सूर्य मंदिर और सूर्य नमस्कार भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद Sanskritik Rashtravad के प्रतीक हैं। सूर्य नमस्कार या सूर्य नमस्कार 12 शक्तिशाली योग मुद्राओं का एक क्रम है। एक बेहतरीन कार्डियोवस्कुलर कसरत होने के अलावा, सूर्य नमस्कार को शरीर और दिमाग पर अत्यधिक सकारात्मक प्रभाव के लिए भी जाना जाता है।
‘भारतीय जीवनशैली प्राकृतिक और असली जीवनशैली की दृष्टि देती है। हम खुद को अप्राकृतिक मास्क से ढंक कर रखते हैं। भारत के चेहरे पर मौजूद हल्के निशान रचयिता के हाथों के निशान हैं’। ….. George Bernard Shaw
आमतौर पर भारत में दिन सूर्य नमस्कार surynamaskar के साथ शुरु होता है। इसमें लोग सूर्य को जल चढ़ाते हैं और मंत्र पढ़कर प्रार्थना करते हैं। भारतीय लोग प्रकृति की पूजा Nature Worship करते हैं और यह इस संस्कृति की अनूठी बात है। हिंदू धर्म में पेड़ों और जानवरों को भगवान की तरह पूजा जाता है। लोग भगवान में विश्वास रखते हैं और कई त्यौहारों पर उपवास रखते हैं। वे सुबह का ताज़ा खाना गाय को और रात का आखिरी खाना कुत्ते को देते हैं। दुनिया में कहीं भी इस तरह की उदारता नहीं देखी जाती।
Sun East West Direction: सूरज की प्रिय दिशा है पूर्व, इसलिए उसे कहीं और से आना पसंद नहीं है। पश्चिम में सूरज शाम बिताता है, इसलिए वह सुबह पूर्व से ही आता है। भारत (India) में सबसे पहले सूरज अरुणाचल प्रदेश में उगता है। अरुणाचल प्रदेश में भी कई सारे शहर है। अरुणाचल प्रदेश में स्थित डोंग वैली की देवांग घाटी (Dewang Valley of Dong Valley) नामक जगह पर सबसे पहले सूरज उगता है। इस जगह पर सुबह 4 बजे ही सूरज उग जाता है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नेअक्टूबर ९, २०२२ को ट्वीट किया था , ” सूरज की पहली किरण कोणार्क के सूर्य मंदिर को अर्ध्य देती है , पश्चिम में सूरज की आखरी किरण गुजरात के मोढेरा के सूर्य मंदिर को अर्ध्य देती है। “
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी नेअक्टूबर ९, २०२२ को गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर का दौरा किया। प्रधानमंत्री के आगमन पर उनका अभिनंदन किया गया। श्री मोदी ने सूर्य मंदिर में Heritage Lighting का उद्घाटन किया। ये भारत का पहला विरासत स्थल बन गया है जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित है। उन्होंने मोढेरा सूर्य मंदिर के 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग का भी उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने इस मंदिर के इतिहास को दर्शाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को भी देखा। प्रधानमंत्री ने मोढेरा को भारत का पहला 24×7 सौर ऊर्जा संचालित गांव भी घोषित किया।मोढेरा को सदियों पहले मिट्टी में मिलाने के लिए आक्रांताओं ने क्या कुछ नहीं किया. मोढेरा पर अनगिनत अत्याचार किए जाते थे, लेकिन अब वह अपनी पौराणिकता के साथ आधुनिकता के लिए भी दुनिया के लिए मिसाल बन रहा है।
कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओड़िशा के पुरी जिले में समुद्र तट पर पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में कोणार्क में एक 13 वीं शताब्दी सीई (वर्ष 1250) सूर्य मंदिर है। मंदिर का श्रेय पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है। सन् १९८४ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।
गंग वंश राजा नरसिम्हा देव प्रथम द्वारा कोणार्क मन्दिर सूर्य देव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग ‘बिरंचि-नारायण’ कहते थे। इसी कारण इस क्षेत्र को उसे अर्क-क्षेत्र (अर्क=सूर्य) या पद्म-क्षेत्र कहा जाता था। मौजूदा सूर्य मंदिर गंगा वंश के राजा नरसिंह देव 1 (1238-64) द्वारा मुसलमानों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में निर्मित किया गया था। 17वीं शताब्दी की शुरूआत में इसे मुगल बादशाह जहांगीर के दूत द्वारा अपवित्र किए जाने के पश्चात बंद कर दिया गया था।
इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव God Sun अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं। यह मूर्ति सूर्य मन्दिर की सबसे भव्य मूतियों में से एक है। सूर्य की चार पत्नियाँ रजनी, निक्षुभा, छाया और सुवर्चसा मूर्ति के दोनों तरफ़ हैं। सूर्य की मूर्ति के चरणों के पास ही रथ का सारथी अरुण भी उपस्थित है।
मन्दिर का महामण्डप बेहद आकर्षक है, जिसका शीर्ष पिरामिड के आकार का है। इसमें विभिन्न स्तरों पर सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शनि आदि नक्षत्रों की प्रतिमाएँ हैं। इसके ऊपर विशाल आमलक है। समीप ही सूर्य की पत्नी मायादेवी व वैष्णव मन्दिर खण्डित अवस्था में है। समीप में भोगमण्डप था। एक नवग्रह मन्दिर भी यहाँ पर है।
दीवार पर मन्दिर के बाहर बने विशालकाय चक्र पर्यटकों का ध्यान खींच लेते हैं। हर चक्र का व्यास तीन मीटर से ज़्यादा है। चक्रों के नीचे हाथियों के समूह को बेहद बारीकी से उकेरा गया है। सूर्य देवता के रथ के चबूतरे पर बारह जोड़ी चक्र हैं, जो साल के बारह महीने के प्रतीक हैं।
कोणार्क के अतिरिक्त एक अन्य सूर्य मंदिर उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में कटारमल नामक स्थान पर भी स्थित है। इस कारण इसे ‘कटारमल सूर्य मन्दिर‘ कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे कुमाऊँ मंडल का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि उड़ीसा के ‘कोणार्क सूर्य मन्दिर’ के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है।
जैसे ही इस मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार से आप घुसेंगे तो सामने एक नाट्य शाला दिखाई देती है जिसकी ऊपरी छत अब नहीं है। ‘कोणार्क नृत्योत्सव’ के समय हर साल यहाँ देश के नामी कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते है।
मन्दिर को रथ का स्वरूप देने के लिए मन्दिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए। पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए। इन पहियों का व्यास तीन मीटर है। मन्दिर के डिजायन व अंकरण में उस समय के सामाजिक व सांस्कृतिक परिवेश का ध्यान रखा गया। आधार की बाहरी दीवार पर लगे पत्थरों पर विभिन्न आकृतियों को इस प्रकार से उकेरा गया कि वे जीवन्त लगें। इनमें कुछ स्थानों पर खजुराहो की तरह कामातुर आकृतियाँ तो कहीं पर नारी सौंदर्य, महिला व पुरुष वादकों व नर्तकियों की विभिन्न भाव-भंगिमाओं को उकेरा गया।
कोणार्क नाम संस्कृत के दो शब्दों से बना है: कोना, जिसका अर्थ है कोना, और अर्का, जिसका अर्थ है सूर्य। इस शहर का नाम इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण पड़ा है जिससे ऐसा लगता है जैसे सूर्य एक कोण पर उगता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर और Sun worship सूर्य पूजा का इतिहास 19 वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है। हालांकि, कोणार्क सूर्य मंदिर 13 वीं शताब्दी में बनाया गया था । कलिंग kaling का ऐतिहासिक क्षेत्र जिसमें आधुनिक Odisha ओडिशा के प्रमुख हिस्से और छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कई हिस्से शामिल हैं, पर 5 वीं शताब्दी ईस्वी से 15 वीं शताब्दी ईस्वी तक पूर्वी गंगा राजवंश के शासकों का शासन था । यह भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था जिसने कोणार्क सूर्य मंदिर और पुरी जगन्नाथ मंदिर जैसे राजसी मंदिरों को अस्तित्व दिया।
भारतीय सांस्कृतिक विरासत के लिए इसके महत्व को दर्शाने के लिए भारतीय १० रुपये का नोट के पीछे कोणार्क सूर्य मंदिर को दर्शाया गया है। सूर्य की इस मन्दिर में मानवीय आकार में मूर्ति है जो अन्य कहीं नहीं है।
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