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    Home»Articles»सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के संस्थापक प्रभु श्री राम
    Articles

    सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के संस्थापक प्रभु श्री राम

    Premendra AgrawalBy Premendra AgrawalOctober 10, 2022Updated:February 16, 2023No Comments
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    अयोध्या में भव्य राम मंदिर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का प्रतीक

    अयोध्या में श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण से भारत के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जुड़ रहा है। वास्तव में भारत का राष्ट्रवाद राजनीतिक नहीं, भौतिकवादी नहीं, सांस्कृतिक है और उस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की सबसे पहली घोषणा श्री राम ने की थी। इसलिए वे राष्ट्र पुरुष हैं, केवल धार्मिक नहीं। श्री राम ने लंका जीत ली। अयोध्या वापसी की तैयारी होने लगी तो लक्ष्मण ने कहा,‘‘भैया अब सोने की लंका हमारी है-हम यहीं पर क्यों न रहें-अयोध्या जाने की क्या आवश्यकता है-तब श्री राम ने उत्तर दिया था:

    ‘‘अति स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते

    जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’

    यही है भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और उसके बाद के देश के पूरे इतिहास में इसी राष्ट्रवाद की झलक मिलती है।

    विश्व में शायद कोई ऐसा देश नहीं जिसकी भौगोलिक सीमाएं हजारों वर्ष पहले के ग्रंथों में मिलती हैं।

    यूनान, मिश्र, रोमयां सब मिट गए जहां से,

    बाकि मगर है अब तक नामोनिशा हमारा।

    कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

    सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा।

    हजारों वर्ष पूर्व विष्णु पुराण में कहा गया है :-

    उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रे चैव दक्षिणम्

    वर्षम् तद् भारत नाम भारती यत्र संतित

    आसिन्धु सिन्धु पर्यन्त: यस्य भारत भूमिका

    पितृभु: पुण्यभूश्चेव स वे हिन्दुरिति स्मृत

    अर्थात जो समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है, उसका नाम भारत है और भारतीय उसकी संतान हैं। हिमालय से लेकर समुद्र तक जो भारत भूमि को पितृभूमि और पुण्य भूमि समझता है वह ही हिंदू है।

    सितम्बर 6, 2022 को मुंबई में पुणे की एक सामाजिक संस्था ग्लोबल स्ट्रेटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन द्वारा ‘राष्ट्र प्रथम-राष्ट्र सर्वोपरि’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा कि अंग्रेजों ने मुसलमानों से अलग रास्ते जाने को कहा था. उन्होंने ही मुसलमानों के मन में  डर पैदा किया था।

    रा. स्व. संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा, जब से इस्लाम भारत आया है, तब से यहीं है. आजादी के बाद भी यहीं है. मुस्लिमों को भारत में डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन हमें मुस्लिम वर्चस्व की नहीं बल्कि भारत के वर्चस्व की सोच रखनी होगी. हमारी प्यारी मातृभूमि और समृद्ध विरासत इस देश में एकता का आधार है.

    आगे उनहोंने कहा कि हिंदू शब्द मातृभूमि, हमारे पूर्वज व भारतीय संस्कृति की विरासत का परिचायक है. हिंदू हमेशा सभी की भलाई पर जोर देता रहा है, इसलिए दूसरे के मत का यहां अनादर नहीं होगा. इस कार्यक्रम में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हुसैन अन्य प्रमुख वक्ताओं में शामिल थे।

    महात्मा गांधी ने कहा – ‘‘ हिन्दुत्व सत्य के अनवरत षोध का ही दूसरा नाम है।‘‘

    भू.पू. राश्टंपति महान दार्षनिक डा. राधाकृश्णन की मान्यता रही है कि ‘‘ हिन्दू तो एक जीवन पद्धति है। यहहमारे जीवन का अंग है , हमारे धर्म का नहीं।“

    भारत में भी इसी मनोवृत्ति के कुछ देशभक्त मुसलमान हैं। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद करीम छागला ने कहा  था, ‘‘मेरी रगों में ङ्क्षहदू ऋषियों का खून दौड़ता है। हमारे पूर्वजों ने पूजा पद्धति बदली थी, अपने बाप-दादा नहीं।’’

    ‘ महाभारत ‘ दूरदर्षन धारावाहिक के संवाद लेखक डा. राही मासूम रज़ा ने एक लेख में कहा था-
    ‘‘ हिन्दू षब्द किसी धर्म से ताल्लुकनहीं रखता। ईरान और अरब के लोग हिन्दुस्तानी मुसलमान को भी हिन्दू कहतेहैं। यानी हिन्दू नाम है हिन्दुस्तानी कौम का, मैंने अपनी थीसिस में यही बात लिखी थी तो उर्दू के मषहूर विद्वानने यही बात काट दी थी‘‘ अतएव हम सभीभारतीयों को चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हों हिन्दू षब्द को वास्तविक अर्थ में अपनाना चाहिए।

    डा. राही मासूम रज़ा ने लिखा था-‘‘मैं एक मुसलमान हिन्दू हूं। कोई विक्टर इसाई हिन्दू होगा और कोई ‘मातादीन‘ वैश्णव या आर्य समाजी हिन्दू एक देष में कई धर्म समा सकते हैं परंतु एक देष में कई कौमें नहीं समा सकती। मेरे पुरखों में गालिब और मीर के साथ सूर, तुलसी और कबीर भी आते हैं।‘‘


    हमारे राश्टंपुरूश कौन हैं?

    न गोरी रहा है न बाबर रहा है
    मगर राम युग युग उजागर रहा है

    अधिकांष मुस्लिम बंधुओं को उनके कट्टरपन और हमारी सरकार की तुश्टीकरण की नीति ने यह सोचने ही नहीं दिया कि मुगलकाल से पहले भी भारत था। वे भी मुगलकालीन भारत के ही नहीं विष्व के सर्वाधिक प्राचीन गौरवषाली जगत गुरू, भारत के वंषज हैं। यही बात ईसाइयों पर भी लागू होती
    है। भय और लोभ के कारण अनेक लोगों ने धर्म परिवर्तित किया और कुछ लोगों ने जीवन पद्धति भी बदल डाली। अंग्रेजों ने भी अपने षासनकाल में अनेकों को इसाई बनाया और जो इसाई नहीं बने उन्हे लार्ड मेकाले की षिक्षा नीति ने अंग्रेजी सभ्यता का गुलाम बना दिया इन सब बातों का प्रभाव हम
    आज भी भारत में देख रहे हैं और ये ही राष्ट्रीय एकता में बाधक है।

    डा. हेडगेवार ओर वीर सावरकर ही नहीं डा. राधाकृश्णन जैसे महान व्यक्तियों के विचार रहे हैं कि धर्मान्तरण करने वाला संस्कृति की दृश्टि से हिन्दू रह सकता है।


    स्वामी विवेकानन्द के इस उद्धरण का हमें स्मरण करना चाहिए
    ‘‘मुझे अपने पूर्वजों को अपनाने में कभी लज्जा नहीं आई। मैं सबसे गर्वीले
    व्यक्तियों में से एक हूं।……..जितनी ही मैंने भूतकाल पर दृश्टि डाली यह गर्व
    मुझमें बढ़ता ही गया है।………तुम्हारे रक्त में भी अपने पूर्वजों के लिये उसी
    श्रद्धा का संचार हो जाये।‘‘

    दो साल पहले 5 अगस्त को ही पीएम मोदी ने रखी थी भव्य राम मंदिर की नींव। अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण का लगभग आधा काम पूरा हो चुका है और 2024 तक देश विदेश के श्रद्धालु यहां आकर प्रभु श्री राम के दर्शन कर सकेंगे। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने जाहिर की खुशी। राम जन्मभूमि में रामलला का मंदिर दिसंबर 2023 तक बनकर तैयार होना है।  मंदिर के प्रथम तल का निर्माण कार्य किया जा रहा है. जिसको लेकर कार्यदाई संस्था एलएनटी और टाटा के इंजीनियर 24 घंटे कार्य कर रहे हैं।  मंदिर निर्माण में भूतल पर पूरब-पश्चिम दिशा में लंबाई 380 फिट है. भूतल पर उत्तर दक्षिण दिशा में चौड़ाई 250 फीट है. जिसमें बलुआ पत्थर के 166 स्तंभ, प्रथम तल में 144 और दूसरे तल में 82 स्तंभ बनाए जाएंगे यानी मंदिर में कुल 392 स्तंभ होंगे।

    अयोध्या में बुधवार अगस्त 5, 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर का शिलान्यास सिर्फ मंदिर आंदोलन का उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचना भर नहीं है। इस आंदोलन का लक्ष्य भी मंदिर बनवाने तक सीमित नहीं था। यह लक्ष्य था देश की राजनीतिक मुख्यधारा को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार के इर्दगिर्द संचालित करने का।

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