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कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती

Premendra Agrawal by Premendra Agrawal
December 13, 2022
in Article, English, Politics, Sanskritik Rastravad
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कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती
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शनिवार, 10 दिसंबर, 2022 को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने घोषणा की कि उसने ‘सलाम आरती’ का नाम बदलने का फैसला किया है, जो 18वीं शताब्दी के इस्लामिक अत्याचारी टीपू सुल्तान द्वारा शुरू की गई एक रस्म थी। मंत्री शशिकला जोले ने स्पष्ट किया कि केवल नाम बदले जाएंगे और रस्म हमेशा की तरह जारी रहेगी।“देवतिगे सलाम का नाम बदलकर देवीतिगे नमस्कार, सलाम आरती को आरती नमस्कार, और सलाम मंगलारती को मंगलारती नमस्कार करने का निर्णय लिया गया है। मंत्री शशिकला जोले ने कहा, “इन फारसी नामों को बदलने और मंगला आरती नमस्कार या आरती नमस्कार जैसे पारंपरिक संस्कृत नामों को बनाए रखने के प्रस्ताव और मांगें थीं। इतिहास को देखें तो हम वही वापस लाए हैं जो पहले चलन में था।”

विश्व इतिहास में भारतीय संस्कृति का वही स्थान एवं महत्व है जो असंख्य द्वीपों के सम्मुख सूर्य का है.” भारतीय संस्कृति अन्य संस्कृतियों से सर्वथा भिन्न तथा अनूठी है. अनेक देशों की संस्कृति समय-समय पर नष्ट होती रही है, किन्तु भारतीय संस्कृति आज भी अपने अस्तित्व में है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति सृष्टि के इतिहास में सर्वाधिक प्राचीन है भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता की अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है और कहा है ।”

यह फैसला हिंदुत्ववादी तथा अन्य संगठनों ने संगठनों की मांग पर लिया गया। इन संगठनों ने राज्य सरकार से टीपू सुल्तान के नाम पर होने वाले अनुष्ठानों को खत्म करने की मांग की थी, जिसमें सलाम आरती भी शामिल थी। इससे स्पष्ट है कि जनता की मांग पूरी कर रही है कर्णाटक की सर्कार सरकार।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से दिए पंच प्राण में से एक गुलामी के सारे प्रतीक चिह्नों के खात्मे का आह्वान किया था। ताकि आजादी के अमृतकाल में विकसित भारत की ओर कदम बढ़ा रहा देश स्वाभिमानी भारत बन सके। मोदी सरकार ने इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए हैं। ब्रिटिश काल के कई कानूनों के खात्मे से लेकर राजपथ से कर्तव्य पथ तक। 

“दी इंडियन पीनल कोड” की पांडुलिपि लॉर्ड मैकॉले ने तैयार की थी। अंग्रेजी को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इनका बड़ा हाथ था। भारत मे नौकर उत्पन्न करने का कारखाना खोला जिसे हम school , college , university कहतें हैं ।ये आज भी हमारे समाज हर साल लाखों के संख्या में देश मे नौकर उत्पन्न करता है जिसके कारण देश मे बेरोजगारी की सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हुई जो आज पूरे देश मे महामारी की तरह फैल रही है। भारत की बेरोजगारी की बजह भारत की राजनीति को जाता है भारत मे इस समय बेरोजगारी,आर्थिक व्यवस्था चरम सीमा पर पहुंच गयी हैं भारत की समस्या पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है सबसे बड़ी समस्या ये है कि इन्होने भारत की भाषा हिंदी को ही बदल के सरकारी जगहों पर अंग्रेजी को लागू कर दिया जो अब भी हर जगह मौजूद हैं।

यह सही समय है जब हम गुलामी के प्रतीक चिह्नों से पीछा छुड़ाकर देश को मानसिक गुलामी की दासता से मुक्त करें, ताकि नई पीढ़ी एक स्वाभिमानी और समृद्ध राष्ट्र में सांस ले सकें। समग्रता में देखें तो 2014 से अब तक मोदी सरकार ने लगभग अंग्रेजी हुकूमत की याद दिलाने वाले सैकड़ों कानूनों को तिलांजलि दी है।

राजपथ का नामकरण इंग्लैंड के महाराज किंग जार्ज पंचम के सम्मान में किया गया था। गुलामी के उस प्रतीक को हटाना अनिवार्य हो गया था। मोदी सरकार ने यहां पर सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का निर्णय किया, जिन्हें स्वतंत्र भारत के कथित इतिहासकारों ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वह सर्वथा सुपात्र थे। इसी प्रकार नौ सेना के नए ध्वज से ब्रिटिश नौसेना के उस प्रतीक को हटा दिया गया, जो पता नहीं किन कारणों से इन 75 वर्षों तक हमारी सामुद्रिक सेना के ध्वज से चिपका रहा। यह उचित ही है कि अब नौसेना के ध्वज में स्वाभिमान के पर्याय छत्रपति शिवाजी के प्रतीक की छाप अब नजर आ रही है। इससे पहले गणतंत्र दिवस पर बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में कई वर्षों से बजाई जाने वाली अंग्रेजी धुन के बजाय भारतीयता से ओतप्रोत धुन को वरीयता दी गई।

वही sugar coated कुत्सित प्रयास इस्लामिक अत्याचारी टीपू ने किया था। इसी कारण वर्त्तमान में भी इस्लामिक अत्याचारी टीपू के भक्त राजनीतिक कारणों से कर्णाटक में मौजूद हैं। कोल्लूर में मूकाम्बिका मंदिर के पुजारी के अनुसार, टीपू ने जो किया वह धर्म या लोगों के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए किया। पुजारी का कहना है , ‘जब टीपू सुल्तान मैसूर क्षेत्र पर शासन कर रहा था तो वह इस मंदिर को नष्ट करने आया था लेकिन दैवीय शक्तियों के कारण प्रवेश नहीं कर सका। जब वे देवता को प्रणाम करने आए, तो आरती की जा रही थी, उन्होंने आरती का नाम ‘सलाम आरती’ रखा। उस दिन से, टीपू सुल्तान के मंदिर में आने की याद में सलाम आरती की जाती है।’

कर्नाटक के मंदिरों में गुलामी के प्रतीक सलाम आरती की जगह अब होगी संध्या आरती मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान कई विवादों के केंद्र में रहे हैं। वाम-उदारवादी टुकड़े टुकड़े गैंग और मुस्लिम तुष्टिकरण तथा वोट बैंक पॉलिटिक्स  ने मार्क्सवादी विकृतियों के साथ-साथ अत्याचारी शासक का महिमामंडन किया है। बार-बार, सुल्तान को एक बहादुर और क्रूर योद्धा के साथ-साथ एक धर्मनिरपेक्ष, समावेशी, शांतिपूर्ण नेता के रूप में चित्रित किया गया है। ‘एक योद्धा जो कभी कोई युद्ध नहीं हारा’। पर यह सही इतिहास नहीं है। टीपू एक तानाशाह और धार्मिक उन्मादी से ज्यादा कुछ नहीं था, जो जबरदस्ती धर्मांतरण और नरसंहार के लिए जाना जाता है। खैर, इतने दशकों के बाद यह कैसे मायने रखता है? यह करता है, क्योंकि इतिहास किसी भी देश के राजनीतिक पाठ्यक्रम को निर्धारित करता है और इस प्रकार राष्ट्र के भविष्य को प्रभावित करता है। और भारत के साथ भी यही हो रहा है।

टीपू सुल्तान का विरोध करने के ये हैं प्रमुख आधार
विरोध करने के ये हैं प्रमुख आधार

• टीपू धर्मनिरपेक्ष नहीं, बल्कि एक असहिष्णु और निरंकुश शासक था। 2015 में आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य में भी टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक लेख छपा था, जिसमें टीपू को दक्षिण का औरंगजेब बताया गया था।

• टीपू सुल्तान के संबंध में प्रसिद्ध लेखक चिदानंद मूर्ति कहते हैं, ‘वो बेहद चालाक शासक था। उसने दिखावे के लिए मैसूर में हिंदुओं पर अत्याचार नहीं किया, लेकिन तटीय क्षेत्र जैसे मालाबार में हिंदुओं पर बेहद अत्याचार किए।’

• ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखा है कि टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और इस दौरान उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध कर लटकाया गया। इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं।

• केट ब्रिटलबैंक की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और 70,000 से ज्यादा ईसाइयों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया, उन्हें मजबूरी में अपने-अपने बच्चों को शिक्षा भी इस्लाम के अनुसार देनी पड़ी। इनमें से कई लोगों को बाद में टीपू सुल्तान की सेना में शामिल किया गया।

• एकेडमिक माइकल सोराक के मुताबिक इस वक्त टीपू की छवि कट्टर मुगल बादशाह के तौर पर पेश करने के लिए उन फैक्ट को आधार बनाया गया, जो 18वीं सदी में अंग्रेज अधिकारी टीपू सुल्तान के लिए इस्तेमाल करते थे।

• सांसद राकेश सिन्हा ने नवंबर 2018 में कहा था कि ‘टीपू ने अपने शासन का प्रयोग हिंदुओं का धर्मांतरण करने के लिए किया और यही उनका मिशन था। इसके साथ ही उसने हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा। हिंदू महिलाओं की इज्जत पर प्रहार किया और ईसाइयों के चर्चों पर हमले किए। इस वजह से हम ये मानते हैं कि उनकी जयंती पर समारोह आयोजित करने से युवाओं में गलत संदेश जाता है।’

Tags: Abolition of slavery symbolsIndian culture UniqeKarnataka TemplesPersian Salam AartiSandhya Aarti. BJP Karnatak governmentSlavery SymbolTipu BhaktVeer Savarkar
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