों को उन्नत तकनीक की मदद से जोड़ रहा है।

    Tags: RBI Launches Digital Currency,  Trees get life, Jagdish Chandra Basu, Digital protects environment, CBDC, E-RUPI, Cashless, RBI Governor, Progressing India, Dream of Modi

  • #UK के नए प्रधान मंत्री : दीवाली के शुभ अवसर पर इससे बड़ा और कौनसा उपहार हो सकता है ?

    #UK के नए प्रधान मंत्री : दीवाली के शुभ अवसर पर इससे बड़ा और कौनसा उपहार हो सकता है ?

    भारतीय मूल के #UK के नए प्रधान मंत्री @RishiSunak #RishiSunak ऋषि सनक ने सोमवार अक्टूबर २४ को कंजरवेटिव पार्टी के नेता बनने की दौड़ जीत ली और वे ब्रिटेन के अगले प्रधान मंत्री बन जाएंगे। दीवाली के शुभ अवसर पर इससे बड़ा और कौनसा उपहार हो सकता है ?

    यह कार्यक्रम सुबह 9:40 बजे ET से शुरू होने वाला है।

    पूर्व ट्रेजरी प्रमुख @RishiSunak ब्रिटेन के #इंडियन मूल पहले नेता होंगे और आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल के समय पार्टी और देश को स्थिर करने के कार्य का सामना करेंगे।

    #BorisJohnson के बाद उनके एकमात्र प्रतिद्वंद्वी, Penny Mordaunt ने स्वीकार किया और candidatuer वापस ले लिया।

    गवर्निंग पार्टी के नेता के रूप में, वह लिज़ ट्रस से प्रधान मंत्री के रूप में कार्यभार संभालेंगे, जिन्होंने पिछले सप्ताह पद पर 45 दिनों के बाद पद छोड़ दिया था।
    @RishiSunak मजबूत पसंदीदा थे क्योंकि गवर्निंग कंजर्वेटिव पार्टी ने भारी आर्थिक चुनौतियों के समय और पिछले दो प्रधानमंतियों की अराजकताभरी के बबाद स्थिरता की मांग की थी।

    पूर्व नेता बोरिस जॉनसन के कंजरवेटिव पार्टी नेतृत्व की प्रतियोगिता से बाहर होने के बाद सनक की स्थिति मजबूत हुई। 45 दिनों के अशांत कार्यकाल के बाद लिज़ ट्रस के इस्तीफे के बाद पार्टी इस साल ब्रिटेन के तीसरे प्रधान मंत्री को चुन रही है।

    सनक पिछले कंजर्वेटिव चुनाव में ट्रस से हार गए, लेकिन उनकी पार्टी और देश अब बढ़ती ऊर्जा और खाद्य कीमतों और एक आसन्न मंदी से निपटने के लिए एक सुरक्षित जोड़ी के लिए उत्सुक दिखाई देते हैं। राजनेता ने कोरोनोवायरस महामारी के माध्यम से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाया, बंद श्रमिकों और बंद व्यवसायों के लिए अपने वित्तीय समर्थन के लिए प्रशंसा जीती।

    उन्होंने सरकार बनाने पर “ईमानदारी, व्यावसायिकता और जवाबदेही” का वादा किया है – देश की समस्याओं से निपटने वाले नेता की बढ़ती इच्छा के लिए।

    इससे पहले दिन में, 42 वर्षीय 100 से अधिक सांसदों के समर्थन के साथ एकमात्र उम्मीदवार थे, चुनाव में चलने के लिए आवश्यक संख्या, उनके समर्थकों ने दावा किया कि उन्हें 357 में से आधे से अधिक कंजर्वेटिव सांसदों द्वारा समर्थन दिया गया है। संसद। मोर्डौंट ने नामांकन बंद होने तक दहलीज तक पहुंचने की उम्मीद की थी – लेकिन वह पीछे हट गई।

    इसका मतलब है कि सनक अब कंजर्वेटिव पार्टी के नेता हैं और उन्हें किंग चार्ल्स III द्वारा सरकार बनाने के लिए कहा जाएगा। वह बाद में सोमवार या मंगलवार को ट्रस से सत्ता सौंपकर प्रधानमंत्री बनेंगे।

    सनक, जो 2020 से इस गर्मी तक ट्रेजरी प्रमुख थे, ने जुलाई में जॉनसन के नेतृत्व के विरोध में पद छोड़ दिया।

    जॉनसन ने रविवार की रात नाटकीय रूप से दौड़ छोड़ दी, प्रधान मंत्री की नौकरी पर लौटने के लिए एक अल्पकालिक, हाई-प्रोफाइल प्रयास को समाप्त कर दिया, जिसे नैतिकता के घोटालों के बीच तीन महीने से भी अधिक समय पहले हटा दिया गया था।

    जॉनसन ने कैरेबियाई छुट्टी से वापस उड़ान भरने के बाद साथी कंजर्वेटिव सांसदों से समर्थन हासिल करने की कोशिश में सप्ताहांत बिताया। रविवार की देर रात उन्होंने कहा कि उन्होंने 102 सहयोगियों का समर्थन हासिल किया है। लेकिन वह समर्थन में सुनक से बहुत पीछे थे, और उन्होंने कहा कि उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि “आप प्रभावी ढंग से शासन नहीं कर सकते जब तक कि आपके पास संसद में एक संयुक्त पार्टी न हो।”

    जॉनसन की वापसी की संभावना ने पहले से ही विभाजित कंजर्वेटिव पार्टी को और उथल-पुथल में डाल दिया था। उन्होंने 2019 में पार्टी को एक प्रचंड चुनावी जीत के लिए नेतृत्व किया, लेकिन उनके प्रीमियर पर पैसे और नैतिकता के घोटालों के बादल छा गए, जो अंततः पार्टी के लिए सहन करने के लिए बहुत अधिक हो गए।

    अपने रविवार के बयान में, जॉनसन ने जोर देकर कहा कि वह 2024 तक अगले राष्ट्रीय चुनाव में “रूढ़िवादी जीत देने के लिए अच्छी तरह से तैयार” थे। और उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने किसी भी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों का एक मत जीता होगा।

  • बाहुबली रॉकेट GSLV 3 ने 36 ‘वनवेब’ उपग्रहों के साथ भरी उड़ान

    बाहुबली रॉकेट GSLV 3 ने 36 ‘वनवेब’ उपग्रहों के साथ भरी उड़ान

    भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज तड़के आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा से लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (LVM3) M2 उपग्रह का अपना पहला समर्पित वाणिज्यिक मिशन सफलतापूर्वक लॉन्च किया। प्रक्षेपण के बाद बोलते हुए, इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि यह शार केंद्र में उन सभी के लिए एक खुश दिवाली है क्योंकि प्रक्षेपण सफल रहा और उपग्रहों का पृथक्करण ठीक से किया गया। उन्होंने कहा, सभी उपग्रह सटीक इच्छित कक्षाओं में हैं।

    न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डी. राधाकृष्णन ने कहा कि इसरो ने तीन से चार महीने की अवधि में जटिल मिशन को शैली में अंजाम दिया था। उन्होंने बताया कि इस मिशन के माध्यम से इसरो की तकनीकी क्षमता उल्लेखनीय और अत्यधिक पेशेवर थी। मिशन निदेशक थडियस भास्करन ने कहा कि मिशन टीम ने ग्राहक के साथ समन्वय करने में एक शानदार कार्य किया है और आवश्यकताओं को अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता के अनुसार संसाधित किया है और पूरे कार्यक्रम को सफल बनाया है।

    एक वेब तारामंडल एक LEO ध्रुवीय कक्षा में संचालित होगा और एक तारामंडल के निर्माण की प्रक्रिया में प्रत्येक तल में 49 उपग्रहों के साथ 12 वलय में व्यवस्थित होगा। प्रत्येक उपग्रह हर 109 मिनट में पृथ्वी की पूरी यात्रा करेगा। तारामंडल के पूरा होने के बाद कुल 588 उपग्रह पूरी तरह से सेवा में होंगे। मिशन दूरसंचार और संबंधित सेवाओं को बढ़ाएगा। अगला चंद्रयान मिशन अगले साल होगा, इसरो के अध्यक्ष, सोमनाथ के अनुसार। श्रीहरिकोटा में लॉन्च के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया कि जल्द ही तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम में एक नया लॉन्च पैड बनाया जाएगा।

    मीडिया से बात करते हुए, वन वेब के सुनील मित्तल ने कहा, इसरो द्वारा LVM3 लॉन्च वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा। आकाशवाणी संवाददाता ने रिपोर्ट दी है कि अगली पीढ़ी के उपग्रहों को प्रमोचित करने में भारत का भविष्य उज्जवल है। वन वेब के सभी 36 उपग्रहों को चार बैचों में कक्षा में स्थापित किया गया था, जो अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से उड़ान भरने के बीस मिनट बाद शुरू हुआ था।

    रॉकेट आधी रात के आकाश में नारंगी रंग की लपटों के साथ गर्जना के साथ गर्जना कर रहा था और आकाश से कुछ सेकंड के लिए आकाश को रोशन कर रहा था। रॉकेट का प्रदर्शन बिल्कुल सामान्य था क्योंकि यह एक पाठ्य पुस्तक शैली में कक्षा में कदम रखा था। मिशन के सभी चरणों में सफल होने पर सुनील मित्तल और परिवार सहित वैज्ञानिक और गणमान्य व्यक्ति समारोह में शामिल हुए।

    Tags: Bahubali Rocker GSLV 3, ISRO Chairman, Dr Somnath, Space Centre Sriharikota, Happy Diwali SHAR centre, NSIL, satellites, Chandrayaan mission, ISRO launched LVM3, Diwali Dhamaka

  • अमित शाह की 5 ऐतिहासिक उपलब्धियां

    अमित शाह की 5 ऐतिहासिक उपलब्धियां

    अमित शाह वर्तमान भारतीय राजनीति के चाणक्य हैं। आज गृहमंत्री अमितशाह का जन्म दिन के अवसर पर संस्कृतिकराष्ट्रवाद.कॉम के पाठकों के लिए यहाँ प्रस्तुत है उनकी बचपन की फोटो।

    1. कैसे अमित शाह ने 2019 में बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में जीत हासिल की
      हम सभी शाह को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जानते हैं, लेकिन उन्हें कुर्सी जीतने के लिए अपनी ताकत साबित करनी पड़ी। अमित शाह गुजरात भवन में रह रहे थे, जब उन्हें भारत के सबसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य, उत्तर प्रदेश को जीतने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। शाह के रणनीतिक दांव से भाजपा को 80 में से 73 सीटें मिलीं।

    शाह की सामाजिक और राजनीतिक रणनीतियाँ सूक्ष्म बूथ स्तर की योजना से लेकर भाजपा के लिए गाँव-गाँव वोट सुनिश्चित करने, मौजूदा प्रमुखों के अलावा समुदाय के नेताओं को नियुक्त करने, बाड़ सितार जातियों को भाजपा के पाले में लाने के लिए खेल रही थीं। इस तरह बीजेपी को गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों का समर्थन मिला। इस सफलता के बाद, अमित शाह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की जिम्मेदारी से पुरस्कृत किया गया। 49 वर्ष की आयु में वे भाजपा के सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।

    1. 2019 में प्रचंड जीत
      अमित शाह का हमेशा एक लक्ष्य-उन्मुख दृष्टिकोण रहा है, जिसने उन्हें न केवल अपनी पार्टी के लिए जीत हासिल करने में मदद की, बल्कि उनकी प्रशंसा भी की। वह एक समर्थक थे और उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी और अटल विहारी वाजपेयी जैसे भाजपा के दिग्गजों के लिए चुनाव अभियान आयोजित करने का व्यापक अनुभव था।

    उन्होंने जो सबक सीखा और लागू किया वह नरेंद्र मोदी के करिश्मे के पूरक थे। यही कारण था कि मोदी ने 2000 के दशक में उन्हें प्रचार प्रमुख के रूप में नियुक्त करने का फैसला किया था, और यही बात नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान पर भी लागू की गई थी जब उन्होंने प्रधान मंत्री पद के लिए अपनी बोली लगाई थी।

    देर से ही सही, 2019 के लोकसभा चुनावों में वही रणनीतियां लागू की गईं, जिससे पार्टी को ऐसे समय में अपनी बढ़त बढ़ाने में मदद मिली, जब सत्ता विरोधी लहर की गंध आ सकती थी। शाह ने उन राज्यों में प्रवेश किया जहां लोगों ने कभी भाजपा को वोट नहीं दिया था और सोशल इंजीनियरिंग के साथ सूक्ष्म स्तर की योजना ने जादू किया था।

    यह भी पढ़ें: बिहार 2024 में ‘यूपी 2014’ की सफलता दोहराने जा रहे हैं अमित शाह

    1. भाजपा का ऐतिहासिक विकास
      कांग्रेस की विरासत थी। भारतीयों को यह अच्छी तरह से खिलाया गया था कि यह कांग्रेस ही थी जिसने अंग्रेजों से भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। और नेहरू-गांधी परिवार में अंध विश्वास ने स्थिति को और भी खराब कर दिया था। यह अमित शाह थे जिन्होंने गांधी परिवार का अनावरण किया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के पुनरुत्थान के लिए जगह बनाई। 2014 सिर्फ हिमशैल का सिरा था, और उसके बाद मोदी-शाह के रथ को रोकना असंभव हो गया। चुनाव के बाद चुनाव और राज्यों के बाद राज्य भाजपा के पाले में प्रवेश कर रहे थे।

    शाह ने कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा, चाहे वह दक्षिण हो, जो भाजपा को हिंदी गाय बेल्ट की पार्टी के रूप में देखता था, या उत्तर पूर्व, जो कांग्रेस का एक पारंपरिक वफादार वोट बैंक था। शाह के नेतृत्व में भाजपा ने लोगों को एहसास दिलाया कि कांग्रेस ने उनके साथ सौतेला व्यवहार किया है और परिणाम सभी के सामने है। मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा ने कश्मीर के असंभव परिदृश्य में भी अपनी सरकार बनाई और इस तरह पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।

    1. अनुच्छेद 370 . का निरसन
      कश्मीर की विशेष स्थिति का हनन भगवा पार्टी के घोषणापत्र में तब से है जब इसकी स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी, जिन्होंने ‘एक निशान, एक विधान’ की बात की थी। भाजपा ने लेखों को भेदभावपूर्ण पाया और इसके बारे में मुखर रही। हालांकि, गठबंधन धर्म ने पुराने नेताओं को अपनी मन्नतें पूरी करने से रोक दिया है.

    मोदी-शाह के तहत इस बार ऐसा कुछ नहीं था क्योंकि जम्मू-कश्मीर (पहले) में उनकी सरकारें थीं और साथ ही संसद में प्रचंड बहुमत भी था। शाह ने राज्य के कई दौरे किए और प्रावधानों के खिलाफ आम सहमति विकसित की।

    उनके अधीन गृह मंत्रालय, जिसे उन्होंने महज 2 महीने पहले संभाला था, ने प्रधान मंत्री और संसद के साथ मिलकर अनुच्छेद 370 और 35 ए को समाप्त कर दिया। राष्ट्रपति के अध्यादेश के माध्यम से संसद असाधारण थी। यह किसी संवैधानिक और विधायी तख्तापलट से कम नहीं था, जिसका श्रेय शाह को जाना चाहिए।

    यह भी पढ़ें: नीतीश का पूर्ण परित्याग और नया सीएम चेहरा, अमित शाह ने उड़ाया बिहार के लिए शंख

    1. एनआईए को खुली छूट
      केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक स्ट्रॉन्ग आर्म मैन की जरूरत थी और शायद इसीलिए पीएम मोदी ने इसे अमित शाह को सौंप दिया। शाह सिर्फ राजनीतिक रणनीतिकार ही नहीं बल्कि चुनाव विजेता और विधायक भी हैं। शाह द्वारा लिए गए कड़े फैसले यह साबित करते हैं कि कोई भी उनके जैसा नहीं कर सकता। एक उदाहरण पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर प्रतिबंध लगाना हो सकता है। पीएफआई एक ऐसा संगठन था जिसका न केवल राजनीतिक प्रतिनिधित्व था बल्कि राजनीतिक समर्थन भी था। ऐसे संगठन पर प्रतिबंध लगाने से अराजकता फैलाने की क्षमता है।

    हालाँकि, कुछ भी नहीं हुआ क्योंकि इसे अमित शाह के नेतृत्व में अंजाम दिया गया, जिन्होंने एनआईए को कार्रवाई करने के लिए खुली छूट दी। एनआईए ने 93 पीएफआई पर छापा मारा था, उसके बाद देश भर में पुलिस छापे मारे गए थे, और पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, एक मांग जो 2010 से उठ रही थी। अमित शाह ने एनआईए को घातक कार्रवाई करने के लिए खुली छूट दी थी, वह सिमी का उनका अवलोकन था। और इंडियन मुजाहिदीन गुजरात के गृह मंत्री के रूप में।

    Tags: Amit shah chanakya, Conquered Uttar Pradesh for BJ P, BJP stalwarts, Lal Krishna Advani, Atal Vihari Vajpayee, BJP Historic growth, Modi-Shah juggernaut, Vote Bank, Congress, Article 370 and 35 A, Free hand to NIA, Banned PFI

  • “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की व्यापक भावना के तहत “काशी-तमिल संगमम”

    “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की व्यापक भावना के तहत “काशी-तमिल संगमम”

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला 2014 में क्यों किया था ? इस  सवाल का जवाब वास्तव तत्काल चुनावी गणना के अलावा  सांस्कृतिक संदर्भें भी छिपा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद एक सभा को संबोधित करते हुए 13 दिसंबर, 2021 में मोदी ने कहा था कि काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन भारत को एक निर्णायक दिशा देगा और एक उज्ज्वल भविष्य की शुरुआत करेगा।

    मध्यकाल में अस्था के स्थलों पर सुनियोजित हमले हुए। किन्तु आस्था का अस्तित्व समाप्त नहीं हुआ। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मन्दिर का भव्य निर्माण हुआ था। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को साम्प्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। साँस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। यह क्रम निरंतर जारी है।

    अब ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जा रहा है।

    ज्ञान, संस्कृति और विरासत के दो प्राचीनतम केंद्रों काशी एवं तमिलनाडु के बीच की कड़ी की तलाश के लिए 16 नवंबर से 19 दिसंबर के बीच वाराणसी में काशी तमिल संगमम का आयोजन किया जाएगा। केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, ‘‘भारत सभ्यतागत जुड़ाव का प्रतीक है। काशी-तमिल संगमम ज्ञान और संस्कृति के दो ऐतिहासिक केंद्रों के जरिए भारत की सभ्यतागत संपत्ति में एकता को समझने के लिए एक आदर्श मंच होगा।इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए हमारे दो नॉलेज पार्टनर एक साथ आए हैं। भारत सरकार, @iitmadras और @bhupro , काशी-तमिल संगमम फेस्टिवल के होस्ट और पार्टनर ऑर्गेनाइजेशन हैं।’

    उन्होंने कहा कि ‘‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की व्यापक रूपरेखा और भावना के तहत आयोजित होने वाला संगमम प्राचीन भारत और समकालीन पीढ़ी के बीच सेतु का काम करेगा। उन्होंने कहा कि काशी संगमम ज्ञान, संस्कृति और विरासत के इन दो प्राचीन केंद्रों के बीच की कड़ी की पुन: तलाश करेगा।

    केंद्रीय मंत्रियों धर्मेंद्र प्रधान और एल. मुरुगन ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) ने सदियों से मौजूद तमिल संस्कृति और काशी के बीच के संबंधों की फिर से तलाश, उनकी पुष्टि और उसका उत्सव मनाने का प्रस्ताव किया है।

    सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है : 31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाने की कल्पना की गई थी।  उद्देश्य था विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बना रहे।  माननीय प्रधानमंत्री ने यह प्रतिपादित किया था कि सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता

    तमिल समागम में विविध आयोजन होंगे। जिसमें तमिल से आए कलाकार यहां के नृत्य, गायन व वादन की प्रस्तुति देंगे। वहीं शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञ दोनों शहरों के बीच के शिक्षा व्यवस्था को लेकर कार्यशाला व गोष्ठी में विचारों का आदान प्रदान करेंगे।

    यहाँ याद दिलाना जरूरी है कि 31 अक्टूबर, 2015 को आयोजित राष्ट्रीय एकता दिवस के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती मनाने की कल्पना की गई थी जिसके द्वारा विभिन्न क्षेत्रों के संप्रदायों के बीच एक निरंतर और संरचित सांस्कृतिक संबंध बनाये जा सके। माननीय प्रधानमंत्री ने यह प्रतिपादित किया था कि सांस्कृतिक विविधता एक खुशी है जिसे विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क और पारस्परिकता के माध्यम से मनाया जाना चाहिए ताकि देश भर में समझ की एक सामान्य भावना प्रतिध्वनित हो। देश के प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश का एक वर्ष के लिए किसी अन्य राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश के साथ जोड़ा बनाया जाए, इस दौरान वे भाषा, साहित्य, भोजन, त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन आदि क्षेत्रों में एक दूसरे के साथ जुडे|

    Tweets: Ek Bharat Shreshtha Bharat, Kashi-Tamil Sangamam, Prime Minister Narendra Modi, Kashi Vishwanath Dham, Tamil Culture, Dharmendra Pradhan, L. Murugan, Cultural Diversity, National Integration

  • भारत की समुद्री विरासत और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

    भारत की समुद्री विरासत और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

    1971 के भारत-पाक युद्ध में, नौसैनिक सीमाओं पर कई युद्धपोतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, आईएनएस खुकरी (एफ 149) उनमें से एक है। युद्ध के दौरान आईएनएस खुखरी पर हमला किया गया और वह डूब गया। इसकी वीरता का स्मरण करने के लिए, इसी नाम से एक खुकरी सी लास कार्वेट को कमीशन किया गया था।

    कैसे 2 भारतीय उद्यमियों ने क्रूर औपनिवेशिक ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ भारतीय शिपिंग उपस्थिति को फिर से स्थापित करने के लिए कड़ा संघर्ष किया

    राष्ट्रीय समुद्री दिवस और सिंधिया स्टीम नेविगेशन लिमिटेड का इतिहास

    व्यवसायी और आपसी मित्र,नरोत्तम मोरारजी तथावालचंद हीराचंद  यह देखा कि ब्रिटिश किसी भी भारतीय मूल के व्यक्ति को समुद्री व्यापार में उद्यम के साथ आगे बढ़ने की अनुमति नहीं देंगे। इसके बाद दोनों ने अपना लक्ष्य ऊंचा किया और यहां तक ​​कि यहां एक शिपयार्ड बनाने के लिए कदम भी उठाएविशाखापत्तनम, भारत को उनकी कंपनी सिंधिया स्टीम नेविगेशन का उपहार।

    महात्मा गांधी ने भी दो उद्यमियों द्वारा अपने अस्तित्व के लिए किए गए कठिन प्रयासों की प्रशंसा की थी, जिससे उनकी कंपनी का इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया।

    ऐसा नहीं था कि नरोत्तम मोरारजी और वालचंद हीराचंद के आने तक भारतीयों द्वारा कोई शिपिंग उद्यमशीलता के प्रयास नहीं किए गए थे। जमशेदजी और जैसे पुरुषों के शुरुआती प्रयासचिदंबरम पिल्लै– जिन्हें स्वदेशी की भावना से निकाल दिया गया था – ब्रिटिश शिपिंग कंपनियों द्वारा लगातार कुचल दिया गया था, जिन्होंने ब्रिटेन के राजनीतिक वर्चस्व के माध्यम से भारतीय जल में एकाधिकार स्थापित किया था, एनजी जोग ने अपनी पुस्तक सागा ऑफ सिंधिया में कहा है।

    यह भारतीय समुद्री इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन था और जिस दिन महान प्राचीन समुद्री यात्रा करने वाले राष्ट्र की राष्ट्रीय नौवहन का पुनर्जन्म हुआ था। उचित रूप से, 1964 से, 5 अप्रैल, प्रतिवर्ष भारत के राष्ट्रीय समुद्री दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    हड़प्पा की मुहर जिसमें एक ईख की नाव को ओरों से जोड़ा गया है। लंबी दूरी की यात्रा में नाविकों द्वारा उपयोग किए जाने वाले ऐतिहासिक डिसा-काका की ओर एवियन आकृतियों की उपस्थिति का संकेत मिलता है।

    भारत में स्वदेशी समुद्री यात्रा की एक लंबी परंपरा रही है, जो ताम्रपाषाण काल ​​के अंत से लेकर मध्यकालीन काल तक अच्छी तरह से प्रमाणित है। भारत में समुद्री यात्रा, मनुस्मृति के उस आदेश के विपरीत एक सतत प्रथा थी जिसमें समुद्र पार करने पर विशेष रूप से ब्राह्मणों द्वारा प्रतिबंध लगाया गया था। नाविक वह माध्यम बन गए जिसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराएं सरहदों से परे क्षेत्रों में रिस गईं।

    भारत में जहाज निर्माण ने उन्नीसवीं शताब्दी में गति प्राप्त की जब ईस्ट इंडियन कंपनी ने बॉम्बे डॉकयार्ड का निर्माण किया और जहाजों का निर्माण शुरू किया। अंग्रेजों ने शुरू में भारतीयों और यूरोपीय लोगों और अन्य विदेशी शक्तियों से बढ़ते समुद्री डकैती के खतरों से निपटने के लिए मरम्मत के लिए भारतीय जहाज निर्माण बंदरगाहों का इस्तेमाल किया। लगातार समुद्री युद्ध और जहाजों के तेजी से निर्माण से ब्रिटेन में ओकवुड की कमी हो गई, जिससे उन्हें अपने विदेशी उपनिवेशों में जहाजों का निर्माण करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसलिए, कंपनी को भारत में जहाज बनाने की मंजूरी दी गई थी। मार्च 1736 में, सूरत से बॉम्बे में लोजी नसरवानजी वाडिया का आगमन बॉम्बे में जहाज निर्माण के ‘स्वर्ण युग’ की शुरुआत का प्रतीक है

    भारत में जहाज निर्माण उद्योग मुख्य रूप से बॉम्बे, कोचीन, तूतीकोरिन, मांडवी और कुड्डालोर जैसे तटीय क्षेत्रों में चलाया जाता था। प्राचीन भारत में मौजूद जहाजों और शिपयार्ड का उपयोग तत्कालीन मौजूदा यूरोपीय साम्राज्यों के साथ मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता था। यूरोपीय साम्राज्यों के अलावा, भारत और कुछ अन्य दक्षिण एशियाई क्षेत्रों के बीच समुद्री मार्गों के माध्यम से व्यापार भी मौजूद था

    मुंबई, (तत्कालीन बॉम्बे) कई शासकों के लिए एक खजाना रहा है जिनके प्रभाव से इस क्षेत्र में राजनीतिक परिवर्तन हुए हैं। 1661 में, बंबई के तत्कालीन सात द्वीपों को इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय को ब्रागांजा की पुर्तगाली राजकुमारी इन्फेंटा कैथरीन के विवाह पर उपहार के रूप में दिया गया था। ब्रिटिश क्राउन ने तब द्वीपों को अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी (ईईआईसी) को किराए पर दिया, जिन्होंने बॉम्बे के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ब्लॉग 27 मार्च 1668 1 को ब्रिटिश क्राउन और ईईआईसी के बीच हस्ताक्षरित रॉयल चार्टर के परिणाम पर प्रकाश डालता है ।

    #हिंद महासागर में व्यापार और राजनीति: मध्यकालीन केरल में राज्य का गठन

    मालाबार शब्द भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र को दर्शाता है, जिसमें मलयालम भाषी क्षेत्र शामिल हैं। भौगोलिक दृष्टि से यह पश्चिमी घाट से अरब सागर तक फैला हुआ था। यूरोपीय लोगों की घुसपैठ के बाद, केरल के विभिन्न क्षेत्रों में राज्य निर्माण की प्रक्रिया और सत्ता संरचना के विचार में भारी बदलाव आया।

    #आईएनएस विराट – अनफेयरिंग लिगेसी

    यह दिन, वर्ष 2017 में, यानी 06 मार्च था, जब भारत का दूसरा विमानवाहक पोत, शक्तिशाली आईएनएस विराट राष्ट्र के लिए 30 साल की शानदार सेवा के बाद सेवामुक्त किया गया था। यह लेख इस अद्वितीय युद्धपोत को श्रद्धांजलि के रूप में लिखा गया है, जिसने हमारे देश के इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण समय में से एक के दौरान भारत के तटों को सुरक्षित रखा और नागरिकों को सुरक्षित रखा। इस प्रकार, इस लेख का उद्देश्य घड़ी को पीछे की ओर ले जाना और उन गौरवशाली दिनों को अपने एक कैप्टन की आंखों के माध्यम से देखना है, जिन्होंने आईएनएस विराट की कमान संभाली थी, जब यह भारतीय उच्च समुद्रों पर पूरी तरह से नौकायन कर रहा था।

    #भारतीय समुद्री इतिहास में महिलायें

    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की दिशा में हुई प्रगति की याद में मनाया जाने वाला एक कार्यक्रम है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, भारतीय समुद्री इतिहास में महिलाओं के विलक्षण योगदान को स्वीकार करना और उसकी सराहना करना अनिवार्य है।

    भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं का कब्जा शुरू में वर्ष 1888 में भारतीय सैन्य नर्सिंग सेवा के गठन के साथ सामने आया। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना के नर्सिंग स्टाफ ने एक उत्कृष्ट भूमिका निभाई। युद्ध के समय में उनकी प्रतिबद्धता इतनी शानदार थी कि 9 अप्रैल 1942 को महिला सहायक कोर (भारत) का गठन किया गया, जो गैर-लड़ाकू भूमिकाओं में सेवा करने के लिए महिलाओं के कार्यबल में तेजी लाएगी।

    #राष्ट्रीय समुद्री दिवस, 2021: भारत की समुद्री यात्रा

    हर साल, 5 अप्रैल को, भारत 1919 में अपनी पहली यात्रा पर शुरू की गई आधुनिक भारतीय शिपिंग को मनाने के लिए राष्ट्रीय समुद्री दिवस मनाता है। सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी के स्वामित्व वाली एसएस  लॉयल्टी ने भारत से इंग्लैंड के लिए नौकायन करते हुए एक दुस्साहसिक उद्यम बनाया।

    यह लेख हमें भारत के नौवहन विकास की यात्रा के ऐतिहासिक स्मरण, राष्ट्रीय समुद्री दिवस के महत्व को समझने और भारत के शिपिंग इतिहास में श्री वालचंद और सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी के योगदान के बारे में याद दिलाने के द्वारा दिन को संजोता है।

    #सोपारा: एक प्राचीन बंदरगाह शहर और उसके धार्मिक अवशेष

    बंदरगाह वे थे जहाँ समुद्री व्यापार फलता-फूलता था, दूर-दूर से लोग अपना माल एक नियत स्थान पर लाते थे जो अक्सर एक बंदरगाह के पास होता था और अन्य वस्तुओं के लिए इसका आदान-प्रदान करता था। यह अलेक्जेंड्रिया और रोड्स जैसे सभी प्राचीन बंदरगाह शहरों की भूमिका थी। हालांकि आज मैं एक ऐसे बंदरगाह शहर का परिचय दूंगा जो हमारे शहर-मुंबई के बहुत करीब है और एक समय में भारत के पश्चिमी तट पर एक प्रमुख समुद्री केंद्र था, यह शहर सोपारा का प्राचीन बंदरगाह शहर है।

    #नमक राजनीति: एक समुद्री परिप्रेक्ष्य

    कल्पना कीजिए कि आपके सामने स्वादिष्ट भोजन की एक थाली है जो अनुचित उपयोग या नमक की अनुपस्थिति के कारण आपके तालू पर एक अप्रिय अनुभव बन जाती है! हमारी कल्पना में भी, बिना नमक का भोजन ऐसी धुंधली तस्वीर पेश करता है। वह नमक की शक्ति है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नमक की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

    # भारतीय जहाज निर्माण का समुद्री इतिहास

    भारतीय जहाज निर्माण का समुद्री इतिहास हड़प्पा और मोहनजो-दारो में सभ्यता के समय से ही शुरू होता है। ऋग्वेद में भी उल्लेख है। इसके अलावा, प्राचीन समुद्री उद्योग के बारे में अन्य विवरण अर्थशास्त्र और प्राचीन भारतीय लोक-कथाओं के विभिन्न अन्य लेखों में प्रलेखित हैं। इन दस्तावेजों के संदर्भ में, यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि प्राचीन समुद्री भारत भी सामाजिक श्रेष्ठता की तत्कालीन प्रचलित प्रणाली से प्रमुख रूप से प्रभावित था।

    चूंकि उस युग की नावें लकड़ी से बनी थीं, इसलिए उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के लिए कड़े विनिर्देश और प्रोटोकॉल निर्धारित किए गए थे। कई अन्य अंधविश्वासी मान्यताएँ भी थीं जिन्हें युक्तिकल्पतरु नामक पुस्तक में प्रलेखित किया गया था, जिसे 6 वीं शताब्दी ईस्वी के आसपास प्रकाशित माना जाता है।

    भारत में जहाज निर्माण उद्योग मुख्य रूप से बॉम्बे, कोचीन, तूतीकोरिन, मांडवी और कुड्डालोर जैसे तटीय क्षेत्रों में चलाया जाता था। प्राचीन भारत में मौजूद जहाजों और शिपयार्ड का उपयोग तत्कालीन मौजूदा यूरोपीय साम्राज्यों के साथ मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता था। यूरोपीय साम्राज्यों के अलावा, भारत और कुछ अन्य दक्षिण एशियाई क्षेत्रों के बीच समुद्री मार्गों के माध्यम से व्यापार भी मौजूद था।

    13 वीं शताब्दी में वास्को डी गामा जैसे यूरोपीय नाविकों के आगमन के साथ , भारत में जहाज निर्माण को नुकसान हुआ क्योंकि इन नाविकों ने देश में उपनिवेशीकरण की आधारशिला रखी। हालाँकि, पश्चिमी देशों के जहाज निर्माण और नौसैनिक प्रयासों का मुकाबला करने के लिए देश के पश्चिमी भाग में भारतीय शासकों के बीच बने राजनीतिक गठबंधन के कारण, भारत में जहाज निर्माण में 17 वीं शताब्दी की ओर एक प्रकार का पुनरुत्थान देखा गया।

    लेकिन 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में देश के ब्रिटिश उपनिवेशीकरण के दौरान, भारतीय समुद्री उद्योग किले को संभालने के लिए सक्षम शासकों की कमी के कारण, भारतीय जहाज निर्माण को नुकसान उठाना पड़ा। भारतीय दृष्टिकोण से सक्षमता की इस कमी ने भी ब्रिटिश शासकों से भारतीयों के लिए एक और उत्पीड़न सुनिश्चित किया।

    लेकिन एक ओर जहां भारतीय जहाज निर्माण उद्योग को एक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा, वहीं कई ब्रिटिश जहाजों के निर्माण को भारतीय जहाज यार्ड को सौंप दिया गया, जिसने अराजक समय में भारतीय जहाज निर्माण उद्योग की आशाओं और वादों को जीवित रखा।

    वर्तमान परिदृश्य

    भारतीय जहाज निर्माण उद्योग शिपिंग क्षेत्र में शीर्ष एशियाई देशों में शामिल नहीं है। अपने अंतरराष्ट्रीय योगदान में इस कमी को भारत सरकार द्वारा एक प्रमुख समस्या क्षेत्र के रूप में लिया गया है और इस कमजोर पड़ने वाले आंकड़ों को बदलने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं।

    हालांकि, भारतीय जहाज निर्माण क्षेत्र का एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू पश्चिमी राज्य गुजरात में स्थित इसके जहाज तोड़ने वाले यार्ड के बारे में है। अलंग में लगभग 170 गज हैं जिनमें से 50 वर्तमान में जहाज तोड़ने वाले यार्ड के रूप में कार्य कर रहे हैं । फिर भी, सरकारी अधिकारियों से उचित ढांचागत समर्थन की कमी के कारण, जहाज तोड़ने वाले यार्ड में श्रमिकों की स्थिति वास्तव में खराब है और एक ऐसा क्षेत्र बना हुआ है जिसे प्राथमिकता के रूप में संबोधित करने की आवश्यकता है।

    भारतीय प्रायद्वीप समुद्री उद्योग के लिए एक मजबूत व्यवहार्यता को सक्षम बनाता है। कुछ कारकों के कारण, जबकि उसी की पूरी क्षमता को समकालीन रूप से पूंजीकृत करने में विफल रहा है, यह आशा की जा सकती है कि आने वाले दिनों में स्थिति काफी हद तक उलट हो जाएगी।

    सोपारा: एक प्राचीन बंदरगाह शहर और उसके धार्मिक अवशेष
  • “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजन

    “श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजन

    कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है।

    महाकाल दर्शन का बड़ा धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रिय महत्त्व है  महत्व है।इस बात की सुनहरी संभावनाएं हैं कि सांस्कृतिक विरासत, रोजगार और पर्यटन के अद्भुत केंद्र के रूप में यह दुनिया भर में अपनी खास जगह बनाने में सफल होगा। भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक स्थानों के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण बनने जा रहा है। इस बात की सुनहरी संभावनाएं हैं कि सांस्कृतिक विरासत, रोजगार,  पर्यटन और भारतीय राष्ट्रवाद के अद्भुत केंद्र के रूप में यह दुनिया भर में अपनी खास जगह बनाने में सफल होगा।

    भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। मध्यकाल में आक्रांताओं के आस्था के स्थलों पर बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शाश्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को सांप्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। सांस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के विश्वस्तरीय विकास का संकल्प लिया गया।

    यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां राष्ट्र प्रादुर्भाव हो चुका था। ऋग्वेद में राष्ट्र का सुंदर उल्लेख है। राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के साथ ही सांस्कृतिक व्यापकता को दर्शाने वाले वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में हैं। भारत का भौगोलिक व सांस्कृतिक क्षेत्र बहुत विस्तृत था।

    देश के मठ और मंदिर हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। भारत ने जब तक अपनी इस महान विरासत पर गर्व किया, तब तक यहां के लोग राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित रहे। तब तक भारत समर्थ रहा। वह विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठत रहा। आज उसी राष्ट्रीय स्वाभिमान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तन्मयता से जागृत करने में जुटे हैं। सोमनाथ से अयोध्या तक, विश्वनाथ से महाकाल तक, और सऊदी में भी, मंदिरो की लाईन लगा दी.है।.केदारनाथ-बदरीनाथ सहित अब शीतकालीन चारधाम यात्रा पर फोकस के साथ  अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने को है। वाराणसी में  श्री काशी विश्वनाथधाम कॉरिडोर के बाद अब उज्जैन में श्री महाकाल कॉरिडोर – राष्ट्रवाद की यह यात्रा जारी है।

    दक्षिणमुखी शिवलिंग का यह एक मात्र धाम श्री महाकाल  है। यह जागृत और स्वयंभू शिवलिंग है। बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है। आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥ की स्तुति यहां का कण-कण, जन-जन करता है।

     “श्री महाकाल लोक” में लाखों लोग एक साथ यात्रा कर सकते हैं और ठहरने के लिए सभी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। अब यहां शिव भक्त भी महाकाल के दर्शन के लिए आएंगे और वे भी आराम से रह सकेंगे। इस तरह रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। उज्जैन के पास मंदसौर, मांडू और ओंकारेश्वर के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर भी हैं। इसलिए मध्य प्रदेश में मालवा का यह पूरा क्षेत्र धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रिय महत्त्व के  गलियारे के रूप में अपनी पहचान बनाने में निश्चित रूप से सफल होगा। मालवा का क्षेत्र मौसम की दृष्टि से शांत और उत्कृष्ट माना जाता है।

    इसे मोक्ष का स्थान माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार इसे मंगल की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है। उज्जैन का इतिहास अनादि काल से माना जाता है और यह राजनीतिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक दृष्टि से भी एक उत्कृष्ट स्थान माना जाता है। उज्जैन भारत के पौराणिक और धार्मिक महत्व की सात प्रसिद्ध पुरी या शहरों में एक प्रमुख स्थान रखता है, दूसरी ओर दैवीय शक्तियां अभी भी यहां निवास करती हैं। उज्जयिनी को विशाल, प्रतिकल्प, कुमुदवती, स्वर्णश्रंग और अमरावती के नाम से भी जाना जाता है और यहां स्थित महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का सुंदर वर्णन पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महान कवियों की रचनाओं में मिलता है।

    शिव सार्वभौम अचल आत्मा हैं, शिव की पूजा शक्ति की पूजा है। शिव अव्यक्त हैं, उनके हजारों रूप हैं। “श्री महाकाल लोक” में भारत की अनुपम सांस्कृतिक विरासत को जिस सौन्दर्य से प्रदर्शित किया गया है, वह अतुलनीय है। यहां शिव शांति और शांति के अवतार हैं। “श्री महाकाल लोक” सनातन संस्कृति की पौराणिक कथाओं, इतिहास और गौरवशाली परंपरा का अद्भुत संगम और एक अनूठा नया रूप है। जिस भव्यता और सुंदरता से इसे प्रदर्शित किया गया है वह अद्भुत है।

    दरअसल, प्राचीन पवित्र सलिला मां क्षिप्रा के तट पर बसे उज्जैन के सबसे पुराने शहर का “श्री महाकाल लोक” भगवान शिव के भक्तों के स्वागत के लिए तैयार है। महाकाल मंदिर का नवनिर्मित गलियारा 108 खंभों पर बनाया गया है, 910 मीटर का पूरा महाकाल मंदिर इन्हीं खंभों पर टिका होगा। महाकवि कालिदास के महाकाव्य मेघदूत में खूबसूरती से प्रस्तुत महाकाल वन की अवधारणा को सैकड़ों वर्षों के बाद भौतिक रूप दिया गया है। दुनिया भर से उज्जैन आने वाले शिव भक्तों को शिव की महिमा का पूरा अनुभव देने का यह एक अनूठा और अद्भुत प्रयास है।

    “श्री महाकाल लोक” को भी आधुनिक व्यवस्थाओं और संसाधनों से परिपूर्ण बनाया गया है। इसकी व्यवस्था इतनी उत्तम है कि यह भक्तों और पर्यटकों को अभिभूत कर देगी। मंदिरों के साथ-साथ पूजा सामग्री, माला और फूलों की दुकानें भी विशेष रूप से लाल पत्थर से बनी हुई हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है। “श्री महाकाल लोक” के निर्माण के साथ, शिव भक्त भगवान शिव की कहानियों का अनुभव कर सकेंगे, जिनका उल्लेख पवित्र शहर उज्जैन में महाभारत, वेदों और स्कंद पुराण के अवंती खंड में किया गया है। महाकाल ज्योतिर्लिंग एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जिसका मुख दक्षिण की ओर है। सनातन धर्म में महाकाल को जीवन का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक अंग माना गया है, जिससे शांति मिलती है। इसलिए इस पूजा स्थल पर लाखों श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं।

    शिव शुभ, शुभ और प्रोविडेंस के देवता हैं, वह सदाशिव हैं, जो ब्रह्मा से ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, इसे बनाए रखने के लिए विष्णु प्राप्त करते हैं और रुद्र इसे नष्ट कर देते हैं। “श्री महाकाल लोक” में शिव, शंभू, शशिशेखर और उनकी महिमा के हजारों रूपों को खूबसूरती से उकेरा गया है। शिवलिंग सार्वभौमिक रूप से सृजन का प्रतीक है और “श्री महाकाल लोक” भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब है। शिव का एक मृत्युंजय रूप भी है, जिसकी पूजा से मृत्यु को परास्त किया जा सकता है। यहां महादेव भी हैं, जिनकी पूजा से सभी ग्रह नियंत्रित होते हैं।

    PM Modi Inaugurate ‘Mahakal Lok’ in Ujjain Today: नंदी के कान में PM Modi ने क्या कहा?
    शिव स्तम्भ के साथ सप्तऋषि
    कैलाश को लेकर रावण
    रात में प्रज्ज्वलित महाकाल लोक के भित्ति चित्र
    जब ह करने निकले
    नंदी द्वार (बाएं) आनंद तांडव मुद्राओं के साथ स्तंभ (दाएं)
    दिन में गलियारा – कमल का तालाब