“श्री महाकाल लोक” : संस्कृति, अध्यात्म और राष्ट्रवाद का स्वर्णिम संयोजन

कोणार्क का सूर्य मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तंजौर का ब्रह्मदेवेश्वर मंदिर, कांचीपुरम का तिरूमल मंदिर, रामेश्वरम मंदिर, मीनाक्षी मंदिर और श्रीनगर का शंकराचार्य मंदिर हमारी निरंतरता और परंपरा के वाहक हैं। भारत आज विश्व के मार्गदर्शन के लिए फिर तैयार है। यह करोड़ों भारतीयों का सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भी शिव के भक्त हैं और उनके नेतृत्व में देश भर में आध्यात्मिक और धार्मिक स्थलों का लगातार कायाकल्प हो रहा है। उज्जैन स्थित “श्री महाकाल लोक” भी उनमें से एक है।

महाकाल दर्शन का बड़ा धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रिय महत्त्व है  महत्व है।इस बात की सुनहरी संभावनाएं हैं कि सांस्कृतिक विरासत, रोजगार और पर्यटन के अद्भुत केंद्र के रूप में यह दुनिया भर में अपनी खास जगह बनाने में सफल होगा। भारत के धार्मिक और आध्यात्मिक स्थानों के लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण बनने जा रहा है। इस बात की सुनहरी संभावनाएं हैं कि सांस्कृतिक विरासत, रोजगार,  पर्यटन और भारतीय राष्ट्रवाद के अद्भुत केंद्र के रूप में यह दुनिया भर में अपनी खास जगह बनाने में सफल होगा।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सर्वाधिक प्राचीन है। मध्यकाल में आक्रांताओं के आस्था के स्थलों पर बेहिसाब हमलों के बाबजूद यह शाश्वत संस्कृति गरिमा के साथ कायम है। स्वतंत्रता के बाद प्रथम उप प्रधानमंत्री बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। उनके बाद ऐसे सभी विषयों को सांप्रदायिक घोषित कर दिया गया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस प्रचलित राजनीति में बदलाव हुआ। सांस्कृतिक विषयों को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा गया। तीर्थाटन और पर्यटन अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में समाहित हुए। पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के विश्वस्तरीय विकास का संकल्प लिया गया।

यह महत्वपूर्ण है कि विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास भी नहीं हुआ था तब हमारे यहां राष्ट्र प्रादुर्भाव हो चुका था। ऋग्वेद में राष्ट्र का सुंदर उल्लेख है। राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के साथ ही सांस्कृतिक व्यापकता को दर्शाने वाले वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में हैं। भारत का भौगोलिक व सांस्कृतिक क्षेत्र बहुत विस्तृत था।

देश के मठ और मंदिर हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रतीक हैं। भारत ने जब तक अपनी इस महान विरासत पर गर्व किया, तब तक यहां के लोग राष्ट्रीय स्वाभिमान से प्रेरित रहे। तब तक भारत समर्थ रहा। वह विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठत रहा। आज उसी राष्ट्रीय स्वाभिमान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तन्मयता से जागृत करने में जुटे हैं। सोमनाथ से अयोध्या तक, विश्वनाथ से महाकाल तक, और सऊदी में भी, मंदिरो की लाईन लगा दी.है।.केदारनाथ-बदरीनाथ सहित अब शीतकालीन चारधाम यात्रा पर फोकस के साथ  अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण पूर्ण होने को है। वाराणसी में  श्री काशी विश्वनाथधाम कॉरिडोर के बाद अब उज्जैन में श्री महाकाल कॉरिडोर – राष्ट्रवाद की यह यात्रा जारी है।

दक्षिणमुखी शिवलिंग का यह एक मात्र धाम श्री महाकाल  है। यह जागृत और स्वयंभू शिवलिंग है। बाबा महाकाल की उत्पति अनादि काल में मानी गई है। आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् । भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥ की स्तुति यहां का कण-कण, जन-जन करता है।

 “श्री महाकाल लोक” में लाखों लोग एक साथ यात्रा कर सकते हैं और ठहरने के लिए सभी सुविधाएं प्रदान की गई हैं। अब यहां शिव भक्त भी महाकाल के दर्शन के लिए आएंगे और वे भी आराम से रह सकेंगे। इस तरह रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। उज्जैन के पास मंदसौर, मांडू और ओंकारेश्वर के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर भी हैं। इसलिए मध्य प्रदेश में मालवा का यह पूरा क्षेत्र धार्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रिय महत्त्व के  गलियारे के रूप में अपनी पहचान बनाने में निश्चित रूप से सफल होगा। मालवा का क्षेत्र मौसम की दृष्टि से शांत और उत्कृष्ट माना जाता है।

इसे मोक्ष का स्थान माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार इसे मंगल की उत्पत्ति का स्थान माना जाता है। उज्जैन का इतिहास अनादि काल से माना जाता है और यह राजनीतिक, आध्यात्मिक और साहित्यिक दृष्टि से भी एक उत्कृष्ट स्थान माना जाता है। उज्जैन भारत के पौराणिक और धार्मिक महत्व की सात प्रसिद्ध पुरी या शहरों में एक प्रमुख स्थान रखता है, दूसरी ओर दैवीय शक्तियां अभी भी यहां निवास करती हैं। उज्जयिनी को विशाल, प्रतिकल्प, कुमुदवती, स्वर्णश्रंग और अमरावती के नाम से भी जाना जाता है और यहां स्थित महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर का सुंदर वर्णन पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महान कवियों की रचनाओं में मिलता है।

शिव सार्वभौम अचल आत्मा हैं, शिव की पूजा शक्ति की पूजा है। शिव अव्यक्त हैं, उनके हजारों रूप हैं। “श्री महाकाल लोक” में भारत की अनुपम सांस्कृतिक विरासत को जिस सौन्दर्य से प्रदर्शित किया गया है, वह अतुलनीय है। यहां शिव शांति और शांति के अवतार हैं। “श्री महाकाल लोक” सनातन संस्कृति की पौराणिक कथाओं, इतिहास और गौरवशाली परंपरा का अद्भुत संगम और एक अनूठा नया रूप है। जिस भव्यता और सुंदरता से इसे प्रदर्शित किया गया है वह अद्भुत है।

दरअसल, प्राचीन पवित्र सलिला मां क्षिप्रा के तट पर बसे उज्जैन के सबसे पुराने शहर का “श्री महाकाल लोक” भगवान शिव के भक्तों के स्वागत के लिए तैयार है। महाकाल मंदिर का नवनिर्मित गलियारा 108 खंभों पर बनाया गया है, 910 मीटर का पूरा महाकाल मंदिर इन्हीं खंभों पर टिका होगा। महाकवि कालिदास के महाकाव्य मेघदूत में खूबसूरती से प्रस्तुत महाकाल वन की अवधारणा को सैकड़ों वर्षों के बाद भौतिक रूप दिया गया है। दुनिया भर से उज्जैन आने वाले शिव भक्तों को शिव की महिमा का पूरा अनुभव देने का यह एक अनूठा और अद्भुत प्रयास है।

“श्री महाकाल लोक” को भी आधुनिक व्यवस्थाओं और संसाधनों से परिपूर्ण बनाया गया है। इसकी व्यवस्था इतनी उत्तम है कि यह भक्तों और पर्यटकों को अभिभूत कर देगी। मंदिरों के साथ-साथ पूजा सामग्री, माला और फूलों की दुकानें भी विशेष रूप से लाल पत्थर से बनी हुई हैं, जिन पर सुंदर नक्काशी की गई है। “श्री महाकाल लोक” के निर्माण के साथ, शिव भक्त भगवान शिव की कहानियों का अनुभव कर सकेंगे, जिनका उल्लेख पवित्र शहर उज्जैन में महाभारत, वेदों और स्कंद पुराण के अवंती खंड में किया गया है। महाकाल ज्योतिर्लिंग एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जिसका मुख दक्षिण की ओर है। सनातन धर्म में महाकाल को जीवन का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक अंग माना गया है, जिससे शांति मिलती है। इसलिए इस पूजा स्थल पर लाखों श्रद्धालु नियमित रूप से आते हैं।

शिव शुभ, शुभ और प्रोविडेंस के देवता हैं, वह सदाशिव हैं, जो ब्रह्मा से ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं, इसे बनाए रखने के लिए विष्णु प्राप्त करते हैं और रुद्र इसे नष्ट कर देते हैं। “श्री महाकाल लोक” में शिव, शंभू, शशिशेखर और उनकी महिमा के हजारों रूपों को खूबसूरती से उकेरा गया है। शिवलिंग सार्वभौमिक रूप से सृजन का प्रतीक है और “श्री महाकाल लोक” भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब है। शिव का एक मृत्युंजय रूप भी है, जिसकी पूजा से मृत्यु को परास्त किया जा सकता है। यहां महादेव भी हैं, जिनकी पूजा से सभी ग्रह नियंत्रित होते हैं।

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जब ह करने निकले
नंदी द्वार (बाएं) आनंद तांडव मुद्राओं के साथ स्तंभ (दाएं)
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